अमर शहीद सुखदेव- भाग 1: समाजवादी क्रांतिकारी आंदोलन का एक गौरवशाली स्वर्णिम पृष्ठ

भारत के तीन महान समाजवादी क्रांतिकारी – सुखदेव (पूरा नाम: सुखदेव थापर – जन्म 15 मई 1907 – शहादत दिवस 23 मार्च 1931 -लुधियाना, पंजाब), भगत सिंह (जन्म 28 सितंबर 1907 – शहादत दिवस 23 मार्च 1931 – गाँव बंगा – अब पाकिस्तान), और राजगुरु (जन्म 24 अगस्त 1908 – शहादत दिवस 23 मार्च  1931-पूरा नाम: शिवराज हरि राजगुरू- जन्मस्थान खेड़ा गांव, महाराष्ट्र-मराठी) को 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई। इन तीनों शहीदों की आयु 25 वर्ष से कम थी। अमर शहीद सुखदेव एक महान समाजवादी चिंतक, धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थे। वह भारतीय समाजवादी क्रांतिकारी आंदोलन का एक गौरवशाली स्वर्णिम पृष्ठ है।

विस्तार

सुखदेव थापर (15 मई, 1907- 23 मार्च, 1931) एक महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, कट्टर समाजवादी, महान देशभक्त, विचारक, कुशल संगठनकर्ता, तेज तर्रार वक्ता, उत्कृष्ट वाद-विवाद कर्ता, सर्वोच्च आत्म-बलिदान कर्ता और असाधारण बुद्धिमान युवक थे। काकोरी षड्यंत्र, सेंट्रल असेंबली बम षड्यंत्र और सबसे बढ़कर लाहौर षड्यंत्र जैसी कई क्रांतिकारी गतिविधियां और षड्यंत्र उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर रचे थे
अन्य क्रांतिकारियों की भांति सुखदेव को क्रांतिकारी सर्कल में अनेक छद्म नाम- “ग्रामीण”, “किसान”,”गवार”, “स्वामी” और “दयाल” थे। भगत सिंह छद्म नामों -‘बलवंत’,’विद्रोही’ ,’बीएस संधू’, ‘पंजाबी युवक’ इत्यादि का प्रयोग करते थे।

 (https://samajweekly।com/bhagat-singh-as-a-journalist/)

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

15 मई, 1907 को पंजाब के प्रसिद्ध शहर लुधियाना के नौघरा मोहल्ले में प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुखदेव का जन्म श्रीमती रल्ली देवी और श्री रामलाल थापर (आर्य समाजी) के घर हुआ था। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान में ट्रिब्यून ट्रस्ट, चंडीगढ़ के अध्यक्ष ,एनएन वोहरा ने मुझे लिखा कि सुखदेव ‘मेरे मामा, मेरी माँ के चचेरे भाई थे, जिनका पालन-पोषण उन्होंने किया था, क्योंकि उनकी मां की मृत्यु बहुत जल्दी हो गई थी’। उनके माता-पिता की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो गई थी, इसलिए उनका पालन-पोषण उनके मामा लाला अचिंत राम थापर (एनएन वोहरा के नाना) की देखरेख में लायलपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ। सुखदेव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा श्री सनातन धर्म स्कूल, लायलपुर (अब पाकिस्तान) में प्राप्त की और उच्च अध्ययन के लिए उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश लिया।

(*भारत सरकार के इंडियन कल्चर   पोर्टल  पर सुखदेव का जन्म स्थान नौघरा गांव लुधियाना दर्शाया गया है। इसकी जगह नौघरा मोहल्ला, लुधियाना लिखकर भूल सुधार किया जाना चाहिए। (*https://indianculture।gov।in/node/2806404)

सुखदेव के चिंतन और व्यक्तित्व पर प्रभाव

प्रत्येक व्यक्ति के चिंतन और व्यवहार पर समकालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। सुखदेव के प्रारम्भिक काल में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। और उनका पालन-पोषण उनके लाला अचिंत राम ने किया, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य व ब्रिटिश साम्राज्यवाद के धुरंधर विरोधी थे। आर्य समाज और सिविल सोसायटी के अग्रणीय कार्यकर्ता होने कारण वह किसान आंदोलनों, “अछूतों” के सामाजिक सुधार और हिंदू-मुस्लिम एकता के अभियानों में सक्रिय भाग लेते थे। लाला अचिंत राम एक धैर्यवान, साहसी, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। 

