धार्मिक कट्टरपंथियों के तीखे आलोचक थे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

Estimated read time 1 min read

देश इस साल नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है। इसी के मद्देनजर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के अनुसार 23 जनवरी को नेताजी के जन्मदिवस को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया इस वर्ष से मनाये जाने की घोषणा की गई, और अब से गणतंत्र दिवस के उत्सव की शुरूआत इसी तिथि से होगी। इसी क्रम में इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा की स्थापना भी की गई। यह प्रचार भी किया गया कि देश को मुख्यतः नेताजी के प्रयासों से स्वाधीनता मिली और यह भी कि कांग्रेस ने उनके साथ अन्याय किया। कुछ समय पहले इस आशय की अफवाहें भी उड़ाई गईं थीं कि पंडित नेहरू नेताजी की जासूसी करवाते थे। कोशिश यह दिखाने की थी की गांधी और नेहरू ने नेताजी को कमजोर करने के हर संभव प्रयास किए।

जबकि हकीकत यह है कि, भाजपा सरकार नेताजी का महिमामंडन केवल राजनैतिक उद्धेश्यों से कर रही है। भाजपा, बोस की विचारधारा और राजनीतिक मूल्यों की कट्टर विरोधी है। बोस ने गांधीजी द्वारा शुरू किए गए जनांदोलनों से प्रभावित होकर कांग्रेस की सदस्यता ली थी। कांग्रेस में वे समाजवादी गुट के सदस्य थे और नेहरू को अपना बड़ा भाई मानते थे। उन्होंने कांग्रेस छोड़कर आजाद हिन्द फौज का गठन, देश को आजाद कराने की रणनीति के तहत किया था।

गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ा जनांदोलन शुरू करने का प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव का कांग्रेस की केन्द्रीय कार्यकारिणी ने पूरी तरह समर्थन किया। बोस ने भले ही इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस छोड़ दी थी, परंतु गांधी के मन में बोस के प्रति कोई बैरभाव नहीं था। बोस ने लिखा है कि सन् 1944 में गांधीजी से उनकी लंबी और आत्मीय चर्चा हुई थी, जिसमें गांधीजी ने उनसे कहा था कि “अगर बोस अपने तरीकों से देश के लिए आजादी हासिल करने में सफल हो गए तो, वे उन्हें बधाई देने वाले पहले व्यक्ति होंगे।”

अब जबकि बोस से जुड़े अधिकांश दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं हमें पता है कि नेहरू और बोस के बीच अत्यंत निकट संबंध थे और समाजवाद, लोककल्याण और विकास की योजना बनाने के लिए एक संस्था के गठन जैसे मुद्दों पर वे एक राय थे। सन् 1938 में जब बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए तब उन्होंने नेहरू की अध्यक्षता में एक योजना समिति का गठन किया था। जब नेहरू प्रधानमंत्री बने उसके बाद इसी समिति को योजना आयोग में परिवर्तित कर दिया गया। बोस की पहल पर गठित योजना आयोग को मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भंग कर दिया।

आज भले ही हिन्दू साम्प्रदायिक ताकतें बोस की शान में कसीदे पढ़ रही हैं, लेकिन ये बोस ही थे जिन्होंने साम्प्रदायिक तत्वों के कांग्रेस में प्रवेश को बंद करवा दिया था। उस समय तक मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा के सदस्यों को कांग्रेस का सदस्य भी बने रहने की इजाजत थी।

बोस गांधीजी को देश के सबसे बड़े जननेता के रूप में देखते थे और उन्हें राष्ट्रपिता कहने वाले वे पहले व्यक्ति थे। बोस ने आजाद हिन्द फौज के लिए गांधीजी का आशीर्वाद भी मांगा था। कांग्रेस के कई अन्य नेताओं से कहीं ज्यादा बोस यह मानते थे कि देश में अल्पसंख्यकों को उनके वाजिब हक दिए जाने चाहिए। आज भाजपा की विचारधारा ने देश में जिस तरह का वातावरण निर्मित कर दिया है, उसके विपरीत बोस मुसलमानों को विदेशी नहीं मानते थे और ना ही मुस्लिम शासकों का दानवीकरण करते थे। बोस ने लिखा था, ‘‘यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि अंग्रेजों के आने के पहले भारत में जो राजनैतिक व्यवस्था थी, उसे मुस्लिम शासन कहना गलत होगा। जब भी हम दिल्ली के मुगल बादशाहों की बात करते हैं…तब हमें याद रखना चाहिए कि दोनों ही मामलों में प्रशासन हिन्दुओं और मुसलमानों द्वारा मिलकर चलाया जाता था और अनेक शीर्ष मंत्री व सैन्य अधिकारी हिन्दू हुआ करते थे‘‘ (सुभाषचन्द्र बोस की पुस्तक ‘इंडियन पिलग्रिम‘ से)।

सुभाषचन्द्र बोस ने बहादुरशाह जफर के मकबरे पर पहुंचकर 1857 की क्रांति में उनकी भूमिका की प्रशंसा करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी। जहां वर्तमान में भाजपा मुसलमानों के खिलाफ नफरत का वातावरण बनाने का प्रयास कर रही है, वहीं बोस ने ब्रिटिश सेना से पूरी हिम्मत से मुकाबला करने के लिए टीपू सुल्तान की भरपूर प्रशंसा की थी। जो सैन्य वर्दी वे पहनते थे उसके कंधे पर छलांग लगाते हुए शेर पर टीपू सुल्तान का निशान भी रहता था।

बोस दोनों साम्प्रदायिक धाराओं के कड़े आलोचक थे। वे मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा को एक ही थैली के चट्टे-बट्टे मानते थे। वे लिखते हैं, ‘‘उस समय मिस्टर जिन्ना केवल यह सोच रहे थे कि पाकिस्तान की उनकी कल्पना को कैसे साकार किया जाए। कांग्रेस के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संयुक्त रूप से संघर्ष करने का विचार उनके मन में नहीं आया…मिस्टर सावरकर केवल यह सोच रहे थे कि किस प्रकार हिन्दू, ब्रिटिश सेना में घुसकर सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करें। इन मुलाकातों से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचने पर मजबूर हो गया कि न तो हिन्दू महासभा और ना ही मुस्लिम लीग से हम कोई अपेक्षा कर सकते हैं” (उनकी पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल‘ से).

उनकी यह स्पष्ट राय थी कि स्वतंत्र भारत में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या नस्ल का क्यों न हो, को समान अवसर प्राप्त होने चाहिए। वे हिन्दू सम्प्रदायवादियों के इस सिद्धांत से भी असहमत थे कि आर्य इस भूमि के मूल निवासी थे और इसलिए इस भूमि पर उनका और केवल उनका एकाधिकार है। वे लिखते हैं ‘‘ताजा पुरातात्विक उत्खन्नों से संदेह से परे यह साबित हो गया है कि भारत पर आर्यों की विजय से बहुत पहले ईसा पूर्व 3000 में ही इस भूमि पर एक उन्नत सभ्यता विकसित हो चुकी थी।”

अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं के चलते उन्होंने आजाद हिन्द फौज में सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया। आईएनए में उनके निकट सहयोगियों में मुसलमान और ईसाई शामिल थे। आबिद हसन उनके एडीसी थे और शाहनवाज खान व गुरूबख्श ढ़िल्लो आजाद हिन्द फौज में उच्च पदों पर थे। अपने पितृ संगठन कांग्रेस के प्रति सम्मान भाव के चलते उन्होंने आजाद हिन्द फौज की बटालियनों के नाम गांधी, नेहरू और मौलाना आजाद के नाम पर रखे थे। यह दिलचस्प है कि महात्मा गांधी ने बोस को ‘प्रिंस अमंग पेट्रियट्स‘ (देशभक्तों के राजा) कहा था।

एक किस्सा मशहूर है। गांधी, उनकी वीरता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने आजाद हिन्द फौज के कैदियों से मिलने पहुंचे। वहां उन्हें पता चला कि फौजियों को मुसलमान चाय और हिन्दू चाय दी जाती है। यह उस समय आम था। गांधीजी ने उनसे कहा कि वे इस तरह की चाय पीने से इंकार कर दें। अफसरों और सिपाहियों ने गांधीजी के अनुरोध पर बहुत शानदार प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वे दोनों चायों को मिलाएंगे और फिर एकसाथ पीएंगें। जाहिर है कि महात्मा बहुत खुश हुए।

बोस (भारतीय राष्ट्रवाद) और भाजपा (हिन्दू राष्ट्रवाद) एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। चूंकि भाजपा की विचारधारा की स्रोत हिन्दू महासभा और उसके वर्तमान पितृ संगठन (आरएसएस) ने स्वाधीनता संग्राम में अपनी भागीदारी नहीं दी, इसलिए उसकी कोशिश स्वाधीनता संग्राम के ऐसे नेताओं पर कब्जा करने की रही है, जिनके गांधी और नेहरू से थोड़े-बहुत भी मतभेद थे। उसने सरदार पटेल के साथ भी यही किया और अब उसके निशाने पर बोस हैं।

(राम पुनियानी आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद अमरीश हरदेनिया ने किया है।)

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author