Saturday, April 1, 2023

झारखंड: आदिवासी विधवा के पीएम आवास को ही करा दिया बुलडोज़

विशद कुमार
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झारखंड में अफसरशाही के सिर नशा चढ़ कर बोल रहा है। संवेदना की कहीं कोई जगह नहीं बची है। कई दशकों से बसे गरीब मज़दूर, आदिवासी और दलितों की झोंपड़ियों को अतिक्रमण के नाम पर पल भर में उजाड़ दिया जाता है तो कहीं सरकारी योजना से बने आवास को जमींदोज कर दिया जाता है।

पिछले 28 दिसम्बर 2022 को रांची के रेलवे-स्टेशन के ओवरब्रिज के नीचे बसी बस्ती (लोहरा कोचा) को रेलवे विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर जमींदोज कर दिया गया, जिसके बाद वहां  लगभग 40 सालों से रह रहे परिवार बेघर हो गए। इस तबाही के बाद भी अधिकांश परिवार वहीं या सड़क के किनारे खुले आसमान के नीचे ठण्ड में रहने को मजबूर हैं।

पिछले 13 फरवरी को गुमला जिले के बसिया में सीओ (अंचलाधिकारी) रविंद्र पांडेय द्वारा आदिवासी विधवा महिला सीमा तिर्की के पीएम (प्रधानमंत्री) आवास को बुलडोज़ करा दिया गया। इस बाबत सीओ ने तर्क दिया है कि पीएम आवास सरकारी जमीन पर बना है।

इस बारे में पीड़िता का कहना है कि वह विधवा महिला है और अपनी रैयती जमीन पर पीएम आवास बना रही थी, लेकिन इस क्रम में घर का कुछ हिस्सा सरकारी जमीन पर चला गया। आवास बनने से पहले विभाग को चाहिए था कि मेरी जमीन चिन्हित करता, सो नहीं किया गया।

इस संबंध में उसने एसडीओ और बीडीओ को लिखित आवेदन देकर शिकायत की है। उसने बताया कि वह अपनी जमीन पर आवास बना रही थी। उसे मालूम नहीं था कि वह सरकारी जमीन है। वह भूमिहीन खेतीहर श्रेणी से आती है।

आवास बनाने के लिये उसे एक लाख 25 हजार रुपये और मजदूरी भुगतान के लिए 21 हजार 150 रुपये मिले हैं। उसने मंडल और भारत फाइनांस कंपनी से एक लाख रुपये लोन लिया है। कन्यादान योजना से 30 हजार रुपये मिले थे। उन सभी पैसे को उसने घर बनाने में लगा दिया था, लेकिन सीओ ने घर को नेस्तानाबूद कर दिया।

JHARKHAND 1 1

शिकायत के बाद हरकत में आया प्रशासन

विधवा आदिवासी महिला ने कहा कि उसका घर बना दिया जाए, नहीं तो वह अपने बच्चों के साथ प्रखंड मुख्यालय के पास आत्मदाह कर लेगी। 15 दिनों के अंदर न्याय नहीं मिला, तो पूरी घटना का जिम्मेदार प्रखंड प्रशासन होगा।

महिला के आवेदन के बाद प्रशासन हरकत में आ गया है और मामले की जांच शुरू कर दी गयी है, जबकि महिला का कहना है कि घर नहीं बना तो मैं बेघर होकर कैसे जिंदा रहूंगी। इससे अच्छा है कि मैं मर जाऊं। सीमा तिर्की के अनुसार उसने एसडीओ से भी गुहार लगायी थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

सरकारी नियम के अनुसार किसी ऐसे व्यक्ति, जिसे पीएम आवास मिला हो और किसी कारणवश उसे तोड़ना पड़े, तो इसके एवज में तीन डिसमिल जमीन दिये जाने के बाद ही घर तोड़ना है, लेकिन प्रशासन ने ऐसा कोई काम नहीं किया। जिसके चलते वह सवाल के घेरे में है।

बसिया प्रखंड में आदिवासी महिला का पीएम आवास प्रशासन द्वारा तोड़े जाने के बावत सांसद सुदर्शन भगत ने कहा है कि जिला प्रशासन संवेदनहीन हो चुका है। जहां एक ओर सरकार आदिवासी की हितैषी बनती है। वहीं दूसरी ओर एक आदिवासी विधवा महिला के घर को प्रशासन ने जेसीबी लगाकर तोड़ दिया।

सांसद सुदर्शन ने कहा कि इस पूरे प्रकरण में प्रशासन का अमानवीय चेहरा झलकता है। घर सरकारी जमीन में कैसे बना। इसकी जांच पहले कैसे नहीं हुई और नहीं हुई तो इतने दिन तक प्रशासन कहां था। ये बड़ा सवाल है। इस मामले में पीड़िता को उचित न्याय मिले। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पूरे मामले की जांच कर जिम्मेदार और दोषी पदाधिकारी पर कड़ी कार्रवाई करे। गृहिणी सीमा तिर्की ने बताया कि उनके पति स्व मुकेश तिर्की की मौत तीन माह पहले ही हुई है। वे बीमारी से जूझ रहे थे।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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