Thursday, April 25, 2024

रात में बैठी सुप्रीम कोर्ट, कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस गंगोपाध्याय के रात 12 बजे तक के अल्टीमेटम आदेश पर लगाई रोक

एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट में 28 अप्रैल की रात 8 बजे जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की एक स्पेशल पीठ बैठी और कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उन्होंने उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल से जवाब तलब किया था। पीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस आदेश पर रोक लगाई है।इस आदेश में जस्टिस गंगोपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को रात 12 बजे से पहले की डेडलाइन देते हुए अपने उस इंटरव्यू के ट्रांसक्रिप्शन की कॉपी मांगी, जो चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के सामने रखी गई थी। 

उनके समक्ष विचाराधीन मामले के बारे में जस्टिस गंगोपाध्याय के टेलीविजन साक्षात्कार पर आपत्ति जताते हुए पीठ ने आज पहले पश्चिम बंगाल के प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती घोटाले के मामले को उनकी पीठ से स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। उसके बाद आज शाम, जस्टिस गंगोपाध्याय ने स्वत: ही एक आदेश पारित किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के जनरल सेक्रेटरी को उनके समक्ष प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखे गए साक्षात्कार का अनुवाद पेश करने का निर्देश दिया।

न्यायाधीश ने जनरल सेक्रेटरी को आदेश का पालन करने के लिए आज आधी रात की समय सीमा दी थी। इस असाधारण घटनाक्रम को देखते हुए आज रात 8 बजे जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ की एक विशेष सुनवाई की। जस्टिस ए एस बोपन्ना ने मौखिक रूप से कहा कि आज पहले पारित किए गए पहले के आदेश के अनुसार विद्वान न्यायाधीश ने न्यायिक पक्ष पर एक आदेश पारित किया जो उचित नहीं था।

पीठ ने आदेश पर रोक लगाते हुए दर्ज किया कि एसजी ने खंडपीठ से सहमति व्यक्त की। विद्वान न्यायाधीश को आदेश पारित नहीं करना चाहिए था। इस पर रोक लगाई जा सकती है,”जैसा कि विद्वान सॉलिसिटर जनरल ने ठीक ही कहा है, वर्तमान प्रकृति के आदेश को न्यायिक कार्यवाही में पारित नहीं किया जाना चाहिए था, विशेष रूप से न्यायिक अनुशासन को ध्यान में रखते हुए”।

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने कल सुप्रीम कोर्ट के जनरल सेक्रेटरी को निर्देश दिया था कि वह आधी रात तक उन्हें उनके द्वारा मीडिया में दिए गए साक्षात्कार की ट्रांसक्रिप्ट कॉपी उपलब्ध कराएं, जिसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा गया था।

जस्टिस गंगोपाध्याय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए उक्‍त आदेश पारित किया था, जिसमें उन्होंने कहा कि वह अपने साक्षात्कार के आधिकारिक अनुवाद की प्रति और हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के हलफनामे का रात 12:15 बजे तक अपने चैंबर में प्रतीक्षा करेंगे। आदेश में कहा गया था कि पारदर्शिता के लिए, मैं माननीय सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को निर्देश देता हूं कि वे मेरे सामने रिपोर्ट और मेरे द्वारा मीडिया में दिए गए साक्षात्कार का आधिकारिक अनुवाद और इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल का हलफनामा आज मध्यरात्रि 12 बजे तक पेश करें। पारदर्शिता के लिए यह आवश्यक है। मैं आज मध्यरात्रि में 12:15 बजे तक अपने कक्ष में दो सेट मूल प्रतियों की प्रतीक्षा करूंगा, जिन्हें आज सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों के समक्ष रखा गया है।

जस्टिस गंगोपाध्याय द्वारा आदेश सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित आदेश के कुछ देर बात आया था। अब तक, इस मामले को कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय देख रहे थे, जिन्होंने सीबीआई और ईडी को टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी से पूछताछ करने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस गंगोपाध्याय के एबीपी आनंद के साक्षात्कार पर आपत्ति जताने के 4 दिन बाद यह आदेश पारित किया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर बनर्जी के खिलाफ बात की थी। अदालत ने टिप्पणी की थी कि न्यायाधीश लंबित मामलों पर साक्षात्कार नहीं दे सकते हैं, और स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या कथित बयान सिंगल जज बेंच के तौर पर दिए गए थे या नहीं। आदेश पारित करने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने उस संबंध में न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के हलफनामे के साथ इस न्यायालय के मूल पक्ष के अनुवाद विभाग द्वारा बनाई गई एक रिपोर्ट और ट्रांसक्रिप्ट का अवलोकन किया था। उक्त सामग्री को उसके निर्देशों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि नौकरी के लिए स्कूल मामले में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय के समक्ष लंबित कार्यवाही को किसी अन्य न्यायाधीश को स्थानांतरित किया जाए।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस तथ्य के आलोक में आदेश पारित किया कि जस्टिस गंगोपाध्याय ने समाचार चैनल एबीपी आनंद को बनर्जी के बारे में एक साक्षात्कार दिया था, जबकि बनर्जी से संबंधित मामले की न्यायाधीश द्वारा सुनवाई की जा रही थी।पीठ ने कहा कि जिस न्यायाधीश को कार्यवाही फिर से सौंपी गई है, वह इस संबंध में दायर सभी आवेदनों को लेने के लिए स्वतंत्र होगा।

उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ बनर्जी की याचिका पर यह आदेश पारित किया गया जिसमें उनके खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जांच की मांग की गई थी।उच्चतम न्यायालय  ने पहले 13 अप्रैल के उस फैसले पर रोक लगा दी थी जिसमें सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती में अनियमितताओं में बनर्जी की कथित भूमिका की केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच का आदेश दिया गया था।

विशेष पीठ ने उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल को फौरन इस आदेश की कॉपी कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को देने को कहा है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सम्मानित जज ( जस्टिस गंगोपाध्याय) को इस तरह का आदेश नहीं देना चाहिए था।

दरअसल कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय शिक्षक भर्ती घोटाले से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने ही इस मामले में साल 2022 की शुरुआत में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। बाद में इस मामले में कई हाईप्रोफाइल गिरफ्तारियां हुईं, जिसमें टीएमसी के तत्कालीन मंत्री पार्थ चटर्जी भी शामिल थे।

29 मार्च को एक जनसभा के दौरान, बनर्जी ने आरोप लगाया था कि ईडी और सीबीआई हिरासत में लोगों पर मामले के हिस्से के रूप में उनका नाम लेने के लिए दबाव डाला गया था।इसके बाद, मामले के एक अन्य आरोपी कुंतल घोष ने भी आरोप लगाया था कि जांचकर्ताओं द्वारा उन पर बनर्जी का नाम लेने के लिए दबाव डाला जा रहा था। घोष 2 फरवरी तक अपनी गिरफ्तारी के बाद ईडी की हिरासत में थे और 20 से 23 फरवरी तक सीबीआई की हिरासत में थे।

एक अपील दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया था कि उच्च न्यायालय ने बनर्जी पर “निराधार आक्षेप” लगाया और प्रभावी रूप से सीबीआई और ईडी को उनके खिलाफ जांच शुरू करने का निर्देश दिया, इस तथ्य के बावजूद कि वह न तो पक्षकार थे और न ही सुनवाई की जा रही रिट याचिका से जुड़े थे।

बनर्जी ने अपनी याचिका में आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि आदेश पारित करने वाले न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने पिछले सितंबर में एक समाचार चैनल को दिए एक साक्षात्कार में टीएमसी नेता के लिए अपनी नापसंदगी जाहिर की थी।यह भी दावा किया गया कि न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों के खिलाफ टिप्पणी की थी जो मामले में उनके आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रहे थे। ऐसा तब हुआ जब उच्चतम न्यायालय ने पहले आरोपियों के खिलाफ सीबीआई और ईडी जांच के उच्च न्यायालय के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी।

एक सुनवाई के दौरान जस्टिस गंगोपाध्याय ने कथित तौर पर खुली अदालत में पूछा था,”सुप्रीम कोर्ट के जज जो चाहें कर सकते हैं? क्या यह जमींदारी है?”

इस बीच जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने 20 सितंबर 2022 को एबीपी आनंदा चैनल को एक इंटरव्यू दिया था,जिसमें उन्होंने राज्य सरकार और तृणमूल कांग्रेस की कथित तौर पर आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को न्यायपालिका पर भाजपा के साथ साठ-गांठ का आरोप लगाने के लिए 3 महीने की जेल होनी चाहिए। जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था कि जिस वक्त अभिषेक बनर्जी ने टिप्पणी की थी उस वक्त वह लद्दाख में थे। कहा था कि जब मैं वापस लौटा तो मेरा मन हुआ कि उन्हें (अभिषेक बनर्जी) को समन करूँ, कोर्ट में बुलाऊं और एक्शन लूं।

जब जस्टिस गंगोपाध्याय के इंटरव्यू का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ  ने इस पर हैरानी जताई थी और कहा कि किसी भी जज को ऐसे मसले पर इंटरव्यू देने से बचना चाहिए जो उनके सामने लंबित हों। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार से जस्टिस गंगोपाध्याय के इंटरव्यू पर 4 दिनों में जवाब मांगा था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles