विदेशी रिश्तों के बारे में चीन का नया कानून, क्या होगा भारत पर इसका असर?

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चीन दुनिया में संभवतः ऐसा पहला देश है, जिसने अपनी विदेश नीति को सूत्रबद्ध करते हुए उसे एक विशेष अधिनियम का रूप दिया है। यह कानून बुधवार को पारित हुआ। इसमें चीन की विदेश नीति के उद्देश्यों, दूसरे देशों से संबंध के बारे में बुनियादी रुख, और दूसरे देशों से संबंध को संचालित करने संबंधी संस्थागत व्यवस्था को कानूनी भाषा में सूत्रबद्ध कर दिया गया है। 

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2035 तक चीन में कानून का राज (rule of law) कायम करने का लक्ष्य घोषित किया हुआ है। ‘सर्वहारा की तानाशाही’ के सिद्धांत के तहत कम्युनिस्ट पार्टी के एकदलीय शासन के तहत यह अनोखा प्रयास होगा। इस दिशा में बढ़ने के कुछ आरंभिक संकेत गुजरे दो वर्षों में देखने को मिले हैं। नवंबर 2021 में चीन ने निजी सूचना संरक्षण अधिनियम पारित किया था। तब इसके विश्लेषकों ने बताया था कि यह पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन का एक उन्नत दस्तावेज है। इसके तहत प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों द्वारा लोगों के निजी डेटा के उपयोग की सीमाएं तय की गईं। साथ ही पर्सनल डेटा का दुरुपयोग रोकने के दंडात्मक उपाय किए गए।

अब पारित विदेश संबंध अधिनियम को उसी सिलसिले में देखा जाएगा। दुनिया के नैरेटिव पर पश्चिमी मीडिया का नियंत्रण बना हुआ है, जो समाजवादी देशों के बारे में निरंतर दुष्प्रचार में जुटा रहता है। इसलिए इन देशों में जो नए प्रयोग होते हैं, उनके बारे में बाकी दुनिया को कम ही जानकारी मिल पाती है। संभवतः इसी वजह से उस उन्नत पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन लॉ के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं हो सकी, जबकि उस तरह का कानून बनाने की अभी तक अमेरिका में जद्दोजहद ही चल रही है। यूरोपियन यूनियन ने जरूर जेनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन बनाया है- लेकिन गौरतलब है कि वह एक विनियम है, जबकि चीन में उसे अधिनियम के रूप में लागू किया गया है।

स्पष्टतः मौजूदा दौर में चीन के आम प्रशासन में जोर तदर्थवाद (adhocism) को खत्म कर नीतियों और मुद्दों पर सरकारी रुख को ठोस और सुपरिभाषित रूप देने पर है। इसी दिशा में ताजा कदम foreign relations law है। यहां ये बात ध्यान में रखने की है कि दुनिया के लगभग सभी देशों की अपनी विदेश नीति में तदर्थवाद मौजूद रहता है। जैसे कि पश्चिमी खेमे की तरफ अपने आम झुकाव के बावजूद भारत ने यूक्रेन में रूस की विशेष सैनिक कार्रवाई पर पश्चिमी देशों के मनमाफिक रुख नहीं लिया। उस पर कूटनीति की दुनिया काफी समय तक आश्चर्य का आलम रहा।

चीन इस समय दुनिया भर की कूटनीति के केंद्र में है। जब से अमेरिका ने चीन की शक्ति को नियंत्रित रखने को अपनी कूटनीति का केंद्रीय मकसद बनाया है, तब से चाहे-अनचाहे तमाम देशों को चीन के बारे में अपना रुख साफ करना पड़ रहा है। इस स्थिति में चीन की प्रतिक्रिया पर दुनिया भर का ध्यान है। इसीलिए चीन के नए कानून में दुनिया भर की रुचि देखी जा रही है।

पश्चिमी नजरिए से इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह मानी गई है कि इस कानून के जरिए चीन या चीनी कंपनियों पर लगाए जा रहे पश्चिमी प्रतिबंधों का जवाब देने के सिस्टम को सुपरिभाषित कर दिया गया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने इस कानून के बारे में अपनी रिपोर्ट की शुरुआत इन पंक्तियों के साथ की है- ‘चीन ने अपना पहला विदेश संबंध कानून पारित किया है, जिसके जरिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार को उन पश्चिमी कदमों का जवाब देने का अधिकार मिल गया है, जिनसे चीन के राष्ट्रीय हितों को खतरा पैदा होता है।’

तो यह समझने की बात है कि आखिर इस कानून में है क्या?

इस कानून ने एलान किया है कि चीन की विदेश नीति का मकसद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की मूलभूत विचारधारा के उद्देश्यों को प्राप्त करना होगा। इसमें कहा गया है- ‘चीन के विदेश संबंध और दोस्ताना आदान-प्रदान निम्नलिखित विचारों से निर्देशित होंगेः

  • मार्क्सवाद-लेनिनवाद
  • माओ जेदुंग विचार (thought)
  • तंग श्याओपिंग सिद्धांत
  • तीन प्रतिनिधित्व (theory of Three Represents) 
  • विकास का वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और
  • नए युग में चीनी प्रकार के समाजवाद के बारे में ‘शी जिनपिंग विचार’ (XJP thought)’

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने आधुनिक युग में अपनी विचारधारा को इन्हीं बिंदुओं पर आधारित किया है। इन विचारों को अपनी विदेश नीति का मार्गदर्शक बताने के बाद विदेश संबंध कानून में उन आम सिद्धांतो का उल्लेख किया गया है, जिन्हें विदेश नीति का लक्ष्य घोषित किया गया है। ये लक्ष्य हैः

  • संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा, और विकास संबंधी हित (यानी इन हितों को आगे बढ़ाना)
  • चीन की जनता के हित
  • चीन को बड़ी, आधुनिक समाजवादी शक्ति बनाना
  • चीनी राष्ट्र के नवजीवन के महान उद्देश्य को प्राप्त करना
  • विश्व शांति, और
  • एक ऐसा मानव समाज निर्मित करना, जहां सबका भविष्य साझा हो।

इस कानून को छह अध्यायों में बांटा गया है। चीन की विदेश नीति के आम ढांचे और उद्देश्यों के हिसाब से इन अध्यायों को लिखा गया है। इन अध्यायों में विदेश नीति के आम सिद्धांत, विदेश संबंध कायम करने संबंधी कार्य और अधिकार, विदेश संबंध बनाने के उद्देश्य, और विदेश संबंध के संचालन की प्रणाली आदि का विस्तार से उल्लेख है। 

चीन के विशेषज्ञों ने कहा है कि इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद अब विदेश संबंध से जुड़े दूसरे अधिनियमों का बुनियादी ढांचा सामने आ गया है। मसलन, इससे निर्मित पृष्ठभूमि के बाद विदेशी प्रतिबंध विरोधी अधिनियम, विदेशी गैर-सरकारी संगठन (NGO) कानून, विदेशी निवेश कानून, कूटनीतिक इम्युनिटी देने संबंधी कानून आदि को स्वरूप देने का रास्ता खुल गया है। 

इस कानून में भारत के लिए खासकर दिलचस्पी का विषय चीन की संप्रभुता संबंधी घोषणा है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक चीन पहले ही तिब्बत को अपनी संप्रभुता से जुड़ा मुद्दा बता चुका है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश भी शामिल है, जिसे चीन में ‘दक्षिण तिब्बत’ कहा जाता है। चूंकि अरुणाचल प्रदेश भारत का राज्य है, जिस पर चीन का दावा है, तो अब आगे जब भारत के साथ चीन के संबंध की बात होगी, तो नए कानून में मौजूद संप्रभुता की रक्षा संबंधी प्रावधान का असर वहां देखने को मिल सकता है। 

ध्यान देने की बात यह है कि नया कानून अस्तित्व में आने के बाद इलाकों की लेन-देन कर सीमा विवाद हल करने संबंधी चीन सरकार के अधिकार सीमित हो गए हैं। अब वह इस कानून से बंध गई है। इस समय जबकि भारत और चीन के रिश्तों में तनाव बढ़ने का आम अंदेशा है, यह पहलू दोनों देशों के संबंधों में एक नया पेच साबित हो सकता है। 

( सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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