ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड में बिचौलिए खा रहे हैं मनरेगा का पैसा

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पलामू/लातेहार/पश्चिमी सिंहभूम केंद्र सरकार ने जहां एक तरफ वित्तीय वर्ष 2023-24 के मनरेगा बजट में 35 फीसदी की कटौती कर दी है और योजना में मजदूरों के कार्यों पर पारदर्शिता लाने के बहाने नयी-नयी तकनीक थोप दी है, जिसके चलते मजदूरों में मनरेगा को लेकर अरुचि पैदा होने लगी है। पहले झारखंड में जहां प्रतिदिन 8 लाख मजदूर काम कर रहे थे, अब वे घटकर 3.5 लाख ही रह गये हैं। वहीं दूसरी तरफ मनरेगा योजना में दलालों व प्रशासनिक अमले की मिलीभगत से भ्रष्टाचार के रोज नये-नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, जो मनरेगा योजना में शामिल रोजगार की अवधारणा को तार तार कर रहा है।

वित्तीय वर्ष 2022-23 में मनरेगा योजना का बजट 89,000 करोड़ रुपये था। इसे वर्ष 2023-24 में घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। जबकि इसमें यदि वित्तीय वर्ष 2022-23 की बकाया मजदूरी को घटा दें तो वास्तविक बजट आवंटन 50 हजार करोड़ रुपये से भी कम होगा।

वहीं योजना में ऑनलाइन हाजिरी बनाने के लिए एक नया एक सिस्टम NMMS (नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम) यानी राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली और ABP यानी आधार बेस पेमेंट एक जनवरी 2023 से लागू कर दी गयी है।

इन सबके बीच अगर ईमानदारी से जांच पड़ताल की जाए तो राज्य में मनरेगा योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले सामने आ सकते हैं। स्वयं-सेवकों, अधिकारियों, मनरेगा-कर्मियों और बिचौलियों की मिलीभगत के अनगिनत खुलासे हो सकते हैं। क्योंकि योजनाओं के लाभार्थियों की राशि के गबन के मामले लगातार जारी हैं।

भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले

पलामू जिला के छतरपुर प्रखंड के मुरुमदाग गांव में मनरेगा से स्वीकृत सिंचाई कूप का निर्माण कराये बिना कर्मियों व बिचौलियों की मिलीभगत से 2 लाख 33 हजार की राशि की निकासी करने का मामला सामने आया है। रोजगार सेवक, पंचायत सचिव, मुखिया व वेंडर की मिलीभगत से ऐसी गड़बड़ी की गयी है।

कुआं खोदते मनरेगा मजदूर। (फाइल)

वहीं हाल ही में लातेहार जिला के मनिका प्रखंड क्षेत्र में पीएम आवास योजना के नाम पर लाभार्थियों के साथ बड़ी गड़बड़ी का मामला प्रकाश में आया है।

जबकि पश्चिमी सिंहभूम के खूंटपानी में पशुधन वितरण में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। मनरेगा के तहत बकरी व सूअर शेड बनाने के नाम पर करीब 72 लाख रुपये की निकासी कर ली गयी है।

पलामू: कुएं का निर्माण किए बगैर निकाले 2.33 लाख रुपये

पलामू जिला के छतरपुर प्रखंड के मुरुमदाग गांव में मनरेगा से स्वीकृत सिंचाई कूप का निर्माण कराये बिना ही कर्मियों व बिचौलियों की मिलीभगत से 2 लाख 33 हजार की राशि की निकासी कर ली गयी। यह घपला रोजगार सेवक, पंचायत सचिव, मुखिया व वेंडर की मिलीभगत से किया गया।

इस बावत मुरुमदाग गांव के कलहट सिंह ने पलामू डीसी से जनता दरबार में शिकायत की है। साथ ही डीडीसी व छतरपुर अनुमंडल पदाधिकारी को आवेदन देकर जांच कर दोषियों के विरुद्ध करवाई की मांग की है।