सुखदेव की आयु केवल 12 वर्ष की थी जब अराजक एवं क्रांतिकारी आपराधिक अधिनियम 1919 (रौलट एक्ट) के विरुद्ध पंजाब में आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण उनको गिरफ्तार कर लिया। इसके पश्चात सन् 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण दोबारा फिर गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया। एनएन वोहरा के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण लाला अचिंत राम 19 वर्ष जेल रहे। इस घरेलू परिवेश का सुखदेव के मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।

 सुखदेव: जलियां वाला बाग सुनियोजित नरसंहार(13 अप्रैल 1919) का प्रभाव विश्व प्रथम विश्व युद्ध (सन् 1914- सन् 1918) के समय अंग्रेजी सरकार का यह कहना था ‘युद्ध स्वतंत्रता के लिए लड़ा जा रहा है’। विश्व युद्ध के दौरान जनता से बलपूर्वक युद्ध का चंदा इकट्ठा करना, अभूतपूर्व महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, जनता पर कर्ज, महामारी, असंतुलित मानसून, आर्थिक मंदी का दौर, गदर पार्टी के क्रांतिकारी आंदोलन का पंजाबी युवाओं पर निरंतर बढ़ता हुआ प्रभाव एवं तुर्की में पैन इस्लामिक मूवमेंट के कारण भारतीय जनता में भी असंतोष की भावना चरम सीमा पर थी।

सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अराजक एवं आपराधिक अधिनियम 1919 (रौलट एक्ट )लागू किया। इन काले कानूनों के विरुद्ध ‘नो अपील, नो दलील, नो वकील‘ का नारा हिंदुस्तान में फैल गया।

इन कानूनों का पंजाब में विरोध हुआ। 13 अप्रैल पंजाब में वैशाखी के दिन के रूप में मनाया जाता है। परिणाम स्वरूप 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में वैशाखी मनाने और रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए लगभग 20,000 लोग शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे। इस शांतिपूर्ण समारोह पर सुनियोजित योजना के आधार पर भारतीयों को सबक सिखाने तथा दबाने के लिए ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड (एडवर्ड डायर) सैनिकों की टुकड़ी के साथ शाम 5 बजकर, 15 मिनट पर सभा स्थल पर गए और बिना चेतावनी दिए गोली चलाने के आदेश दिए।

सैनिक टुकड़ी ने लगभग 1650 गोलियां फायर की तथा फायरिंग गोलियां समाप्त होने तक चलती रही। लगभग 15 मिनट में अमृतसर के सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार 1800 लोग मारे गए।जलियांवाला बाग हत्याकांड सन् 1857 की जन क्रांति के पश्चात रक्तरंजित बर्बरता, निर्दयता एवं अमानवीय नरसंहार 20वीं शताब्दी प्रथम मिसाल थी। समस्त भारत में जलियांवाला बाग के सुनियोजित नरसंहार के परिणाम स्वरूप जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था और इसके बाद जन आंदोलन किसानों और मजदूरों के संघर्षों एवं राष्ट्रीय आंदोलन में एक नया मोड़ आया।दूसरे शब्दों में ब्रिटिश साम्राज्यवाद पतन की ओर अग्रसर हुआ।

(https://theasianindependent।co।uk/shaheed-e-azam-udham-singh-a-glorious-page-of-indian-revolutionary-history/)

यद्यपि इस समय सुखदेव की आयु केवल 12 वर्ष की थी। परंतु अन्य युवाओं-उधम सिंह, भगत सिंह इत्यादि की भांति उन के दिल और दिमाग पर ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार के द्वारा किए गए अत्याचारों का गहरा प्रभाव पड़ा और उनका अभिमुखीकरण इस अल्पायु में ही क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर होने लगा और वह बचपन से बगावती हो गए।

सुखदेव- नेशनल कॉलेज, लाहौर: युवा क्रांतिकारियों से मुलाकात

सन् 1922 में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुखदेव ने नेशनल कॉलेज, लाहौर में दाखिला लिया। नेशनल कॉलेज लाहौर की स्थापना सन् 1921 में लाला लाजपत राय के द्वारा की गई थी। अपनी स्थापना से ही यह महाविद्यालय राष्ट्रवादियों एवं क्रांतिकारियों की गतिविधियों की नर्सरी बन गया। उस समय लाहौर उत्तर- पश्चिमी भारत में राष्ट्रीय आंदोलन एवं क्रांतिकारी गतिविधियों का मुख्य केंद्र था। इस महाविद्यालय में प्राचार्य छबीलदास तथा विद्यालंकार जैसे शिक्षकों के सानिध्य़ व प्रेरणा ग्रहण करते हुए सुखदेव कांग्रेस समर्थित सत्याग्रह लीग के सदस्य बन गए। यह उनका राष्ट्रीय आन्दोलन में गतिविधियों की ओर प्रारम्भिक कदम था। लाहौर में शिक्षा ग्रहण करते समय सुखदेव की मुलाकात भावी युवा क्रांतिकारियों- भगत सिंह, यशपाल, गणपत राय, भगवती चरण वोहरा इत्यादि से हुई।

