Saturday, April 27, 2024

स्पेशल रिपोर्ट: कैंसर और हार्ट के मरीजों को मरने के लिए छोड़ दिया दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने

घोषित तौर पर भले ही कुछ न हो लेकिन देश भर में लॉकडाउन के बाद से ही बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं निलंबित चल रही हैं। जिससे शुगर, किडनी, हर्ट, थैलेसीमिया के मरीजों को बेहद तकलीफ देह स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। कई मरीजों की तो असमय ही मौत भी हो चुकी है। 

बता दें कि 8 अप्रैल को लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल और गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल ने सैकड़ों क्रिटिकल मरीजों को जो कि वेंटिलेटर्स पर थे उन्हें बिना कोई वैकल्पिक इलाज व्यवस्था उपलब्ध करवाए अपने यहाँ से बेदख़ल कर दिया। 200 मरीज़ों को यहाँ से निकालकर यमुना काम्पलेंक्स में भेज दिया गया। इसमें कई मरीज मानसिक बीमारियों से ग्रस्त थे। यमुना कांपलेक्स ने इन मरीजों को IBHAS अस्पताल भेजा लेकिन IBHAS  ने ये कहकर इन मानसिक मरीजों को लेने से इनकार कर दिया कि ये निराश्रित हैं। IBHAS सिर्फ़ परिवार वाले मरीजों को ही भर्ती करता है।

बाबू राम गवर्नमेंट स्कूल के प्रिंसिपल ने 3 मई को पुष्टि किया कि 26 लोगों को मई के पहले सप्ताह में यमुना स्पोर्ट्स काम्पलेंक्स से से स्कूल लाया गया था। एक सरकारी अधिकारी ने उन्हें बताया कि वे स्मॉल चिकेन पॉक्स से पीड़ित हैं। और उन्हें इलाज मुहैया करवाना भी ज़रूरी नहीं समझा गया।

14 मई की सुबह मुरादाबाद की मजदूर दंपति जब्बार चाचा नेहरु अस्पताल के इमरजेंसी गेट के बाहर अपने 6 दिन की सीरियस बच्ची को लेकर खड़े हैं बच्ची के पेट में परेशानी है। बच्ची पॉटी और पेशाब नहीं कर रही है। अस्पताल प्रशासन कह रहा है कि आईसीयू में जगह नहीं है। 

गरीब मरीज मोहम्मद सुल्तान का हिप रिप्लेसमेंट होना है। कोई अस्पताल इलाज नहीं कर रहा है। स्टीफन अस्पताल गए थे वहां 2 लाख मांग रहे हैं। 4 मई को जीटीबी गए तो कहा गया कि कोरोना खत्म हो जाए तब आना।

विजय नगर के मनोज कुमार अपनी माता केबला देवी का इलाज कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल दौड़-भाग रहे हैं। मनोज कुमार दिल्ली के संजय गांधी अस्पताल में अपनी मां का इलाज करवा रहे थे पिछले डेढ़ महीने से। उनका हाथ टूट गया था। डॉक्टर बोले ऑपरेशन होगा। सारी जांच करवाई गई। संजय गांधी से इन्हें जनकपुरा के सुपरहॉस्पिटैलिटी अस्पताल भेज दिया गया। वहां जाते समय उनकी मां गिर गईं  उनके हाथ और पैर में चोट आ गई है। उनका चलना फिरना मुहाल है। लेकिन जनकपुरा सुपरहॉस्पिटैलिटी से उन्हें लिखकर संजय गांधी दोबारा भेज दिया गया। संजय गांधी अस्पताल में मनोज से कहा गया कि हमारे यहाँ सर्जन नहीं है इसलिए आप या तो राम मनोहर लोहिया अस्पताल जाओ या फिर सफदरजंग जाओ। मनोज कह रहे हैं हमारे पास अब किराए के भी पैसे नहीं हैं। कैसे जाएं।

दिल के मरीजों की तकलीफें

48 वर्षीय चंदर पाल को 6 साल पहले हर्ट अटैक आया था। सफदरजंग अस्पताल ने 90 हजार रुपए मांगे। पैसे नहीं थे इलाज नहीं कराया। अब फिर से उसे अटैक आया है। सफदरजंग अस्पताल ने फिलहाल कोविड-19 क्राइसिस कहकर इलाज से इनकार कर दिया। चंदर पाल की हालत गंभीर है। 

65 वर्षीय अक़बर अली को एक सप्ताह पहले हार्ट अटैक आया तो उन्हें गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने उन्हें भर्ती करने की सलाह दी लेकिन कोई बेड ही नहीं खाली था अतः राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया गया। RMLH ने उन्हें भर्ती कर लिया लेकिन मरीज को संदेहास्पद कोविड मरीजों के वार्ड में रख दिया। परिवार ने उन्हें 9 मई को डिस्चार्ज करवा लिया और मरीज को लेकर SGRH  गए। वहां उन्हें 3 लाख से अधिक का खर्चा बताया गया। सामर्थ्यहीन परिवार अकबर अली को वापस लेकर घर आ गए। इसके बाद अकबर अली को क्रिटिकल हार्ट प्रोबलम के साथ पटपड़गंज के मैक्स अस्पताल में ईडब्ल्यूएस कटेगरी के तहत भर्ती किया गया। वहां पर उन्हें कोविड-19 पोजिटिव पाए जाने पर वापस एलएनजीपी भेज दिया गया। एलएनजीपी के डॉक्टर आईसीयू बेड की अनुपलब्धता बताकर अकबर अली को भर्ती करने में असमर्थता जता रहे हैं। 

अकबर अली।

कैंसर मरीजों की तकलीफ

दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बहुत नजदीक से नजर रखने वाले और हर महीने सैकड़ों मरीजों की मदद करने वाले सोशल ज्यूरिस्ट अशोक अग्रवाल बताते हैं –“ दिल्ली के सराकरी अस्पतालों में सैकड़ों गरीब कैंसर मरीज भर्ती थे। लॉकडाउन के दौरान दिल्ली पुलिस ने शाहदरा के क्षेत्र से उठाया और यमुना स्पोर्ट्स कांम्पलेक्स में लाकर रखा। 8-10 दिन वहां रखने के बाद उन्हें विवेक विहार स्थित मंगल पांडेय सरकारी स्कूल ले जाकर छोड़ दिया। एक सप्ताह पहले 30-35 क्रिटिकल मरीजों में से 5-6 ज्यादा क्रिटिकल थे। उनमें से 3-4 मरीज दूध पीने में भी सक्षम नहीं थे।

उन्हें जो दूध पिलाया जा रहा था उसमें अधिकांश मात्रा में दूध गले में लगे कट से नीचे गिर रहा था। दिल्ली सरकार ने इन गंभीर कैंसर मरीजों को वैकल्पिक इलाज सुविधाएं देने के बजाय उन्हें मरने के लिए उनके पैतृक स्थानों को भेजवा दिया। 3-4 मरीजों को मध्यप्रदेश भेज दिया गय़ा। जबकि 19 कैंसर मरीज अभी भी मंगल पांडेय स्कूल में हैं। उनका इलाज नहीं हो रहा है। दिल्ली सरकार उन्हें जल्द से जल्द उनके गृह जिलों में फेंक देना चाहती है। जबकि वो इलाज के लिए दिल्ली आए थे। सरकार को उन्हें इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए थी।

अशोक अग्रवाल आगे कहते हैं- “दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में 20-22 अप्रैल के आस-पास कुछ स्वास्थ्यकर्मियों के कोविड-19 संक्रमित पाए जाने के बाद राज्य कैंसर इंस्टीट्यूट बंद कर दिया गया। जो क्रिटिकल पेशेंट थे उनका क्या हुआ। लोकनायक, एम्स को कोविड-19 अस्पताल बना दिया। कैंसर मरीजों को भगा दिया गया। सरकार को उन्हें दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट करना चाहिए था।”

शिव रतन कैंसर मरीज हैं। वो लोक नारायण जयप्रकाश अस्पताल में कीमोथेरेपी के लिए एडमिट थे।जब एलएनजेपी अस्पताल को कोविड अस्पताल घोषित किया गया तो उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा एलएनजेपी से तत्काल डिस्चार्ज कर दिया गया। बिना कोई वैकल्पिक सुविधा उपलब्ध करवाए हुए। जबकि आर्थिक रूप से कमजोर (EWS)  वर्ग से आता है। 

इरफान अली कैंसर मरीज हैं। उनके पास इलाज के पैसे नहीं हैं। इससे पहले उनका इलाज दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में फरवरी 2020 से इंस्टीट्यूट के बंद होने तक चल रहा था। यदि अब इरफान को इलाज कहीं से नहीं मिलता तो उसका मरना निश्चित है। 

प्रेमनगर, सुलेमान नगर के विनोद कुमार यादव कैंसर मरीज हैं। वो बताते हैं कि सरकारी में बहुत दौड़ा लेकिन काम नहीं हुआ। फिर शाहदरा में मेरा चेकअप हुआ उसके बाद अस्पताल सील हो गया। हमने इलाज के लिए बहुत भाग-दौड़ की उसके बाद रोहिणी में राजीव गांधी अस्पताल में चेकअप करवाया तो उन्होंने बताया कि मेरे गले में कैंसर है। कैंसर का इलाज शुरू किया। दो बार भर्ती होकर इलाज करा लिया तिबारा के लिए पैसे नहीं हैं। विनोद कुमार के 5 बच्चे हैं अभी तक उन्होंने किसी बच्चे की शादी तक नहीं की है।

मोहम्मद सलीम कैंसर मरीज हैं। एलएनजीपी में भर्ती थे। लॉकडाउन के बाद इन्हें अस्पताल से निकाल दिया गया। बीएल कपूर सुपरहॉस्पिटैलिटी ले गए। ईडब्ल्यूएस के मरीज नहीं देख रहे। पीड़ित सलीम की ख़ातून रोकर कहती हैं मेरे घर के इकलौते कमाने वाले हैं बिटिया छोटी है। कमाने वाले ही 6 महीने से बिस्तर  पर पड़े हैं। तो हम कमाई दवाई के पैसे कहां से लाएं। इलाज नहीं मिल पाएगा तो हमारा परिवार मर जाएगा।  

26 अप्रैल की सुबह 42 वर्षीय प्रमोद सिंह की मौत हो गई। कापसहेड़ा के रहने वाला प्रमोद सिंह 2 साल से कैंसर पीड़ित था और एम्स में उसका इलाज चल रहा था। लॉकडाउन के एक सप्ताह पहले उसे अपने गांव बिहार चले जाने को कहा गया। लेकिन लॉकडाउन में यातायात के अभाव के चलते वो गांव नहीं जा सका।

80 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कटेगरी के बेड खाली हैं, मरीज आते हैं तो उन्हें तरह-तरह से परेशान किया जाता है।

समाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार अग्रवाल बताते हैं कि “दिल्ली के 61 चिन्हित निजी अस्पतालों के 950 ईडब्ल्यूएस बेडों में से 80 प्रतिशत खाली हैं। इनमें से कई अस्पतालों में तो ईडब्ल्यूएस कटेगरी के शत प्रतिशत बेड खाली हैं। लॉकडाउन के समय निजी अस्पतालों की इन बेडों की गरीब मरीजों को बेहद ज़रूरत है केजरीवाल सरकार इन सुविधाओं का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित नहीं कर पा रही है।”  https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2818422314879467&id=100001351771958

गरीब मरीज ओमवती को एडवांस स्टेज का कैंसर है। बुद्ध विहार फेस-1 में रहती हैं। 18 फरवरी 2020 को डिटेक्ट हुआ। एक महीने एम्स में इलाज हुआ। लेकिन कोरोना के चलते आईसोलेशन हुआ और वार्ड खाली करवा दिया गया। बालाजी एक्शन ले गए। एडमिट किया। ओमवती के बेटे राकेश बताते हैं कि “एक सप्ताह का 3 लाख चार्ज करके छोड़ दिया। बीस दिन बाद इमरजेंसी में गए तो वापस भर्ती करने को कहा। ईडब्ल्यूएस कटेगरी के तहत हमारा राशन कार्ड बना हुआ था दिखाया तो उनका पूरा बर्ताव ही बदल गया।  और बहाने बनाकर कि ईडबल्यूईएस में ये नहीं है वो नहीं करके परेशान किया। मैक्स, फोर्टिंस में गए तको वो कह रहे हैं कि जब वो ईडब्लल्यूएस नहीं कर रहे तो हम क्यों करें।”

गर्भवती महिलाओं की समस्याएं

दिल्ली में कई स्त्रियां ऐसी हैं जो गर्भवती हैं। कई ऐसी हैं कि जिनका लॉकडाउन लागू होते समय 7वां, 8वां या 9वां महीना चल रहा था। बेहतर होता कि दिल्ली सरकार दिल्ली प्रदेश की गर्भवती महिलाओं की एक सूची तैयार करती और उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था का बंदोबस्त करती, पर अफसोस की राज्य सरकार ने गर्भवती स्त्रियों की समस्या को ध्यान देने योग्य समझा ही नहीं। इसके चलते पिछले 2 महीने से लॉकजडाउन और कोविड-19 संक्रमण के चलते कई गर्भवती स्त्रियों को बेहद तकलीफदेह स्थितियों से गुजरना पड़ा है। 

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में गरीब उज़्मा का गर्भ का नवाँ महीना चल रहा। वो दिल्ली के तमाम सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डिलिवरी के लिए चक्कर लगाती रहीं लेकिन कोई भी अस्पताल उन्हें लेने को तैयार नहीं था। सब उन्हें संभावित कोरोना मरीज होने की संभावना तलाशते रहे और हर जगह उनसे कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट लाने के लिए कहा जा रहा था। 

किडनी मरीजों को डायलिसिस न होने से जा रही जान 

दिल्ली सरकार ने जल्दबाजी में 5 सरकारी अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल घोषित कर दिया। जिससे सीरियस अवस्था में वेंटिलेटर पर पड़े कई मरीजों की असमय ही मौत हो गई। 41 वर्षीय शाहजहां दोनों किडनी खराब होने के चलते 6-7 दिन से लोकनायक अस्पताल में वेंटिलेटर पर थीं। कोविड 19 अस्पताल घोषित होने के बाद सरकार ने उन्हें निकाल दिया बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था दिए। एंबुलेंस तक नहीं दिया। घर वाले उन्हें अस्पताल ले गए किसी ने नहीं लिया और फिर थक हारकर घरवाले घर ले गए उसी रात में उनकी मौत हो गई। कई अस्पतालों को कोविड-टेस्ट की जिम्मेदारी दे दी गई जो कि डायलिसिस करते थे। जिनमें पेड और अनपेड दोनों कटेगरी के किडनी मरीज थे ऐसे अस्पतालों में डायलिसिस बंद हो गई तो किडनी मरीजों की तकलीफें बढ़ गईं।

42 वर्षीय रेनल फेल्योर कंचन सोनी की 11 अपैल को मौत हो गई क्योंकि उसे डायलिसिस नहीं मिल पाई। 6 अप्रैल से शांति मुकंद अस्पताल ने डायलिसिस करना बंद कर दिया इसके बाद कंचन सोनी कई सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डायलिसिस के लिए गईं लेकिन हर कहीं से इन्कार ही मिली। इससे पहले डायलिसिस न मिलने के चलते एक 38 वर्षीय महिला की भी मौत मौत हो गई थी। 

कंचन सोनी।

55 वर्षीय मुतीर अहमद ईडब्ल्यूएस कटेगरी के मरीज हैं। रेनल फेल्योर के चलते उन्हें डॉक्टर ने सप्ताह में 2 बार डायलिसिस करवाने की सलाह दी। लेकिन अचानक ही 22 मार्च 2020 जिस दिन जनता कर्फ्यू लगा शांतु मुकंद अस्पताल ने मुफ्त डायलिसिस करना बंद कर दिया। मुतीर लोकनायक असपताल गए लेकिन व्यर्थ। 

बिहार के राज कुमार का एम्स में इलाज चल रहा था। उनकी दोनो किडनी खराब हो चुकी हैं। राजकुमार धर्मशाला के आईआईटी में डायलिसिस पर हैं। एम्स के डॉक्टरों ने उन्हें सप्ताह में 2 बार डायलिसिस का सुझाव दिया था। लेकिन अब उनके लिए सप्ताह में एक बार भी डायलिसिस के लिए जाना मुश्किल हो रहा है। 

राजकुमार।

32 वर्षीय राहुल रेनल फेल्योर मरीज हैं। और डायलिसिस पर हैं। पिछले 4 साल से श्री आनंदपुर डायग्नोस्टिक ट्रस्ट में उनका इलाज चल रहा है। ट्रस्ट ने उनसे कहा कि अगली बार डायलिसिस करवाने आना तो कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट लेके आना। 24 अप्रैल को उन्होंने जीटीबी अस्पताल में कोविड-19 टेस्ट करवाया लेकिन एक सप्ताह बाद भी उनकी रिपोर्ट नहीं मिली। जिससे उनकी डायलिसिस की ड्यू डेट निकल गई।  

राहुल।

इसी तरह ईडबल्यूएस मरीज राम दुलार महतो और उनकी मां जब मुफ्त डायलिसिस के लिए शांति मुकुंद अस्पताल गए तो उनसे डायलिसिस से पहले कोरोना टेस्ट रिपोर्ट मांगा गया न होने पर सिक्योरिटी स्टाफ द्वारा उनके साथ मारपीट करके धक्के मारकर गेट से बाहर कर दिया गया। 

अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों और डायलिसिस सेंटर पर मरीजों से डायलिसिस से पहले कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट माँगी जा रही है। कई मरीजों ने टेस्ट करवाया भी लेकिन रिपोर्ट मिलने में वक्त के चलते उनकी डायलिसिस नहीं हो पा रही है।

लॉकडाउन के चलते खाने को मोहताज हैं मरीजों के तीमारदार   

 एम्स अस्पताल के बाहर एक व्यक्ति हाथों में होर्डिंग लिए खड़ा है, जिसमें लिखा है– “ प्रधानमंत्री जी अस्पतालों में मौजूद गरीब मरीजों के रिश्तेदारों को भी दो वक़्त का खाना दो।”

लॉकडाउन के चलते खाने पीने की दुकानें, रस्टोरेंट, होटल सब बंद हैं। ऐसे में जिन मरीजों का अस्पताल में इलाज़ चल रहा है उन मरीजों को तो खाना अस्पताल मैनेजमेंट की ओर से दे दिया जाता है लेकिन उनके साथ आए और बाहर खड़े मरीज के परिजनों और रिश्तेदारों को भूखा रहना पड़ता है। पहले दान पुण्य की लालसा से भी लोग एम्स में खाना बांटने आ जाते थे अभी लॉकडाउन में पुलिस की मार के चलते वहां कोई खाना बांटने वाला नहीं भूलकर भी नहीं आता। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles