Saturday, April 27, 2024

किसानों से किया वायदा पूरा करने में फिर विफल रही मोदी सरकार: क्या किसान आंदोलन फिर खड़ा होगा?

20 मार्च को रामलीला मैदान में हुई किसान महापंचायत के बीच संयुक्त किसान मोर्चा के 15 सदस्यीय प्रतिनिधि-मण्डल की केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ बैठक हुई थी। बैठक के बाद किसान नेताओं ने सरकार को चेतावनी दिया था, कि “कृषि मंत्री ने हमारी सारी मांगे पूरा करने का आश्वासन दिया है। हम 30 अप्रैल तक इंतज़ार करेंगे। उसके बाद बैठक करके केंद्र सरकार के विरुद्ध हम आंदोलन के अगले कार्यक्रम की घोषणा करेंगे।”

30 अप्रैल आ गया, साफ है, सरकार ने एक बार फिर किसानों के साथ वायदा ख़िलाफी की है। अब सबकी निगाह संयुक्त किसान मोर्चे के अगले कदम की ओर है।

इधर पश्चिमोत्तर भारत की जाट पट्टी में, जो किसान आंदोलन का भी कुरुक्षेत्र रहा है- हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब से लेकर राजस्थान तक माहौल फिर सरगर्म है। ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद अग्निवीर योजना के खिलाफ जबरदस्त हलचल रही और अब यह तीसरा मौका है जब फिर वहां उबाल आ रहा है।

किसान आंदोलन की सरगर्मी तो जारी ही है, इसी बीच कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा पुलवामा मामले पर स्तब्धकारी (shocking) खुलासों और अब भाजपा सांसद बृजभूषण के खिलाफ यौन शोषण के संगीन आरोप के साथ ओलंपिक पदक विजेता पहलवानों की लड़ाई ने दिल्ली के आसपास की समूची पट्टी में भूचाल ला दिया है।

सतपाल मलिक पूरे इलाके में लगातार रैलियां कर रहे हैं और CBI द्वारा उनकी घेरेबंदी की कोशिशों के खिलाफ किसान लामबंद हो रहे हैं। हाल ही में किसान नेता चढूनी के नेतृत्व में किसानों ने दिल्ली में गिरफ्तारी दी थी। बलबीर सिंह राजेवाल ने बयान जारी कर कहा है कि “सत्यपाल मलिक ने बहादुरी से पुलवामा का पर्दाफाश किया है, हम सब किसान उनके साथ हैं।”

उधर जंतर-मंतर में पहलवानों के धरने पर तमाम विपक्षी नेता, जनसंगठनों/आंदोलनों के प्रतिनिधि, सतपाल मलिक, नरेश टिकैत जैसे लोग पहुंच गए और पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिलदेव, ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा, नीरज चोपड़ा, वीरेंद्र सहवाग और सानिया मिर्ज़ा जैसी तमाम नामचीन हस्तियां यौन शोषण के आरोपी सांसद के खिलाफ महिला पहलवानों के पक्ष में उतर आई हैं।

BKU अध्यक्ष नरेश टिकैत ने सरकार को यहां तक चेतावनी दे दी कि,”सरकार किसानों को फसल की कीमत नहीं देना चाहती, न दे। लेकिन यह हमारी बहन, बेटियों के मान सम्मान की बात है, यह बर्दाश्त नहीं है और इस पर कुछ भी हो सकता है।” बढ़ते जनदबाव और सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद आरोपी सांसद को बचाने में लगी सरकार को अंततः FIR करवानी पड़ी है।

आने वाले दिनों में इन सारे आवेगों (impulses) का एक साथ convergence एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक भूचाल की जमीन तैयार कर रहा है, जिसकी जद में हरियाणा का विधानसभा चुनाव ही नहीं, स्वयं 2024 का महाचुनाव है!

इस दौरान देश में जगह जगह किसान आंदोलन की हलचलें और हस्तक्षेप तेज हो रहा है।

महाराष्ट्र में जारी भारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच किसानों ने अपना तीसरा लांग-मार्च निकाला जिसमें 15 हजार से ऊपर किसान शामिल थे। किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के कारण जनता की समस्याओं और विकास के मुद्दों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है।

किसान नेताओं ने कहा कि “सत्ताधारी भाजपा और उनके सहयोगी डर और लालच दिखाकर विपक्षी राजनीतिक दलों में तोड़-फोड़ में लगे हैं। प्रशासन पूरी तरह ठप हो गया है। इसलिए लोगों की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए हमें फिर से सड़कों पर उतरना ज़रूरी हो गया है।”

26 अप्रैल को अहमदनगर के अकोले से निकला लांग मार्च 53 किमी चलकर मंत्री के घर लोणी तक जाने वाला था। लेकिन सरकार किसानों के जबरदस्त दबाव में आ गई और मार्च के दूसरे ही दिन महाराष्ट्र सरकार के तीन तीन मंत्री उनके बीच पहुंच गए। उन्होंने लॉन्ग मार्च के मंच से किसानों की सभी मांगें मंजूर करने और उन्हें तय और घोषित समय में लागू करने का भी एलान किया ।

पूरी हुई मांगों में उपज के दाम, भूमि के पट्टे, मजदूरों के वेतन, आशा आंगनबाड़ी का मानदेय, निर्माण मजदूरों की सुरक्षा, कल्याणकारी योजना के विस्तार सहित कई मांगें शामिल हैं। इस निर्णायक जीत के बाद लॉन्ग मार्च दूसरे दिन स्थगित कर दिया गया।

इस मार्च की एक उल्लेखनीय विशेषता यह रही कि चर्चित बुद्धिजीवी व पत्रकार पी साईंनाथ भी वहां पहुंचे और उन्होंने किसानों के संघर्ष के साथ एकजुटता दिखाते हुए कहा कि वे भी तीन दिन किसानों के साथ पैदल मार्च करेंगे।

महाराष्ट्र के किसानों की यह सही समय पर सटीक पहल राजनीतिक संकट और अस्थिरता में घिरी जनविरोधी सरकारों के खिलाफ मेहनतकशों, लोकतान्त्रिक ताकतों के हस्तक्षेप का बेहतरीन नमूना है।

किसान आंदोलन प्रायः स्वतःस्फूर्त एवं अस्थाई चरित्र के होते हैं, इसके विपरीत महाराष्ट्र के गरीब, आदिवासी, आम किसानों का पिछले 4 वर्ष से सतत जारी, बार-बार सरकार को घुटने पर ले आता यह धारावाहिक आंदोलन पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत है।

उम्मीद है आने वाले दिनों में पूरे देश के किसान ऐसे ही रणनीतिक हस्तक्षेप की ओर बढ़ेंगे।

उधर कर्नाटक के बेहद महत्वपूर्ण चुनाव में- जिसे 2024 के लिए बैरोमीटर माना जा रहा है- किसान-आंदोलन के नेता सक्रिय हस्तक्षेप कर रहे हैं। बेंगलुरु में आयोजित संयुक्त किसान पंचायत ने “आगामी चुनावों में किसान विरोधी, जनविरोधी, साम्प्रदायिक भाजपा सरकार को हराने का सर्वसम्मत आह्वान किया है।”

साथ ही उन्होंने किसानों की ओर से अपने बुनियादी एवं ज्वलंत सवालों को लेकर मांगपत्र जारी किया है, जिसे स्वीकार करने और लागू करने का विपक्ष के दो प्रमुख दलों कांग्रेस और JD(S) ने वचन दिया है। पंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा के अनेक केंद्रीय नेताओं के साथ ही कर्नाटक के किसान संगठन तथा कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए।

किसानों के 15 सूत्रीय मांगपत्र में स्थानीय सवालों के साथ साथ उनके केंद्रीय मांगपत्र की प्रमुख मांगे-MSP की कानूनी गारंटी, सभी किसानों की पूर्ण ऋण माफी, बिजली बिल, किसानों की इच्छा के विरुद्ध किसी भी भूमि के अधिग्रहण पर रोक जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं।

आने वाले विधानसभा चुनावों तथा सर्वोपरि 2024 के आम चुनाव के लिए जनांदोलनों की मांगों/ चार्टर को विपक्ष का साझा कार्यक्रम बनाने के लिए कायल करने और इसके माध्यम से जनता को भाजपा के खिलाफ लामबंद करने में कर्नाटक का किसानों का प्रयोग मॉडल बन सकता है।

आज हमारा राष्ट्रीय जीवन आशंकाओं और सम्भावनाओं से भरे एक बेहद नाजुक दौर में प्रवेश कर गया है, जहां अगला एक साल गणतंत्र के भविष्य के लिए निर्णायक होगा।

लोकतन्त्र और संविधान बचाने का राजनीतिक सवाल- आज राष्ट्रीय एजेंडा में सबसे ऊपर आ चुका है, यह आज काई सरोकारों और उनके संघर्षों की केंद्रीय धुरी है।

महाराष्ट्र में किसानों के लॉन्ग-मार्च को सम्बोधित करते हुए पी साईंनाथ ने कहा, कि “देश में गम्भीर कृषि संकट की चुनौती को किसानों ने देश के बुद्धिजीवियों से पहले समझा और संघर्ष किया। अब कृषि संकट केवल किसानी तक नहीं बल्कि समाज का संकट बन गया है। किसानों ने पिछले कुछ सालों के दौरान देश के सभी वर्गों के लिए संघर्ष किया है।”

सचमुच किसान-आंदोलन ऐतिहासिक सर्वोपरि इसी अर्थ में था कि उसने फासीवाद की ओर देश के drift को रोकने/विलंबित करने में एक महान भूमिका निभायी।

ऐतिहासिक संकट की मौजूदा घड़ी में क्या किसान आंदोलन एक बार फिर अपने चर्चित नारे “देश बचाओ, लोकतन्त्र बचाओ” को चरितार्थ करने में निर्णायक भूमिका का निर्वाह करेगा?

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छत्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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