सुखदेव: समाजवादी साहित्य का प्रभाव

सुखदेव एक विचारक, चिंतक एवं उत्कृष्ट अध्येता थे। सुखदेव की सोच पर समाजवाद, पश्चिमी देशों में क्रांतिकारी आंदोलनों, मार्क्सवाद, राष्ट्रवाद और राजनीति विज्ञान पर साहित्य और टेरेंस जे। मैकस्विनी की ‘स्वतंत्रता के सिद्धांत’, मार्क्स की ‘फ्रांस में गृहयुद्ध’ और बुखारिन की ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ आदि पुस्तकों का स्थायी प्रभाव रहा। सुखदेव ने उर्दू अखबार ‘बंदे मातरम’ में भी काम किया, लेकिन लेखन में उनकी रुचि लगभग नगण्य थी। यही कारण है कि उन्होंने महात्मा गांधी को एक पत्र, अपने चाचा को एक पत्र और अपने साथियों को तीन पत्रों सहित कुल पांच छोटे लेख/पत्र लिख लिखे।

दुर्गा भाभी।

सुखदेव के राजनीतिक चिंतन पर मार्क्सवाद-लेनिनवाद का गहरा प्रभाव था।वह एचआरएसए के मुख्य रणनीतिकारों में होने के कारण आतंकवादी एवं अराजकतावादी गतिविधियों के शत-प्रतिशत विरूद्ध थे। एचएसआरए का मुख्य उद्देश्य भारत में ‘समाजवादी गणराज्य’ की स्थापना करना था। सुखदेव के अनुसार, ‘एचएसआरए और क्रांतिकारी समाजवादी गणराज्य की स्थापना के लिए खड़े हैं। जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता, संघर्ष जारी रहेगा।’ इससे यह स्पष्ट होता है कि वह पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के गठबंधन के खिलाफ थे। सुखदेव के मित्र शिव वर्मा के अनुसार, ‘भगत सिंह के बाद, अगर किसी साथी ने समाजवाद पर सबसे अधिक पढ़ा और मनन किया, तो वह सुखदेव थे।’ यह स्पष्ट है कि कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा लिखित कम्युनिस्ट घोषणापत्र (1848) और लेनिन का प्रभाव सुखदेव की सोच में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वह न केवल राष्ट्रवादी थे बल्कि कट्टर समाजवादी भी थे।

(https://m।thewire।in/article/history/remembering-sukhdev-the-shadowed-intellectual-of-the-hindustan-socialist-republican-association/amp)

सुखदेव :क्रांतिकारी संगठनों की सदस्यता एवं नेतृत्व

नौजवान भारत सभा सदस्य: युवाओं में  एक नई चेतना के उत्प्रेरक

1. नौजवान भारत सभा के सदस्य थे। उन्होंने पंजाब और उत्तरी भारत के अन्य क्षेत्रों में क्रांतिकारी आंदोलनों की शुरुआत की। मार्च, 1926 में भगत सिंह के द्वारा नौजवान सभा की स्थापना की गई। सुखदेव नौजवान सभा के अग्रणीय सदस्यों में थे। वे एक अच्छे वाद-विवाद कर्ता थे। उनके धारा प्रवाह, जोशीले एवं तेज तर्रार भाषणों के कारण तत्कालीन अविभाजित पंजाब व उत्तरी भारत के अन्य क्षेत्रों के युवाओं में एक नई चेतना व जागरूकता आई। युवा नौजवान भारत सभा के युवा सदस्यों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।परिणाम स्वरूप अविभाजित पंजाब में क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी भड़क उठी।

2. सुखदेव :हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) : संस्थापक व पंजाब इकाई के सचिव  


दिल्ली में फिरोज शाह कोटला मैदान में 8- 9 सितंबर, 1928 को एक गुप्त बैठक हुई। इस बैठक में सुखदेव और भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) करने और उसमें ‘सोशलिज्म’ शब्द जोड़ने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को बैठक में मौजूद अन्य क्रांतिकारियों- शिव वर्मा, विजय कुमार सिंह, सुरेंद्र पांडे आदि ने मंजूरी दे दी। सुखदेव एक प्रखर समाजवादी और कुशल संगठनकर्ता थे। यही वजह है कि उन्हें इस नवगठित संगठन की पंजाब इकाई के सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। नतीजतन, उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की नीतियों, आंदोलन की रणनीति और योजनाओं को तैयार करने व क्रियान्वन करने में सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका निभाई।

