बोकारो स्पेशल: स्टील प्लांट में मेंटिनेंस के अभाव में हो रही हैं दुर्घटनाएं

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बोकारो। 2008 की बात है, एक आन्दोलनकारी अखबार ने बोकारो कार्यालय में कुछ स्पेशल देखने के लिए मुझे ऑफर किया। बेरोजगारी में मैंने स्वीकार कर लिया। लगभग एक माह बाद बोकारो स्टील प्लांट में एक बड़ा हादसा हुआ। मैंने अंदर से खबर निकाली और एक बीएसएल की चूक की एक बड़ी रिपोर्ट बनाकर मुख्य कार्यालय को भेज दी। कुछ ही देर में उधर से फोन आया विशद जी, आप बीएसएल द्वारा भेजे गए प्रेस रिलीज को खबर बनाकर भेजें। मैं भौचक रह गया और बिना कुछ बोले घर वापस आ गया। दूसरे दिन से ही उस अखबारी आन्दोलन का दफ्तर जाना छोड़ दिया।

इसका उल्लेख मैंने इसलिए किया क्योंकि कभी एशिया का सबसे बड़ा इस्पात कारखाना कहे जाने वाले बीएसएल में आए दिन सुरक्षा से जुड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन क्या मजाल कि वे दुर्घटनाएं स्थानीय अखबारों की सुर्खियाँ बनें।

उदाहरण के तौर पर पिछली 12 जुलाई को बोकारो स्टील प्लांट में एक हादसा हो गया। पिकलिंग लाइन-1 ध्वस्त हो गई। तेज आवाज के साथ लोहे का स्ट्रक्चर गिर गया। अफरा-तफरी मच गई। कोल्ड रोलिंग मिल-सीआरएम के पिकलिंग लाइन में हादसे की जानकारी होते ही उच्चाधिकारी भी मौके पर पहुंचे। सीआईएसएफ ने पूरी एरिया को घेर लिया और खबर को बाहर आने से रोका। मेडिकल और फायर ब्रिगेड की टीम भी मौके पर पहुंची।

लेकिन दूसरे दिन यह खबर स्थानीय अखबारों की सुर्ख़ियों से गायब रही। चार पांच लाइन की खबर ज़रूर थी कि कैसे बीएसएल प्रबंधन ने एक बड़ी दुर्घटना होने से रोका, कोई हताहत नहीं हुआ, वगैरह-वगैरह।

बताते चलें कि पिकलिंग लाइन सीआरएम में है। एसएमएस से स्लैब बनाकर हॉट स्टिप मिल में लाते हैं। यहां इसकी रोलिंग की जाती है। यहीं क्वायल बनाते हैं। इसके बाद इंटर शॉप कन्वेयर के जरिए सीआरएम में भेजा जाता है, जहां एसिड स्टोरेज से इसे पार करते हैं। केमिकल से इसको साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया को पिकलिंग कहते हैं। इसी का शेड गिर गया और उत्पादन ठप हो गया।

वैसे तो बताया गया कि लाइन पर बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं आई। लेकिन जानकार बताते हैं कि यह हादसा काफी खतरनाक है।

एक कर्मचारी बताता है कि वह एरिया एसिड प्रभावित रहता है, वह बताता है कि हम लोग उधर से बड़ी सावधानी से गुजरते हैं, गुजरने के क्रम में आंखों में जलन होने लगती है। वहां खड़ी गाड़ियों पर धब्बा पड़ जाता है।

वहीं हादसे के बाद कर्मचारियों ने कहा कि हर साल इसके मेंटिनेंस के लिए करोड़ों रुपए जारी होता है। लेकिन सब कहां खर्च होता है, इसका कोई लेखा जोखा नहीं है। इसका जवाब प्रबंधन को देना चाहिए। लापरवाही की वजह से हादसे हो रहे हैं। कर्मचारियों की जान को जोखिम में डाला जा रहा है।

दूसरी तरफ पीएम मोदी के झारखंड दौर पर पहुंचने और उनकी सुरक्षा को लेकर भी सोशल मीडिया पर बयानबाजी चल रही है।

एक बीसीसीएल कर्मी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि बीएसएल प्रबंधन और ठेकेदार की मिलीभगत से लूट मची है, कोई भी तरीके का मेंटिनेंस नहीं होता है।

बता दें कि बीएसएल सेल की एक इकाई है और इसकी इकाइयों में ऐसे ही लगातार हादसे हो रहे हैं। बोकारो, दुर्गापुर, भिलाई स्टील प्लांट में हादसे हो चुके हैं। पिछले माह भिलाई स्टील प्लांट में एक पखवाड़ा के भीतर चार हादसे हो चुके थे। इसके अलावा दो मजदूरों की मौत भी हो चुकी है। इसी तरह इस्को बर्नपुर स्टील प्लांट में धमाके के साथ हादसा हुआ था, जिसकी चपेट में एक नियमित कर्मचारी और एक ठेका मजदूर आ गया था।

बीएसएल की बात करें तो हाल के दिनों में ऐसी ही कई घटनाएं हुई हैं।

इन दुर्घटनाओं की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ठेका मजदूर किशोर टुडू काम के दौरान लिक्विड स्टील (पिघला हुआ लोहा) भरे लेडल में गिर गया, जहां उसका अस्थिपंजर तक गल गया। मतलब उसके होने का कोई भी सबूत तक नहीं बचा। जो इस बात का सबूत है कि फैक्ट्री में सुरक्षा का किसी भी तरह का इन्तजाम नहीं है।

1 मई 2022 को प्लांट के कोक ओवन बैटरी नंबर 5 में हुए हादसे में एक प्रबंधक रैंक के अधिकारी की मौत हो गई थी। बता दें एफ समवाय एरिया के बैटरी नंबर 5 के पास एक सीट उड़कर प्रबंधक धनंजय कुमार की गर्दन के पास लगी और वह वहीं गिर गए। हॉस्पिटल लाने के क्रम में उनकी मौत हो गयी।

कोक-ओवन विभाग में मेसर्स एनपी कंस्ट्रक्शन के ठेका मजदूर सुरेंद्र सिंह की मौत की जांच अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि 27 फरवरी, 2022 को फिर से स्टील मेल्टिग शाप-1 में कार्यरत ठेका मजदूर 45 वर्षीय सत्येंद्र साह कार्य के दौरान दुर्घटना के शिकार हो गए। वे बीएसएल में मेसर्स सुशांत इंटरप्राइजेज के अधीन अर्ध कुशल कामगार के पद पर कार्यरत थे। घटना के संबंध में बताया जाता है कि वे बी शिफ्ट की ड्यूटी के दौरान सत्येंद्र शाह एसएमएस-1 के कनवर्टर नंबर दो पर फोर्ट लिफ्ट पर सफाई का काम कर रहे थे। अचानक लगभग दोपहर सवा दो बजे वे फोर्ट लिफ्ट सहित आठ मीटर की उंचाई से धरातल यानी जीरो ग्राउंड पर जा गिरे थे।

19 अगस्त 2021 को बोकारो स्टील प्लांट के ब्लास्ट फर्नेस नंबर तीन में कार्यरत कर्मचारी पी रजवार की मौत इलाज के दौरान बोकारो जनरल अस्पताल में हो गई थी। इस बाबत मिली जानकारी के अनुसार सुबह 6.15 बजे पी रजवार लिफ्ट के बेसमेंट में अचेत अवस्था में पाए गए थे। जिसके बाद स्थानीय कर्मचारियों ने इसकी सूचना वरीय अधिकारियों को दी। वरीय अधिकारियों के प्रयास से तत्काल उन्हें बोकारो जनरल अस्पताल लाया गया। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

30 नवंबर, 2021 को क्रेन में लगे हुक का तार टूटने से एक कर्मचारी की घटनास्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गई। मृतक मजदूर योगेंद्र कुमार सीसीएस विभाग के एसएमएस-2 में कार्यरत था। हादसा उस वक़्त हुआ जब क्रेन से लोहे की शिफ्टिंग की जा रही थी। लोहे का भारी इलेक्ट्रोड क्रेन से टूट कर मृतक के ऊपर गिर गया था।

कागजी तौर पर तो बीएसएल अपने प्लांट में बढ़ती दुर्घटनाओं को रोकने के लिए करोड़ों रूपये के खर्च पर बाहरी फर्म से कंसल्टेंसी ले रहा है। कार्यस्थल पर सुरक्षा को और पुख्ता बनाने के लिए मेसर्स एएसके-इएचएस इंजीनियरिंग एंड कन्सल्टेंट्स के साथ मिलकर वृहद स्तर पर सेफ्टी कल्चर ट्रांसफॉरमेशन की पहल हो रही है।

लेकिन इन दुर्घटनाओं से बीएसएल के अधिकारी और कर्मी इसलिए बेहद दुखी हैं कि जहां इन दुर्घटनाओं के नाम पर करोड़ों का खर्च दिखाया जा रहा है वहीं जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं हो रहा है। केवल कागजी कोरम पूरा करके पैसों की लूट हो रही है।

यहां बताना जरूरी होगा कि ऐसी दुर्घटनाओं के जद में जो बीएसएल कर्मी आ जाते हैं, तो उनके बारे में जानकारियां सार्वजनिक हो जाती हैं। लेकिन ऐसे मजदूर जो इस इस्पात संयंत्र में ठेका मजदूर के तौर पर कार्यरत हैं दुर्घटना में हुई उनकी मौत की हवा भी नहीं लगती है। उनकी लाश ही गायब कर दी जाती है। परिजनों द्वारा खोजबीन में ठेकेदार द्वारा कह दिया जाता है कि वह तो कई दिनों से आ ही नहीं रहा है। उसके प्लांट का गेट पास भी गायब कर दिया जाता है। बिरले ही किसी मजदूर की खबर लगती है। वह भी तब जब कोई बड़ा हादसा होता है और वह तुरंत ही प्रसारित हो जाता है।

इन मामलों का सबसे दुखद पहलू यह है कि ये घटनाएं स्थानीय अखबारों से सिरे गायब रहती हैं। कारण साफ है, जो स्थानीय कथित पत्रकार हैं उन्हें केवल प्रेस रिलीज, नेताओं के भाषण, स्थानीय प्रशासन ने कितना तीर मारा, वगैरह वगैरह लिखने की छूट है।

बोकारो स्टील शाखा के मजदूर संगठन समिति के सचिव, अरविंद कुमार बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि इन दुर्घटनाओं को रोकने और सुरक्षा को लेकर फंड नहीं हैं, हर साल मेंटिनेंस के लिए करोड़ों रुपए आते हैं लेकिन बीएसएल प्रबंधन कहां और कब इन पर खर्च करता है किसी को भनक तक नहीं लगती। जाहिर है इन पैसों का बंदरबाट हो जाता है। एक तरह से कहा जाए कि प्रबंधन के लोगों और ठेकेदारों की मिलीभगत से इन रुपयों को लूट लिया जाता है। अरविंद बताते हैं कि इन दुर्घटनाओं में प्रभावित अगर कोई बीएसएल कर्मी या अधिकारी हो जाता है तो उनका पता चल जाता है लेकिन अगर कोई ठेका मजदूर इन दुर्घटनाओं से प्रभावित हो जाता है तो उसका कोई अता पता नहीं चलता। कुछ अपवाद जरूर हैं, लेकिन वह भी तब जब मामला हाइलाइटेड हो जाता है।

ठेका मजदूर प्रकोष्ठ (एटक) सह मीडिया प्रभारी वीरेन्द्र कुमार कहते हैं – बोकारो स्टील प्लांट के अंदर प्रतिदिन दुर्घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। इन दुर्घटनाओं में सबसे अधिक क्षति प्लांट में काम करने वाले ठेका मजदूरों को हो रहा है। देखा जाए तो पिछले दो सालों में ही 10-12 बडी दुर्घटनाएं घटी हैं। 2022 में Continuous casting shop में ही दो बड़ी दुर्घटनाएं घटीं। एक वाई कुमार नाम के बीएसएल कर्मी की घटना स्थल पर ही मौत हो गयी, वहीं एक ठेका मजदूर किशोर टुडू लिक्विड स्टील (पिघला हुआ लोहा) भरे लेडल में गिर गया मतलब उसका अस्थिपंजर तक गल गया।

