झारखंडः मनरेगा में श्रम बजट बनाने से कतरा रही है सरकार

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देश के 14.82 करोड़ परिवारों को 100 दिन रोजगार देने वाला पूरी दुनिया में चर्चित मनरेगा कानून को लागू हुए 15 वर्ष पूरे हो गए हैं। भारत की चौदहवीं लोकसभा द्वारा 2005 के मानसून सत्र में पारित कर इसकी औपचारिक शुरुआत 2 फ़रवरी 2006 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के पंदलापल्ली ग्राम पंचायत से की गई थी। अप्रैल 2020 में वैश्विक महामारी कोविड 19 के दौरान जब अचानक किए गए लॉकडाउन से त्रस्त विभिन्न शहरों में पलायन किए श्रमिक भूखे, प्यासे, पैदल वापस अपने घरों को लौट रहे थे, तब देश भर में फिर से मनरेगा को संकटमोचन के तौर पर रेखांकित किया गया। वित्तीय वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में कुल 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जो वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट प्रावधान से 13 प्रतिशत कम था। परंतु कोविड 19 के संकट से मनरेगा श्रमिकों को राहत पहुंचाने के लिए पुन: 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। 

बता दें कि झारखंड में पिछले सात महीने में 10.64 लाख नए परिवारों ने पंजीयन कराया है। यह अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है। अब राज्य में कुल पंजीकृत परिवारों की संख्या 62.80 लाख हैं, जिसमें 103.72 लाख मजदूर शामिल हैं। सरकारी दावों के अनुसार इस वर्ष के लक्षित कुल 10 लाख मानव दिवस के विरुद्ध 31 जनवरी तक 965.80 लाख मानव दिवस सृजित किए जा चुके हैं। 15 दिनों के अंदर मजदूरी भुगतान शत-प्रतिशत कर दिया गया है। औसतन 42 दिन मजदूरों को काम मिले एवं 100 दिन काम पूरा करने वाले श्रमिकों की संख्या राज्य भर में सिर्फ 49658 है।

इस बाबत झारखंड नरेगा वाच के संयोजक जेम्स हेरेंज बताते हैं कि राज्य में मनरेगा कानून की धारा 16 (1), जिसमें योजनाओं का चयन ग्राम सभाओं के द्वारा ही किए जाने का प्रावधान है, इसका अनुपालन नहीं किया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। राज्य में इस वित्तीय वर्ष में चार महत्वाकांक्षी योजनाएं, जिनमें ‘नीलांबर-पितांबर जल समृद्धि योजना,’ ‘बिरसा हरित ग्राम योजना,’ ‘वीर शहीद पोटो हो खेल योजना’ एवं ‘दीदी बाड़ी योजना’ सहित कुल 11.80 लाख योजनाएं क्रियान्वित की गई हैं। ये सारी योजनाओं को ग्राम सभा को दरकिनार करके लिया गया है।

इसके लिए सरकार कोविड 19 को कारण बताती रही है। सिर्फ यही नहीं ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशक ने सभी राज्य सरकारों को वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए श्रम बजट तैयार करने के लिए निर्देशित किया है, जिसे 2 अक्तूबर से प्रत्येक ग्राम सभाओं से प्रारंभ होकर 31 मार्च 2021 तक संपन्न किया जाना है। परंतु झारखंड सरकार ने इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। ग्राम सभा जैसी संवैधानिक संस्थाओं की अनदेखी बेहद गंभीर मामला है।

हेमंत सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण होने पर 29 दिसंबर को राज्य सरकार ने अपने मद से मनरेगा मजदूरी दर में बढ़ोत्तरी करते हुए 225 रुपये करने की घोषणा की है। यह स्वागत योग्य कदम है, लेकिन यह जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है कि उसे राज्य की न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी दर का निर्धारण न करे। अभी मनरेगा की दैनिक मजदूरी 194 रुपये है, जबकि राज्य की न्यूनतम मजदूरी 300.36 रुपये है।

राज्य में मनरेगा श्रमिकों को काम मांग के बावजूद उनको ससमय काम आवंटित नहीं करना एक बड़ी समस्य बनी हुई है। इस वित्तीय वर्ष में 2955321 जॉब कार्डधारकों ने अलग–अलग समय में काम की मांग की थी, लेकिन उनमें से मात्र 2265436 जॉब कार्डधारकों को ही सरकार काम उपलब्ध करा पाई है। हेमंत सरकार द्वारा बेरोजगारी भत्ता की घोषणा के बाद करीब 65000 लोगों ने सितंबर 2020 में ही बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किया है, लेकिन क़ानूनी प्रावधान के बावजूद सरकार मजदूरों को बेरोजगारी भत्ते का भुगतान नहीं कर रही है। राज्य भर में पंचायत एवं प्रखंड स्तर पर मनरेगाकर्मियों के करीब 33% पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं, लेकिन इस पर राज्य सरकार ध्यान नहीं दे रही है।

इस पर जेम्स हेरेंज कहते हैं कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में वित्तीय विचलन, वित्तीय अनियमितता, मनरेगा में विभिन्न तरह की शिकायतें और प्रक्रियाओं के उल्लंघन से संबंधित हजारों शिकायतें सरकारी अधिकारियों को सौंपी गई हैं, जो दीर्घकालीन समय से लंबित हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मनरेगा दिवस में सरकार मजदूर हित में समुचित फैसले लेगी।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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