पंजाब : मोदी सरकार के बाद अब भगवंत मान भी किसानों के आंदोलन से खफ़ा 

Estimated read time 1 min read

देश की राजधानी की सीमाओं पर अपने ऐतिहासिक आंदोलन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को अपने ही प्रदेश सरकार की बेरुखी का पहली दफा अहसास तब हुआ, जब 5 मार्च से प्रस्तावित चंडीगढ़ चलो के उसके आह्वान के मद्देनजर सारे राज्य में पुलिस किसान नेताओं के घरों पर दबिश कर हिरासत में लेने लगी।  

2020 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा संसद में पारित जिन तीन कृषि कानूनों को देश का किसान अपने बुलंद हौसलों और चट्टानी एकता की मिसाल के बल पर धूल चटाने में सफल रहा था, आज वही किसान आंदोलन भारी टूट और पस्त हिम्मत क्यों नजर आ रहा है? 

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और एसकेएम (अराजनीतिक) नाम से किसानों के दो मोर्चे इस वक्त आंदोलनरत हैं। दिल्ली की सीमाओं पर एसकेएम के नेतृत्व में किसानों की जत्थेबंदियों ने संयुक्त आंदोलन संचालित किया था। लेकिन पंजाब चुनाव के दौरान कुछ वरिष्ठ किसान नेताओं के द्वारा चुनावी मैदान में उतरने के बाद से आपसी मनमुटाव और पंजाब के किसानों के बीच साख खोने, एसकेएम (अराजनैतिक) नाम से अलग संगठन जैसे कारक रहे, जिसने आंदोलन को भारी क्षति पहुंचाई है, और जिसका असर अब पंजाब सरकार के रवैये से और स्पष्ट हो रहा है।  

दिल्ली में आप पार्टी की सरकार थी, जिसने किसान आंदोलन के दौरान धरनास्थल पर सहयोगात्मक रवैया अपनाए रखा था, पीने के पानी के टैंकर से लेकर सफाई इत्यादि की व्यवस्था की थी। इसी का नतीजा रहा कि पंजाब विधानसभा चुनावों में किसान बड़ी संख्या में आप पार्टी के पक्ष में गये, और पार्टी दिल्ली से बाहर किसी दूसरे राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाने में सफल रही।  

अभी तक यही माना जाता था कि सिख जाट किसानों और अधिकांश दलित खेत मजदूरों के मजबूत समर्थन से राज्य की सत्ता पर आसीन आम आदमी पार्टी की सहानभूति शंभू बॉर्डर पर बैठे एसकेएम (अराजनीतिक) के साथ हैं, लेकिन केंद्र सरकार और हरियाणा की भाजपा सरकार के तानाशाहीपूर्ण रवैये के कारण पंजाब सरकार बेबस है। लेकिन किसान संगठनों और पंजाब मुख्यमंत्री के बीच की वार्ता विफल होने और 5 मार्च से चंडीगढ़ में एक सप्ताह तक एसकेएम की ओर से धरने पर अड़ना, राज्य सरकार को नागवार गुजरा।     

एसकेएम जिसके मोर्चे में 30 किसान संगठन शामिल हैं, की मांगों पर गौर करें तो इसमें, कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति ढांचे के केंद्र के मसौदे को वापस लेने, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी, राज्य कृषि नीति को लागू करने और राज्य सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बासमती, मक्का, मूंग, आलू सहित कुल छह फसलों की खरीद की मांग जैसी मांगें शामिल हैं।

इसके अलावा एसकेएम कर्ज निपटान के लिए एक कानून, हर खेत तक नहर का पानी सुनिश्चित करने के लिए भूमि जोतने वालों के मालिकाना हक, गन्ने के बकाया मूल्य का भुगतान, भारतमाला परियोजनाओं के लिए भूमि का “जबरन” अधिग्रहण रोकने और 2020-21 में किसान आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को नौकरी और मुआवजा देने की भी मांग कर रहे हैं।

मोर्चे का मत है कि चूंकि ये मुद्दे राज्य सरकार की परिधि में आते हैं, इसलिए मान सरकार इन प्रश्नों को तत्काल हल कर किसानों को राहत पहुंचाए। इसके लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान 3 मार्च को किसान संगठनों के साथ बैठक में शामिल भी हुए, और उनके साथ वार्ता की। 

लेकिन मुख्यमंत्री किसान संगठनों के चंडीगढ़ कूच करने पर असहमत थे। बाद में बीच में ही वार्ता को बीच में छोड़ मुख्यमंत्री मान मीटिंग से यह कहते हुए उठ गये थे कि अब जो करना है कर लो। उनके इस बदले रुख का अंदाजा किसान नेताओं को नहीं था, लेकिन देर रात जब पंजाब पुलिस ने जगह-जगह छापेमारी कर किसान नेताओं की धर-पकड़ शुरू कर दी, तब जाकर उन्हें अहसास हुआ कि केंद्र सरकार की तरह अब राज्य सरकार का रुख भी किसानों के प्रति दोस्ताना नहीं रहा।  

