राष्ट्रवादी मोड से बाहर निकल रहा है सुप्रीम कोर्ट!

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ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उच्चतम न्यायालय राष्ट्रवादी मोड से बाहर निकलकर क़ानूनी प्रावधानों के अनुरूप फैसले देने लगा है। मामला भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार का हो और केंद्र ने पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान में उत्पादित या निर्यात होने वाले सभी सामानों पर लगने वाले शुल्क पर 200 फीसदी तक का इजाफा कर दिया हो और उच्चतम न्यायालय का फैसला केंद्र सरकार के खिलाफ आया हो तो यह पिछले छह साल में रेयर ऑफ़ द रेयरेस्ट मामलों की श्रेणी में है। इससे पहले, हाल ही में कुछ मामलों में केंद्र सरकार के निर्णयों की राष्ट्रहित में पुष्टि करने के कारण उच्चतम न्यायालय को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है और विधिक एवं न्यायिक क्षेत्रों से भी आवाज उठने लगी है कि निर्णय कानून के अनुरूप होने चाहिए पोलटिकल सिस्टम के अनुरूप नहीं।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के खिलाफ एक निर्णायक फैसला सुनाया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मोड में गजट प्रकाशित होने का सही समय सूचनाओं की प्रवर्तनीयता निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह कहते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

दरअसल पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को हुए आतंकी हमले के बाद, भारत सरकार ने सीमा शुल्क अधिनियम, 1975 की धारा 8A (1) के तहत शक्तियों के प्रयोग में 16 फरवरी 2019 को एक अधिसूचना प्रकाशित की। अधिसूचना में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान से उत्पन्न या निर्यात की गई सभी वस्तुओं की टैरिफ प्रविष्टि पेश की गई थी और 200 फीसदी की सीमा शुल्क में वृद्धि के अधीन किया गया। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को हुए आतंकी हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा कदम उठाया गया, ताकि भारत के कथित विरोधियों को जवाब दिया जा सके।

गौरतलब है कि 16 फरवरी 2019 को सीमा शुल्क अधिनियम 1975 की धारा 8ए के तहत अधिसूचना प्रकाशित हुई थी। इस अधिसूचना में पाकिस्तान में उत्पादित या निर्यात होने वाले सभी सामानों पर लगने वाले शुल्क पर 200 फीसदी तक का इजाफा कर दिया गया। वह भी इस तथ्य को नजरअंदाज किए बिना कि पाकिस्तान के कुछ उत्पादों को सीमा शुल्क से छूट दी गई है। इस अधिसूचना को ई-गजट पर अपलोड करने का सही समय 20:46:58 बजे था।

इस अधिसूचना के जारी होने से पहले भारत और पाकिस्तान (दोनों सार्क देश) ने इस बात पर सहमति जताई थी कि पाकिस्तान से आयात होने वाले सामानों पर रियायती दरों पर शुल्क लगाया जाएगा, उन मामलों में जहां आयात किसी भी शुल्क के योग्य नहीं है। अटारी बॉर्डर पर भूमि सीमा शुल्क स्टेशन के सीमा शुल्क अधिकारियों ने आयातकों से बढ़ी हुई दर से शुल्क की मांग की, जबकि ये आयातक ई-गजट पर अधिसूचना अपलोड होने से पहले ही घरेलू उपभोग के लिए एंट्री बिल पेश कर चुके थे।

सीमा शुल्क अधिकारियों ने पहले से ही मूल्यांकित किए गए सामान को रिलीज करने से मना कर दिया और 200 फीसदी की संशोधित सीमा शुल्क और 28 फीसदी की आईजीएसटी दर से सामान का दोबारा मूल्यांकन किया और इस तरह एक मामले में शुल्क बढ़कर 73,342 से बढ़कर 8,10,952 हो गया। इसके बाद मामले को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। आयात की खेप में सूखे मेवे से लेकर सीमेंट तक कई सामान थे। पिछले साल 26 अगस्त को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की पीठ ने रिट याचिकाओं को मंजूरी दी।

पाकिस्तान से सामान आयात करने वाले आयातकों ने एंट्री बिल अदालत के समक्ष पेश किए और सीमा शुल्क को 200 फीसदी तक बढ़ाए जाने की अधिसूचना जारी और अपलोड होने से पहले स्व-मूल्यांकन की सभी प्रक्रिया पूरी कर ली थी। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि शुल्क की दर निर्धारित करने की तारीख एंट्री बिल पेश करने की तारीख ही थी। केंद्र सरकार ने कहा था कि सीमा शुल्क संशोधित करने की दर 16 फरवरी 2019 थी और आयातक संशोधित दर के आधार पर शुल्क का भुगतान करने लिए उत्तरदायी थे।

हाईकोर्ट ने पाया कि मई 2019 को अधिसूचना जारी होने से पहले ही 16 फरवरी 2019 को एंट्री बिल पेश किए गए थे। मई 2019 को अधिसूचना प्रकाशित होने से पहले ही एंट्री बिल और वाहन की एंट्री की जा चुकी थी।

मई 2019 को अधिसूचना कामकाजी घंटों के बाद जारी की गई, जो 2016 में यूनियन ऑफ इंडिया बनाम परम इंडस्ट्रीज लिमिटेड को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार अगले दिन से लागू होगी। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण हाईकोर्ट ने कहा कि सीमा शुल्क अधिनियम 1975 की धारा 8ए पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं हो सकती। हाईकोर्ट ने भारत सरकार को पाकिस्तान में उत्पादित होने वाले सामानों पर बढ़े हुए सीमा शुल्क की अधिसूचना लागू होने करने के बिना ही पहले से ही घोषित और मूल्यांकित शुल्क के भुगतान पर ही सात दिनों के भीतर सामान को छोड़ने का आदेश दिया।

उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील में, केंद्र ने तर्क दिया कि ई-राजपत्र में अधिसूचना अपलोड या प्रकाशित किए जाने के समय की परवाह किए बिना, घरेलू उपभोग के लिए क्लियर किए गए आयातित सामानों पर शुल्क की दर, एक कानूनी परिकल्पना द्वारा प्रविष्टि के बिल की प्रस्तुति की तिथि पर प्रचलित दर के आधार पर होगी। इस विवाद का जवाब देते हुए, आयातकों ने तर्क दिया कि आयातकों ने 16 फरवरी 2019 को दर्ज किए गए माल की दोनों आवश्यकताओं को पूरा किया और 20:46 बजे जारी अधिसूचना मई 2019 से पहले प्रविष्टि का बिल दर्ज किया गया।

केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की। उच्चतम न्यायालय में तीन जजों की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया। इस दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा ने संयुक्त फैसला दिया, जबकि जस्टिस केएम जोसेफ ने अलग सहमति जताते हुए फैसला दिया।

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहा कि ई-गजट अधिसूचना पिछले दिन की समाप्ति की तारीख से प्रभावी होगा। केंद्र सरकार ने कहा कि हालांकि इसे 16 फरवरी 2019 की शाम को जारी किया गया था, जबकि पिछला दिन 15 फरवरी 2019 आधी रात को समाप्त हो गया। अधिसूचना को 15 फरवरी 2019 की आधी रात के पहले से ही लागू माना जाना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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