Thursday, April 18, 2024

फिलहाल राजधानी में नहीं घुसेंगे! सिंघू बॉर्डर पर डटे रहेंगे किसान

लम्बी झड़प और संघर्ष के बाद केंद्र सरकार ने किसानों  के जिद के आगे  विवश होकर उन्हें दिल्ली घुसने की इजाजत तो दे दी, किंतु किसानों ने अब अपनी रणनीति बदलते हुए दिल्ली को बाहर से ही घेरने का मन बनाया है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की आज हुई बैठक के बाद कहा गया है कि किसान दिल्ली हरियाणा के सिंघू बॉर्डर पर ही अपना आन्दोलन जारी रखेंगे और वे फ़िलहाल कहीं नहीं जायेंगे। यही बात भारतीय किसान यूनियन, पंजाब के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह ने भी कही।

आन्दोलन को आगे किस प्रकार ले जाना है इस पर किसानों से विचार विमर्श करने के बाद ही निर्णय लिए जाएंगे।

आज की बैठक के बाद जारी बुलेटिन में कहा गया है कि, एआईकेएससीसी, आरकेएमएस, बीकेयू (रजेवाल), बीकेयू (चडूनी) व अन्य किसान संगठनों ने भारत सरकार से अपील की है कि वह किसानों की समस्याओं को सम्बोधित कर उन्हें हल करे और बिना किसी समाधान को प्रस्तुत किए, वार्ता करने का अगंभीर दिखावा न करे।

वहीं इस बैठक में कहा गया है कि, यह विशाल गोलबंदी देश के किसानों के अभूतपर्व व ऐतिहासिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें किसान तब तक दिल्ली रुकने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जब तक उनकी मांगे पूरी न हों। किसान संगठनों ने कहा कि देश के किसान दिल्ली रुकने के लिए नहीं आए हैं, अपनी मांगें पूरी कराने आए हैं। सरकार को इस मुख्य बिन्दु को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।

वहीं आज हुई बैठक में किसानों से जुड़े संगठनों ने सरकार उसके समर्थक मीडिया घरानों द्वारा किसानों के आन्दोलन को किसी दल का राजनीतिक एजेंडा कह कर बदनाम करने की मंशा की भी जमकर आलोचना की है।

आज जारी वक्तव्य में कहा गया है कि, ये आन्दोलन पार्टी की दलगत राजनीति से बहुत दूर हैं और कोई भी प्रेरित आन्दोलन कभी भी इतनी बड़ी गोलबंदी नहीं संगठित कर सकता था, न ही उसमें मांगें पूरी होने तक धैर्यपूर्ण प्रतिबद्धता हो सकती थी और ना ही ऐसा आन्दोलन कई महीनों तक चलता रह सकता था। उन्होंने कहा कि सरकार को आन्दोलन के खिलाफ दुष्प्रचार करने से बचना चाहिए और किसानों की मांगों को हल करने से बचने की जगह उन्हें हल करना चाहिए।

किसान संगठनों की ओर कहा गया है कि, सरकार ने जो वार्ता का प्रस्ताव दिया है वह बहुत ही अगंभीर है और सरकार और उसके मंत्री केवल अपना पक्ष ही सामने पेश कर रहे हैं। यह रवैया और तरीका हमें अस्वीकार है। किसान नेताओं ने इस बात की भी आलोचना की कि यह आन्दोलन पंजाब केन्द्रित है।

सरकार ने 3 दिसम्बर की वार्ता के लिए भी पंजाब के किसान यूनियनों को न्योता दिया है। ऐसी समझ पैदा करने के लिए कि शेष किसान संगठन उनके सुधारों से संतुष्ट हैं। ‘जैसा देखा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्ड व मध्य प्रदेश के किसान भारी संख्या में दिल्ली पहुंच रहे हैं और यह आन्दोलन देशव्यापी है’। यह भी कहा कि राष्ट्रीय मीडिया राज्यों के आन्दोलन को नजरंदाज करे पर ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, झारखंड आदि में आन्दोलन लगातार बढ़ रहा है।  

वहीं आज राजस्थान में भी किसानों के ‘दिल्ली चलो’ आन्दोलन के समर्थन में जयपुर में किसानों नने जुलूस निकाला है।

कल मध्यप्रदेश के इंदौर में भी किसानों ने बड़ा प्रदर्शन किया था।

इधर खबर है कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन और कुछ अन्य संगठनों के कुछ किसान बुराड़ी के निरंकारी मैदान में पहुंच चुके हैं।

गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा लाये गये तीन नये कृषि कानूनों  से किसान नाराज हैं और इन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। पंजाब के किसान बीते करीब ढाई महीनों से  प्रदर्शन कर रहे हैं, जहाँ उन्होंने रेलवे पटरियों पर तम्बू लगा लिया है जिसके चलते रेल सेवा बाधित है।

जब से सरकार ने इन विधेयकों को संसद में पारित कर कानूनी रूप दिया है  तब से किसानों के हड़ताल के कारण पंजाब में माल गाड़ी नहीं घुसने पायी है।

इस मसले पर केंद्र के साथ दो दौर की बातचीत विफल रहने के बाद किसान संगठनों  ने  संविधान दिवस के दिन 26 नवम्बर को  ‘दिल्ली चलो’ अभियान की घोषणा की थी।

मोदी सरकार और हरियाणा की खट्टर सरकार ने किसानों के  इस दिल्ली मार्च को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी किन्तु अंत में किसानों के मजबूत हौसले के आगे सरकार को एक कदम पीछे जाकर किसानों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी। किन्तु किसानों ने अब इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है और दिल्ली को बाहर से घेर कर उसकी सप्लाई रोकने का मन बनाया है।

बता दें कि, पहले किसानों को गिरफ्तार कर कैद करने के लिए दिल्ली पुलिस ने दिल्ली सरकार से दिल्ली के नौ स्टेडियमों को अस्थाई जेल बनाने की इज़ाजत मांगी थी, जिसे दिल्ली सरकार ने ख़ारिज कर दिया था।

इस बीच बीजेपी नेता दुष्यंत गौतम ने किसानों के इस विरोध प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। गौतम ने कहा कि, केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें (प्रदर्शन कर रहे किसान) 3 दिसंबर को बुलाया है, पहले भी बुलाया था। परन्तु कांग्रेस राजनीति करना चाहती है, किसानों के कंधे पर आगे बढ़ना चाहती है, कांग्रेस की ये दोहरी नीति है, ये कभी भी चलने वाली नहीं है।

वहीं केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि , इससे पहले भी 2 चरण अपने स्तर पर, सचिव स्तर पर किसानों से वार्ता हो चुकी है। 3 दिसंबर को बातचीत के लिए किसान यूनियन को हमने आमंत्रण भेजा है। तोमर ने आगे कहा कि, भारत सरकार किसानों से चर्चा के लिए तैयार थी, तैयार है और तैयार रहेगी।

अब सवाल है कि जब केंद्र सरकार हमेशा से ही किसानों से बात करने को तैयार है तो फिर शांतिपूर्ण तरीके से संविधान दिवस के दिन जब किसान दिल्ली आ रहे थे तो उनको रोकने  के लिए इतने  इन्तजाम क्यों किये गये ?  क्यों दर्जनों किसान नेताओं की गिरफ्तारी हुई ? सवाल बहुत हैं। इन कानूनों को लाने से पहले किसानों को भरोसे में क्यों नहीं लिया गया ?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसानों का समर्थन करते हुए कहा कि, प्रदर्शन कर रहे किसानों से बातचीत करके समाधान निकाला जाए, उनकी मांग जायज़ है। हम उनका समर्थन करते हैं। जो तीन कानून बनाए गए हैं वो किसान के हित में नहीं हैं।

बता दें कि कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने किसानों के इस ऐतिहासिक आन्दोलन को समर्थन दिया है।

वहीं, उत्तर प्रदेश  के उपमुख्यमंत्री  केशव प्रसाद मौर्य भी अब किसानों से आन्दोलन वापस लेने की मांग कर रहे हैं। बता दें  कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने  नर्मदा बचाओ आन्दोलन  की नेता मेधा पाटकर सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को दिल्ली आते समय आगरा में गिरफ्तार कर लिया था।

अब मौर्या कह रहे हैं कि किसान अपना आन्दोलन वापस लें !

शाहनवाज हुसैन भी पार्टी लाइन दोहराते हुए कह रहे हैं कि, हमारी सरकार किसान भाइयों से बहुत लगाव रखती है। गलतफहमियां बातचीत के ज़रिए ठीक की जा सकती हैं। कृषि मंत्री जी ने कहा है कि इस पर बातचीत के ज़रिए हल निकाला जाएगा। जिस तरह से इस पर कांग्रेस सियासत कर रही है वो बंद होनी चाहिए।

(पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।

Related Articles

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

केरल में ईवीएम के मॉक ड्रिल के दौरान बीजेपी को अतिरिक्त वोट की मछली चुनाव आयोग के गले में फंसी 

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को केरल के कासरगोड में मॉक ड्रिल दौरान ईवीएम में खराबी के चलते भाजपा को गलत तरीके से मिले वोटों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामले को प्रशांत भूषण ने उठाया, जिसपर कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई की और भविष्य में ईवीएम के साथ किसी भी छेड़छाड़ को रोकने हेतु कदमों की जानकारी मांगी।