Friday, April 19, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: मोदी के गृह राज्य ही नहीं चुनावी क्षेत्र में भी नशे का कारोबार परवान पर

वाराणसी। बनारस में साधु-सन्यासी और रिक्शा चालकों द्वारा सेवन किया जाने वाला गांजा, अब आम चलन में आ गया है। जो कभी घाटों पर चोरी छिपे इस्तेमाल किया जाता था, अब खुलेआम हो रहा है। मानों यह ट्रेंड बन गया है। नतीजा सबके सामने है, बनारस में नशेड़ियों की लंबी फौज। इनमें सबसे अधिक संख्या युवाओं की है। मुद्दे की बात यह है हाल के दशक में जिला नशे की गिरफ्त फंस चुका है, नशे के दलदल से इन लोगों को वापस लाना भी भगीरथी प्रयास सरीखा लगाता है।

केस-1: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में लंका थाना क्षेत्र के 8 अप्रैल, 2022 को डीआरआई की टीम ने एक डीसीएम गाड़ी से 5 कुंतल गांजा के साथ तीन तस्करों को गिरफ्तार किया है। पुलिस तस्कर सरगना को बेनकाब नहीं कर सकी। वहीं, केस-2 : 11 जनवरी, 2021 को मिर्जापुर के कटरा कोतवाली के क्षेत्र में 14 लाख रुपए की कीमत का पांच क्विंटल से अधिक गांजा जब्त किया गया। पूछताछ में गिरफ्तार तीनों ने स्वीकार किया कि वे उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से मादक पदार्थ को लेकर मिर्जापुर, वाराणसी, सोनभद्र और भदोही जिले में सप्लाई करने जा रहे थे। इस मामले में पुलिस जब्ती-गिरफ्तारी कर अपनी पीठ थपथपा ली और इस केस में भी पुलिस ने गांजा तस्कर गैंग का पर्दाफास करना मुनासिब नहीं समझा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस पर एबीसीडी की रिपोर्ट दावा करती है कि दिल्ली और मुंबई के बाद बनारस के गंजेड़ी सबसे अधिक चिलम धधकाते हैं। दोनों शहरों में इस नशे की सालाना खपत क्रमशः 38.36 और 32.38 मीट्रिक टन है। डार्कनेट और ओपन मार्केट में तस्करी द्वारा खपने वाले नशीले पदार्थों का सर्वे करने वाली जर्मनी की एबीसीडी- गांजे का दम लेने वाले देशों में अमेरिका को दुनिया में पहले पायदान पर रखती है। जर्मनी की एबीसीडी ने जब बनारस का डाटा जुटाया होगा तो शायद ही उसका ध्यान इस ओर गया होगा कि बनारस में चिलम तैयार कर कश मारने के लिए भूत-पिशाचों को भी बुलाया जाता होगा। ये हास्यास्पद जरूर है, लेकिन नंगा सच है।

अब आम चलन में आ चुका है गांजा

बनारस शहर के सैकड़ों बाबाओं के मठ-मजारों पर भक्ति की आड़ में चिलम से धुंआ सोखते मिल जाएंगे। लंका से लेकर सारनाथ, डाफी से करौंदी, मंडुआडीह से कैंट, चौकाघाट से राजघाट, शिवपुर से सैरया, गंगा तीरे के दर्जनों घाट, यूनिवर्सिटी से लेकर कॉलेज के स्मोक जोन, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, ऑटो स्टैंड, मंडलीय और जिला अस्पतालों के एकांत और खाली स्थानों आदि से गुजरने पर कुछ अजीब से सड़ी काली कसैली गंध नथुनों को बीथने लगती है और उबकाई सी आने लगती है। साधु-संन्यासी और रिक्शा चालकों द्वारा सेवन किया जाने वाला गांजा, अब आम चलन में आ गया है। जो कभी घाटों पर चोरी छिपे इस्तेमाल किया जाता था, अब खुलेआम हो रहा है। मानों यह ट्रेंड बन गया है। नतीजा सबके सामने है, बनारस में नशेड़ियों की लंबी फौज। इनमें सबसे अधिक संख्या युवाओं की है। मुद्दे की बात यह है कि हाल के दशक में जिला नशे के गिरफ्त फंस चुका है, नशे के दल-दल से इन लोगों को वापस लाना भी भागीरथी के प्रयास सरीखा लगता है।

