Sunday, April 28, 2024

विश्व भारती विश्वविद्यालय में विवाद: ‘विश्व विरासत स्थल’ वाले शिलापट्ट से टैगोर का नाम गायब

नई दिल्ली। विश्वगुरु रबींद्रनाथ टैगोर को उनके द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय में ही भुलाने की साजिश चल रही है। रबींद्रनाथ टैगोर, शांति निकेतन और विश्व भारती विश्वविद्यालय की जब-जब चर्चा होती है विश्वगुरु रबींद्रनाथ टैगोर का नाम वहां आ ही जाता है। लेकिन टैगोर को उनके ही देश और उनके द्वारा स्थापित संस्थान में भुलाने की साजिश चल रही है।

यह साजिश तब सामने आई जब इस केंद्रीय विश्वविद्यालय को यूनेस्को की विरासत का दर्जा देने के बाद विश्वविद्यालय परिसर में कुछ पट्टिकाएं लगायी गईं। उन पट्टिकाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुलपति विद्युत चक्रवर्ती का नाम तो है, लेकिन पट्टिका में विश्व भारती विश्वविद्यालय के संस्थापक रबींद्रनाथ टैगोर का कोई उल्लेख नहीं है।

इस घटनाक्रम से न केवल फैकल्टी सदस्यों का एक वर्ग नाराज है, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी आलोचना की है। सफेद संगमरमर पर लगी पट्टिकाएं पर यूनेस्को- “विश्व विरासत स्थल” अंकित हैं और इसमें नरेंद्र मोदी का नाम आचार्य और विद्युत चक्रवर्ती का नाम उपाचार्य लिखा हुआ है।

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जवाहर सरकार ने इस मामले को लेकर कहा कि “यूनेस्को ने विशेष रूप से कहा कि वे शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर स्थल घोषित करके रबींद्रनाथ टैगोर और उनकी अद्वितीय विरासत का सम्मान कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक आत्म केन्द्रित वीसी और उनके बॉस को लगता है कि यूनेस्को उनका सम्मान कर रहा है।”

विश्व भारती के प्रवक्ता के मुताबिक, विश्वविद्यालय परिसर में ऐसी तीन पट्टिकाएं लगाई गई हैं। 17 सितंबर को, नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शहर शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था।

यूनेस्को शांतिनिकेतन की स्थापना के लिए “प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक रबींद्रनाथ टैगोर” को श्रेय देता है। जो “20वीं सदी की शुरुआत के प्रचलित ब्रिटिश औपनिवेशिक वास्तुशिल्प नीति और यूरोपीय आधुनिकतावाद” से अलग, एक पूरी एशियाई आधुनिकता के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।

शांतिनिकेतन की स्थापना टैगोर ने 1901 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक आवासीय विद्यालय और प्राचीन भारतीय परंपराओं के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता की एकता की दृष्टि पर आधारित कला केंद्र के रूप में की थी। विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में शांतिनिकेतन में की गई थी।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता थॉमस इसाक ने भी पट्टिका से टैगोर का नाम हटाए जाने पर एक्स पर पोस्ट किया कि “मोदी और उनके साथियों की पक्षपात की कोई सीमा नहीं है। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने यूनेस्को द्वारा शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का जश्न मनाने के लिए पट्टिकाएं स्थापित कीं। पट्टिका में पीएम मोदी और वर्तमान कुलपति का नाम शामिल है लेकिन रबींद्रनाथ टैगोर का नाम हटा दिया गया है।”

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि पट्टिकाओं में टैगौर नाम न होना, न केवल टैगोर बल्कि सभी भारतीयों का अपमान हैं। क्या मोदी जी सोचते हैं कि वे टैगोर से भी बड़े हैं? वह बंगाल चुनाव से पहले लंबी दाढ़ी बढ़ा सकते हैं, लेकिन वह कभी भी टैगोर की विरासत को अपना नहीं सकते।

पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि टैगोर और विश्व भारती के बीच संबंधों की घोषणा करने की जरूरत नहीं है और कुछ लोग अप्रासंगिक सवाल उठा रहे हैं।

यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब विश्वविद्यालय प्रशासन का ‘फैकल्टी सदस्यों के एक वर्ग’ के साथ विवाद चल रहा है और अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है। हाल के एक घटनाक्रम में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कुलपति के खिलाफ तीखी टिप्पणी की थी, यहां तक कि उन्हें हटाने की मांग तक कर दी थी।

केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रशासन नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के साथ कानूनी झगड़े में उलझा हुआ है। जिसमें आरोप लगाया गया है कि जिस जमीन पर अर्थशास्त्री का पैतृक घर बना है, उसका एक हिस्सा शांतिनिकेतन की भूमि का अवैध रूप से कब्जा है।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भारती के पूर्व कार्यवाहक कुलपति सबुजकली बसु ने बाद में स्पष्ट किया था कि संयुक्त राष्ट्र का सम्मान क्षेत्र में स्थित किसी विश्वविद्यालय को नहीं, बल्कि उस पूरे स्थान को दिया गया है, जिसका केंद्रीय विश्वविद्यालय एक अभिन्न अंग है।

(द हिंदू के खबर पर आधारित।)

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