Saturday, April 27, 2024

वित्तमंत्री ने किसानों-मज़दूरों के लिए भी खोला पिटारा, लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया

कोरोना संकट से चरमराई अर्थव्यवस्था में जान फूँकने के लिए वित्त मंत्री ने लगातार दूसरे दिन अपना भानुमति का पिटारा खोला, लेकिन अभी तक ये हिसाब साफ़ नहीं है कि 20 लाख करोड़ रुपये में कितने को लेकर ऐलान हो चुके हैं। पहले दिन मुख्य फ़ोकस लघु, छोटे और मझोले उद्योगों (MSME) पर रहा तो दूसरे दिन किसानों, प्रवासी मज़दूरों, रेहड़ी-पटरी वालों, मध्यम वर्ग के लिए रियायतों की घोषणा हुई। शायद, मोदी सरकार को ज़रा देर से याद आया कि वो गाँव-ग़रीब-पीड़ितों और वंचितों की सरकार है। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इस मोर्चे पर भी वित्त मंत्री के पास मामूली रियायतें देने और नयी योजनाओं के ऐलान के सिवाय कुछ ख़ास नहीं था। ज़ाहिर है कुछ ऐलान अच्छे भी हैं, लेकिन ज़्यादातर बातें झुनझुना ही हैं।

किसानों के लिए पैकेज़

किसानों की सबसे बड़ी समस्याएँ हैं – खेती की लागत का अधिक होना, फ़सलों को बाज़ार नहीं मिलना, बाज़ार में उचित दाम नहीं मिलना। लेकिन इन तीनों ही मोर्चों के लिए वित्तमंत्री के पास कोई राहत नहीं थी। इसीलिए बीज-खाद जैसी लागत के लिए उन्हें कुछ नहीं सूझा। उनके पास किसानों के लिए कर्ज़ और रियायती ब्याज़ का दायरा बढ़ाने के सिवाय और कुछ नहीं था। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के बाद 25 लाख नये किसान क्रेडिट कार्ड बने हैं। इन्हें मिलाकर 3 करोड़ किसानों को 4.22 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ बाँटा गया है। किसानों को पिछले कर्ज़ों की किस्तें नहीं भरने से छूट भी 31 मई तक बढ़ायी गयी है। कृषि मंडियों के लिए राज्यों को 6700 करोड़ रुपये देने का पैकेज़ ज़रूर जारी हुआ है। इसी तरह, छोटे किसानों को रियायती कर्ज़ देने के लिए पूर्व निर्धारित 90,000 करोड़ रुपये की योजना में 30,000 करोड़ रुपये और बढ़ाने का फ़ैसला लिया गया है। इससे उन 2.5 करोड़ किसानों को कर्ज़ देने की कोशिश होगी जिनके पास किसान क्रेडिट कार्ड नहीं है। ये रकम औसतन 2000 रुपये प्रति किसान सालाना बैठती है, जो महीने से सौ रुपये से भी कम का आवंटन है। अब आप चाहें तो इसे लेकर ताली-थाली बजा सकते हैं। बाक़ी किसानों को हर साल 6000 रुपये देने की पुरानी योजना क़ायम है। लॉकडाउन के बाद किसानों के बैंक खातों में इसे भेजा जा चुका है।

शहरी ग़रीबों का पैकेज़

राज्यों को उनके ही आपदा राहत फंड से 11,000 करोड़ रुपये देकर शेल्टर होम बनाने की बात की गयी है। यहाँ तीन वक़्त के खाने का खर्च केन्द्र सरकार उठाएगी। वित्तमंत्री को संतोष है कि अब तक देश में 12,000 स्वयं सहायता समूह बन चुके हैं। इनमें से 7200 ऐसे हैं जो लॉकडाउन के बाद बने हैं। इन्हें जिस वेब पोर्टल के ज़रिये अब तक गुजरात में भुगतान होता था, उसका विस्तार अब देश भर में किया जाएगा। इसके अलावा, इस तबके लिए वित्तमंत्री के पिटारे से और कुछ नहीं निकला। साफ़ है कि पैकेज़ सिर्फ़ तीन वक़्त का भोजन है, वो भी उसके लिए जो शेल्टर होम की शरण में हैं।

जो शेल्टर होम में नहीं हैं, उनके लिए प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल या 5 किलो गेहूँ और एक किलो चना मुफ़्त देने का ऐलान है। लेकिन ये ऐलान ज़मीन पर कैसे अपना असर दिखाएगा, इससे जुड़े नियम क्या होंगे? इसका पता नहीं है, क्योंकि इस राशन योजना का लाभ उन्हें भी देने का ऐलान है, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। अब तक 23 राज्यों में सस्ते राशन पर निर्भर 83 फ़ीसदी आबादी को ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ वाली योजना से जोड़ा जा चुका है। आगामी मार्च तक ये पूरा राष्ट्रव्यापी हो जाएगा। वैसे वित्त मंत्री ने 8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को मुफ़्त राशन देने की बातें भी की हैं। अगले दो महीने में इसे राज्य सरकारें लागू करेंगी और इस पैकेज़ के लिए 3500 करोड़ दिये गये हैं।

मज़दूरों को लिए पैकेज़

शहरों से गाँवों की ओर पलायन करने वाले मज़दूरों के लिए लॉकडाउन के बाद मनरेगा के तहत 14.62 करोड़ मानव-दिवस का सृजन हुआ है। देश की 1.37 करोड़ ग्राम पंचायतों ने 10,000 करोड़ रुपये खर्च करके गाँवों में ही मज़दूरी करके पेट-पालने वाले 2.33 करोड़ ग़रीबों की मदद की है। इनकी दैनिक मज़दूरी को 20 रुपये बढ़ाकर 202 रुपये करने का ऐलान 26 मार्च 2020 वाले पैकेज़ में ही हो चुका है। ताज़ा आँकड़ों में सिर्फ़ इतना ही है कि लॉकडाउन के बाद इस तबके में 40 से 50 फ़ीसदी तक का इज़ाफ़ा हुआ है।

इतना ज़रूर है कि मज़दूरों की दुर्दशा को देखते हुए अब सरकार इनके लिए बहुत कुछ करने की बात कर रही है। जैसे पूरे देश में न्यूनतम मज़दूरी को एक-समान करना, क्योंकि अभी देश के 30 फ़ीसदी मज़दूरों को ही न्यूनतम मज़दूरी मिल पाती है। जोख़िम भरे उद्योगों के मज़दूरों को कर्मचारी बीमा (ESIC) से अनिवार्य तौर पर जोड़ना, बेरोज़गार हुए मज़दूरों की री-स्किलिंग करना, साल में एक बार हरेक मज़दूर के स्वास्थ्य की जाँच करवाना और मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ दिलवाना उन्हें असंगठित क्षेत्र से उठाकर संगठित क्षेत्र का हिस्सा बनाना। लेकिन वित्तमंत्री की ये तमाम बातें बजट भाषण की तरह ही हैं। इसमें पैकेज़ जैसा कुछ नहीं है। अलबत्ता, सरकार ने 44 श्रम क़ानूनों को मिलाकर जो Code of Wages Act, 2019 बीते अगस्त में बनाया था, उसके नियमों का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। लिहाज़ा, श्रमिकों को लेकर वित्त मंत्री ने जितनी बातें की हैं वो ‘थोथा चना बाजे घना’ जैसी ही हैं।

अन्य झुनझुना पैकेज़

50 हज़ार रुपये तक का ‘शिशु’ मुद्रा लोन पाने वाले 3 करोड़ लाभार्थियों के पास बैंकों का 1.62 लाख करोड़ रुपया बकाया है। इन्हें तीन महीने तक किस्तें नहीं भरने और बाद में समय पर किस्तें चुकाने पर ब्याज़ में 2 फ़ीसदी छूट का प्रोत्साहन मिलेगा। इसके लिए 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। रेहड़ी-पटरी वाले 50 लाख लोगों की मदद करने के लिए उन्हें 10,000 का कर्ज़ मिल सकेगा। पूरी योजना एक महीने में तैयार की जाएगी। प्रवासी मज़दूरों के लिए घर बनाने की नयी योजना शुरू होगी। ये प्रधानमंत्री आवास योजना का हिस्सा होगी। 18 लाख रुपये सालाना की आमदनी वाले मध्यम वर्गीय परिवारों को 2017 से मिल रही क्रेडिट लिंक सब्सिडी योजना का दायरा भी साल भर के लिए बढ़ा दिया है। अभी 3.3 लाख परिवार इसके लाभार्थी हैं। वित्तमंत्री को उम्मीद है कि इस साल इसमें 2.5 लाख परिवारों का इज़ाफ़ा होगा। इसी तरह, आदिवासी क्षेत्रों के लिए राज्यों की ओर से बनायी जाने वाली योजना को 10 दिन में मंज़ूरी दी जाएगी। अभी 6,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव केन्द्र सरकार के विचाराधीन हैं।

श्रमिक स्पेशल ट्रेन

वित्तमंत्री का कहना है कि सरकार के पास रोज़ाना 1200 श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने की क्षमता है। अभी क़रीब 300 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चल रही हैं। अब तक चली 733 ट्रेन से ऐसे 10 लाख लोगों, प्रवासी मज़दूरों को उनके गाँवों की ओर भेजा गया है, जिनके लिए उनसे सम्बन्धित राज्य सरकारों ने माँग की। इसमें पैकेज़ जैसा और कुछ नहीं है। सिवाय इसके कि वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री को चिलचिलाती धूप में सैकड़ों किलोमीटर लम्बी सड़कों को पैदल नापने के लिए मज़बूर हुए ग़रीबों के प्रति बहुत हमदर्दी है। अब कोई इस हमदर्दी को कुछ और समझना चाहता है, तो समझता रहे। तीन दिनों से देश का केन्द्रीय नेतृत्व अपने भाषणों से इतनी हमदर्दी बिखेर चुका है कि अब तो किसी को ग़िला नहीं होनी चाहिए।

(मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। तीन दशक लम्बे पेशेवर अनुभव के दौरान इन्होंने दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, उदयपुर और मुम्बई स्थित न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। अभी दिल्ली में रहते हैं।)

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