Wednesday, April 24, 2024

आत्म मुग्ध प्रधानमंत्री का आत्म प्रशंसात्मक प्रवचन

आज तीसरी बार माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोना संकट से संदर्भ में देश को करीब 25 मिनट तक संबोधित किया। पूरा संबोधन आत्ममुग्धता और आत्मप्रशंसा से प्रवचन की शैली में था। चूंकि प्रधानमंत्री जी के संबोधन की शैली रामकथा वाचकों की तरह प्रवचन की शैली है और उसी तरह की भाषा भी वे इस्तेमाल करते हैं, इसलिए मैं उनके संबोधन को प्रवचन कहकर ही संबोधित करूंगा।

प्रधानमंत्री जी किस कदर आत्ममुग्ध हैं, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है, उन्होंने अपने पूरे प्रवचन में कहीं इसका कोई जिक्र भी नहीं किया कि कोरोना के खिलाफ संघर्ष में उनसे या उनकी सरकार से कहीं कोई चूक हुई या कोई नाकामयाबी या असफलता मिली। ऐसे समय में जब पूरे देश से भूख से बिलबिलाते लोगों की तस्वीरें आ रही हैं, भूख से मौतें भी होने लगी हैं और माँ बच्चों को भूखा न देख पाकर उन्हें नदी में फेंकने को मजबूर हो रही है, सूरत जैसे शहर में मजदूर सड़कों पर उतरने को मजबूर हो रहे हैं और बता रहे हैं कि उन्हें भोजन भी नहीं मिल रहा है। थालियां बजाकर लोग राशन की मांग कर रहे हैं और लाखों-लाख परिवार भूख की कगार पर खड़े सहायता का इंतजार कर रहे हैं। क्वारंटाइन सेंटरों की बदहाली की भयावह तस्वीरें सामने आ रही हैं।

इतना ही नहीं, कोरोना के खिलाफ संघर्ष में सबसे अगली पंक्ति में खड़े चिकित्सा कर्मियों के सुरक्षा उपकरणों के अभाव में बड़ी संख्या में संक्रमित होने की पुष्टि हो रही है।

इस सब के बावजूद एक प्रधानमंत्री द्वारा किसी तरह की चूक, कमी या असफलता का जिक्र न करना और उस पर दुख न प्रकट करना भयानक किस्म की आत्ममुग्धता को ही दर्शाता है।

अपने 25 मिनट के प्रवचन में प्रधानमंत्री जी ने करीब 5- 7 मिनट अपनी उपलब्धियों को बताने में खर्च किया। उन्होंने डींग हाकी कि कोरोना के खिलाफ शुरू से ही सतर्कता बरतना प्रारंभ कर दिया गया था और भी बताया कि उन्होंने क्या-क्या किया? जबकि सच्चाई इसके उलट है। अरूंधती राय के शब्दों में सच्चाई यह है कि “भारत में कोविड-19 का पहला मामला 30 जनवरी को आया था, भारतीय गणतंत्र दिवस की परेड के सम्माननीय मुख्य अतिथि, अमेजन के वन-भक्षक और कोविड के अस्तित्व को नकारने वाले जायर बोल्सोनारो के दिल्ली छोड़ने के कुछ ही दिनों बाद।

लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी की समय-सारिणी में ऐसा बहुत कुछ था जो इस विषाणु ( करोना) से निपटने से ज्यादा जरूरी था। फरवरी के अंतिम सप्ताह में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकारी यात्रा तय थी। उन्हें गुजरात के एक स्टेडियम में एक लाख लोगों को जुटाने का प्रलोभन दिया गया था। इन सब में काफी धन और समय जाया हुआ।

फिर दिल्ली विधानसभा चुनाव भी थे, जिसमें भारतीय जनता पार्टी अगर अपना खेल नहीं खेलती तो हारना निश्चित था, अतः उसने खेला। उसने एक बिना किसी रोक-टोक वाला कुटिल हिंदू राष्ट्रवादी अभियान छेड़ दिया, जो शारीरिक हिंसा और “गद्दारों” को गोली मारने की धमकियों से भरा था।

खैर पार्टी वैसे भी चुनाव हार गई। तो फिर इस अपमान के लिए जिम्मेदार ठहराए गए दिल्ली के मुसलमानों के लिए एक सजा तय की गई थी। 50 से ज्यादा लोग, मुसलमान और कुछ हिंदू मारे गए।

मार्च का महीना भी व्यस्तता भरा था। शुरुआती दो हफ्ते तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने और उसकी जगह भाजपा की सरकार बनाने में समर्पित कर दिए गए। 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषित किया कि कोविड-19 एक वैश्विक महामारी है। इसके दो दिन बाद भी 13 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि कोरोना “कोई आपातकालीन स्वास्थ्य खतरा नहीं है।” इस पूरे संदर्भ में प्रधाममंत्री जी ने तथ्यात्मक झूठ भी बोला। अगर मध्यप्रदेश का खेल न चल रहा होता, तो कम -से-कम एक सप्ताह पहले लॉक डाउन होता।