कलहट सिंह ने बताया कि उनके गांव के नंदलाल साव और रोजगार सेवक राजीव रंजन ने कहा कि आपके खेत में मनरेगा योजना से कूप की स्वीकृति दिलाकर पक्का निर्माण कराया जायेगा। दोनों ने 28 सितंबर 2021 को मनरेगा के तहत सिंचाई कूप निर्माण की स्वीकृति करा ली। लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गयी। कुछ दिन पूर्व गांव के लोगों ने बताया कि आपके नाम से कूप की स्वीकृति मिली है, तो क्यों नहीं निर्माण कराया। जब गांव वालों की मदद से ऑनलाइन चेक कराया गया, तो मेरे नाम से सिंचाई कूप की स्वीकृति का पता चला। जिसमें योजना का मेठ गांव के नंदलाल साव को बनाया गया है।

कलहट सिंह ने बताया कि उनका एक कुंआ जो हमारे पूर्वजों के द्वारा 20 वर्ष पूर्व बनाया गया था, उसी को दिखाकर जियो टैगिंग कर राशि की निकासी कर ली गयी। नंदलाल साव खुद योजना का मेठ बन गया और अपने परिवार के सदस्यों का फर्जी जॉबकार्ड बनाकर मजदूरी का पैसा उनके खाते में भुगतान करा दिया।

पूर्वजों द्वारा 20 वर्ष पूर्व बनाया गया कुआं।

कलहट सिंह के नाम से कूप निर्माण के लिए 3 लाख 81 हजार रुपये के प्राक्कलन की स्वीकृति हुई है। जिसमें 78 हजार रुपये मेठ नंदलाल साव को भुगतान कर दिया गया। शेष 1 लाख 55 हजार रुपये वेंडर मेसर्स नैतिक स्टोन चिप्स के खाते में 22 मार्च 2023 को भुगतान कर दिये गये।

हुटुगदाग के मुखिया राजेंद्र सिंह, पंचायत सचिव रामयाद राम, रोजगार सेवक राजू रंजन व वेंडर मनोज कुमार यादव ने मिलकर स्वीकृत कूप निर्माण की राशि से 2 लाख 33 हजार की निकासी कर बंदरबांट कर ली।

इस मामले का खुलासा होते ही मुखिया राजेंद्र सिंह और पंचायत सचिव रामयाद राम ने बताया कि ‘हम दोनों का डिजिटल सिग्नेचर रोजगार सेवक के पास रहता है, उसी के द्वारा सभी योजनाओं का भुगतान किया जाता है। वेंडर मेसर्स नैतिक स्टोन चिप्स के नाम से संचालित व्यक्ति मध्य विद्यालय चीपो में पदस्थापित सहयोगी शिक्षक मनोज कुमार यादव विद्यालय का सचिव भी है। पिछले कई वर्षों से उक्त सहयोगी शिक्षक वेंडर का काम कर रहा है।’

हुलसम पंचायत की मुखिया लंकेश्वरी देवी सहित कई ग्रामीणों ने बताया कि ‘मनोज कुमार यादव वर्तमान में मेदिनीनगर में रहता है। वह कभी विद्यालय नहीं जाता। बल्कि अपनी जगह पर दूसरे व्यक्ति को रखकर स्कूल में बच्चों की पढ़ाई कराता है। ऑनलाइन हाजिरी बनाने के लिए उसने डिजिटल अंगूठा बना रखा है, जिससे भाड़े पर पढ़ा रहा युवक प्रति दिन सुबह-शाम मनोज का डिजिटल अंगूठे से हाजिरी बना दिया करता है।’

लातेहार: पीएम आवास योजना में भ्रष्टाचार

लातेहार जिले के मनिका पंचायत का भदईबथान एक टोला है, जहां की चनारिक यादव के नाम से पीएम आवास योजना रजिस्ट्रेशन नंबर JH 2133175, वर्क कोड 1115920, 2021-22 में लाभ मिला था। जिसकी पहली किस्त 40 हजार रुपये लाभुक के खाता में जमा किया जा चुका था। इसी दौरान स्वयंसेवक नीरज यादव के द्वारा लाभुक चनारिक यादव को बहला-फुसलाकर उसके खाते से पहली किश्त की सारी राशि निकलवा कर अपने पास रख लिया गया।

दुर्भाग्य से लाभुक चनारिक यादव की अक्टूबर 2022 में मौत हो गयी। जिसके बाद स्वयंसेवक नीरज यादव, रोजगार सेवक, पंचायत सेवक एवं अन्य मनरेगा कर्मियों की मिलीभगत से मृतक लाभुक के पीएम आवास योजना का बिना धरातल पर काम हुए ही 16,965 रुपये की सारी राशि निकाल कर गबन कर लिया गया। जिसमें लाभुक का लेबर डिमांड भी नहीं लगाया है।

जमीन पर काम नहीं हुआ लेकिन निकाल ली गई पीएम आवास योजना की मनरेगा की सारी राशि।

मृतक लाभुक की पत्नी सकुली कुंवर ने बताया कि ‘मेरे पति के नाम से पीएम आवास योजना आया था, मुझे बस इतना ही पता था। लेकिन मेरे पति को बहला-फुसलाकर स्वयंसेवक नीरज यादव के द्वारा उनके खाते से 40 हजार रुपये निकाले गए हैं, इस विषय में नीरज यादव ने मुझे कभी नहीं बताया। जब मुझे इसकी जानकारी हुई तो मैंने इस विषय पर नीरज यादव से बात की, तब वह मुझे धमकी देना शुरू कर दिया।’ मृतक की पत्नी ने यह भी बताया कि ‘जब भी मैं उससे इस विषय पर बात करती हूं तो वह मुझे डांट फटकार कर भगा देता है।’

प्रखंड क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिनकी जांच की जाए तो योजना से संबंधित स्वयंसेवक, अधिकारी और मनरेगा कर्मियों की मिलीभगत से गरीब लाभुकों की राशि को गबन करने के मामलों का खुलासा सामने आने लगेगा।

विधवा सकुली कुंवर के आरोप पर स्वयंसेवक नीरज यादव से पूछे जाने पर उसने कहा कि ‘मैं लाभुक का पैसा देने को तैयार हूं और लाभुक का घर बनाने के लिए मैंने ईटा भी गिराया है।’ मनरेगा के पैसे की निकासी पर उसने कहा कि ‘इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। रोजगार सेवक के द्वारा पैसे की निकासी की गई है और मनरेगा की कुछ राशि रोजगार सेवक प्रिया कुमारी के पास है।’

वहीं इस मामले पर पूर्व रोजगार सेवक पूनम कुमारी बताती हैं कि ‘मेरे पास स्वयंसेवक एक साथ अनेकों एमआर लेकर आता है, इसलिए इस योजना के एमआर पर मैं ध्यान नहीं दे पाती।’ वहीं रोजगार सेवक प्रिया कुमारी कहती हैं कि ‘इस योजना का एमआर पहले से आउटगोइंग था, उसी को देखते हुए मैंने साइन किया है, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।’

वहीं इस बारे में मनिका पंचायत के मुखिया सत्येंद्र कुमार सिंह ने कहा कि ‘अगर स्वयंसेवक के द्वारा इस तरह का कार्य किया गया है, तो बहुत ही गलत है।’ यह पूछे जाने पर कि एमआर में आपका भी साइन है, तभी तो मनरेगा के पैसे की निकासी हुई है। इस पर मुखिया ने कहा कि ‘मुझसे स्वयंसेवक ने अनजाने में साइन करवा लिया है।’

इस मामले में संलिप्त कर्मियों पर कार्रवाई को लेकर झारखंड नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि ‘सभी योजनाओं की जांच कर मनरेगा योजना में लगातार हो रही गड़बड़ी और इसमें संलिप्त कर्मियों के ऊपर जिला प्रशासन जल्द से जल्द कार्रवाई करे।’

पश्चिमी सिंहभूम: पशुधन वितरण में गड़बड़ी

लातेहार जिले की तरह ही पश्चिमी सिंहभूम जिले के खूंटपानी प्रखंड में मनरेगा योजना के तहत पशुधन वितरण में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। प्रखंड में मनरेगा के तहत बकरी व सूअर शेड बनाने के नाम पर करीब 72 लाख रुपये की निकासी कर ली गयी। जांच में यह बात सामने आई कि पशुधन योजना के तहत महिलाओं व सहियाओं को लाभुक तो बना दिया गया है, लेकिन अभी तक उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाया है।

जिन लाभुकों को बकरियां दी गयीं, 10 दिन के भीतर ही उनमें से अधिकतर बकरियां मर गयीं।

लाभुकों को मिलीं बकरियां।

यही हाल शेड निर्माण का भी है। प्रखंड के विभिन्न गांवों के लाभुकों का बकरी, सुअर व ब्रॉयलर मुर्गी के अंडा शेड का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है। दो-चार जगहों पर सुअर शेड का निर्माण नियमों को ताक पर रखकर किया गया है। ग्रामीणों ने बताया के वेंडर ने मनमानी कर लाल की जगह काली ईंट सप्लाई किया है।

मामले पर मनरेगा लोकपाल अरुणाभ कर ने कहा कि ‘यदि योजना में गड़बड़ी हो रही है, तो इसकी जांच की जायेगी।’

बत्तख पालन चयन में जब जांच की गई तो पता चला कि लाभुकों को कागज पर ही बत्तख दे दिये गये हैं। जांच से खुलासा हुआ है कि कई लाभुकों को यह पता भी नहीं है कि उनका चयन बत्तख पालन के लिए हुआ है।

वहीं जिन लाभुकों को बकरियां दी जा रही हैं वह 10 दिन भी जीवित नहीं रह पाती हैं। लाभुकों के घर पहुंचते ही बकरियां खाना-पीना बंद कर कुछ ही दिन में दम तोड़ देती हैं। लाभुक के पास बकरियों की जगह उसके कान में लगाये गये सिर्फ टैग ही बच गये हैं।

लाभुक दशमी बोदरा ने बताया कि ‘मैं भोया गांव में रहती हूं। जून में पांच बकरियां मिली थीं। मेरे यहां आते ही बकरियों ने खाना- पीना बंद कर दिया। 10 दिन भी नहीं हुआ कि बकरियों के मरने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक तीन बकरियां मर चुकी हैं। एक बकरी अभी भी बीमार है।’

काली ईंट से कराया जा रहा है शेड निर्माण

योजना के प्राक्कलन के अनुसार सूअर पालन शेड का निर्माण लाल ईंट से किया जाना है, लेकिन इसका निर्माण काली ईंट से कराया जा रहा है। इसे लेकर लाभुकों में रोष है। लाभुकों का आरोप है कि ट्रैक्टर से जमीन पर गिराते ही काली ईंट टूट जा रही हैं। शेड का फाउंडेशन काली ईंट से कराए जाने से बारिश में शेड के गिरने की प्रबल संभावना है।

लाल की जगह काली ईंट से निर्माण।

बिना जानकारी के लाभुक सूची में नाम

फूलमाई बेसरा की सास पानबुई महाली बताती हैं कि ‘उनकी बहू फूलमाई बेसरा का नाम बत्तख पालन के लाभुकों की लिस्ट में है, लेकिन उन्हें और उनकी बहू को इसकी जानकारी नहीं है। फूलमाई को आज तक न तो बत्तख मिले और न ही उनके यहां कोई शेड बना है।

लाभुकों की सूची में एक और नाम है सुनीता महाली का। सुनीता महाली कहती हैं कि ‘मुझे बत्तख पालन के लिए लाभुक चयन किये जाने की जानकारी नहीं है। प्रखंड कार्यालय या फिर मुखिया ने इसकी जानकारी नहीं दी है। मैं आंगनबाड़ी में सहिया का काम करती हूं। मुझे आज तक न तो बत्तख मिला है और न ही शेड बना है।’

पासेया गांव की मालती कुई ने बताया कि ‘मैं सुअर शेड की लाभुक हूं। सुअर शेड का निर्माण लाभुकों द्वारा कराया जाना है, लेकिन वेंडर खुद बनाना चाह रहा है। ग्रामीणों के विरोध के बाद भी वेंडर ने काली ईंट गिरा दी है।’

पासेया गांव की रहने वाली एक अन्य लाभुक गांगी कुई ने बताया कि ‘मुझे सूअर पालन का लाभुक बनाया गया है। मुझे अब तक न तो सूअर मिला है और ना ही शेड बना है। वेंडर ने मनमानी करते हुए काली ईंट गिरायी है।’

खूंटपानी प्रखंड के पासेया गांव की मेजंती कुई बोदरा ने बताया कि ‘मुझे सुअर पालन का लाभुक बनाया गया है, लेकिन अब तक न तो सुअर मिला है और न ही शेड बना है। इसकी जांच होनी चाहिए।’

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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