Friday, April 19, 2024

बिहार में कोरोना से हुई मौतों की संख्या 20 से 25 गुना ज्यादा: कविता कृष्णन

पटना। भाकपा-माले की एक उच्चस्तरीय टीम ने बिहार के कई जिलों का विगत दिनों दौरा किया। टीम में भाकपा-माले की पोलित ब्यूरो की सदस्य कॉ. कविता कृष्णन, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर और केंद्रीय सोशल मीडिया ग्रुप के सदस्य कॉ. अरुण कुमार शामिल थे। इस टीम ने विगत सात जुलाई को भोजपुर जिले के पवना गांव से अपनी यात्रा शुरू की। यह टीम पसौर (चरपोखरी, भोजपुर), घुसियां कला व सलेमपुर पोखरा (विक्रमगंज, रोहतास), बिहटा (तरारी, भोजपुर), अबगिला व पेउर (सहार, भोजपुर); मोथा, सकरी व प्रसादी इंगलिश (अरवल); भेड़रिया इंगलिश व अंकुरी (पालीगंज, पटना); पुरैनिया, चकिया व शेखपुरा (पुनपुन, पटना); नगवां (फुलवारी, पटना); जयजोर (आंदर, सिवान), डरैली मठिया (दरौली, सिवान), केल्हरूआ, कल्याणी, दमोदरा, चीताखाल, कोहरबलिया (गुठनी, सिवान), मैरवां व इमलौली (मैरवां, सिवान), हथौजी (नौतन, सिवान), छोटका मांझा, पथार (जीरादेई, सिवान) आदि गांवों में पहुंची।

टीम ने इन गांवों में पिछले अप्रैल माह से अब तक कोरोना से हुई मौतों का जायजा लिया और मृतकों के परिजनों, आश्रितों व गांव वालों से भी बातचीत की, उनके बयान दर्ज किए और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की।

 भाकपा-माले टीम ने यह पाया कि

1. कोरोना मृतकों के सरकारी आंकड़े वास्तविक नहीं हैं। मृतकों की तादाद 20 से 25 गुना ज्यादा है। अधिकांश मृतकों में बीमारी की शुरूआत सर्दी, खांसी और बुखार से हुई, फिर आगे चलकर उन्हें सांस लेने में भारी तकलीफ होने लगी और दो-तीन दिनों के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गई।
2. बहुत कम लोग अस्पताल पहुंच पाए, अस्पताल जाने के क्रम में या अस्पताल पहुंचते ही मरने वालों की तादाद भी कम नहीं थी। अस्पतालों की खराब अवस्था, ऑक्सीजन या अन्य इलाज की भारी कमी, क्वारंटाइन का भय और मृत्यु के बाद भी परिजनों का शव न मिलने के डर से ढेर सारे लोगों ने सरकारी अस्पतालों में भी जाना मुनासिब नहीं समझा। गरीब लोग पैसे के भारी अभाव के चलते भी अस्पतारल नहीं पहुंचे और सही इलाज नहीं करवा पाए।

3. अधिकांश लोगों का इलाज देहाती डॉ.क्टरों ने किया। पंचायतों में मौजूद स्वास्थ्य उपकेंद्रों पर आम तौर पर इलाज की कोई व्यवस्था नहीं रहती है और प्रखंड स्तर पर मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र पर भी ऑक्सीजन नहीं था, एंबुलेंस की भी व्यवस्था जर्जर थी।
3. सरकारी अस्पतालों ने बैड व ऑक्सीजन की कमी बताकर मरीजों को भर्ती नहीं किया। लोगों ने प्राइवेट अस्पतालों की ही शरण ली। जो अस्पताल पहुंचे, उन्हें इलाज में भारी खर्च उठाना पड़ा। इसमें औसतन डेढ़ से दो लाख रु. खर्च हुए। कुछ मामलों में तो खर्च की राशि 10-12 लाख रु. भी थी। ऐसे कई परिवार अब भी भारी कर्ज के बोझ से लदे हुए हैं।
4. अधिकांश कोरोना लक्षण वाले लोगों की कोरोना जांच नहीं हुई। अस्पतालों में भी एंटीजन, आरटीपीसीआर और अन्य जांच की कोई सुविधा नहीं मिली। साथ ही, कोरोना लक्षण होने के बावजूद और अंततः मृत हो जाने पर भी बहुत सारे लोगों की रिपोर्ट निगेटिव ही आई।

5. अस्पतालों में ज्यादातर कोरोना मरीजों को टाइफाइड का शिकार बताया गया और उसी का इलाज किया गया। अस्पताल से प्राप्त कागजातों में डायगनोसिस या मृत्यु की वजह का कोई जिक्र नहीं किया गया। कुछ लोग ऐसे भी पाए गए जिनके परिजनों ने अस्पताल से लौटते ही सारे कागजात नष्ट कर दिए, जला दिए या फेंक दिए।
6. भाकपा-माले की टीम को यह भी जानकारी मिली कि कुछ लोगों ने सरकार द्वारा घोषित मुआवजे के लिए आवेदन किए हैं। इक्का-दुक्का लोगों को ही यह मुआवजा अब तक मिल सका है। लेकिन सभी पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा मिल सके, इसके लिए सरकार की मुआवजा नीति में भारी बदलाव की जरूरत है।

7. अधिकांश मृतक ही अपने घर के एक मात्र कमाने वाले थे। इसके अलावा कुछ उम्रदराज लोग, जिनकी मृत्यु हुई, वे पेंशनर थे और पूरा परिवार का खर्च उन्हीं के पेंशन से चलता था। इलाज में खर्च और कर्ज के बोझ को देखते हुए इन सबको तत्काल मुआवजा मिलना चाहिए।
8. मृतकों के परिजनों में खासकर जिन महिलाओं के पति और जिन पुरुषों की पत्नियां अब नहीं रहीं, वे भारी हताशा में जी रहे हैं। उनसे बातचीत करने पर यह महसूस हुआ कि वे खुद अपना जीवन भी जीना नहीं चाहती हैं। ऐसे मामलों में भी सरकार व समाज को संवेदनशील होना होगा।

9. टीम ने यह भी पाया कि कोरोना महामारी को आए हुए लगभग एक साल से अधिक का अर्सा गुजर जाने के बावजूद भी लोगों के बीच कई तरह के भ्रम मौजूद हैं। मास्क लगाने, हाथ धोने और बचाव के लिए सही दवा की जानकारी निचले स्तर तक बिल्कुल नहीं पहुंची है। वैक्सीनेशन का भय भी मौजूद है। इसकी बड़ी वजह मोदी-नीतीश सरकार पर लोगों का भरोसा नहीं होना है। हालांकि यह भी पाया गया कि यह भय लगातार कम होता गया है और लोग कोरोना वैक्सीन लेना चाहते हैं। पर्याप्त मात्रा व समय पर वैक्सीन उपलब्ध करवाने में सरकार विफल रही है।

 संवाददता सम्मेलन में मौजूद भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने बताया कि पार्टी आगामी 15 जुलाई को कोरोना मृतकों के लिए मुआवजे की मांग को लेकर राज्य के प्रखंड मुख्यालयों पर सामूहिक रूप से आवेदन जमा करवाएगी और अस्पतालों की दशा सुधारने की मांग को लेकर 24 जुलाई को सभी प्रखंड अवस्थित अस्पतालों के प्रभारियों को मांगपत्र सौपेंगे। भाकपा-माले बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति सुधारने के लिए – स्वस्थ बिहार, हमारा अधिकार’ एक दीर्घकालीन अभियान चला रही है।

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