Saturday, April 27, 2024

कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत: व्यवहारिक और प्रतिबद्ध राजनीति का अनूठा स्कूल

विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रथ को रोकने की कवायद में है। इसी के तहत विभिन्न भाजपा विरोधी ताकतों ने मिलकर ‘इंडिया’ नामक महागठजोड़ बनाया है। इस मौके पर एक शख्सियत की कमी थी और शायद ही ‘इंडिया’ में शुमार किसी दल के वरिष्ठ नेता ने उन्हें याद किया होगा। यह राजनीति की रिवायत है लेकिन अगर वह शख्स होता तो विपक्षी एकता का नक्शा कुछ और होना था। उस शख्स का नाम है कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत! जिनके जिस्मानी अंत को आज ठीक पंद्रह साल हो गए। भारतीय राजनीति के इतिहास की व्यवहारिक-अलिखित किताब के बेशुमार सुनहरे पन्ने उनके नाम हैं।

याद करने वाले बखूबी कहते मिल जाएंगे कि कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत आज होते तो मौजूदा तानाशाह सत्ता के कई स्तंभों को अपने चौकस तथा प्रखर दिशा-निर्देश से हिला देते। वह खांटी प्रगतिशील मार्क्सवादी थे लेकिन उनके संपर्कों और दोस्तियों का दायरा बेहद विशाल था। संपर्क और दोस्तियां उनकी विचारधारात्मक प्रतिबद्धताओं को रत्ती भर भी हिला नहीं सकती थीं। तार्किकता के साथ अपनी बात मनवाने का हुनर उनकी खसूसियत थी। सादगी उनका गहना थी। सियासी जन्म आंदोलनों से हुआ था। आंदोलनों के दौरान पुलिसिया उत्पीड़न भी सहा (उनकी पीठ पर इसके निशान बाकायदा थे)। लेकिन सदैव अपनी विचारधारा के अडिग पहरेदार रहे।

कुलीन वर्ग उनके करीब आने को बेताब रहता था लेकिन खुद उन्हें कुलीनता से परहेज था। अक्सर ऐसा होता था कि उनकी फोन लाइन पर सोनिया गांधी बात कर रही होती थीं तो अटल बिहारी वाजपेयी का फोन कतार में होता था। वाजपेयी जी बात कर रहे हैं तो अंबानी फोन मिलने के इंतजार में हैं। डॉ. मनमोहन सिंह से बात हो रही है तो शरद पवार, मुलायम सिंह यादव या लालू प्रसाद यादव के यहां से फोन बीच में आ रहा है। ऐसी ही अति महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्ती थे कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत। देश क्या दुनिया भर के सियासतदानों से उनके करीबी संबंध थे लेकिन अपने पोते तक का पूरा नाम वह नहीं जानते थे। 

आपसी बातचीत में वह संघ परिवार को ‘संघ गिरोह’ कहते थे। तकरीबन बीस साल पहले उन्होंने आशंका जाहिर कर दी थी कि विपक्ष के ढीलेपन के चलते अगर दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता में आईं तो वे कश्मीर में धारा-370 और 35-ए को अचानक एक दिन, एक पंक्ति के आदेश में निरस्त कर देंगी। जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडों में प्रमुख है और इसे अपनी कॉलोनी बनाना उसका विशेष लक्ष्य। पहले भी वह ऐसा कहते रहे थे।

वह मानते थे कि अगर शासन-व्यवस्था कभी अगर दक्षिणपंथियों के हाथों में आ गई तो आवारा पूंजी का नंगा नाच होगा और कॉर्पोरेट जगत हर चीज कब्जाने की होड़ में लग जाएगा। जम्हूरी हक कत्ल कर दिए जाएंगे और रातों-रात अवाम विरोधी फैसले किए जाएंगे। अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाएगा। बौद्धिक दायरों पर हमले करके शिक्षा पद्धति को संघ की सोच के मुताबिक ढालने की कोशिशें होंगी।

कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने आरएसएस का लिखा साहित्य-चिंतन बहुत गौर से ही नहीं पढ़ा था बल्कि वह बदलते वक्त में, उसके प्रमुखों के भाषण भी ध्यान से सुना करते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साप्ताहिक ‘ऑर्गेनाइजर’ को ध्यान से पढ़ते थे। बहुत पहले उन्होंने लुधियाना में आयोजित एक रैली में कहा था कि विपक्ष ने खुद को नहीं बदला और मार्क्सवादी पार्टियों ने परिवर्तन की वैज्ञानिक विधि को पूरी तरह से नहीं अपनाया तो आरएसएस का नुमाइंदा एक दिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होगा और वह फासीवाद का हर संभव हथकंडा इस्तेमाल करेगा।

नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच अक्सर वह कहा करते थे कि आरएसएस को अतिरिक्त गंभीरता से लेना चाहिए और लगातार इसकी कारगुजारियों का सूक्ष्म अध्ययन बेहद जरूरी है। प्रगतिशील ताकतें एक बार इनसे शिकस्त खा गईं तो उभरने में बहुत वक्त लगेगा। आज यही हो रहा है।

वह शायद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलिट ब्यूरो के सबसे लंबे अरसे तक महासचिव रहने वाले नेता थे। 23 मार्च 1916 को जन्म लेने वाले कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत स्वतंत्रता संग्रामी भी रहे। शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की पहली बरसी के मौके पर 1932 में उन्होंने होशियारपुर की कचहरी में यूनियन जैक उतारकर तिरंगा झंडा चढ़ाया था। इस मामले में उन्हें तीन साल की बामशक्कत कैद हुई थी। प्रस्ताव आया कि अर्जी लिखकर माफी मांग लें तो रिहाई हो जाएगी लेकिन सुरजीत ने इससे इनकार कर दिया।

1984 का साल भारतीय राजनीति में बहुचर्चा का विषय आज भी है। कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत, ज्ञानी जैल सिंह को (पंजाब कनेक्शन के तौर पर) व्यक्तिगत रूप से जानते थे और उनकी एक-एक रग से वाकिफ थे। पंजाब में ज्ञानी जैल सिंह, दरबार सिंह को कमजोर करने के लिए और अकालियों को अप्रसांगिक बनाने के लिए जो खेल, खेल रहे थे, उससे कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत बखूबी वाकिफ थे। बताया जाता है कि उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह को निजी मुलाकात के दौरान सलाह दी कि जो कुछ वह कर रहे हैं-आग से खेलने की मानिंद है।

ज्ञानी जैल सिंह की अपनी रणनीति थी। सुरजीत ने यही राय इंदिरा गांधी के कुछ करीबियों को भी दी कि ज्ञानी जैल सिंह को आगे बढ़ने से रोका जाए। तब तक जरनैल सिंह भिंडरावाला परिदृश्य पर आ चुका था और संजय गांधी की सहमति और हिमायत उसके साथ थी। बाद का काला इतिहास सबके सामने है। कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की पंजाब की बाबत सलाह तब की हुकूमत मान लेती तो पंजाब लंबी त्रासदी और अंधी गलियों से न निकलता। सुरजीत का यह सूबा आज भी सामान्य कहां है? खालीस्थान नाम का तत्व अमीबा की तरह है।

सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी थी। कांग्रेस का एक ताकतवर खेमा (कतिपय बड़े उद्योगपतियों की इच्छा के तहत) नहीं चाहता था कि वह प्रधानमंत्री बनें। परोक्ष-अपरोक्ष रूप से मुद्दा बनाया गया श्रीमती गांधी के विदेशी मूल का नागरिक होने का। सरकार कम्युनिस्टों के सशर्त समर्थन से बननी थी। कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने रणनीति बनाई कि इस मामले को तूल देने की बजाय प्रधानमंत्री के तौर पर किसी और का नाम प्रस्तावित किया जाए। जो बेदाग और सर्वमान्य हो। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने और खुद सोनिया गांधी ने उनका नाम प्रस्तावित किया।

इससे पहले डॉ. मनमोहन और सोनिया, कॉमरेड सुरजीत से मिलने उनके घर गए। बाद में राष्ट्रपति भवन और वहीं से पूरी दुनिया को बताया गया कि डॉ. मनमोहन सिंह भारत के अगले प्रधानमंत्री होंगे। चौतरफा चर्चा थी कि यह कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने संभव कराया है। परमाणु मुद्दे पर सरकार गिर जाती लेकिन कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की दूरअंदेशी ने ऐसा नहीं होने दिया। प्रगतिशील राजनीतिक शक्तियों से थोड़ी दूरी बनाकर चलने वाले और दक्षिणपंथियों से कुछ निकटता रखने वाले राजनीतिक दलों ने भी अगर सरकार बचाने में बड़ी भूमिका अदा की तो कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की बदौलत। 

डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के शामिल नहीं होने का फैसला भी सुरजीत का था। इसका मतलब यह भी नहीं था कि सरकार पर समर्थन देने वाले दलों, खासतौर पर वामपंथियों का कोई अंकुश नहीं था। वाम की तरफ रुझान रखने वाले बेशुमार वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिकारियों को फैसले लेने वाली नौकरशाही लॉबी में शामिल करवाया गया। उनमें से कुछ आज भी मौजूदा दक्षिणपंथी सरकार में कार्यरत हैं और अपनी भूमिका बखूबी अदा कर रहे हैं। विभाजनकारी और पूंजीपतियों को सीधा फायदा देने वाली कई अहम फाइलें उन्हीं की वजह से लटकती हैं और उनमें आमूल-चूक परिवर्तन होते रहते हैं।

सुरजीत की बदौलत तब की सरकार का हिस्सा बने और सेवानिवृत्ति के बाद भी सक्रिय रहने वाले नौकरशाह बेहद ‘बुद्धिमान’ और चुनिंदा लोग थे। यह देश घोषित रूप से ‘हिंदू राष्ट्र’ नहीं है तो कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की कई रणनीतियों की वजह से भी नहीं है। सियासत में उनके मुरीदों की तादाद असंख्य है। बात वहीं से खत्म करते हैं; जहां से शुरू हुई थी। कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत आज होते तो विपक्ष निश्चित तौर पर बेहद सशक्त होता। वह एक ऐसी छतरी थे, जिसके नीचे हर कोई समा जाता था।

विलक्षण प्रतिभा के धनी सुरजीत की सादगी बेमिसाल थी। उन्हें (उनके जीते जी नया-नया आया) मोबाइल फोन भी चलाना नहीं आता था। प्रधानमंत्री या केंद्रीय गृहमंत्री अथवा रक्षामंत्री ने बात करनी होती थी तो सुरजीत के साथ रहने वाले किसी और का फोन इस्तेमाल किया जाता था। जो मोबाइल फोन को ऑन करके उनके कानों में लगाता था। जब तक शरीर कायम/तंदुरुस्त रहा तब तक अपने कपड़े खुद धोते थे। प्रेस तो कभी किए ही नहीं।

उनका परिवार राजनीति में नहीं आया। बेटा जरूर आज भी गांव का सरपंच है। वह कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत का बेटा है। इससे जुड़ा एक किस्सा है- रसोई गैस का कनेक्शन देने कुछ अधिकारी उसके घर आए। उन्होंने बेटे से रिश्वत मांगी। वह अंदर पानी और रिश्वत के पैसे लेने चला गया। अचानक अधिकारियों की निगाह ऊंची दीवार पर लगी कुछ तस्वीरों पर गई। बेटा वापिस लौटा तो एक अधिकारी ने पूछ लिया कि यह शख्स कौन है जिसकी तस्वीरें देश और दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं के साथ हैं। बताया गया कि यह घर उन्हीं का है।

अधिकारी सन्न रह गए लेकिन उन्हें आश्वस्त किया गया कि उनके खिलाफ किसी से कुछ नहीं कहा जाएगा। यह कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत के परिजन ही कर सकते हैं। कहते हैं कि उन्हें अपने पोते तक का नाम याद नहीं था। कभी-कभार गांव आते थे, कहीं जाते-आते हुए। विशेष रूप से कई-कई सालों बाद। जालंधर जिले में पड़ते अपने गांव कम ही जाते थे। जब जाते तो बहुत थोड़ा समय ठहरते थे।

जब तक उच्च अधिकारियों को पता चलता है कि कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत गांव आए हुए हैं, तब तक वह वहां से रुखसत हो लिए होते। तो ऐसी थी महान कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की हस्ती। जिसने सदा खुद को आम आदमी माना। हस्ती शब्द से उन्हें चिढ़ थी। वैसा ही सादा जीवन जिया, जैसा इस महादेश के अनगिनत लोग जीते हैं। लेकिन, कई चिराग वह जीला गए, जो आज भी जल रहे हैं और जलते रहेंगे। जुल्मत के इस दौर में तो और भी ज्यादा…!

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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