झारखंड के कोल्हान वन क्षेत्रों में पिछले 1 दिसम्बर 2022 से नक्सल अभियान के नाम पर युद्ध सा माहौल बना हुआ है। गोइलकेरा थानान्तर्गत तिलयबेड़ा और लोवाबेड़ा गांव के पास लोवाबेड़ा पहाड़ में माओवादियों और कोबरा पुलिस के बीच जब से मुठेभेड़ शुरू हुई है तब से क्षेत्र में युद्ध का सा माहौल बन गया है। लंबे समय से चल रहे इस अभियान में अब तक पांच निर्दोष ग्रामीणों की मौत हो चुकी और 18 से ज्यादा जवानों के घायल होने सूचना है।
मालूम हो कि कोल्हान जंगल में पिछले पांच महीने से नक्सल विरोधी ऑपरेशन चल रहा है। उसी इलाके के लोग ऑपरेशन में बम गोला बरसाने का आरोप पुलिस फोर्स पर लगा रहे हैं। पुलिस का मानना है कि इस इलाके में माओवादियों के बड़े नेता हैं। टोंटों प्रखंड के तुबांहाका इलाके को पुलिस द्वारा घेर कर रखने की बातें आती रही हैं। पुलिस की मानें तो चार महीने में कई बार मुठभेड़ हुई, जिसमें 18 जवान घायल हो चुके हैं।
कोल्हान इलाके में ग्रामीण नक्सल अभियान का विरोध कर रहे हैं। भारी संख्या में ग्रामीणों ने पारंपरिक हथियार के साथ विरोध प्रदर्शन किया। कोल्हान के जंगल में बिछाए गये आईईडी बम की चपेट में आने से कई ग्रामीणों को मौत हो रही है। खतरा कम होने के बजाय बढ़ रहा है। यही वजह है कि ग्रामीण नक्सल विरोधी ऑपरेशन का विरोध कर रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 16 अप्रैल 2023 को झारखंड के कोल्हान जंगल के आराहासा पंचायत के बोरोई गांव में हजारों की तादाद में पारंपरिक हथियारों से लैस ग्रामीणों का जुटान हुआ। इस दौरान ग्रामीणों ने ‘जल-जंगल और जमीन अधिकार रक्षा मंच’ और ‘कोल्हान रक्षा संघ’ के बैनर तले पुलिस प्रशासन के विरोध में ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए।

पहले बोरोई गांव के मैदान में ग्रामीण इकट्ठे हुए और पारंपरिक हथियार कुल्हाड़ी, तीर-धनुष से लैस होकर नगाड़े और मांदल की थाप पर गीत गाए और जमकर नारे लगाए। इसके बाद एक रैली के रूप में ग्रामीणों का काफ़िला बोरोई से बाईसाई, आराहासा पुलिस कैंप की ओर गया। इस अवसर पर ग्रामीणों का कहना था कि कोल्हान जंगल में कई महीनों से नक्सल अभियान चल रहा है। इस दौरान स्थापित पुलिस कैंप में तैनात फोर्स गांवों में मोर्टार के द्वारा बम और गोले दाग रही है।
इस रैली और विरोध प्रदर्शन में भारी संख्या में महिलाओं की भागीदारी देखी गई। तेज धूप के बावजूद भारी संख्या में ग्रामीण मौके पर मौजूद रहकर कार्यक्रमों में भाग लिया।
पुलिस सूत्र के मुताबिक प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के एक करोड़ के इनामी शीर्ष नक्सली नेता मिसिर बेसरा सहित कई नेताओं के होने की सूचना है, इसी सूचना के आधार पर सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। पुलिस के अनुसार माओवादियों ने इस इलाके को ‘युद्ध क्षेत्र’ घोषित कर रखा है।
ग्रामीण बताते हैं 40 किमी के दायरे में छह पुलिस कैंप स्थापित हैं। ‘बुबी ट्रैप’ से पांच से ज्यादा निर्दोष ग्रामीण मारे जा चुके हैं। पशु भी मारे जा रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस इलाके में रोजाना सेना का हेलिकॉप्टर मंडराता रहता है।
इस अभियान में हो रही गोलाबारी से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जंगल में वास करने वाले आदिवासी भी शिकार हो रहे हैं। कोल्हान जंगल के अन्दर 100 से अधिक राजस्व और वन ग्राम हैं। ग्रामवासी बताते हैं कि जिस तरफ के जंगल में गोलाबारी होती है उधर के गांव और घर के लोगों को दिन-रात घर में दुबके हुए रहना पड़ता है। गांव और घर के अगल-बगल गोले गिरते रहते हैं। कान का पर्दा फाड़ने वाली गोलों की आवाज से कान सुन्न हो जाते हैं, शरीर सिहर उठता है, ऐसा लगता है कि गोला अपने ही घर की छत पर गिर गया है।

जिस रोज गोला बरसता है उस रोज गांव के लोग कुछ भी काम नहीं कर पाते, चुपचाप कान में ऊंगली डालकर बैठे रहते हैं और कब गोला गिरना बन्द होगा, उसके इंतजार में रहते हैं। इसलिए कि गोला गिरना बन्द होने से थोड़ी राहत मिलेगी और चैन की सांस ले सकेंगे। लोग गांव घर से बाहर निकल नहीं पाते, गोलाबारी के रोज खेत-खलिहानों में काम नहीं कर पाते और लकड़ी पत्ता और दातून तोड़ने जंगल नहीं जा पाते हैं। गरीब आदिवासी जो जंगल का लकड़ी पत्ता व दातून बेचकर ही अपना पेट पालते हैं उन पर तो मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है।
दुखद यह है कि पुलिस और माओवादियों के बीच हो रहे इस संघर्ष में आदिवासी जनता हलकान हो रही है। इस बावत फरवरी में ही ‘जल-जंगल-जमीन अधिकार रक्षा मंच’, कोल्हान (पश्चिमी सिंहभूम) और गांव-ग्रामसभा मण्डल, पश्चिमी सिंहभूम (झारखण्ड) ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, नेशनल हयूमन राईट कमिशन दिल्ली, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राज्यपाल रमेश बैस, राज्य मानवाधिकार आयोग रांची सहित झारखण्ड जनाधिकार महासभा, टीआरटीसी, जोहार संस्था, आदिवासी हो महासभा के अध्यक्ष व सचिव को पत्र लिखा है।
पत्र में इन संगठनों ने कहा है कि पुलिस द्वारा दिन-रात किये जा रहे गोलाबारी का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जंगल में वास करने वाले आदिवासी शिकार हो रहे हैं। मंच ने लिखा है कि कोल्हान जंगल के अन्दर 100 से अधिक राजस्व और वन ग्राम हैं।
यह लड़ाई 11 जनवरी 2023 को दोपहर करीब 1 बजे के आसपास ग्राम पयतारोव और तुम्बाहाका (पंचायत रेंगड़ाहातु, टोंटो थाना) के बीच शुरू हुई। उसी रोज से गांव तथा जंगलों-पहाड़ों में रात-दिन अर्द्ध सैनिक व राज्य पुलिस मोर्टार और रोकेट लांचरों से रोज सैकड़ों गोले और अत्याधुनिक हथियारों से हजारों गोलियां बरसा रही है।
यह गोले और गोलियां केवल जंगलों, पहाड़ों में ही नहीं बरसाये जा रहे हैं, बल्कि गांव के खेतों, खलिहानों, बागानों, मचानों (पुआल रखने वाली जगह), आंगनों में गिराये जा रहे हैं। जिसमें कई मासूम बच्चे, महिलाएं व पुरूष बाल-बाल बचे हैं। ‘तुम्बाहाका गांव’ का एक बच्चा गोले के छर्रों से मामूली रूप से घायल भी हुआ है। एक गोला पाटयतारोव गांव के मचान पर गिरा, लेकिन मचान में पुआल था इसलिए गोला नहीं फटा, जिसके चलते उस समय वहां खेल रहे एक मासूम बच्चे की जान बच गई।

गांव के लोग डर से रात भर नहीं सो पा रहे हैं। खेत-खलिहानों में काम नहीं कर पा रहे हैं। जंगल में मवेशी नहीं चरा पा रहे हैं। लकड़ी, पत्ता-दातून के लिए जंगल नहीं जा पा रहे हैं।
इस तरह तमाम आदिवासी हितैषी कानून का घोर उल्लंघन या अवहेलना कर तथा ग्रामसभा से स्वीकृति लिये बगैर पूरे कोल्हान में एक के बाद एक पुलिस कैम्प स्थापित किए जा रहे हैं जिसकी ‘जल-जंगल-जमीन अधिकार रक्षा मंच कोल्हान’, झारखण्ड (वनग्राम) सचिव, अध्यक्ष, ग्राम प्रधान मुण्डा, डाकुवा सहित पूरे आदिवासी-मूलवासी समुदाय ने तीव्र निन्दा व भर्त्सना की है। साथ ही इस पुलिस कैम्प को वापस लेने और पुलिसिया दमन अभियान को अविलम्ब बन्द करने की केन्द्र व राज्य सरकार से मांग की है।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)
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