हिटलर की किताब से चुराया एक पन्ना है नागरिकता का संघी प्रकल्प

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सब जानते हैं, एनपीआर एनआरसी का मूल आधार है। खुद सरकार ने इसकी कई बार घोषणा की है। एनपीआर में तैयार की गई नागरिकों की सूची की ही आगे घर-घर जाकर जांच करके अधिकारी संदेहास्पद नागरिकों की शिनाख्त करेंगे। सभी को इस शिनाख्त के आधार पर पहचान पत्र दिए जाएंगे।

यह पूरा प्रकल्प हुबहू हिटलर के उस प्रकल्प की ही नक़ल है जब 1939-45 के बीच हिटलर ने यहूदियों की पहचान करके उन्हें Jews Badge जारी किए थे। यहूदियों के लिए हमेशा उन पीले रंग के बैज को पहन कर निकलना जर्मनी में बाध्य कर दिया गया था। जैसे यहां पर एनआरसी के बाद तथाकथित संदेहास्पद नागरिकों को साथ में अपना विशेष पहचान पत्र रखने के लिए बाध्य किया जाएगा।

इससे हिटलर ने जब यहूदियों के जनसंहार की होलोकास्ट योजना पर अमल शुरू किया तो पीले बैज वालों को कहीं से भी पकड़ कर तैयार रखे गए यातना शिविरों में भेज देने में उसे जरा भी समय नहीं लगा।

भारत में भी बिल्कुल उसी तर्ज़ पर डिटेंशन कैंप्स के निर्माण का काम शुरू हो गया है। इनकी योजना के अनुसार संदेहास्पद नागरिकों में भी आगे फ़ौरन मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम को अलग-अलग छांटा जाएगा। इनमें ग़ैर-मुस्लिम को तो नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत नागरिकता दे दी जाएगी और मुस्लिमों को डिटेंशन कैंप में भेज कर आगे उनके साथ जो संभव होगा, वैसा सलूक किया जाएगा।

इस प्रकार, भारत में हिटलर के परम भक्त मोदी-शाह-आरएसएस ने हिटलर के कामों की हूबहू नक़ल करते हुए ही अभी एनपीआर और इसके साथ सीएए और एनआरसी का पूरा जन-संहारकारी प्रकल्प तैयार किया है।

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक, चिंतक और स्तंभकार हैं आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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