उर्दू
संस्कृति-समाज
फ़ैज़ की जयंतीः ‘अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं’
उर्दू अदब में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का मुकाम एक अजीमतर शायर के तौर पर है। वे न सिर्फ उर्दू भाषियों के पसंदीदा शायर हैं, बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उन्हें उतनी ही शिद्दत से मोहब्बत करते हैं।...
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उर्दू के क्लासिक अदब को जिंदा कर गए शम्सुर्रहमान फारूकी
Janchowk -
यह सन् 1998 की बात है। तब मैं प्रकाशन विभाग से निकलने वाली उर्दू मैगजीन आज कल में सब एडिटर था और मेरे संपादक थे शम्सुर्रहमान फारूकी के भाई महबूब रहमान फारूकी साहब। तब शम्सुर्रहमान साहब का एक मजमून...
संस्कृति-समाज
हंसाते हुए संजीदा कर देने वाले शायर अकबर इलाहाबादी
दबंग फिल्म में सलमान खान का dialogue आपने सुना होगा ‘मैं दिल में आता हूं समझ में नहीं’। गुलाम अली की वो गज़ल भी कभी न कभी आपके कानों से होकर गुज़री होगी, ‘हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी...
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राहत की स्मृति: ‘वो गर्दन नापता है नाप ले, मगर जालिम से डर जाने का नहीं’
अब ना मैं हूं ना बाक़ी हैं ज़माने मेरेफिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरेकुछ ऐसे ही हालात हैं, शायर राहत इंदौरी के इस जहान-ए-फानी से जाने के बाद। उनको चाहने वाला हर शख्स, इस महबूब शायर को...
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ग्राउंड रिपोर्ट: किसानों की जरूरत और पराली संकट का समाधान
मुजफ्फरपुर। “हम लोग बहुत मजबूर हैं, समयानुसार खेतों की जुताई-बुआई करनी पड़ती है। खेतों में सिंचाई तो स्वयं कर...
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