प्रशांत भूषण और सुप्रीम कोर्ट।

कठघरे में प्रशांत भूषण या सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण के खिलाफ अदालत की अवमानना के दो मामले हैं। एक में प्रशांत भूषण दोषी हैं तो दूसरे मामले को सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास भेजा गया है कि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि स्वत: संज्ञान और शिकायत वाली अवमानना में फर्क होना चाहिए। यह मामला 2009 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें प्रशांत भूषण ने 16 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों में 9 को भ्रष्ट बताया था। 

सवालों में सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट से यह सवाल आने वाले दिनों में पूछे जाते रहेंगे कि एक ऐसे समय में जब देश कोरोना काल से गुजर रहा था, केवल जरूरी सुनवाई ही की जा रही थी तब 11 साल से लंबित अवमानना मामले की सुनवाई के लिए क्या जल्दी थी?

प्रशांत भूषण के खिलाफ एक और अवमानना का मामला सुप्रीम कोर्ट के स्वत: संज्ञान से जुडा है। अदालत ने मामले की सुनवाई की। सुनवाई के बाद प्रशांत भूषण को दोषी भी करार दिया। फिर माफी मांगने का अवसर दिया। प्रशांत भूषण ने तत्काल अवसर दिए जाते वक्त भी कहा कि उनका फैसला बदलने वाला नहीं है, इसलिए इसकी जरूरत नहीं है।

माफी मांगने की मोहलत बीत जाने के बाद प्रशांत भूषण ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि माननीय न्यायाधीश गण सज़ा से पहले गलती का अहसास करने के लिए वक्त देने की बात अदालत में कह रहे थे, लेकिन आदेश की कॉपी में इसे सज़ा के बदले माफी की शर्त में बदल दिया।

प्रशांत भूषण ने न तो सुनवाई के दौरान और न ही सज़ा सुनाए जाने के बाद माफी मांगी। प्रशांत भूषण का कहना है कि माफी का मतलब होगा अपने अंतरात्मा की अवमानना। तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट की अवमानना तो कर सकते हैं लेकिन अंतरात्मा की नहीं? 

वास्तव में यह प्रश्न भी प्रशांत भूषण के साथ ज्यादती होगी। सच यह है कि वह अवमानना की बात ही नहीं स्वीकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे बस सच बता रहे हैं। न्यायालय की व्यवस्था में जो कमियां हैं उसकी ओर ध्यान दिला रहे हैं।

प्रशांत भूषण ने 27 जून को अपने पहले ट्वीट में लिखा था जिसका भाव था-

जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वे इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को लेकर सवाल पूछेंगे।

प्रशांत भूषण ने 28 जून को एक और ट्वीट में लिखा, जिसका भाव यह था

चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट को आम लोगों के लिए बंद कर दिया है और खुद बीजेपी नेता की 50 लाख रुपये की बाइक चला रहे हैं। 

सुप्रीम कोर्ट आज खुद सवालों के घेरे में है क्योंकि वह चुप है कि

चीफ जस्टिस बीजेपी नेता की बाइक पर क्या कर रहे हैं

कोरोना काल में नागपुर में बगैर मास्क पहने कैसे बाइक पर हैं

ट्रैफिक रूल का भी पालन नहीं कर रहे हैं चीफ जस्टिस

सुप्रीम कोर्ट इसलिए भी सवालों के घेरे में है कि अवमानना की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल की राय नहीं ली गयी। आम तौर पर अवमानना के मामले में सुनवाई के वक्त अटॉर्नी जनरल की राय ली जाती है। बल्कि, पहले अटॉर्नी जनरल से ही पूछा जाता है कि अवमानना के उस खास मसले पर आगे बढ़ा जाए या नहीं। अटॉर्नी जनरल भारत सरकार का सलाहकार होता है। 

प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल वेणु गोपाल से राय नहीं ली गयी। न सिर्फ उन्हें बोलने से रोका गया, बल्कि उनकी मौजूदगी भी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दिखलायी। यह बहुत बड़ा सवाल है और सुप्रीम कोर्ट से पूछा जाता रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त को यानी सज़ा सुनाए जाने के लिए मुकर्रर दिन पर अटॉर्नी जनरल की राय मांगी। मतलब ये कि सुनवाई में राय नहीं लेने की गलती को सुप्रीम कोर्ट ने सजा सुनाए जाते वक्त दुरुस्त करने की कोशिश की। 

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि प्रशांत भूषण को सज़ा देना जरूरी नहीं है। भूषण का ट्वीट यह बताने के लिए था कि ज्यूडिशियरी को अपने अंदर सुधार लाने की आवश्यकता है। इसलिए भूषण को माफ कर देना चाहिए।

जवाब में सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि प्रशांत भूषण गलती ही नहीं मान रहे हैं तो उन्हें माफ कैसे किया जाए? जी हां, यहीं पर फंस गया सुप्रीम कोर्ट! उसे माफ करने का तरीका नहीं सूझ रहा। अब ऐसे में अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल क्या कर सकते थे!

अगर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल से सुप्रीम कोर्ट ने राय ली होती, तो प्रशांत भूषण को दोषी ठहराने के फैसले तक पहुंचने से बचा जा सकता था। अब जबकि फैसला हो गया, तो अटॉर्नी जनरल वक्त को पीछे तो नहीं ले जा सकते। वे सिर्फ मांग ही कर सकते हैं कि सज़ा नहीं दी जानी चाहिए या फिर प्रशांत भूषण को माफ कर दिया जाना चाहिए।

प्रशांत भूषण माफी मांगेंगे नहीं…और दोषी ठहराए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट बगैर सज़ा दिए अपने फैसले को उचित ठहरा नहीं सकता। तो क्या अपनी गलती की सज़ा सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को देगा? 

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रका हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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