भारत के पहले प्रधानमंत्री,पंडित जवाहरलाल नेहरू केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि विज्ञान और तर्क की सोच के प्रबल समर्थक भी थे। उनके लिए “वैज्ञानिक सोच” या “scientific temper” का मतलब था कि लोग जीवन के हर क्षेत्र में अंधविश्वास और रूढ़ियों से परे तर्क, सवाल और प्रमाण पर आधारित सोच अपनाएं।
वैज्ञानिक सोच क्या होती है?
नेहरू का मानना था कि वैज्ञानिक सोच का मतलब है —बिना किसी डर या परंपरा के दबाव में आए हर बात को तर्क और समझ के आधार पर परखना। यह सोच प्रयोग, सवाल पूछने और निष्पक्ष विश्लेषण पर आधारित होती है।
उन्होंने कहा था-
“वैज्ञानिक सोच स्वतंत्र व्यक्ति की सोच होती है।”
वे मानते थे कि भारत को आगे ले जाने के लिए विज्ञान की यह न केवल विज्ञान के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि समाज और लोकतंत्र को बेहतर बनाने के लिए भी बहुत जरूरी है ।
नेहरू द्वारा वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के उदाहरण,जिस पर आज भी भारत को नाज़ है-
वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना
नेहरू ने कई बड़े संस्थान शुरू किए, जो आज भी भारत की वैज्ञानिक तरक्की के आधार हैं:
इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी तैयार करने के लिए आईआईटी (IITs) की स्थापना।
भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भर बनाने के लिए इसरो (ISRO) की नींव।
वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए सीएसआईआर (CSIR)।
परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission): शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग।
योजनाओं में विज्ञान को महत्व देना
नेहरू ने भारत की पांच वर्षीय योजनाओं में विज्ञान को प्रमुख स्थान दिया। जैसे दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956–61) में भारी उद्योग, इस्पात संयंत्र और विज्ञान आधारित निर्माण को बढ़ावा मिला।
अंधविश्वास और रूढ़ियों के खिलाफ आवाज
नेहरू ने अपने भाषणों में बार-बार अंधविश्वास, झूठे चमत्कार और ज्योतिष जैसी बातों की आलोचना की। वे चाहते थे कि लोग किसी बात को आंख मूंदकर न मानें, बल्कि सोचें, सवाल करें और तर्क पर चलें।
उनका प्रसिद्ध कथन है:
“भविष्य विज्ञान का है, और उसका है, जो विज्ञान का दोस्त बनता है।”
शिक्षा और बच्चों में विज्ञान का प्रचार
नेहरू ने स्कूलों में विज्ञान को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने बच्चों के लिए विज्ञान पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ और वैज्ञानिक मेले शुरू करवाए। एनसीईआरटी (NCERT) जैसे संस्थान बनवाए गए ताकि बच्चों को तर्क की सोच दी जा सके।
नेहरू की विरासत और आज की चुनौतियाँ
नेहरू ने जो बीज बोए, वे आज भारत की वैज्ञानिक तरक्की में साफ नजर आते हैं। दुनिया भर में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारतीय मेधा का वर्चस्व इसके शानदार उदाहरण हैं। लेकिन,आज भी समाज में कई जगह अंधविश्वास, चमत्कारों की उम्मीद और बिना सोचे समझे बातों को मानने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इसका मतलब है कि नेहरू की सोच आज भी उतनी ही जरूरी है।
उनके इसी विचार को भारतीय संविधान में भी जगह दी गई है। अनुच्छेद 51A(h) में नागरिकों का यह मूल कर्तव्य बताया गया है:
“वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता और सुधार की भावना का विकास करना।”
नेहरू ने विज्ञान को सिर्फ एक विषय नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका माना। उनके लिए वैज्ञानिक सोच का मतलब था — समाज को तर्क, सवाल और समझ की बुनियाद पर खड़ा करना। उनके प्रयासों से भारत में वैज्ञानिक संस्थानों की मजबूत नींव रखी गई, और आज भी उनकी सोच हमें प्रेरणा देती है। अगर हम नेहरू की इस सोच को अपनाएं, तो हम एक अधिक प्रगतिशील, तार्किक और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ सकते हैं। आज भारत की विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में जो भी प्रगति दिखाई देती है,उसकी नीव नेहरू ने दशकों पहले रख दी थी।
(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)