प्रधानमंत्री जी यहीं नहीं रूके, उन्होंने दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत की उपलब्धियों की भी करीब 3-4 मिनट तक प्रशंसा की। इसके माध्यम से खुद की ही प्रशंसा करते ज्यादा दिखे। जबकि सच यह है कि कई सारे देशों ने भारत से बेहतर उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसमें दक्षिण कोरिया, ताईवान, जापान, क्यूबा, वियतनाम और चीन भी शामिल हैं। इन सभी ने बिना मेहनतकशों की तबाही के भी कोरोना का बेहतर तरीके मुकाबला किया।

आत्म प्रशंसा करने के बाद प्रधानमंत्री जी ने नागरिकों को सात कर्तव्यों के पालन का प्रवचन दिया। लेकिन हर प्रवचन कर्ता की तरह उन्होंने यह नहीं बताया कि वे क्या-क्या करने जा रहे हैं?

प्रधानमंत्री जी के भाषण पर जिस किसी ने बारीकी से ध्यान दिया होगा, उसने यह जरूर नोटिस किया होगा कि उन्होंने जब राज्य सरकारों के प्रयासों का जिक्र किया तो, उनके शब्द इस तरह थे- “राज्य सरकारों ने भी इस दौरान अच्छा काम किया है”- यहां ‘भी’ शब्द पर ध्यान देना जरूरी है, इसका निहितार्थ यह होता है कि असल अच्छा कार्य तो केंद्र सरकार ने किया है, हां, राज्य सरकारों ने भी अच्छा किया है। जबकि सच यह है कि संसाधनों के अभाव का सामना कर रहीं, राज्य सरकारों ने ही सबसे बेहतर कार्य किया है। केरल जैसे राज्य ने तो वैश्विक स्तर का मॉडल पेश किया है।

मोदी जी डॉ. आंबेडकर की जयंती पर उनका नाम लेते हुए उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए कहा कि भारत की सामूहिक शक्ति से कोरोना के खिलाफ लड़ना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। प्रधानमंत्री आप की बात सच है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा उल्लंघन तो आप ही के लोग करते हैं। क्या आपने अपने आईटी सेल, नेताओं और हिंदू मुसलमान का जहर फैलाती मीडिया से एक बार भी कहा कि वे हिंदू-मुसलमान का जहर फैलाना बंद करें और देश की सामूहिक शक्ति को न तोड़ें।

प्रधानमंत्री जी आपने नागरिकों के जो सात कर्तव्य बताए, क्यों नहीं आपने उसमें एक कर्तव्य यह भी जोड़ दिया कि कृपया हिंदू-मुस्लिम का जहर न फैलाएं और कोराना सांप्रदायीकरण न करें।

जहां एक तरफ दुनिया भर के प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति कोरोना से लड़ने के संदर्भ में अपनी कमियों-नाकामयाबियों की बार-बार चर्चा कर रहे हैं, उसके लिए माफी मांग रहे हैं, कुछ रो भी रहे हैं, एक वित्त मंत्री ने तो लोगों की मदद न कर पाने के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। 

दूसरी ओर हमारे प्रधानमंत्री आत्ममुग्धता से भरे खुद ही अपनी पीठ थपथपा रहे हैं और कोरोना के खिलाफ संघर्ष के लिए राष्ट्रीय संबंधोन को भी हर बार चुनावी रैली बना दे रहे हैं।

सच तो यह है कि हमारे प्रधानमंत्री जी आत्मरति रोग के शिकार हैं। इस रोग का शिकार व्यक्ति खुद को हमेशा दुनिया के एक अद्वितीय महान व्यक्ति के रूप में देखता है और उसे कभी भी अपने कार्यों में कोई कमी या चूक नहीं दिखती है, और कभी यदि वह किसी कमी या चूक की चर्चा भी करता है, तो वह भी उसकी महानता को बढ़ाने वाली ही होती है।

आत्ममुग्धता और आत्मप्रशंसा आत्मरति रोग के सबसे प्रभावी लक्षण हैं।

जिसके आत्मरति रोग से ग्रस्त करोड़ों भक्त हों, उसे आत्मरति के रोग से छुटकारा भी नहीं मिल सकता है, खुद ही इस बीमारी से ग्रसित भक्त अपने नायक की इस बीमारी को बढ़ाने के लिए उर्वर भूमि मुहैया कराते हैं।

एक बात के लिए प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद कि उन्होंने इस बार ताली-थाली बजाने या रोशनी करने जैसा तमाशा करने का कोई आह्वान नहीं किया।

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

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