जैसे कोई खिलाड़ी किसी बड़े मुकाबले को जीतकर आने के बाद अपनी ट्रॉफी दिखाते हुए खुशी और संतुष्टि के साथ मीडिया को अपनी उपलब्धि गिनाता है, उससे भी कहीं ज्यादा आत्मविश्वास के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस के बड़े नेता बाबा सिद्दीकी के हत्यारे योगेश ने पूरी तसल्ली के साथ जो इन्टरव्यू दिया है। वह देश भर के बड़े छोटे, सोशल और एंटी सोशल मीडिया पर अब तक करोड़ों बार देखा जा चुका है।
पांव में गोली लगी होने के बाद भी जिस धैर्य और वाकपटुता के साथ यह गरीब परिवार के बेरोजगार से भाड़े का हत्यारा बना युवा बोल रहा है, अपने गैंग, उसकी ताकत, देश दुनिया में मौजूदगी, आने वाले समय में की जाने वाली हत्याओं, योजना बनाने और उन्हें लागू करने के तरीकों के बारे में बता रहा है, जिसे मारा है, उन बाबा सिद्दीकी के बारे में सिद्धांत झाड़ रहा है, वह सचमुच की चौंकाने वाली बात है।
मगर उससे कहीं अधिक स्तब्ध करने वाली बात यह है कि यह प्रेस कांफ्रेंस वह पुलिस हिरासत में कर रहा है। उसके साथ खड़ी पुलिस उसे न रोक रही है, न टोक रही है, बल्कि कुछ हिस्से तो ऐसे भी हैं, जिसमें साफ़ दिखता है कि उसके पीछे खड़े पुलिस वाले इस अपराधी की कुर्सी की पोजीशन एडजस्ट कर रहे हैं, ताकि वह कैमरे की फ्रेम में ठीक तरीके से समा सके!!
यह मोदी की इंडिया के न्यू नार्मल का अगला चरण है। अभी तक बात हत्या और बलात्कार की सजाएं काट रहे कथित बाबाओं और साधुओं को पैरोल और विशेष सत्कार दिए जाने तक थी, अब आगे बढ़कर हत्यारों की प्रेस कांफ्रेंस और जनता के नाम सन्देश जारी करने की सुविधा प्रदान करने तक आ गई है।
यह अपराधी परायणता वह सरकार दिखा रही है जिसने बिना किसी जुर्म के साबित हुए जेल में रखे गए, हाथों की कंपकंपी की बीमारी से खाना खाने में असमर्थ अंडरट्रायल बुजुर्ग स्टेन स्वामी को पानी पीने के लिए स्ट्रॉ पाइप और खाने में मदद करने वाला पाइप लगा सस्ता सा कटोरा देने से मना कर दिया था।
पांवों की विकलांगता के शिकार प्रो जी एन साईंबाबा को व्हील चेयर और बाकी जरूरी चीजें देने से साफ इनकार कर दिया था। इन यातनाओं की वजह से बाद में इन दोनों की ही मौत भी हो गयी। यह वही पुलिस है जिसके हम-जिंसों ने बहराइच में हुए झंडा काण्ड में संबंधित घर के दो बच्चों को गोलियों से भून दिया था।
यह वही महाराष्ट्र की पुलिस थी जिसने बदलापुर के मासूमों से बलात्कार के आरोपी को हिरासत में मार गिराया था कि उस स्कूल के संघी भाजपाइयों को बचाया जा सके। वही पुलिस इस हत्या करना कबूल करने वाले से पत्रकार वार्ता ऐसे करवा रही थी, जैसे वह राष्ट्र के नाम संबोधन दे रहा हो।
यह अपवाद नहीं है, यह मोदी राज का न्यू नार्मल है, यह सावरकर के हिंदुत्व के लक्ष्य “राष्ट्र का हिन्दूकरण, हिन्दुओं का सैनिकीकरण” को आगे बढ़ाते हुए उसका लारेंसीकरण तक का विस्तार है। देश के तमाम राष्ट्रीय प्रतीक हड़पने बाद अब एक हुक्मरानों को राष्ट्रीय गैंगस्टर की तलाश है और उसे लारेंस बिश्नोई नाम के माफिया सरगना में पूरी होती दिखने की चाह है।
एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद यह पूरा कुनबा जिस भक्तिभाव के साथ इस हत्या की जिम्मेदारी लेने वाले लारेंस बिश्नोई की आरती और आराधना में जुटा हुआ है, जिस तरह से उसका महिमा मंडन कर रहा है, काले हिरणों के प्रति उसके कथित भावनात्मक रिश्ते का बखान करते हुए उसके एजेंडे को हिंदुत्व की सेवा करने वाला बताने में लगा है, उससे साफ़ है कि ‘हम और वे’ का आधार अब ‘उनके दाऊद और हमारे दाऊद’ तक आ गया है।
पहले थोड़े छोटे स्तर पर इसे छोटा राजन में किया गया था, अब इसे और ज्यादा विराट पैमाने पर आजमाया जा रहा है। कठुआ से हाथरस, दाहोद होते हुए बदलापुर के बलात्कारियों और हत्यारों तक इस्तेमाल किया जा चुका यह फार्मूला अब देश में ही नहीं, दुनिया के दूसरे देशों में भी काम में लाकर भारत की भद्द उड़वाने तक जा पहुंचा है।
हालांकि खुद उनके कुनबे में ऐसे तड़ीपार पहले से ही थे मगर अब वे ही उन्हें कमजोर और अपर्याप्त लगने लगे हैं, इसलिए बर्बरता अपने नए आइकॉन, नए ब्रांड और नए नायक ढूंढ रही है। लगता है उनकी खोज फिलहाल लारेंस बिश्नोई के रूप में पूरी हो गयी है।
बॉलीवुड के लोकप्रिय सुपर स्टार सलमान खान को जान से मारने की धमकी पर सिर्फ कुनबे के उन लोगों ने ही बयान नहीं दिए जिन्हें फ्रिंज एलिमेंट्स कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है, भाजपा के पूर्व सांसद सहित कई भाजपा नेताओं द्वारा बजाय इस धमकी की निंदा करने, सलमान खान की सुरक्षा का आश्वासन देने के उन्हें बिश्नोइयों से माफी मांगने की ‘सलाह’ देना इसका एक उदाहरण है।
बाकी बहुत कुछ इस तथ्य से साफ़ हो जाता है कि देश और दुनिया में अपनी हत्यारी मुहिम की अगुआई करने वाला यह नया नायक गुजरात की साबरमती जेल में बंद है और वहीं बैठे-बैठे वे सारे काम अंजाम दे रहा है जो उसे बताये जा रहे हैं। ये काम बताने वाले कौन है इसका संकेत बाबा सिद्दीकी की ह्त्या के लिए एक करोड़ रुपयों की सुपारी से मिल जाता है।
बर्बरों और हत्यारों का महिमामंडन हर स्तर पर जारी रखना एक महापरियोजना का हिस्सा है। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के आरोपी श्रीकांत पंगारकर को महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों के लिए एक जिले का चुनाव प्रभारी बनाने की हिम्मत इसी परियोजना से आती है।
तीखी जन प्रतिक्रिया के बाद शिंदे की शिव सेना ने फिलहाल उसे हटा दिया है, मगर इरादे तो सामने आ ही गए। ऐसा ही इरादा सलमान खान पर निशाना साधकर देश में भय और सन्नाटा फैलाने का है। उन्हें पता है कि उच्चतम स्तर का टारगेट चुनकर डर और आतंक को भी अधिकतम संभव उच्च स्तर तक पहुंचाया जा सकता है।
देश की बाकी सेलिबिटीज को डराकर खामोश किया जा सकता है। फिल्म उद्योग को काबू में लाना इसका जरूरी अंग है। शाहरुख खान के बेटे को झूठे मामले में फंसाकर फिर उनकी पठान और जवान जैसी फिल्मों के खिलाफ जहर उगलकर ऐसी कोशिशें पहले भी की जा चुकी हैं। काम नहीं बना। अपने जैसों से अपनी फिल्में बनवाकर भी देख लीं, काम फिर भी नहीं बना।
उन्हें सन्नाटा, पूरी तरह सुई पटक सन्नाटा, चाहिए। सदी के महानायक बताये जाने वाले अमिताभ बच्चन की खामोशी हासिल की जा चुकी है, इस बार उन सलमान खान को निशाने पर लिया जा रहा है, जो वैसे भी कभी नहीं बोलते, खुद मोदी जी के साथ पतंग उड़ाने भी पहुंचते रहे हैं। इसके बाद भी टारगेट हैं, क्योंकि हिन्दू ब्राम्हणी मां का बेटा होने के बाद भी उनके नाम के पीछे खान जुड़ा हुआ है।
मौजूदा हुक्मरानों और उनकी वैचारिकता की मानसिकता हत्या करने में सुख हासिल करने, ट्रिगर हैप्पीनेस की मानसिकता है। अब यह देश की भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं को लांघते हुए दुनिया भर में भारत की थू-थू कराने तक जा पहुंची है।
पिछले सप्ताह अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छपी खबरें और कूटनीतिक मोर्चे पर घटी घटनाएं ऐसी हैं, जैसी इस देश में आज तक कभी नहीं हुईं, जो भारत की अब तक की विदेश नीति और दुनिया भर में इसकी साख और पहचान के हिसाब से अभूतपूर्व और अकल्पनीय हैं।
