नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन हिंसा की पीड़ित महिला का अकेला और भरोसेमंद प्रमाण उसके हमलावर को सजा दिलाने के लिए काफी है। जस्टिस अशोक भूषण के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि “एक महिला जो यौन हिंसा की पीड़ित है, किसी अपराध की सहभागी नहीं है बल्कि एक दूसरे शख्स की लालच का शिकार है। उसके प्रमाण को किसी संदेह के नजरिये से नहीं देखा जा सकता है।”
कोर्ट यौन उत्पीड़न से बच्चों के बचाव के लिए बने कानून के तहत एक 13 वर्षीय बच्ची के यौन शोषण के दोषी एक शख्स की सजा की पुष्टि कर रहा था। मद्रास हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से मिली सजा को बरकरार रखा था। फैसला पीड़िता के प्रमाण पर आधारित था जबकि उसकी मां अपने बयान से पलट गयी थी।
जस्टिस एमआर शाह ने सर्वोच्च न्यायालय के लंबे न्यायिक प्रमाणों को उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए कहा कि यौन हिंसा के एक मामले में “यौन हमले की पीड़िता का प्रमाण सजा के लिए काफी है।” जब तक कि वहां कोई गंभीर अंतर्विरोध न हो। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों को पूरी संवेदनशीलता के साथ लिया जाना चाहिए। अगर केस बिल्कुल साफ है तो उसकी गवाही में थोड़े अंतर्विरोध के चलते उसे डिरेल नहीं होने देना चाहिए।
पिछले फैसले को कोट करते हुए जस्टिस शाह ने कहा कि बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को पददलित कर देते हैं।
फैसले में कहा गया है कि “बलात्कार का एक अपराध करने वाले एक आरोपी को सजा के लिए पीड़िता का अकेला प्रमाण पर्याप्त है। हां इसमें यह बात ज़रूर होनी चाहिए कि वह पूरी तरह से भरोसा दिलाने वाला हो और विश्वासपूर्ण लगे। जिस पर कोई दाग नहीं लगाया जा सके और गुणवत्ता के लिहाज से भी बिल्कुल खरा हो।”
This post was last modified on October 30, 2020 7:39 pm