उन्होंने जनता में जागरूकता पैदा करने, विरोध करने तथा जनता की सहानुभूति व समर्थन प्राप्त करने के लिए एचएसआरए के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर विशेष जोर देते हुए कहा कि इसी आधार पर सरकार से सीधा टकराव किया जा सकता है। क्रांतिकारी अपने क्रांतिकारी मिशन के लिए अपनी जान तक की कुर्बानी दे सकते हैं, क्योंकि उन्हें मौत का डर नहीं होता।सुखदेव के शब्दों में:

“हमारा विचार था कि हमारे कार्यों से जनता की इच्छाएँ पूरी होनी चाहिए और सरकार द्वारा दूर न की गई शिकायतों का जवाब होना चाहिए ताकि वे जनता की सहानुभूति और समर्थन प्राप्त कर सकें। इस दृष्टि से हम जनता में क्रांतिकारी विचारों और रणनीतियों को भरना चाहते थे और ऐसे विचारों की अभिव्यक्ति उन लोगों के मुंह से अधिक महिमामंडित लगती है जो इस उद्देश्य के लिए फांसी पर चढ़ जाते हैं। हमारा विचार था कि सरकार के साथ सीधे टकराव में आकर हम अपने संगठन के लिए एक निश्चित कार्यक्रम तैयार कर सकेंगे।” संक्षेप में, लेनिन की तरह उनका भी मानना था कि क्रांति केवल क्रांतिकारी विचारधारा और दृढ़ संकल्प से लैस ‘प्रशिक्षित पेशेवर क्रांतिकारियों’ द्वारा ही लाई जा सकती है।

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का मुख्य उद्देश्य’ ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजादी प्राप्त करना’ और ‘भारत के संयुक्त राज्य समाजवादी गणराज्य’ की स्थापना करना था, जिसमें ‘सर्वहारा वर्ग की तानाशाही’ के तहत ‘सार्वभौमिक मताधिकार’ हो और ‘सत्ता के केंद्र (Seat of Power) से परजीवियों( Parasites) का उन्मूलन हो, जहां ‘मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न हो’ यद्यपि क्रांतिकारियों और महात्मा गांधी के विचारों में मूलभूत अंतर था। इसके बावजूद भी क्रांतिकारी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे।

सुखदेव ने महात्मा गांधी को पत्र में ‘परम आदरणीय महात्मा जी’ के नाम से संबोधित करते हुए अपने लक्ष्यों और क्रांतिकारी रणनीति के बारे में लिखा: “परम आदरणीय महात्मा जी, ..जैसा कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के नाम से ही पता चलता है, क्रांतिकारियों का लक्ष्य भारत में समाजवादी गणराज्य की स्थापना है। जब तक क्रांतिकारी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते, उनके सिद्धांत पूरे नहीं हो जाते, तब तक वे संघर्ष जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। क्रांतिकारी बदलती परिस्थितियों और वातावरण में अपनी रणनीति बदलने में भी माहिर होता है। क्रांतिकारी संघर्ष अलग-अलग समय में अलग-अलग रूप लेता रहा है। कभी यह खुलकर सामने आता है, कभी छिपकर, कभी खादी आंदोलनकारी का रूप ले लेता है तो कभी जीवन-मरण का संघर्ष हो।’

(https://amritmahotsav।nic।in/district-reopsitory-detail।htm?17177#:~🙂

 सुखदेव :लाला लाजपत राय की मौत का बदला: जॉन सॉन्डर्स की हत्या (– 17 दिसंबर 1928) : प्रमुख योजनाकार

 8 नवंबर, 1927 को साइमन कमीशन की घोषणा की गई थी। 30 अक्टूबर 1928 को जब साइमन कमीशन लाहौर रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो उसका विरोध कर रहे अहिंसक और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की विशाल भीड़ द्वारा ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारे आसमान में गूंज रहे थे। इस प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स. ए. स्कॉट ने अहिंसक और शांतिपूर्ण भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज का आदेश दिया। पुलिस अधीक्षक स्टॉक ने स्वयं लाला लाजपत राय पर लाठियों से हमला किया और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। 17 नवंबर, 1928 को 63 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