विदेश नीति की हाफ पेंट मार्का संकीर्ण और अधकचरी समझदारी ने सभी पड़ोसियों से पहले ही अलग-थलग करने की स्थिति ला रखी है। अब मवालियों की तरह के सोच ने अमरीका और उसके गिरोह को भी मौके मुहैय्या करा दिए हैं। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को एक अमरीकी अदालत ने तलब किया हुआ है।
देश की सर्वोच्च गुप्तचर एजेंसी के एक बड़े अधिकारी के खिलाफ अमरीकी खुफिया एजेंसी ने दुनिया भर में तलाशी का वारंट जारी कर दिया है। उस पर दूसरे देशों में हत्याएं करवाने के लिए शूटर्स भर्ती करने और पहले की ऐसी हत्याओं में शामिल होने के आरोप इतने गम्भीर हैं कि हड़बड़ी में मोदी सरकार को भी उससे पल्ला झाड़ने का एलान करना पड़ा है, कहना पड़ा है कि अब वह नौकरी में नहीं है, हालांकि उससे भी बात सम्भलती नहीं दिख रही है।
खबर है कि रॉ के इस अधिकारी ने खुद खालिस्तानी पृथकतावादी निज्जर की उस हत्या का वीडियो भी उस शूटर को दे दिया जिस हत्या में किसी भी तरह की भागीदारी से भारत अभी तक इनकार करता रहा था। अपने ही खिलाफ सबूत उस शूटर को थमा दिया गया जो खुद असल में अमरीकी एजेंट था।
नतीजे में जो कनाडा पहले ही भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में लगा था उसे और उसके जरिये अमरीका और उनके नाटो गिरोह को एक मौका दे दिया गया।
विदेश नीति एक गंभीर मसला होती है, हाल के दिनों में एक बार फिर जिस तरह 80 के दशक की तरह कनाडा और अमरीका मिलकर भारत को लेकर रुख अपनाए हुए है, कनाडा जिस तरह की ताकतों को पनाह दे रहा है वह और भी ज्यादा गंभीर मामला है। यह वह समय है जब देश की सारी राजनीतिक पार्टियों को विश्वास में लिया जाना चाहिए।
एक आम राय बनाई जानी चाहिए। मगर यह सब भाजपा के सोच और मोदी के स्वभाव में नहीं है। वे इजराइली हत्यारी एजेंसी मोसाद की तरह बर्ताब करना चाहते हैं मगर यह भूल रहे हैं कि इजराइल तभी तक पहलवान है, जब तक उसे बनाने और बनाए रखने वाला उसका खुदा अमरीका उस पर मेहरबान है।
अमरीका अंतत: साम्राज्यवादी अमरीका ही है। मोदी भले उनके आगे कितने भी नरम, विनम्र और चीन के खिलाफ उसकी चौकड़ी के कहार और हां हुजुरिये क्यों न बन जायें वह भारत के बारे में 70 के दशक के पेंटागन के दस्तावेज ‘प्रोजेक्ट ब्रह्मपुत्र’ में दर्ज समझ, भारत को कमजोर और विघटित करने के इरादे को नहीं बदलने वाला।
ऐसी किसी भी स्थिति का सामना, कनाडा जिस तरह की भारत विरोधी गोलबंदी का रहा है उस तरह की साजिशों का मुकाबला, कूटनीतिक कदमों और धीरज के साथ अपनाई जाने वाली नीति की दरकार रखता है। भारत अभी तक कमोबेश ऐसा करता रहा है, मगर विदेशी मामलों की इस बचकानी समझदारी और लारेंस बिश्नोई गैंग के बूते वैदेशिक मसले सुलझाने की सड़क छाप हरकतों ने उसकी प्रतिष्ठा, सम्मान और विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।
खालिस्तान एक हल किया जा चुका प्रश्न है, चुका और मरा हुआ मुद्दा है। इसे हुकूमतों ने नहीं खुद पंजाब और भारत की जनता ने हल किया है। डेढ़ सौ से अधिक कम्युनिस्टों ने अपनी जान की कुर्बानी देकर इस पृथकतावादी आन्दोलन के खिलाफ पंजाब को एकजुट किया था।
उन सहित देश की एकता और उसके धर्मनिरपेक्ष अस्तिव में विश्वास रखने वाले दलों, संगठनों, समूहों और व्यक्तियों ने मिलकर पूरे देश को पंजाब के अवाम के साथ खड़ा करके उनके बीच फैलाए गए भ्रम को दूर किया, उन पर बरपाए गए दो तरफा दमन और डर को खत्म किया।
उनका विश्वास जीता, आत्मविश्वास बहाल किया। लोग जब उस दुस्वप्न और दुस्समय को लगभग भूल ही चुके थे, तब करीब चालीस साल बाद इस देश में खालिस्तान का जिक्र करने वाला कोई और नहीं भाजपा, उसके मंत्री, सांसद और उसके कुनबे के लोग ही थे, जिन्होंने अपने कारपोरेट हिमायती कृषि कानूनों के खिलाफ शानदार संघर्ष करने वाले किसानों को खालिस्तानी बता कर उन्हें गालियां दी।
उसके बाद पंजाब विधानसभा चुनावों के समय ‘बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर आया हूं’ का भौंडा प्रहसन दिखाकर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इसे तूल दिया।
अब जो देश से तकरीबन गायब हो चुका है उस मुद्दे में प्राण फूंककर, भारत विरोधी तत्वों को उसे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर लाने का मौक़ा देकर जो बचपना किया जा रहा है, उसे तत्काल विराम दिया जाना चाहिए और सभी दलों और देश की जनता को भरोसे में लेकर एकजुट किया जाना चाहिए ।
मगर जिनका एकमात्र मकसद विभाजन और ध्रुवीकरण करके सिर्फ और केवल चुनाव जीतना हो वे इतनी आसानी से समझने वाले नहीं है। लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में मुंह की खाने के बाद, चौतरफा असफलताओं और भ्रष्टाचार की गहरी घाटियों की तलहटी में जा पहुंची भाजपा की युति हिन्दू मुसलमान का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की युक्ति से वोट बटोरना चाहती है।
बाबा सिद्दीकी की ह्त्या और सलमान खान पर निशाना इसी ध्रुवीकरण का जरिया है। उन्हें मालूम है कि मोदी ब्रांड घिस-पिट चुका है, इसलिए वह एक के बाद एक नए-नए आइकॉन और आराध्य चुन रही है।
हरियाणा के चुनावों में सजायाफ्ता गुरमीत राम-रहीम को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने के सफल प्रयोग के बाद अब महाराष्ट्र में वह लारेंस बिश्नोई को अपनी कमान सौंप कर असंभव को संभव बनाने का मंसूबा बना रही है। हत्यारे योगेश की प्रेस कांफ्रेंस ही उसका चुनाव घोषणापत्र है, इसीलिए उसे बार बार दिखाया गया, चुनाव तक हर बार दिखाया जायेगा।
ये लारेंस किस ऊंचाई का संत महात्मा है यह उसकी अपराध कुण्डली बता देती है। जून 2022 में सामने आए क्रिमिनल डोजियर के मुताबिक, 12 साल में लॉरेंस बिश्नोई के खिलाफ 36 क्रिमिनल केस दर्ज किए जा चुके थे। ये केस पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में दर्ज थे।
लॉरेंस बिश्नोई जैसे-जैसे जेलें बदलता रहा उसकी गैंग का आकार बढ़ता चला गया। आज ऐसा कहा जाता है कि लॉरेंस बिश्नोई की गैंग में करीब 700 से ज्यादा शूटर हैं और 80 से ज्यादा गैंगस्टर हैं, जो पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।
जिसे हिन्दू नायक साबित करने पूरा संघी कुनबा और उसकी आई टी सेल जुटी है, उस लारेंस का भारत में सबसे पक्का गठबंधन कुख्यात हाशिम बाया गैंगस्टर के साथ है। आसिम उर्फ तसलीम खान उर्फ फकीरा (38) से हाशिम बाबा इतने सज्जन हैं कि सलाखों के पीछे रहते हुए भी सात मर्डर और तीन जबरन वसूली समेत 15 वारदात को अंजाम दे दिया।
कई ऐसे मामले हैं, जिनमें पीड़ित सामने नहीं आए और खुद ही सेटलमेंट कर लिया। लारेंस ने बाबा सिद्दीकी की हत्या इसी हाशिम बाबा गैंग को आउटसोर्स की थी।
बहरहाल महाराष्ट्र इन शिगूफों के झांसे में नहीं आने वाला। यह महाराष्ट्र ही था जिसने जब चारों ओर पस्तहिम्मती फैलाने की कोशिश की जा रही थीं, तब बीसियों हजार लाल झंडों के साथ नाशिक से मुम्बई तक पांव-पांव चलकर मांगें ही नहीं जीती थीं, देश भर के मेहनतकशों का हौसला भी बहाल किया था।
हाल के लोकसभा चुनावों में इंडिया ब्लाक के पक्ष में निर्णायक फैसला सुनाकर इसी तेवर को जारी रखा था। अभी तक के रुझान बताते हैं कि अगले महीने के विधानसभा में चुनावों में भी इसे दोहराकर महाराष्ट्र अंधेरे के आढ़तियों की दुकान बंद करने जा रहा है।
(बादल सरोज लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)
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