हुस्सेपुर गांव, मुजफ्फरपुर। गांव की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने व गरीबों की आजीविका को सुदृढ़ करने के लिए सरकार से लेकर कई गैर-सरकारी संगठन विभिन्न योजनाएं चला रहे हैं। गरीबों के लिए मजदूरी के साथ-साथ मवेशी, मुर्गी, बत्तख, बकरी पालन आदि कृषि आधारित रोजगार हैं। परंतु जागरूकता के अभाव में बहुत से ऐसे ग्रामीण परिवार हैं, जिन्हें इन योजनाओं से संबंधित पूरी जानकारी नहीं है।
ग्रामीण इलाकों में गरीब तबके के लोग परंपरागत रूप से बकरी पालन कर आजीविका चला रहे हैं। भूमिहीन व छोटे सीमांत किसानों, खेतिहर मजदूरों व सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े गरीबों के लिए यह नकदी आमदनी का मजबूत स्रोत है। भारत में बकरियों की संख्या करीब 1351.7 लाख है जिसमें 95.5 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में हैं। भारत में दूध व मांस उत्पादन में बकरी पालन की महती भूमिका है। बकरी के दूध व मांस का उत्पादन क्रमशः 3 (46.7 लाख टन) एवं 13 (9.4 लाख टन) प्रतिशत है।
एक घरेलू रोजगार के रूप में ग्रामीण महिलाओं के लिए बकरी पालन आय का सबसे बेहतरीन माध्यम है। बिहार के प्रमुख जिले मुजफ्फरपुर स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में बकरी पालन के माध्यम से आय अर्जित की जाती है। यहां महिलाएं बकरी पालन करके अपने घर-परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं।
मुजफ्फरपुर जिले से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हुस्सेपुर गांव की 40 वर्षीय अनीता देवी बताती हैं कि “2 साल पहले पति की मौत के बाद घर चलाने का कोई आधार नहीं बचा तो मैंने बकरी पालन को व्यवसाय के रूप में चुना। चार बेटियों और दो लड़कों के लालन-पालन व पढ़ाई-लिखाई की ज़िम्मेदारी ने मुझे बकरी पालन का काम चुनने के लिए उत्साहित किया।”
अनीता कहती हैं कि “दो बकरियों से मैंने बकरी पालन की शुरुआत की और आज मेरे पास आठ बकरियां और 20 छोटे बकरे हैं। शुरू में मुझे इसके लिए बहुत ताने सुनने पड़े। इसके बावजूद मैं सभी बातों को नजरअंदाज करके आगे कदम बढ़ाती रही। आज न केवल पूरे परिवार की देखभाल बकरी पालन से कर रही हूं बल्कि मेरी आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो गई है।” हुस्सेपुर गांव की 35 वर्षीय चंपा देवी भी बकरी पालन से अपनी तीन बेटियों और दो बेटों को अच्छी शिक्षा दिला रही हैं।
गांव की कुछ वृद्ध महिलाएं बताती हैं कि “बुढ़ापे में बेटा-बहू ने हमें खर्चा देना बंद कर दिया है। ऐसे में हम 2-4 बकरियां पाल कर अपनी आजीविका चला रही हैं।” सुबह खाना खाकर यह बुज़ुर्ग महिलाएं घर से बकरियां लेकर चौर में घास चराने निकल जाती हैं और सीधे शाम को लौटती हैं। बरसात के मौसम में बकरियों को चारा की दिक्कत हो जाती है, तो केले के पत्ते, बांस के पत्ते, बरगद के पत्ते इत्यादि खिलाकर किसी तरह जीवित रखना पड़ता है। बकरी पालने में मेहनत तो बहुत है, लेकिन आज यह उनके आय का सशक्त माध्यम बन चुका है।
इसी गांव की 45 वर्षीय भुकली देवी बताती हैं कि “एक बकरी साल में दो बार बच्चे को जन्म देती है और एक बार में तीन से चार बच्चे जन्म लेते हैं। जिनमें से कुछ खस्सी और पाठी होते हैं। कुर्बानी के त्योहार में इन्हें बेच कर महिलाएं अच्छी आमदनी प्राप्त कर लेती हैं। वहीं बकरी का दूध बहुत फायदेमंद भी होता है। डेंगू के समय बकरी का दूध बहुत फायदा करता है। जिसकी वजह से यह बहुत महंगा 80 रुपये लीटर बिकता है।”
इस संबंध में गांव के वार्ड सदस्य शेखर सहनी का कहना है कि “बकरी पालन के लिए गांव वालों को कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता है। अपनी पूंजी लगाकर लोग बकरी पालन करते हैं। गांव में केवल महिलाएं ही बकरियां पालती हैं। इससे बहुत से निर्धनों का घर चल रहा है।”
बहरहाल, सामाजिक रूढ़ियों और कई पाबंदियों के बीच बकरी पालन के माध्यम से महिलाएं स्वावलंबन की राह पर निकल पड़ी हैं। हालांकि अनीता, चंपा एवं अन्य महिलाओं को बकरी पालन से संबंधित योजना की पूर्ण जानकारी नहीं होने के कारण सूद पर पैसे लेने पड़ते हैं।
इस संबंध में किसान क्लब के सचिव रहे पंकज सिंह कहते हैं कि “गरीब, भूमिहीन व मजदूर महिलाओं को तो छोड़िए, हम लोग सक्षम होकर भी सरकारी लाभ के लिए ब्लाॅक से लेकर जिले तक चक्कर काटते रह जाते हैं लेकिन सब्सिडी तो बाद की चीज है, केसीसी भी नहीं मिलता है। बिना रिश्वत दिए काम नहीं बनता है। ऐसे में भला गरीब व बेबस महिलाएं कहां जाए और रिश्वत के लिए पैसे कहां से लाएं? दो जून की रोटी जुटाने के लिए उन्हें दूसरों के खेतों में मजदूरी करनी पड़ती है।”
बिहार सरकार बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए लागत राशि का 60 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। समेकित बकरी और भेड़ योजना के तहत 10 बकरियों के साथ एक बकरा और 40 बकरियों के साथ 2 बकरे पालने के लिए सब्सिडी देने का प्रावधान है। बिहार सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ी जाति और सामान्य वर्ग को अलग-अलग दर से अनुदान दिया जाता है। सामान्य वर्ग को 50 प्रतिशत एवं अन्य जातियों को 60 प्रतिशत तक सब्सिडी देने का प्रावधान है।
20 बकरियों के साथ एक बकरा पालने के लिए लगभग 2 लाख की राशि दी जा रही है। इसके लिए ब्लॉक व जिला स्तर पर पशुपालन विभाग में आवेदन करना होता है। आवेदन की जांच के बाद लाभुक को सब्सिडी राशि बैंक खाते में स्थानांतरित कर दी जाती है। राज्य सरकार प्रोत्साहन राशि दो किस्तों में देती है। इसके लिए बैंक से ऋण भी मुहैया कराया जाता है। सभी प्रक्रिया पशुपालन विभाग और बैंक के जरिए किसानों, मजदूरों व भूमिहीनों की आजीविका के लिए उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
बावजूद इसके जागरूकता के अभाव में भूमिहीन-सीमांत किसानों व श्रमिकों को योजना की जानकारी नहीं रहने की वजह से गांव के महाजन की चंगुल में फंसना पड़ता है। 5 रुपये सैकड़ा ब्याज पर ऋण लेकर बकरी पालन करना पड़ता है। प्रशिक्षित नहीं होने की वजह से भी अच्छी नस्ल की बकरियां नहीं मिलती हैं, जिससे आमदनी कम होती है।
वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका को बढ़ावा देने के लिए पंचायत भवन या ग्रामसभा के सभी वार्ड सदस्यों को बकरी पालन के लिए प्रशिक्षण और योजनाओं की पूरी जानकारी डिस्पले बोर्ड पर लगानी चाहिए। साथ ही वार्ड सदस्यों के जरिए बकरी पालकों को योजना की सम्यक जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए। तब जाकर अनीता, चंपा जैसी विधवा और बेबस महिलाओं की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होंगी और उनके बच्चे भी पढ़-लिखकर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे।
(बिहार के मुजफ्फरपुर से सिमरन सहनी की ग्राउंड रिपोर्ट।)