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बीच बहस

मुश्किल तो अपने समय के सैकड़ों भगत सिंह के साथ खड़ा होना है- संदर्भ भगत सिंह शहादत दिवस

पहली बात कि भगत सिंह का मानना था कि ब्रिटिश साम्राज्य भारत के बहुसंख्यक लोगों के हितों के खिलाफ है। ध्यान रहे बहुसंख्यक न कि [more…]

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बीच बहस

हर क्रांति के पीछे एक मैक्सिमिलियन रोबसपिएर होता है

फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक थी, जिसने शासन की संरचना को बदल दिया और आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव [more…]

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बीच बहस

शहीद जगदेव बाबू: वर्ण-जातिवादी समाज में सच्ची वर्गीय-मार्क्सवादी दृष्टि सम्पन्न चिंतक-विचारक और शहीद 

मेहनतकश बहुजन समाज में 2 फरवरी, 1922 को जन्मे जगदेव प्रसाद जितने बड़े क्रांतिकारी नेता और संगठनकर्ता थे, उतने ही बड़े चिंतक-विचारक भी थे। वे [more…]

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राजनीति

हैदराबाद: सजल नेत्रों, गम एवं गुस्से तथा नये संकल्पों के साथ हुई साई बाबा की अंतिम विदाई

जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है  ये जान तो आनी जानी है इस जां की तो कोई बात नहीं [more…]

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बीच बहस

दोराहे पर खेती: क्या जैविक खेती रासायनिक खरपतवारनाशकों की खपत बढ़ाने का बहाना है?

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एनडीए की सरकार किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य व कर्ज मुक्ति की मांगों के विरुद्ध तो है ही, उसने अपने तीसरे कार्यकाल में खेती में [more…]

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राजनीति

शहीद भगत सिंह का लेख: करतार सिंह सराभा की रग-रग में समाया था क्रांति का जज्बा

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(शहीद करतार सिंह सराभा वो बहादुर क्रांतिकारी थे, जिनसे शहीद-ए-आज़म भगत सिंह भी हद दर्जे तक मुतास्सिर थे। वे हर दम उनकी तस्वीर अपने पास [more…]

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संस्कृति-समाज

जन्मदिवस पर विशेष: इंक़लाब, तब्दीली और उम्मीद के शायर मजाज़

दीगर शायरों की तरह मजाज़ की शायराना ज़िंदगी की इब्तिदा, ग़ज़लगोई से हुई। शुरुआत भी लाजवाब हुई, तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूं न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए [more…]

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राजनीति

जयंती पर विशेष: पूंजीवाद के जयघोष के दौर में कार्ल मार्क्स की याद         

पूंजीवाद की जय और साम्यवाद की पराजय के उद्घोष के इस दौर में वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार कार्ल मार्क्स {1818 [more…]

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बीच बहस

चीन की ‘सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति’: ‘क्रांति भीतर क्रांति’

मई 1966 को शुरू हुई चीन की ‘महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति’ को 57 वर्ष पूरे हो रहे हैं। लेकिन अभी भी इतिहास के पन्नों में [more…]

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संस्कृति-समाज

 ‘हिमालय दलित है’ कविता के परंपरागत प्रतिमानों को ध्वस्त करता संग्रह

‘हिमालय दलित है’ मोहन मुक्त का पहला कविता संग्रह है। संग्रह की कविताएं धधकते लावे की तरह हैं। यहां तक कि कवि की प्रेम कविताओं [more…]