Saturday, April 27, 2024

खड़ी रहूंगी सच के साथ

मुसीबतों में

अग्रसर हैं लड़कियां

ढूंढती सावन

ढूंढती हैं सावन के गीत

अग्रसर हैं लड़कियां…

आंखों में अनोखी मुराद

हक-सच दिल में धड़कता

दिल में दर्द की अकुलाहट

हशर की लालसा में जल रहे पांव

चौराहों पर जूझती

अग्रसर हैं लड़कियां…

समय का कुफ्र सहन करतीं

कभी झिझकती, कभी डरती

सहेलियों के काफिले बना

समय की चनाब में तैर रही

खूनी राहों की ओर मुड़ती

अग्रसर हैं लड़कियां…..

(पंजाबी कविता ‘कुड़ीयां तुरदीयां’ से उद्धृत)

सत्ता, पत्रकारिता एवं विचारों की अभिव्यक्ति के बीच कई तरह के रिश्ते हैं। जनतांत्रिक व्यवस्था में प्रेस/मीडिया को लोकतन्त्र का चौथा खंभा कहा जाता है और इस आदर्शात्मक रिश्ते को उभारा जाता है। यह धरणा एडमंड बरक और थामस कार्लाइल जैसे चिंतकों से शुरू हुई। इस विमर्श के मुताबिक मीडिया बिल्कुल आजाद है और उसे सत्ता की आलोचना के सारे अधिकार हासिल हैं।

जबकि सब जानते हैं कि सत्ता, चाहे उसकी रंगत जैसी भी हो, मीडिया अथवा किसी और संस्था को अपनी बेरोक-टोक आलोचना के अधिकार नहीं देती। कहीं वह मीडिया के साथ समझौते कर उसे आलोचना करने से रोकती है और कहीं धौंस दिखाकर। कई दफा निजाम जब कुछ पत्रकारों को चुप करवाने में असफल रहता है तो कुछ और तरीके चुने जाते हैं उन्हें चुप कराने के लिए। उन्हें नजरबंद करना, झूठे केसों में फंसाना और यदि कोई उपाय काम न करे तो उन्हें कत्ल करवाना आदि।

पिछले सप्ताह दुनिया भर के पत्रकारों एवं अन्य लोगों ने अल-जज़ीरा की पत्रकार शीरीं अबू अकलोह को याद किया जिसे इज़रायली फौज के एक निशानेबाज ने 11 मई, 2022 को अपनी स्नाईपर राइफल का निशाना बनाया। शीरीं अबू अकलोह 1971 में येरूशलम में कैथोलिक ईसाई परिवार में पैदा हुईं लेकिन बाद में अमेरिकी नागरिक बनीं।

रेडियो चैनलों में काम करते हुए वह 1997 में अल जज़ीरा की पत्रकार बनीं और पूर्वी येरूशलम में रहने लगीं। वह फिलिस्तीन से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग करती थीं और इज़रायली फौज द्वारा मारे गये फिलिस्तीनियों के जनाज़ों में शामिल होती। वह फिलिस्तीन में हरमन-प्यारी हो गईं एवं उन्होंने कई फिलिस्तीनियों को पत्रकारिता के पेशे में आने के लिए उत्साहित किया।

एक समय था जब फिलिस्तीन की समस्या बारे में भारत में विचारशील बहसें होती थीं और भारत सरकार फिलिस्तीन के लोगों के हकों के पक्ष में खड़ी होती थी। फिलिस्तीन गुट निरपेक्ष देशों की संस्था का सदस्य है। भारत इस संस्था, जो 1961 में स्थापित हुई के अग्रणी सदस्यों में शामिल था। इस संस्था के मंच से फिलिस्तीनी लोगों के हक में आवाज बुलंद की जाती थी। अब भारत इस संस्था को भुला चुका है और फिलिस्तीनी नागरिक भारत के विचार-संसार का हिस्सा नहीं रहे। अब भारत में फिलिस्तीनी लोगों के हकों पर हमला करने वाली इज़रायल सरकार को मान-सम्मान मिलता है। इज़रायल द्वारा फिलिस्तीनी नागरिकों पर जुल्म ढहाने एवं उनके हकों को कुचलने को कहानी बहुत लंबी है।

शीरीं अबू अकलोह के कत्ल के पश्चात पहले जो इजरायल डिफेंस फोर्सेज ने कहा कि इस कत्ल में उनका कोई हाथ नहीं है। उन्होंने झूठ बोला कि वह फिलिस्तीनी लड़ाकों की गोली का शिकार हुई हैं। दुनिया के कई बड़े अखबारों न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट और संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार कमीशन ने इस कत्ल की तफ्तीश करनी शुरू की। शीरीं अमेरिकी नागरिक थीं और यह दबाव बनाया गया कि अमेरिका का विदेश विभाग भी इसकी तफ्तीश करे।

इज़रायल ने हर तरह की तफ्तीश में सहयोग देने से इन्कार किया लेकिन दबाव बढ़ने पर 5 दिसम्बर, 2022 को माना कि शीरीं के इज़रायल डिफेन्स फोर्सेज के निशानेबाजों की गोली का शिकार होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। 12 मई, 2023 को यह स्वीकारोक्ति इज़रायल डिफेन्स फोर्सेज द्वारा जारी की गई कि वे हत्या के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें इस बात का अफसोस है। आई.डी.एफ. के प्रवक्ता ने अमेरिकी टेलीविजन चैनल सी.एन.एन. से विशेष मुलाकात में कहा ‘‘मैं सोचता हूं कि मेरे कहने के लिए यह एक मौका है कि हमें शीरीं अबू की मौत के लिए अफसोस है।’’

पत्रकारों का बचाव करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ‘‘Committee to Protect Journalists’’ के अनुसार पिछले दो दशकों में इज़रायली सेना ने कम से कम 20 पत्रकारों का कत्ल किया है जिसमें 18 फिलिस्तीनी थे और इस सन्दर्भ में न कोई कार्रवाई की गई और न ही किसी को उत्तरदायी ठहराया गया।

शीरीं को याद करते हुए भारत में साढ़े पांच वर्ष पहले गौरी लंकेश का कत्ल याद आता है, हत्यारों ने 5 सितम्बर, 2017 को बैंगलोर में उसे गोलियों से भून दिया। उसकी हत्या की जांच के लिए एक विशेष जांच कमेटी बनाई गई और कई गिरफ्तारियां भी हुईं। उसकी हत्या की पूरी साजिश कभी भी सामने नहीं आई।

वामपंथी विचारों वाली गौरी लंकेश ‘गौरी लंकेश पत्रिका’ की संपादक थीं। उनका कत्ल इसलिए किया गया कि वह कट्टरपंथी ताकतों का विरोध करती थीं, वह जातिवादी एवं औरत विरोधी ताकतों से लोहा लेती थीं। उसके एक कातिल ने 2018 में पुलिस को बताया कि उसने गौरी का कत्ल इसलिए किया क्योंकि वह हमारे धर्म के लिए खतरा है/थी, वैसे ही जैसे शीरीं कट्टरपंथी यहूदियों एवं इज़रायल सरकार के लिए खतरा थी।

प्रमुख सवाल यह है कि सारी दुनिया की सरकारें यह दावा करती हैं कि वे मीडिया की आजादी की रखवाली करती हैं लेकिन हकीकत इसके उल्ट है। मीडिया को दबाया जाता है, कहीं उसे खरीदा एवं समझौता करने के लिए मजबूर किया जाता है, कहीं कॉरपोरेट संस्थान उस पर कब्जा कर लेते हैं और कहीं बोलने वाले होठों/लबों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया जाता है।

इन दो लड़कियों/औरतों, जिनका ऊपर जिक्र किया गया है, कि जिंदगियां आपस में एक धागे से बंधी हुई हैं, वह धागा है हक-सच के लिए लड़ने वाला धागा जो लोगों को दबाने एवं कुचलने के लिए प्रयोग की जा रही जंजीरों एवं बेड़ियों से कहीं ज्यादा मजबूत है। मैं उनके बारे में और लिखना चाहता था, उनके योगदान एवं उनकी कुर्बानी के बारे में, हक-सच के लिए उनके द्वारा सिर वारने; जान दे देने के बारे में।

मेरे पास संयुक्त राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के आंकड़े हैं कि दुनिया के अलग-अलग देशों एवं भारत में कितने पत्रकार मारे गए, कितने जेलों में बंद कर दिए गए और कितनों के विरुद्ध केस दर्ज कर दिए गए, ये फेहरिस्त बहुत लंबी है, मैं उनके बारे लिखने की कोशिश कर रहा था लेकिन नजदीक घर में, हमारे पंजाब में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसकी वजह से मैं यह लेख पूरा नहीं कर सका।

Post Script लिखने के बाद का विमर्श

उपरोक्त अधूरी रचना उन दो पत्रकारों के बारे में है जिन्हें दमन के सबसे भयानक रूप यानि मौत का सामना करना पड़ा। यह लेख इसलिए अधूरा रह गया क्योंकि इन्हीं दिनों पंजाब की प्रमुख सामाजिक हस्ती एवं चिंतक नवशरण को ईडी ने पूछ-ताछ के लिए बुलाया। नवशरण ने रियासत/स्टेट के दमन के खिलाफ वर्षों से कमर कस के कार्य किया है। उसके द्वारा संपादित पुस्तक ‘भय के दृश्य’ (Landscape of fear) राजकीय प्रताड़ना एवं उसके विरुद्ध हुए संघर्ष का दस्तावेज है। नवशरण ने औरतों पर हुए जुल्म एवं किसान-मजदूरों के संघर्ष के बारे न सिर्फ अन्य किताबें एवं विद्वतापूर्ण लेख लिखे हैं। बल्कि वह इन संघर्षों में शामिल भी रही हैं।

कश्मीर से असम एवं दक्षिणी भारत तक उसने जगह-जगह जाकर लोगों को हकों से वंचित करने की कोशिशों का विरोध किया है। उसने 2020-21 के किसान संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई। उसने दलित औरतों के हक के लिए आवाज उठाई और उनके दुःख-दुश्वारियों को कलमबद्ध किया है। शाहीन बाग हो अथवा लखीमपुर खीरी या दिल्ली में हो रही साम्प्रदायिक हिंसा, वह हर जगह पर अन्याय और हिंसा के खिलाफ लोगों के साथ डट कर खड़ी रही है।

नवशरण 1984 के जनसंहार; तत्कालीन प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी के कत्ल के बाद हुए सिखों के कत्लेआम से प्रभावित औरतों को न्याय दिलवाने में भी शामिल रही हैं। उसके हम सफर अतुल सूद भी ऐसे सफरों के राही हैं, अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाले चिंतक। नवशरण पंजाबी के मशहूर नाटककार एवं नाटक को गांवों तक ले जाने वाले रंगकर्मी गुरशरण सिंह की बड़ी बेटी हैं।

नवशरण ने भाईचारे की सांझ बनाने में सकारात्मक भूमिका निभाई है। वह नामवर सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के अमन बिरादरी ट्रस्ट की ट्रस्टी हैं। यह ट्रस्ट समाज में बन्धुत्व बढ़ाने और इस कार्य में नौजवानों एवं औरतों को उत्साहित करने का काम करता है। हर्षमंदर 2002 में आईएएस से त्यागपत्र देने के पश्चात दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों एवं बेसहारा बच्चों के हकों के लिए काम करते रहे हैं। वह कई कारणों से केन्द्र, सरकार के निशाने पर हैं। केन्द्र सरकार की एजेंसियां उसके ट्रस्टों, जिनमें ‘अमन बिरादरी’ भी शामिल है, के बारे में पड़ताल कर रही है। ईडी ने नवशरण को अपने कार्यालय में बुलाकर इस बारे पूछताछ की है।

ट्रस्ट के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब तो नवशरण को देने ही थे, पर उससे कुछ अनोखे प्रश्न भी पूछे गए, आप औरतों के बारे में क्यों लिखती हैं? आप किसानों के बारे में क्यों लिखती हैं? पंजाब के एक बहुत वरिष्ठ नागरिक ने इस बारे में टिप्पणी की कि अधिकारियों को शायद नवशरण के पिता के बारे कुछ पता नहीं, वर्ना वे यह सवाल भी पूछ सकते थे कि आपके पिता जी क्यों लिखते थे।

रियासत/स्टेट, कॉरपोरेट संस्थान, तानाशाह एवं जोरावरों का लेखकों, विद्वानों, पत्रकारों, चिंतकों आदि से यह सवाल पूछना वाजिब है कि आप लोगों के हकों बारे क्यों लिखते हैं? फैशन, बाजारी चसक, गगनचुम्बी इमारतों, कारों, टेलीविजनों, बाजार और सरकार की नियामतों जैसे विषयों के बारे में क्यों नहीं लिखते। वे इसका क्या जवाब दे सकते हैं? वे सत्ता के तर्क में उलझे अधिकारियों को कैसे बता सकते हैं कि जन-पक्षीय चिंतकों, कलाकारों, लेखकों सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं विद्वानों ने हमेशा हक-सच के लिए आवाज उठाई है, खतरे मोल लिए हैं, मुश्किलों का सामना किया एवं कुर्बानियां दी हैं। उन्नीसवीं सदी की पंजाबी शायरा नारूंग देवी के शब्द शायद इस भावना को पकड़ सकते हैं, ‘‘छोड़ दे सारा जग साथ सत्य का, मैं खड़ी रहूंगी सच के साथ।’’

पारंपरिक रूप से जनतन्त्र के चार स्तम्भ गिनवाए जाते हैं। जनतंत्र कई खम्भों पर खड़ा है, उनमें सबसे बड़ा स्तम्भ है जनता और उनके दिलों में जनतन्त्र के लिए ललक। लोगों के दिलों में जम्हूरियत के लिए अभिलाषा और उनकी हिम्मत ही जनतंत्र को बचा सकती है। इस लालसा का एक विशेष हिस्सा समाज के वे जागरूक लोग हैं जो जम्हूरियत का दम भरते हैं। इस हिस्से में मजदूर, किसान एवं कर्मचारी संगठन हैं, लोगों से जुड़े हुए बुद्धिजीवी हैं, जुल्म के खिलाफ लोगों को संगठित करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

इस हिस्से को हम पंजाबी में ‘जम्हूरी समाज’ कह सकते हैं। अंग्रेजी में इसे सिविल सोसायटी कहा जाता है, इसके अर्थ नित्य विशाल और व्यापक हो रहे हैं। नवशरण भारत एवं पंजाब के जम्हूरी समाज का हिस्सा है, इस हिस्से की प्रमुख आवाज है। महिला पहलवानों के जंतर-मंतर में चल रहे संघर्ष के हक में आवाज उठाने वालों में भी नवशरण अगुआ थी/है। (पंजाबी ट्रिब्यून में 2 मई को छपा उसका लेख ‘इस व्यथा को दबाया नहीं जा सकता)

नवशरण सिर्फ लोगों के हकों के बारे में लिखने वाली चिंतक एवं खोजी ही नहीं, वह जन-संघर्षों में कदम-दर-कदम लोगों के साथ कदम मिलाकर चलने वाली सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आज पंजाब के किसानों, मजदूरों, खेत मजदूरों, औरतों, लेखकों, रंगकर्मियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के संगठन नवशरण के साथ हैं। सारा पंजाब नवशरण के साथ है। उसने भांजी गुरशरण सिंह की जन-पक्षीय विरासत को आगे बढ़ाया है। वह सुलतान बाहू के शब्दों, ‘‘उनका यकीन पक्का है। ऐसे लोगों का प्रत्येक कदम आगे की ओर ही बढ़ता है।’’ पर पूरी उतरने वाली पंजाब की बेटी है और सुल्तान बाहू आगे कहते हैं:

‘जे सिर दितियां हक हासिल होवे बाहू

मौतों मूल ना डरना हू’

भाव अगर प्राण देकर भी हक हासिल होता है तो

मौत से डरने का सवाल ही नहीं।

(डॉ स्वराजबीर, पंजाबी ट्रिब्यून के संपादक हैं, पंजाबी से अनुवाद- उर्मिल मोंगा ने किया है।)

   

जनचौक से जुड़े

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles