लोकतंत्र के आहत होने के निहितार्थ

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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लंदन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अपने एक बयान में भारतीय लोकतंत्र पर हो रहे हमले को लेकर अमेरिका और यूरोप के विफल रहने की बात की तो इस पर घमासान मच गया। इस पर अब खूब हो-हल्ला हो रहा है। केन्द्र सरकार कह रही है कि राहुल विदेशी जमीन पर भारत की निन्दा कैसे कर सकते हैं। वहीं विपक्ष कह रहा है कि सरकार, देश नहीं है। राहुल ने सरकार की आलोचना की है देश की नहीं।

अक्सर देखा जाता है कि जब-जब विपक्ष केन्द्र सरकार से तीखे सवाल करता है तो इसे देश पर हमला बता दिया जाता है। हालांकि राहुल का यह बयान चिंताजनक जरूर है लेकिन ऐसा नहीं है कि देश में विदेशी हस्तक्षेप करने की बात आज पहली बार किसी ने कही हो।

1970 के दशक में आपातकाल के दौरान प्रखर समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अमेरिकी केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) और फ्रांस से वित्तीय सहायता की मांग कर रहे थे। तो क्या वह देशद्रोह नहीं था? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2015 में सियोल में पिछली सरकारों (कांग्रेस) की आलोचना करते हुए देश में जन्म लेने वाले को शर्मिंदगी महसूस कराने वाला बयान देते हैं तो क्या वह देशद्रोह नहीं था?

यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी के किसी बयान पर हंगामा हो रहा है। मई 2022 में जब राहुल को कैम्ब्रिज में ‘आइडियाज फोर इंडिया’ के लिए बुलाया गया था तो भी उनके बयान पर हंगामा देखने को मिला। अपने उस भाषण में राहुल ने सीबीआई और ED जैसी जांच एजेंसियों पर भाजपा का नियंत्रण बताते हुए उसकी आलोचना की थी।

राहुल ने इस बार जो कुछ कहा वो नया नहीं है। वह देश/विदेश में ऐसा कहते रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि राहुल विदेश में जाकर केवल विपक्ष की आलोचना ही करते हैं। कई मौकों पर राहुल को भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों पर सकारात्मक बात करते हुए भी देखा गया।

‘आइडियाज फॉर इंडिया’ में उन्होंने भारत में लोकतंत्र को सार्वजनिक भलाई बताते हुए कहा था कि, “हम दुनिया में अकेले ऐसे लोग हैं जिन्होंने अद्वितीय पैमाने पर लोकतंत्र का गठन किया”।

भाजपा को समझना होगा सत्ता पक्ष के लिए विपक्ष की राय हमेशा सकारात्मक नहीं हो सकती। इसकी उम्मीद करना ही बेमानी है। दो विपरीत ध्रुवों पर दो विचारधाराओं के साथ-साथ चल सकने का नाम ही लोकतंत्र है। पेगासस मसले पर अगर राहुल सवाल उठाते हैं तो केवल वही केन्द्र सरकार पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने लिखित में कहा है कि “पेगासस मामले में केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय का ईमानदारी से सहयोग नहीं कर रही है”।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर वी रवींद्रन द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया। पेगासस जैसे संगीन मामले पर अगर देश की सर्वोच्च न्यायापालिका आपके असहयोग करने की बात करती है तो समस्या आपके अन्दर है।

किसी भी राष्ट्र के मजबूत लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए मीडिया, ज्यूडिशियरी और विपक्ष आदि का निष्पक्ष और निडर रहना आवश्यक है। पंडित नेहरू अपने कार्यकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार की मरते दम तक रक्षा करने का वचन देते थे। फिर अगर राहुल इन संस्थाओं की स्वतंत्रता की बात करते हैं तो इसमें आपत्तिजनक क्या है?

राहुल दुनिया के लोकतंत्र के मंच पर भारत को एक ऐसेट बताते हैं तो क्या वह भारत को कमजोर बताने की बात कर रहे हैं? राहुल जब चीन और अमेरिका, दो सुपर पावर के बीच भारत को उभरती हुई पावर बताते हैं तो क्या वह देशविरोधी बात कर रहे हैं?

वह अपने संबोधन में विदेश मंत्री एस जयशंकर का चीन पर दिए बयान का जिक्र करते हुए कहते हैं कि, “विदेश मंत्री ने कहा कि चीन हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली है। हमारा उनसे कैसा मुकाबला?” राहुल यदि चीनी समाज का उदाहरण देते हुए चीनी सद्भाव की बात करते हैं तो क्या वह देश की निन्दा करते हैं?

अगर राहुल देशविरोधी बात करते हैं तो फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर क्या करते हैं? 2015 में प्रधानमंत्री पद पर रहते नरेंद्र मोदी सियोल में चीन को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बताते हैं तो क्या वह देश की निन्दा नहीं थी।

यूनियन ऑफ स्टेट्स, RSS और सांप्रदायिकता जैसे विषयों पर राहुल ने वही कहा जो वो हर मंच पर कहते रहे हैं। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल अक्सर भारतीय संविधान में ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ को लेकर ‘राष्ट्र’ की अवधारणा को खारिज करते रहे हैं। उनका मानना है कि भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि यूनियन ऑफ स्टेट्स (राज्यों का संघ) है। यहां राहुल की अपरिपक्व सोच प्रदर्शित होती है।

संविधान में जरूर भारत को ‘यूनियन ऑफ स्‍टेट्स’ के रूप में परिभाषित किया गया है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय संविधान की प्रकृति संघीय है। इसका मतलब भारत ‘फेडरेशन ऑफ स्‍टेट्स’ नहीं ‘यूनियन ऑफ स्‍टेट्स’ है। यानि राज्यों को फेडरेशन से अलग होने का कोई अधिकार नहीं है। भारतीय संघ, अमेरिकी फेडरेशन (संघ) की तरह राज्यों के बीच कोई समझौता नहीं है।

राहुल गांधी वर्तमान में देश की सबसे बड़ी पार्टी के विपक्ष के नेता हैं उन्हें सत्ता पर सवाल उठाने और उसकी आलोचना करने का पूरा हक है। फिर इस पर इतना हंगामा बरपाने की क्या जरूरत है? आखिर देश में राहुल गांधी की किसी भी प्रतिक्रिया को इतनी सन्देह की नजर से ही क्यों देखा जाता है?

लोकतंत्र किसी विपक्ष के नेता की आलोचना से आहत नहीं होता, वह आहत होता है बलात्कारियों की रिहाई से, किसी डाक्यूमेंट्री को बैन करने से, पत्रकारिता का दमन करने से।

आज हमें यह स्वीकारना होगा कि नवराष्ट्र बनाने में हमारे राजनीतिक मूल्य ध्वस्त हो रहे हैं। यह एक बड़ी त्रासदी है जिसका हम सामना कर रहे हैं। हमें यह देखने की आवश्यकता है कि हम एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर वैश्विक पटल पर खुद को कितना रख पाएं हैं।

(प्रत्यक्ष मिश्रा स्वतंत्र पत्रकार हैं, यूपी के अमरोहा में रहते हैं)

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