झारखंडः पत्थलगड़ी आंदोलन के केस वापस लेने का फैसला क्रांतिकारी कदम

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जब देश में केंद्र के साथ ही कई प्रदेशों की सत्ता पर काबिज एनडीए सरकारें आंदोलनकारियों के खिलाफ दमनात्मक नीतियों का इस्तेमाल कर रही हैं, ऐसे में हेमंत सोरेन ने झारखंड का मुख्यमंत्री बनते ही पहली कैबिनेट की बैठक में सबसे पहले आंदोलनकारियों को राहत दी है। हेमंत सोरेन ने ऐसा कर न केवल एनडीए सरकारों को नसीहत दी है बल्कि एक तरह से उन्हें खुली चुनौती भी दे दी है। सोरेन ने यह चुनौती पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े केस खत्म करने का ऐलान कर की है।

दरअसल कुछ वर्ष पहले पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर झारखंड सुर्खियों में रहा था। खूंटी इस आंदोलन का केंद्र माना जा रहा था। यह अपने आप में दिलचस्प है कि वैसे तो सभी दल स्वराज की बात करते हैं पर जब कहीं से स्वराज की बात उठती है तो सरकारों के पेट में दर्द होने लगता है। ऐसा ही झारखण्ड में भी हुआ।

जब सरकारी उपेक्षा का शिकार बन रहे गांव-देहात के लोगों की आवाज को अनसुना कर दिया गया तो लोगों ने स्वराज के लिए पत्थलगड़ी नाम से आंदोलन छेड़ दिया। आदिवासी विरोधी नीतियों की मुखालफत में इस आंदोलन के दौरान कई गांवों में समानांतर सरकार चलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। आंदोलनकारियों ने आगे बढ़कर तत्कालीन राज्य और केंद्र सरकार को चुनौती देते हुए खुद की करैंसी, बैंक और सेना के गठन का भी ऐलान कर दिया था।

झारखंड की सत्ता संभालते ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का इससे जुड़े सभी केस खत्म करने का ऐलान देश की व्यवस्था को खुली चुनौती है। इसके अलावा उन्होंने अपनी पहली कैबिनेट में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संसोधन के विरोध को लेकर दर्ज मुकदमे भी वापस लेने का एलान कर दिया।

अलगाववाद के पहलुओं को जोड़ते हुए तत्कालीन रघुवर सरकार में पत्थलगड़ी विवाद से जुड़े 19 मामलों में राजद्रोह की धाराओं के तहत खूंटी में केस दर्ज हुए थे। हेमंत सरकार के इस फैसले से आंदोलन से जुड़े कुल 172 नामजद आरोपियों को सीधी-सीधी राहत मिलने जा रही है। खूंटी में 19 राजद्रोह केस में 96 आरोपियों के खिलाफ राज्य सरकार के गृह विभाग ने मुकदमा चलाने की अनुमति दे रखी है। 96 में से 48 के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है।

पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान आठ से दस हजार ग्रामीण भी अलग-अलग कांडों में गैर नामजद आरोपी बनाए गए थे। जिन गांवों में पत्थलगड़ी हुई थी, वहां के ग्रामीणों को गैर नामजद आरोपी बनाया गया था। सरकार और पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई के साथ ही आंदोलनकारियों की काम करने की शैली पर भी प्रश्न चिन्ह लगा था जब गत दिनों सीआईडी के एडीजी अनुराग गुप्ता ने एक आदेश जारी कर बताया था कि गांव के भोले-भाले लोगों को बहला फुसलाकर इन आंदोलनों से जोड़ दिया था। उन्होंने पुलिस को उन पर कार्रवाई न करने की भी बात कही थी।

सीआईडी के आदेश के बाद किसी भी ग्रामीण के खिलाफ राजद्रोह का केस नहीं चलाया गया था। पत्थलगड़ी के केस में खूंटी पुलिस ने विशेषकर सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी, पत्रकार विनोद कुमार सिंह, आलोक कुजूर, धनंजय बिरूली समेत 20 लोगों को आरोपी बनाया था। इन लोगों पर तत्कालीन एनडीए सरकार की दमनात्मक नीति का क्या हाल था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पत्थलगड़ी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले विजय कुजूर, कृष्णा हांसदा, जान जुनास तिडू, बलराम समद समेत कई लोग अब भी जेल में बंद हैं।

वहीं, इस मामले में पुलिस यूसुफ पूर्ति और बबिता कच्छप की तलाश कर रही है। हेमंत सोरेन ने कैबिनेट की पहली ही बैठक में इस मामले में ऐलान कर क्रांतिकारी तरीके से सरकार चलाने के संकेत दिए हैं।

इस तरह के आंदोलनों में लोगों को कानून हाथ में लेने की बात करते सुना जाता है। यह समझने को कोई तैयार नहीं होता कि आखिकर गांव-देहात के भोले-भाले लोग इस तरह के आंदोलन करने को क्यों मजबूर हो जाते हैं।

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