Sunday, April 28, 2024

गंगासागर मेला: जान पर भारी पड़ती वोट की राजनीति

यूं तो सदियों से गंगा सागर मेला पश्चिम बंगाल में लगता है पर इस बार यह वोटों की राजनीति में उलझ गया था। डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञों ने गंगासागर मेला पर रोक लगाने की मांग की थी। उनकी दलील थी कि गंगासागर मेला उत्तराखंड के कुंभ मेला की तरह कोरोना के लिए सुपर स्प्रेडर साबित होगा। इसके बावजूद सरकार को इस पर रोक लगाने से एतराज था। गंगासागर मेला के लिए इस बेचैनी की वजह कहीं गोवा सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर टिकी नजर तो नहीं है।

गंगासागर मेला को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। सरकार इस मामले में अड़ी रही लिहाजा हाईकोर्ट ने शर्तों के साथ अनुमति दे दी। उनमें से एक शर्त ऐसी भी थी जिस पर अगर अमल किया जाता तो गंगासागर मेला में 50 से अधिक लोग इकट्ठा हो ही नहीं सकते थे। गंगासागर मेला और कुल 50 लोग क्या यह चमत्कार संभव है। इस चमत्कार के कानूनी पहलू पर एडवोकेट प्रियंका अग्रवाल विश्लेषण करेंगी।

आइए अब यह देखते हैं कि गंगासागर मेला पर रोक लगाने से इनकार करने वाली सरकार ने कहां-कहां पाबंदियां लगा रखी है। क्या यह एक अंतर्विरोध नहीं है। इतनी सारी पाबंदियां लगाने वाली सरकार को गंगासागर मेला पर रोक लगाने से एतराज क्यों था। इसे जानने के लिए थोड़ा पीछे लौटते हुए 25 और 31 दिसंबर पर गौर करना पड़ेगा। अमेरिका और यूरोप के लोगों ने तो 25 और 31 दिसंबर के उत्सव को अपने घरों पर मनाया था। बड़ी पार्टियां आयोजित नहीं की गई थीं पर अपनी सरकार ने 25 और 31 दिसंबर को रात्रिकालीन कर्फ्यू समाप्त कर दिया था।

इसका नतीजा यह हुआ कि 25 दिसंबर को कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में एक विराट कार्निवल का आयोजन किया गया था। यही हाल 31 दिसंबर का भी था। बड़े पैमाने पर जश्न मनाए गए थे। मुख्यमंत्री कुछ गिरजाघर में भी गई थीं। इसका नतीजा यह हुआ कि 25 दिसंबर के बाद बंगाल और खासकर कोलकाता और उसके आसपास के जिलों में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल गया। तो क्या राज्य सरकार ने यह दरियादिली गोवा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दिखाई थी। गोवा के मतदाताओं में क्रिश्चियन मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है। गोवा विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस का एक भी विधायक होगा या नहीं यह तो नहीं मालूम पर बंगाल के लोग इसकी कीमत चुकाने के खौफ से परेशान हैं।

एक तरफ तो गंगासागर मेला की अनुमति देने से गुरेज नहीं है तो दूसरी तरफ राज्य में कोरोना का हवाला देते हुए बेइंतहा पाबंदी लगाई गई हैं। उपनगरीय ट्रेनों में 50 फ़ीसदी से अधिक यात्री होने पर पाबंदियां लगाई गई हैं। साथ ही सलून स्पा और जिम बंद कर दिए गए हैं। रात दस बजे से सुबह पांच बजे तक के लिए सड़कों पर निकलने पर रोक लगा दी गई है। सिनेमा हॉल और थियेटरों में दर्शकों की संख्या 50 फ़ीसदी तक सीमित कर दी गई है। आदेश दिया गया है कि रात दस बजे के बाद उपनगरीय ट्रेनें नहीं चलेंगी। कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल बंद कर दिया गया है। पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं। अस्पतालों में आवश्यक सर्जरी के अलावा बाकी पर रोक लगा दी गई है। जिलों में बाजारों और दुकानों को सप्ताह में दो तीन बार बंद करने का आदेश दिया गया है। बेलूर मठ बंद कर दिया क्या गया है और कालीघाट एवं दक्षिणेश्वर मंदिर में गर्भ गृह में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई है।

सवाल उठता है कि जब बंद का यह आलम है तो सरकार गंगासागर मेला के आयोजन पर इस तरह क्यों आमादा थी। क्या तृणमूल कांग्रेस को भाजपा के हिंदू कार्ड का खौफ सता रहा था। भाजपा यह सवाल उठाती कि जब 25 दिसंबर और 31 दिसंबर पर कोई रोक नहीं लगी तो गंगासागर मेला पर क्यों रोक लगाई गई। हालांकि विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद तृणमूल कांग्रेस को भाजपा का खौफ नहीं सताना चाहिए। तो क्या तृणमूल कांग्रेस की सरकार हिंदी भाषा भाषियों को यह संदेश देना चाहती थी कि भारी विरोध के बावजूद उसकी सरकार ने गंगासागर मेला रोक नहीं लगा कर हिंदू हितों की रक्षा की है। गौरतलब है कि गंगासागर मेला में उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश राजस्थान और गुजरात आदि से काफी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। तो क्या राजनीतिक मकसद हासिल करने के लिए राज्य सरकार ने पूरी राज्य की आबादी को जोखिम के हवाले कर दिया है।

डॉक्टरों और बुद्धिजीवियों के विरोध के मद्देनजर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की यह टिप्पणी गौरतलब है। उन्होंने कहा था कि तेजी से बढ़ते हुए कोरोना संक्रमण के मद्देनजर सरकार गंगासागर मेला पर पाबंदी लगाने पर गौर करेगी। इसके साथ ही कहा था कि धार्मिक रीति रिवाज और आस्था के मुकाबले जीवन ज्यादा महत्वपूर्ण है पर सरकार ने पाबंदी नहीं लगाई। इसके बाद हाईकोर्ट ने अपना आदेश दे दिया। इसका विश्लेषण करते हुए एडवोकेट प्रियंका अग्रवाल कहती हैं कि हाईकोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह 2 जनवरी को जारी अपनी अधिसूचना पर ही गंगासागर मेले के मामले में अमल करें। इसमें कहा गया था कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक समारोह में एक साथ 50 से अधिक लोग इकट्ठा नहीं हो सकते हैं और गंगासागर मेला भी एक धार्मिक समारोह है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि गंगासागर मेला में वही जा सकते हैं जिन्होंने वैक्सीन के दोनों डोज ले रखे हैं।

अब आइए हाईकोर्ट के आदेश पर कितना अमल हुआ इस पर गौर करते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस बार गंगासागर मेला में पांच लाख तीर्थयात्री आए थे। गंगासागर मेला में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र आदि राज्यों से तीर्थयात्री आते हैं। इनमें से सिर्फ मध्यप्रदेश में ही 91 फ़ीसदी लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लगे हैं और बाकी राज्यों में यह आंकड़ा 60 फ़ीसदी से नीचे है। अब स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह कयास लगा रहे हैं कि गंगासागर मेला बंगाल के लिए कोरोना के मामले में सुपर स्प्रेडर साबित होगा। अब यह बात दीगर है कि चुनावी राजनीति में सब माफ होता है।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles