केंद्र सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने दी केजरीवाल को फुल पावर

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में यह तय कर दिया कि दिल्ली का असली बॉस मुख्यमंत्री होगा न कि उप-राज्यपाल। अदालत ने गुरुवार को चुनी हुई सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उप-राज्यपाल के अधिकारों की सीमा तय कर दी। 2014 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी और केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही कई मौकों पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच असहज स्थितियां उत्पन्न हुईं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की असली सरकार निर्वाचित सरकार होगी और उप-राज्यपाल को सरकार की सिफारिश माननी होगी।

फैसले की घोषणा करते हुए, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार के लोकतांत्रिक रूप में, वास्तविक शक्ति राज्य की निर्वाचित शाखा में निहित होनी चाहिए और निर्वाचित अंगों को प्रशासन पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है।

“अगर एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अधिकारियों पर नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान नहीं की जाती है, तो सामूहिक जिम्मेदारी की शक्ति कमजोर हो जाएगी। अगर अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं तो सामूहिक जिम्मेदारी का असर होगा।”

न्यायालय ने कहा कि सूची 2 में केवल तीन मामलों- सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस पर केंद्र के पास कार्यकारी शक्तियां हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह न्यायमूर्ति अशोक भूषण के इस विचार से सहमत नहीं है कि सेवाओं पर दिल्ली सरकार का कोई अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं, ने 18 जनवरी को करीब साढ़े चार दिन तक केंद्र की तरफ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और दिल्ली सरकार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि दुनिया के लिए दिल्ली को देखना यानी भारत को देखना है। उन्होंने कहा कि चूंकि ये राष्ट्रीय राजधानी है, इसलिए ये जरूरी है कि केंद्र के पास अपने प्रशासन पर विशेष अधिकार हो और अहम मुद्दों पर नियंत्रण हो।

दरअसल, दिल्ली में विधान सभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम, 1991 लागू है। 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन कर उप-राज्यपाल को अतिरिक्त शक्ति दे दी थी। संशोधन के मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था। इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

जिसके बाद उप-राज्यपाल और दिल्ली सरकार में टकराव और बढ़ गया था। आम आदमी पार्टी ने इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है।

राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत फैसले में कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में चुनी हुई सरकार का सेवाओं पर नियंत्रण होना चाहिए सिवाय इसके कि विधायी क्षेत्र से बाहर के विषय।

जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने 2019 में इस मुद्दे पर एक खंडित फैसला दिया था। न्यायमूर्ति भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं है, जबकि न्यायमूर्ति सीकरी ने की अलग राय थी।

दिल्ली एलजी बनाम आप सरकार विवाद

सर्वोच्च न्यायालय को आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना के बीच चल रहे विवाद को हल करने का काम सौंपा गया था, जो केंद्र और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के राष्ट्रीय राजधानी स्तर पर सेवाओं के नियंत्रण के क्षेत्राधिकार से संबंधित था।

दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए संविधान पीठ की स्थापना की गई थी।

केंद्र सरकार के एक अनुरोध के बाद, मई 2021 में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को पिछले साल 6 मई को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया था।

दिल्ली सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर 14 फरवरी, 2019 के एक खंडित फैसला आया। जिसमें न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक भूषण की दो-न्यायाधीशों की पीठ, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने सीजेआई से सिफारिश की थी कि तीन-न्यायाधीशों की पीठ राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को अंतिम रूप से तय करने के लिए गठित किया जाए।

न्यायमूर्ति भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं थी, जबकि न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष पदों (संयुक्त निदेशक और ऊपर) में अधिकारियों का स्थानांतरण या पोस्टिंग केवल केंद्र द्वारा किया जा सकता है और लेफ्टिनेंट गवर्नर का दृष्टिकोण अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों पर मतभेद के मामले में मान्य होगा।

2018 के एक फैसले में, पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली एलजी निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं, और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें

चीफ जस्टिस ने संवैधानिक बेंच का फैसला सुनाते हुए कहा, दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना जरूरी है। जीएनसीटीडी एक्ट का अनुच्छेद 239 aa काफी विस्तृत अधिकार परिभाषित करता है। 239aa विधानसभा की शक्तियों की भी समुचित व्याख्या करता है। इसमें तीन विषयों को सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है। सीजेआई ने कहा, यह सब जजों की सहमति से बहुमत का फैसला है। यह मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है।

अदालत ने कहा कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए। अगर चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक व्यस्था का अधिकार नहीं होगा, तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही पूरी नहीं होती। उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी।

अधिकारियों की सेवाओं पर किसका अधिकार है?

CJI ने कहा, हमारे सामने सीमित मुद्दा यह है कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में सेवाओं पर किसका नियंत्रण होगा? 2018 का फैसला इस मुद्दे पर स्पष्टता प्रदान करता है लेकिन केंद्र द्वारा उठाए गए तर्कों से निपटना आवश्यक है। अनुच्छेद 239AA व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है।

सीजेआई ने कहा, NCT एक पूर्ण राज्य नहीं है। ऐसे में राज्य पहली सूची में नहीं आता। NCT दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम हैं।

सीजेआई ने कहा, प्रशासन को GNCTD के संपूर्ण प्रशासन के रूप में नहीं समझा जा सकता है। नहीं तो निर्वाचित सरकार की शक्ति कमजोर हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते।

एलजी की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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