नूंह (मेवात) को मणिपुर-गुजरात बनाने की भाजपा की साजिश फिलहाल नाकाम हो गई है 

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नूंह हिंसा कोई अचानक फूट पड़ने वाली हिंसा या दंगा नहीं था। अभी तक जो भी तथ्य सामने आये हैं, उसमें यही साक्ष्य सामने आ रहे हैं कि यह एक सोची-समझी और पूर्व-निर्धारित योजना का हिस्सा था। तात्कालिक तौर पर इसका लक्ष्य राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हिंदू-मुस्लिम आधार पर ध्रुवीकृत करना था। साथ ही पूरे देश में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए संदेश भेजना था। उसमें भी विशेष तौर पर हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों-गुर्जरों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करना था।

इस तात्कालिक लक्ष्य के अलावा इस हिंसा का दीर्घकालिक उद्देश्य मुसलमानों-जाटों-गुर्जरों के बीच इस कदर साम्प्रदायिक दंगे और हिंसा को अंजाम देना था कि उनके बीच बंटवारे की ऐसी खाई खुद जाए, जिसे लंबे समय तक पाटा ना जा सके। सीधा अर्थ गुजरात- मणिपुर बना देना।

भाजपा-आरएसएस की इस योजना ने 6 लोगों की जान ले ली। इसमें मुसलमान, हिंदू और पुलिस वाले भी शामिल हैं। सैकड़ों दुकानों और वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। हजारों लोगों के रोजी-रोटी के साधनों को उनसे छीन लिया गया। अभी भी भय और तनाव बरकरार है। 

दिल दहला देने वाली दुखद घटनाओं के बावजूद भी आरएसएस-भाजपा का नूंह (मेवात) प्रोजेक्ट फिलहाल फेल हो गया है। हरियाणा और राजस्थान के जाटों-गुर्जरो, मेवात के सिखों और मुसलमानों के बड़े हिस्से ने इस परियोजना को फेल कर दिया है। उन्होंने समय रहते भाजपा-आरएसएस की साजिश को समझ लिया। जाट नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जाटों के संगठनों ने बडे़ पैमाने अपने लोगों को इस हिंसा से दूर रहने का आह्वान किया। मुसलमानों से बदला लेने के आरएसएस के आनुषांगिक संगठनों के आह्वान को अनसुना ही नहीं किया, उसका खुलकर विरोध भी किया। 

यही काम गुर्जरों के नेताओं और संगठनों ने भी किया। मेवात क्षेत्र में 1 लाख से अधिक सिख रहते हैं। सिखों ने भी हर स्तर इस हिंसा को रोकने और उपद्रवियों से लोगों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया। सीएए आंदोलन के बाद से सिख खुद को हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों के ज्यादा करीब पा रहे हैं। उन्हें अल्पसंख्यक होने और हिंदू राष्ट् की परियोजना का शिकार होने का भय सता रहा है। मुसलमानों के भी बड़े हिस्से ने अपने गुस्से-आक्रोश और दुख को दबाकर आरएसएस-भाजाप की साजिश को समझा और बदले की हर कार्रवाई से अपने लोगों को रोका।

नूंह और मेवात के उन गांवों में जहां हिंदू बहुत कम संख्या में हैं, उपद्रवियों से उनकी रक्षा करने के लिए मुस्लिम समुदाय आगे आया। कुछ जगहों पर उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर हिंदुओं की रक्षा की। नूंह और मेवात में विभिन्न जगहों पर हिंदू-मुस्लिम आपस में मिलकर पंचायत कर रहे हैं और इस हिंसा और दंगे को किसी भी कीमत पर रोकने का संकल्प ले रहे हैं। जाटों, गुर्जरों और मुस्लिम समुदाय के अगुवा सोशल मीडिया से इस हिंसा को रोकने और भाईचारा कायम करने की अपील कर रहे हैं। नूंह को गुजरात या मणिपुर में बदलने की आरएसएस-भाजपा की चाहत को सभी समुदायों ने मिलकर नाकाम कर दिया है।

नूंह ( मेवात) हिंसा को जाट-गुर्जर बहुल क्षेत्रों में व्यापक हिंसा और दंगे में तब्दील करने के पीछे भाजपा का तत्कालिक लक्ष्य इन समुदायों के वोटों को हिंदुत्व के नाम पर अपने पक्ष में करना था। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जाट किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन के बाद धीर-धीरे भाजपा से दूर हो गए हैं। कमोबेश यही स्थिति गुर्जरों की भी है। नूंह( मेवात) के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर ये दोनों समुदाय रहते हैं। दिल्ली में भी इनकी अच्छी-खासी उपस्थिति है। राजस्थान विधानसभा में भाजपा को अपनी पराजय दिखाई दे रही है।

हरियाणा में चुनावी समीकरण भाजपा के अनुकूल नहीं है। लोकसभा चुनावों में भी हरियाणा और राजस्थान में बुरी तरह हार का डर सता रहा है। दिल्ली की सीटें भी उसे खोने का अंदेशा है। आगामी लोकसभा चुनाव भी जीतना उसे मुश्किल लग रहा है। ऐसे में उसके पास इस क्षेत्र के प्रभावी समुदायों (जाटों-गुर्जरों) को अपने साथ करने का एकमात्र रास्ता सांप्रदायिक दंगा और हिंसा ही दिखाई दे रहा था। लेकिन इस बार भाजपा का यह आजमाया नुस्खा काम करता नहीं दिखाई दे रहा है। इस क्षेत्र के जाट-गुर्जर इस बार भाजपा के ट्रैप में नहीं फंसे। उन्होंने फिलहाल भाजपा-आरएसएस के मंसूबों को फेल कर दिया है।

( सिद्धार्थ जनचौक के संपादक हैं)

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