2021 में आरएमएचपी शाप (rmhp shop) में गोविंद दास नाम के एक ठेका मजदूर का काम करने के दौरान दोनों हाथ कट गया।  इसी प्रकार एसएमएस- 1 (sms-1) में कार्य करने के दौरान शिवपति सिंह का दोनों पैर कट गया। आज तक इन दोनों ठेका मजदूरों को ना तो नियोजन मिला ना ही कुछ मुआवजा राशि ही मिली है। विगत कुछ महीने पहले अमित माइंस कम्पनी में काम के दौरान एक ठेका मजदूर की मौत हो गयी थी। लेकिन इसके भी परिवार में किसी को भी बीएसएल प्रबंधन द्वारा नियोजन नहीं दिया गया।

इन दुर्घटनाओं के कारणों पर वीरेंद्र बताते हैं कि इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जब पुराने ठेका मजदूर मिनिमम वेज की मांग करते हैं तो प्रबंधन और ठेकेदार मिल कर उस मजदूर को प्लांट से बाहर कर देते हैं और उसकी जगह नौसिखिए मजदूर से काम कराया जाता है, जिसे वहां के काम करने का तरीका ही नहीं पता रहता है। दूसरा कारण यह भी है कि सारे सुरक्षा नियमों को ताक में रख कर BSL प्रबंधन और ठेकेदार द्वारा काम कराया जाता है। यहां के ठेका मजदूरों को ना तो मिनिमम वेज मिलता है ना ही ईपीएफ (epf) में सही से पैसा जमा होता है।

इस बाबत बोकारो इस्पात कामगार यूनियन (एटक) के महामंत्री रामाश्रय प्रसाद सिंह ने डायरेक्टर प्रभारी सेल, बोकारो स्टील प्लांट को एक पत्र भेजकर कहा है कि बोकारो स्टील प्लांट में हाल के महीनों और वर्षों में जो भी फेटल और सांघातिक दुर्घटनाएं हुई हैं और जिससे जान-माल का भारी नुकसान बीएसएल को उठाना पड़ा है।

अभी सीआरएम 1 पिक्लिंग लाइन 1 और 2 के बीच स्थित एचके वे में छत गिरने की घटना हुयी जिसमें संयोग से कोई कर्मचारी हताहत नहीं हुआ। यह घटना पुराने हुए एसिड फ्यूम्स के लिए लगाये गए सुरक्षा उपकरणों के निर्धारित देखरेख में बरती गयी लापरवाही, निर्धारित समय पर की जाने वाली पेंटिंग का न होना और रूफ और उसके सपोर्ट को एसिड से बचाव से सुरक्षा के नए संसाधनों का प्रयोग न करना रहा है।

वहीं 2 दिन पहले ब्लास्ट फर्नेस में हुयी दुर्घटना में एक ठेकेदार मजदूर का पैर काटना पड़ा है।

स्टील प्लांटों में प्रत्येक विभाग के लिए सुरक्षा अलग अलग होती है और सिर्फ सेफ्टी शू और हेलमेट आदि पहनने के लिए 2 दिनों की ट्रेनिंग काफी नहीं है। जैसे जो सुरक्षा फोक पर्व के लिए है वह ब्लास्ट फर्नेस के लिए प्रर्याप्त नहीं है, एसएमएसएस की सुरक्षा के लिए ट्रेनिंग और अनुभव की जरूरत है। उन्होंने पत्र की प्रतिलिपि को चेयरमेन सेल (डायरेक्टर तकनीकी) सेल इस्पात मंत्री (भारत सरकार) को भी संबोधित किया है।

(बोकारो से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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