परिणामस्वरूप, क्रांतिकारियों – सुखदेव, शिवराम, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद – ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने और ब्रिटिश सरकार को संदेश देने के लिए लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने की योजना बनाई। 17 दिसंबर, 1928 को शाम 4: 03 बजे जब सहायक पुलिस अधीक्षक, जॉन पोयंट्ज़ सॉन्डर्स, (जेपी सॉन्डर्स) लाहौर के पुलिस मुख्यालय से बाहर निकले (गलती से उन्हें जेम्स ए स्कॉट समझकर), राजगुरु और भगत सिंह ने तुरंत उन्हें गोली मार दी। क्रांतिकारियों का उद्देश्य जॉन सॉन्डर्स को मारना नहीं था। बल्कि उनका निशाना लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट थे। पाठकों को यह बताना भी ज़रूरी है कि उससे एक महीने पहले ही जेपी सॉन्डर्स की सगाई भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन के पीए की बेटी से हुई थी। इसलिए जेपी सॉन्डर्स की मौत से ब्रिटिश सरकार भड़क उठी थी और उसका गुस्सा और बदला अपने चरम पर था।

(https://samajweekly।com/punjab-kesari-lala-lajpat-rai-a-great-visionary-and-charismatic-leader-a-reappraisal)

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन: जेपी सॉन्डर्स की हत्या की जिम्मेदारी- हस्तलिखित और हस्ताक्षरित नोटिस

17 दिसम्बर, 1928 को बलराज द्वारा लाल स्याही से अंग्रेजी भाषा में हस्तलिखित और हस्ताक्षरित नोटिस 18-19 दिसम्बर, 1928 की रातों रात में लाहौर की दीवारों पर चिपका दिए गए। इस नोटिस में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने जेपी सांडर्स की हत्या की जिम्मेदारी ली, -‘जेपी सांडर्स की मौत! – लाला लाजपत राय का बदला लिया गया!!’। 

नोटिस में स्पष्ट तौर पर अनुरोध किया गया था, ‘सभी से अनुरोध है कि वे हमारे दुश्मन, पुलिस को हमारा सुराग ढूंढने में किसी भी प्रकार की सहायता देने से बचें,’ और साथ ही ‘गंभीर परिणाम भुगतने ‘की चेतावनी भी दी गई। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के इस नोटिस में साम्राज्यवादी सरकार को चेतावनी देते हुए लिखा था, ‘सावधान, तानाशाहों; सावधान।’ इस चेतावनी के कारण पंजाब की नौकरशाही में भय, क्रोध, असंतोष और गुस्से का ज्वालामुखी फूट पड़ा और सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी गई।।(https://www।marxists।org/archive/bhagat-singh/1928/12/18।htm)

(स्रोत: भारत के सर्वोच्च न्यायालय संग्रहालय)

क्रांतिकारी इतिहास की रोमांचकारी घटना:

पूर्व नियोजित योजना के अनुसार, भगत सिंह एक अधिकारी और क्रांतिकारी दुर्गा भाभी (क्रांतिकारी श्रीमती दुर्गा देवी वोहरा- क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी – क्रांतिकारी उन्हें दुर्गा भाभी कहते थे) – भगत सिंह की अवास्तविक – ‘छद्म पत्नी’ के वेश में, अपने तीन वर्षीय बच्चे (दुर्गा भाभी के बेटे शचि) के साथ लाहौर से प्रथम श्रेणी के रेल डिब्बे में सवार होकर कोलकाता के लिए रवाना हुए। उनकी सुरक्षा के लिए राजगुरु ने अर्दली का काम किया और दूसरी ओर चंद्रशेखर आज़ाद साधु के वेश में मथुरा पहुंच गए। 

वास्तव में, यह स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है, फिल्मों के दृश्यों की तरह। इस घटना का वर्णन करते हुए मलविंदरजीत वडैच ने अपनी पुस्तक ‘भगत सिंह द एटर्नल रेबेल’ में लिखते हैं,कि “भगत सिंह ने ओवरकोट और हैट पहन रखी थी। उन्होंने अपने कोट का कॉलर भी ऊँचा कर रखा था। उन्होंने अपनी गोद में दुर्गा भाभी के बेटे शचि को इस तरह से पकड़ रखा था कि उनका चेहरा न दिखाई दे। भगत सिंह और दुर्गा भाभी फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे में थे जबकि उनके नौकर के भेष में राजगुरू तीसरे दर्जे में सफ़र कर रहे थे। दोनों के पास लोडेड रिवॉल्वर थी।”

जारी…

(डॉ. रामजी लाल सामाजिक वैज्ञानिक और करनाल स्थित दयाल सिंह कॉलेज पूर्व प्राचार्य हैं।)

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