जहां 4 मार्च को पंजाब में जगह-जगह किसान नेताओं को हिरासत में लेने का सिलसिला जारी था, वहीं किसान चंडीगढ़ कूच की तैयारियों में जुटे रहे। बुधवार की सुबह ट्रैक्टर-ट्रॉलियों सहित अन्य वाहनों से चंडीगढ़ के लिए कूच करने वाले किसानों को पंजाब पुलिस जगह-जगह रोकती दिखी।

क्रांतिकारी किसान यूनियन जिला मोगा के अध्यक्ष जतिंदर सिंह के अनुसार, “चंडीगढ़ जाते समय उन्हें मोगा जिले के अजीतवाल में पुलिस ने रोक लिया। इनमें से कुछ किसानों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। इस प्रकार समराला में भी किसानों को पुलिस ने चंडीगढ़ जाने से रोक दिया। 

पंजाब पुलिस को स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि एक भी प्रदर्शनकारी किसान चंडीगढ़ की ओर रुख न करे। पुलिस को हर हाल में सुनिश्चित करना था कि आम लोगों को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े। मोगा में चुहार चक इलाके में बैरिकेड्स लगा दिए गये और पुलिस चौकी पर 100 पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया था, जिनका काम हर वाहन की जांच कर किसानों को चंडीगढ़ जाने से रोकना था। संगरूर में पुलिस ने कई जगहों पर चेकपॉइंट लगा रखे थे। इसी प्रकार खरड़ में भागो माजरा टोल प्लाजा, चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर कई जगह बैरिकेड्स लगाकर पक्की किलेबंदी कर रखी थी। 

मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान का एक बयान किसान नेताओं को बेहद अखर रहा है। मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा कि किसान नेताओं ने प्रदेश को धरना स्टेट बना रखा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता हन्नान मोल्लाह ने मुख्यमंत्री भगवंत मान के बयान पर सख्त आपत्ति जताते हुए अपने बयान में कहा है कि मुख्यमंत्री ने किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को लेकर जिस प्रकार का बयान दिया है वह पूरी तरह से अनुचित है। उनका यह भी कहना है कि जिस तरह से किसानों के घरों पर पंजाब सरकार ने छापेमारी कराई है वैसी इससे पहले कभी नहीं हुई।

अमृतसर में किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि “कल रात से पंजाब में संयुक्त किसान मोर्चा की लगभग 35 यूनियनों के वरिष्ठ नेताओं को या तो हिरासत में ले लिया गया या नजरबंद कर दिया गया। यह लगातार तीसरी बार है जब भगवंत मान ने हमारे आंदोलन को निशाना बनाया है।”

वहीं इसी दौरान दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का लाव-लश्कर के साथ पंजाब में विपश्यना शिविर में भाग लेना भी चर्चा का विषय बना हुआ है। बता दें केजरीवाल कल दस दिन के लिए पंजाब के होशियारपुर पहुंचे हैं। यहां पर वे विपश्यना ध्यान शिविर में भाग लेंगे, लेकिन उनके आगमन पर जिस प्रकार से सैकड़ों गाड़ियों का काफिला देखा गया, वह प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है।  

कांग्रेस और अकाली दल के नेता सवाल कर रहे हैं कि एक गैर-पंजाब वासी, जो अब मुख्यमंत्री भी नहीं है, के लिए पंजाब पुलिस और भारी सुरक्षा व्यवस्था का क्या औचित्य है। अरविंद केजरीवाल के निजी कार्यक्रम के लिए पंजाब के डीजीपी सहित सैकड़ों पुलिसकर्मियों को सुरक्षा इंतजाम में लगाने और वहीं दूसरी तरफ किसानों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर पुलिसिया बल प्रयोग को भगवंत सिंह मान की तानाशाही करार दिया जा रहा है। 

बड़ा सवाल यह है कि पंजाब जैसे कृषक बहुल राज्य में जाट किसानों और आबादी के 35% दलित समुदाय, जिसमें अधिकांश खेतिहर मजदूर हैं, भगवंत मान सरकार किस आधार पर किनारा कर रही है? क्या दिल्ली की हार के बाद यह पार्टी की बदलती सोच का परिणाम है, या पंजाब में अपने कार्यकाल को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के इशारे पर इसे अंजाम दिया जा रहा है? कारण जो भी हो, इस आंदोलन ने किसान संगठनों और आम आदमी पार्टी, दोनों के लिए गंभीर चिंतन और पुनर्विचार का आधार तो अवश्य प्रदान किया है।   

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author