पूर्वांचल सहित कई दूसरे राज्यों में गांजा की सप्लाई करने वाले तस्कर अजय सिंह पप्पू को डीआरआई वाराणसी की टीम ने छत्तीसगढ़ से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है (फाइल फोटो)।

दिन-रात खुले आम उड़ाए जा रहे छल्ले

स्लम, बेगर्स बच्चों के शैक्षिक उत्थान के लिए काम करने वाली संस्था उर्मिला देवी मेमोरियल सोसाइटी की संचालिका प्रतिभा सिंह ‘जनचौक’ को बताती हैं कि ‘ नशाखोरी इतनी ज्यादा बढ़ी है कि छोटे-छोटे बच्चों में भी बड़ी-बड़ी नशा की प्रवृत्तियां आ गई हैं। नशे के कारोबार में बेतहाशा वृद्धि हुई है और इस पर कोई कारगर अंकुश नहीं लगता दिख रहा है। शहर में भांग, गांजा या फिर शराब बहुत ही सहज रूप से मिल जाते हैं। नशेड़ियों के अलावे लड़कियां भी खरीदकर खुलेआम छल्ले उड़ाती हैं। हमारी तरफ सुंदरपुर में बहुत दिख जाती हैं। गांजा पीता हुआ सात साल का लड़का भी जानती हूं और सत्तर साल के बूढ़े को भी जानती हूं। इतनी ढिलवाही.. प्रशासन-पुलिस की नाक के नीचे आखिर कैसे संभव हो पा रहा है?’

‘मरचैय्या’, ‘असमियां’ और ‘नागिन’ की डिमांड

गुजरात के कांडला बंदरगाह पर 25 अप्रैल को 1439 करोड़ की हेरोइन जब्त की गई। इसके ठीक नौवें दिन गुजराती बंदरगाह पीपावाव से 90 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई, जिसकी कीमत 450 करोड़ बताई गई है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बनारस में हर महीने 25 से 30 क्विंटल गांजा की खपत होती है। चुनाव और मेगा इवेंट के समय में खपत के वजन में और बढ़ोत्तरी हो जाती है। बढ़ती नशाखोरी का प्रचलन खानपान, लस्सी, मलाई, रबड़ी, दूध-दही, मलइयो समेत कई लजीज व्यंजन छककर खाने और खिलाने वाले बनारस की समृद्ध पहचान पर किसी हमले से कम नहीं है। बनारस के गंजेड़ी ‘मरचैय्या’, ‘असमियां’ और ‘नागिन’ की ताक में रहते हैं। अमूमन शहर में चोरी-छिपे बेचने वाले नए नशेड़ियों को ‘चालू पुड़िया’ देकर टरका देते हैं। लेकिन, गांजे की परख रखने वाले नशेड़ी गांजे की खुशबू, पुड़िया में गांजे के विस्तार और उभार से अपनी पसंद का नशीला पदार्थ पा जाते हैं।

आपने गांजा का धुंआ या सिगरेट का ?

जन अधिकार पार्टी के युवा मंडल जिलाध्यक्ष बबलू मौर्य कहते हैं कि ‘सबसे बड़ी बहस ये है कि गांजे पर रोक है। कैसे बिक रहा है? इतनी बड़ी तादाद में गांजा आ कहां से रहा है ?  इस पर रोक लगाना चाहिए। गांजा युवा और समाज को खोखला कर रहा हैं। रोक लगाने के साथ कसैले धुएं का कारोबार करने वाले पर सख्त कार्रवाई की जाए। लड़के शौकिया तौर पर शुरू करते हैं और लत बन जाती है। नई पीढ़ी के लड़के कहीं-कहीं सिगरेट में गांजा भरकर पीते मिलते हैं। आपको लगेगा कि सिगरेट पी रहे हैं। जब उसकी बदबू आएगी तो पता चलेगा कि गांजा पी रहे हैं। इनका कारोबार ऐसे चलता है कि कोई शातिर पकड़ में नहीं आता है। सामयिक मसलों पर खुलकर राय रखने वाले राजीव कुमार सिंह कहते हैं कि ‘देश में किसी भी राज्य में चुनाव से बनारस से गुजरने वाले हाईवे पर डीआरई और नारकोटिक विभाग चौकसी बढ़ा देती है और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से रात में पेट्रोलिंग भी करती है। स्थानीय प्रशासन और संस्थाओं को स्मार्ट सिटी और इसके बहुमूल्य मानव संसाधन को सहेजने व भविष्य में बेहतर इस्तेमाल के लिए जागरूकता अभियान चलना चाहिए। ताकि मॉडर्न की चादर ओढ़ते बनारस के सामान्य युवाओं और नागरिकों को चकाचौंध की नकारात्मक्ता से बचाया जा सके।’

बनारस में कैसे पहुंचता है गांजा

ग्रामीण एरिया को छोड़कर शहरी इलाकों को कमिश्नरेट पुलिस द्वारा व्यवस्था संभाले जाने पर पब्लिक में आस जगी थी कि अब शहर में अपराध और नशीले पदार्थ की तस्करी पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। वर्तमान में ठग, चोर, लुटेरा गैंग कमिश्नरेट पुलिस की नाक में दम किए हुए हैं। वहीं, नशीले पदार्थों के तस्करी के जाल को भेदने में पुलिस को कुछ सफलता नहीं मिली है और तस्कर अपने कामों को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। गांजा की सप्लाई करने वाले तस्करों के हौसले बुलंद और सप्लाई चेन गोपनीय व मजबूत है कि एक बार तो सीआईए के जासूस भी माथा पीट लेंगे।

चूंकि, आम और क्रिमिनल माइंडेड तस्करों को जाल बुन पुलिस धर-पकड़ की कार्रवाई कर लेती है। लेकिन बनारस में गांजा तस्करों को पकड़ना आसान नहीं है। वजह है, तस्करों की वेशभूषा और पेशा, जिसे भेद पाना आसान नहीं है। उड़ीसा, बिहार, साउथ इंडिया व नार्थ इंडिया से गांजे की खेप यहां आती है। तस्करों के नेटवर्क घाट पर पड़े साधु से लेकर रिक्शा चलाने वालों तक से जुड़े हैं। गंगा घाटों पर मौजूद तमाम साधु वेशधारी नशे की तस्करी में अहम भूमिका निभाते हैं, जो पुलिस को आसानी से चकमा देकर निकल जाते हैैं।

स्लम बच्चों के उत्थान के लिए काम करने वाली प्रतिभा सिंह ।

कहां मिलता है गांजा ?

गांव-गिरांव और कस्बे-बाजारों से तो कोई भी रिक्शा वालों से पता लेकर गांजा खरीद सकता है। वहीं, शहर में किसी को आसानी से गांजा प्राप्त करना थोड़ा कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं। दस-बीस देने पर रिक्शा चालक बहुत ही विनम्रता से नशेड़ी को गांजे के ठीहे तक पहुंचा देता है। शहर में आदमपुर कोतवाली जोन, दशाश्वमेध जोन, लंका, कैंट, शिवपुर, काशी जोन, वरुणा जोन समेत कई इलाकों में गांजे की पुड़िया बेचते और खरीदते हुए देखा जा सकता है। 50, 100 और 200 रुपए की कीमत वाली पुड़िया सामान्य तौर पर प्रचलन में हैं। गंजेड़ी मंडली में बैठकर गांजा पीते हैं।

महंगाई-बेरोजगारी नशे की बढ़ती लत की जिम्मेदार !

काशी विश्वनाथ मंदिर में दैनिक पूजा-पाठ और सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी बात रखने वाले वैभव त्रिपाठी कहते हैं कि ‘डिप्रेशन का लेवल लोगों में बढ़ता जा रहा है। इसका बड़ा कारण बेरोजगारी है। कोरोना के चलते शिक्षा की स्थिति भी खराब हुई है। नई शिक्षा नीति में गरीबों के लिए सामान्य अवसर घट गए हैं। जब शिक्षा का अवसर नीचे जाता है। रोजगार नहीं मिलता है तो आदमी डिप्रेशन में चला जाता है। रईस लोग तो शौकिया नशा करते हैं। लेकिन जो गरीबों के लड़के हैं वे बेरोजगारी के चलते नशे की लत का शिकार हो जाते हैं। सोचते हैं कि कुछ हो नहीं रहा तो इसी यानी नशे में ही आनंद लिया जाए। लिहाजा, जनपद में शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, घटते रोजगार, तनाव और बढ़ते नशीले पदार्थों की तस्करी ने नशे की बढ़ती प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने के कारण हैं। कुछ राजनीतिक दल हैं, ये अपने लाभ के लिए चुनाव में पैसे बांटने का काम करते हैं और यह प्रचलन भी नशे को बढ़ावा देता है।’

आमदनी कम और जिम्मेदारियों का तनाव अधिक

वैभव आगे कहते हैं कि ‘जो बच्चे पहले 12 में या 15 हजार रुपए में माइक्रो फाइनेंस में जॉब कर रहे थे। अब वे 08 से 10 हजार रुपए में काम कर रहे हैं। ऐसे में कुछ युवा जिम्मेदारियों और विवशता के चलते बहुत कम पैसों में नौकरी करते हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। फिर तनाव को दूर करने के जद में आ जाते हैं। नशे से समाज का विघटन हो रहा है। राजनीतिक फंडिंग आदि को भी मॉनिटर करना चाहिए। सिस्टम का फेलियर है कि रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। जनपद में मलिन बस्तियों, स्टेशन के आसपास, स्कूल-कॉलेज के सूने सपाटे एकांत स्थान, मठ, मंदिर, घाट, मजार-कब्रिस्तान, ऑटो, बस और बाइक स्टैंडों में जमकर गांजा का दम मारते नशेड़ी मिल जाएंगे। सरकार नशे के उन्मूलन पर ध्यान गंभीरता से नहीं दे रही है। लोगों की पहले से स्थिति भी बिगड़ती जा रही है।’

सजा सस्ती होने के चलते और बम्पर कमाई के आकर्षण में दांव खेलते तस्कर

मीडिया रिपोर्ट्स की बताती हैं कि उड़ीसा में एक किलो गांजे की कीमत 05 से 10 रुपये होती है, लेकिन बाजार में आते ही कीमत पांच से छह गुना बढ़ जाती है। कम निवेश और पकड़े जाने पर कम सजा के चलते माफिया  इस धंधे को आजमाने से चूकते नहीं हैं। नशे के सौदागरों ने हिरोइन, चरस, अफीम से दूरी बनाकर गांजे के कारोबार पर दांव खेलना शुरू कर दिया है। हालांकि एक दशक पहले बनारस में अफीम व चरस का धंधा भी तेजी पर था, लेकिन कठोर सजा व पुलिस की सख्ती के चलते तस्करों ने दूरी बना ली।

कभी भूसी तो कभी डीसीएम छुपाकर होती गांजे की तस्करी 

वाराणसी में डीआरआई ने बड़ी कार्रवाई करते हुए डाफी टोल प्लाजा के पास ट्रक में चावल की भूसी के नीचे छिपाकर रखा गया 590 किलो गांजा बरामद किया। गांजा ओडिशा के रायगढ़ से मुरादाबाद ले जाया जा रहा था। इस कार्रवाई में रामपुर के स्वार के रहने वाले मोहम्मद इरफा और नौगवां के अकरम अली और आसिफ अली को गिरफ्तार किया गया था। बरामद गांजे की कीमत करीब एक करोड़ 18 लाख रुपए है। डीआरआई के सीनियर इंटेलिजेंस ऑफिसर आनंद राय ने बताया पैकेट में गांजा भरकर चावल की भूसी के बीच रखा गया था। हमें खुफिया सूचना मिली थी कि दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे से चावल की भूसी लादे हुए ट्रक में गांजा की एक बड़ी खेप लाई जा रही है। इसी आधार पर इंटेलिजेंस ऑफिसर लेख राज, मुकुंद सिंह और अनंत विक्रम के साथ डाफी टोल प्लाजा के पास घेराबंदी की। ट्रक जब आया तो उसे रोक कर तलाशी शुरू की गई। भूसी के नीचे ट्रक के बीचों बीच गांजा पैकेट में भर कर रखा हुआ था।

पैडलरों को भी पता नहीं होता गांजा किंग का नाम-पता

डाफी टोल प्लाजा के पास ट्रक में चावल की भूसी के नीचे छिपाकर रखा गया 590 किलो गांजा बरामद होता है। ट्रक में सवार तीनों आरोपियों ने बताया कि वह सिर्फ कूरियर ब्वॉय का काम करते हैं। उन्हें कहा गया था कि अगर गांजा की खेप सकुशल मुरादाबाद पहुंच जाएगी तो तीनों को डेढ़ लाख रुपए मिलेंगे। इसके अलावा रास्ते के लिए डीजल और खाने-पीने का खर्च अलग से दिया गया था। उन्हें ये नहीं पता है कि गांजा भिजवाने और लेने वाला कौन है। चौकाघाट स्थित कालीजी मंदिर के समीप सितंबर 2020 में हिस्ट्रीशीटर अभिषेक सिंह प्रिंस की हत्या हुई थी। अभिषेक भी गांजे की तस्करी से जुड़ा था। उड़ीसा से लेकर पंजाब तक इसका नेटवर्क था। तस्करी के विवाद में प्रिंस की हत्या हुई थी। अब भी इस अवैध धंधे में अपनी धाक जमाने को लेकर जरायम की दुनिया में जबर्दस्त टशन चल रही है।

फेफड़े के मरीज हो रहे गंजेड़ी

स्पेशलिस्ट डॉक्टर रविशंकर मौर्य बताते हैं कि गांजा और भांग पीने के बाद भले ही आनंद बढ़ जाता है, लेकिन साथ ही दिमागी क्षमता कम हो सकती है। गांजा पीते ही तुरन्त नशा होता है और इसका नशा आंखें बहुत लाल कर देता है। भूख और नींद की कमी या फिर इनकी अधि‍कता के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है। यह ब्लड प्रेसर रक्तचाप को भी प्रभावित कर सकता है और साथ ही मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। मानसिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। गांजे के लगातार सेवन से जीवन नीरस हो जाता है और काम, सामाजिक जीवन और परिवार के साथ रिश्ते भी इससे प्रभावित हो जाते हैं। आईक्यू लेवल कम हो सकता है और किशोरावस्था में तो ये ज्यादा खतरनाक है। कम उम्र में नौजवानों ने जितना ज्यादा नशा किया, उनकी बुद्धि उतनी ही मंद होती गई और नशा छोड़ने पर भी उनकी बुद्धि का विकास नहीं हो पाया। सबसे बड़ा दुष्परिणाम ये है कि लंग्स कैंसर का खतरा, फेफड़ों के कैंसर, फेफड़ों का कैंसर ट्यूमर के विकास का कारण बनता है जो किसी व्यक्ति की सांस लेने की क्षमता को कम करता है।’

गर्भवती महिलाओं के शिशु को भी खतरा

बाल व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ कंचन बताती हैं कि ‘गर्भवती होने पर गांजा से धूम्रपान करने वाली महिलाओं के पैदा होने वाले शिशु का वजन कम होने की आशंका रहती है क्योंकि शिशु बहुत जल्दी पैदा हो सकते हैं। जिससे उन्हें नियोनेटल इंटेंसिव देखभाल की आवश्यकता होती है। गांजा का प्रजनन तंत्र पर भी हानिकारक प्रभाव होता है। प्रोस्टेट कैंसर और बांझपन की समस्या होने की आशंका बढ़ जाती है। गांजा दिल की धड़कन को बढ़ाता है, गांजा चरस भांग की लत से हार्टअटैक आने का खतरा भी बना रहता है। महिलाओं और युवतियों को गांजे के सेवन से बचना चाहिए। गांजा हड्डियों को धीरे-धीरे कमजोर कर देता है और हड्डियां आपका वेट भी नहीं सह पातीं।’

सौदागरों के चंगुल से युवाओं को निकालने का दावा 

वाराणसी कमिश्नरेट के क्राइम-हेडक्वार्टर के ज्वाइंट सीपी सुभाष चन्द्र दुबे दावा करते हुए कहते हैं कि ‘गांजा व प्रतिबंधित मादक पदार्थों की बिक्री करने वाले अराजक तत्वों की पहचान की जाएगी। गैंगस्टर अधिनियम के साथ अन्य कठोर विधिक कार्रवाई की जाएगी। नशे की लत से युवा पीढ़ी को बचाने के लिए और नशे के सौदागरों के चंगुल से निकालने के लिए उन्हें अवेयर किया जाएगा। आरोपियों पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना कर कार्रवाई की जाएगी’।

 गांजा जब्त करने की कुछ बड़ी कार्रवाई

– 27 मार्च 2022 : ओड़िसा से कार में गांजा तस्करी कर रहे वाराणसी के दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किए। आरोपियों के पास से कार में रखे साढ़े 26 किलो गांजा, कार व मोबाइल जब्त कर कार्रवाई की थी।

-11 जनवरी 2021 : मिर्जापुर के कटरा कोतवाली क्षेत्र के बथुआ तिराहे के पास से 534 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया। जिसकी अनुमानित कीमत तकरीबन एक करोड़ 14 लाख रुपये है। मौके से तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में तीनों ने बताया कि वे लोग उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से मादक पदार्थ को लेकर मिर्जापुर, वाराणसी, सोनभद्र और भदोही जिले में सप्लाई करने जा रहे थे।

-14 जनवरी 2021 : DRI की टीम ने वाराणसी-प्रयागराज हाईवे पर राजातालाब के पास 5 करोड़ 75 लाख रुपए का 38.5 क्विंटल गांजे की खेप के साथ दो आरोपियों को गिरफ्तार किया। बता दें की पशु आहार की बोरियों के नीचे छिपाकर 38.5 क्विंटल गांजा ले जाया जा रहा था।

– 28 सितंबर 2021 : वाराणसी जनपद में सिंगरा और चेतगंज पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए अंधरापुल के पास से चार महिलाओं सहित नौ लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने इनके पास से 403.06 किलो गांजा बरामद किया था।

– 11  अक्टूबर 2020: वाराणसी में 13 क्विंटल गांजे की खेप पकड़ी गई। पकड़ी गई खेप की कीमत लगभग 2 करोड़ बताई जा रही है। मुखबिर की सूचना के आधार पर वाराणसी से भदोही ले जाती हुई गांजे की इस खेप को पुलिस ने पकड़ा।

(बनारस से युवा पत्रकार पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

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