गिरिडीह/बोकारो। एक सीरियल आता था टीवी पर ‘ऑफिस-ऑफिस’ जिसका एक कैरेक्टर था मुसद्दी लाल। वह जिन्दा है और उसे पेंशन ऑफिस में मृत घोषित कर दिया गया है। वह जब पेंशन के लिए ऑफिस जाता है तो बताया जाता है कि वह मर चुका है। वह लाख कहता है कि मैं जिन्दा हूं लेकिन ऑफिस वाले कहते हैं कि फाइल में तुम मर चुके हो इसलिए तुम्हें पेंशन नहीं मिल सकती है।
बस इस सीरियल के मुसद्दी लाल की तरह झारखंड के गिरिडीह जिले के बेंगाबाद प्रखंड अंतर्गत छोटकी खरगडीहा गांव के 70 वर्ष से अधिक उम्र के दिव्यांग (विकलांग) हुरो हजाम पिछले तीन वर्षों से खुद को जिन्दा बताते हुए ‘ऑफिस-ऑफिस’ घूम-घूम कर बाबुओं से गुहार लगा रहे हैं कि वे जीवित हैं और उनकी वृद्धा पेंशन उन्हें दी जाये।
मगर हमारे सिस्टम की मेहरबानी से उन्हें आजतक ना तो जीवित माना गया है और ना ही उनकी पेंशन मिलने का कोई आसार नजर आ रहा है। प्रखंड कार्यालय और बैंक का चक्कर लगा-लगा कर थक चुके हुरो का कहना है कि “अब शरीर में इतना दम नहीं बचा है कि इधर से उधर दौड़ लगा सकूं। अब लोगों के भरोसे ही जिंदगी कट रही है”।
हुरो हजाम की 65 वर्षीया पत्नी विजया देवी की मौत 2020 में हो गयी। उसके पहले दोनों पति-पत्नी को वृद्धावस्था पेंशन का लाभ जिले के बेंगाबाद प्रखंड कार्यालय के माध्यम से मिल रहा था। पत्नी की मौत के बाद हुरो हजाम ने नियमत: पत्नी के निधन की सूचना प्रखंड कार्यालय के संबंधित सरकारी बाबू को दी। बस यहीं से इनकी समस्या शुरू हो गई। उस बाबू ने हुरो की पत्नी विजया देवी के साथ-साथ हुरो हजाम काे मृत घोषित कर पेंशन सूची से दोनों का नाम हटा दिया। पत्नी के साथ हुरो को भी मृत घोषित कर देने के कारण उसको पेंशन की राशि मिलनी बंद हो गयी।
हुरो हजाम बताते हैं कि जब वह पेंशन लेने तीन साल पहले बैंक गये तो बैंक वालों ने बताया कि पैसे नहीं आये हैं। तो उनको लगा कुछ दिन में पैसा आ जायेगा। लेकिन कई माह बीत जाने के बाद भी जब बैंक में पैसे नहीं आये, तो उन्होंने प्रखंड कार्यालय में पेंशन से संबंधित बाबू से संपर्क किया। तब पता चला कि गलती से पत्नी के साथ-साथ उनका भी नाम पेंशन सूची से हटा दिया गया है। उसके बाद आश्वासन मिला कि गलती हो गयी है, इसे सुधार कर पुनः पेंशन राशि मिलने लगेगी।
कुछ दिन बाद हुरो हजाम फिर बैंक ऑफ इंडिया की छोटकी खरगडीहा शाखा गये, पर वहां पता चला कि पेंशन की राशि आ ही नहीं रही है। चलने में असमर्थ हुरो हजाम पुनः प्रखंड कार्यालय गये। इस बार उन्हें बाबू ने बताया कि उनके बैंक खाते में गड़बड़ी है, इसलिए वह दूसरे बैंक में खाता खुलवायें। इस पर उन्होंने यूनियन बैंक की शाखा में खाता खुलवाया और फिर प्रखंड कार्यालय में इसकी जानकारी दी। खाता संख्या भी उपलब्ध कराया, बावजूद उन्हें आज तक पेंशन नहीं मिल पायी है।
एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा, यानी हुरो हजाम की आर्थिक स्थिति काफी खराब है, ऊपर से दिव्यांग होने के कारण ठीक से चल-फिर भी नहीं पाते हैं। स्थानीय भाषा में हुरो हजाम कहते हैं- “बाबू सबके बोलते-बोलते थक गेलियो, सभीन खाली भरोसा देलको, लेकिन आज तीन बछर होय गेलो, पेंशन नाय मिललो। परेशान होयकेर आस-उम्मीद छाड़ देलियो, बाकी भगवानेर मालिक।” (बाबू सबको बोलते-बोलते थक गए, सभी केवल भरोसा देते रहे, लेकिन आज तीन साल हो गये पेंशन नहीं मिली, परेशान होकर आशा और उम्मीद छोड़ दिए, आगे भगवान मालिक है)।
वे कहते हैं कि उनकी पत्नी की मौत वर्ष 2020 में हो गयी उनको कोई बेटा नहीं है। दो बेटियां हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। अभी एक बेटी को अपने यहां रखे हैं, ताकि उनकी देखभाल हो सके। वे चल पाने में असमर्थ हैं। घर की माली स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि जरूरी दवा भी खरीद सकें।
पंचायत की मुखिया सुनीता देवी बताती हैं कि “हमने हुरो हजाम को पुनः पेंशन दिलवाने के लिए नया बैंक खाता भी खुलवाया। इस संबंध में विभाग से संपर्क कर बताया भी, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। तकनीकी खराबी की बात कहकर तीन साल बाद भी पेंशन चालू नहीं किया गया जो दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं है बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता का परिचायक भी है।”
इस मामले पर प्रखंड के बीडीओ मो. कयूम अंसारी कहते हैं कि “कोई तकनीकी समस्या रही होगी। यह भी हो सकता है कि सोशल ऑडिट में ग्रामीण गलत जानकारी दिये होंगे। हुरो हजाम एक आवेदन दें, संबंधित पंचायत सचिव व मुखिया से जांच रिपोर्ट लेकर शीघ्र पेंशन चालू करा दी जायेगी।”
बोकारो के खेदन घांसी भी परेशान
इसी तरह का एक मामला बोकारो जिले के कसमार प्रखंड स्थित बगदा गांव के खेदन घांसी (पिता छुटू साव) के बारे में देखने को मिला। उन्हें पिछले कई वर्षों तक नियमित रूप से वृद्धावस्था पेंशन मिल रही थी। कि अचानक सितंबर 2022 से पेंशन राशि मिलना बंद हो गयी। अचानक पेंशन रुक जाने से वे परेशान हो गये। क्योंकि पेंशन उनके जीवनयापन का एक बड़ा सहारा थी। इस बावत वे संबंधित कार्यालयों और कर्मियों के पास दौड़ लगानी शुरू की। तब कहीं जाकर काफी पूछताछ और भागदौड़ के बाद पता चला कि सरकारी रिकार्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है।
इसके बाद वे खुद को जीवित साबित करने के लिए काफी भागदौड़ की, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। लेकिन आठ महीने बाद मई में एक अखबार ने इस मामले को छापा और यह मामला सोशल मीडिया पर चला तब जाकर स्थानीय प्रशासन की नींद खूली और 21 जुलाई को उनके बैंक खाते में अप्रैल से जून 2023 तक की तीन माह की पेंशन राशि भेजी गई और यह आश्वासन दिया गया कि नवंबर 2022 से मार्च 2023 तक की पेंशन राशि का एकमुश्त भुगतान भी जल्द हो जायेगा।
मामलों में उदासीन रहता है प्रशासन
अब देखना यह है कि खेदन घांसी की तरह हुरो हजाम पर स्थानीय प्रशासन की मेहरबानी कब तक होती है, होती भी है या नहीं?
हुरो हजाम के मामले में बीडीओ मो. कयूम अंसारी जिस उदासीनता से कह गए कि “कोई तकनीकी समस्या रही होगी। यह भी हो सकता है कि सोशल ऑडिट में ग्रामीण गलत जानकारी दिये होंगे।” बीडीओ की यह बात ताकीद करती है वे और उनका महकमा इस मामले पर ज्यादा गंभीर नहीं है। क्योंकि जो पीड़ित पिछले तीन साल से अपने जीवित होने का गुहार लगा रहा हो, ऐसे में बीडीओ को संबंधित कर्मचारियों पर कार्रवाई करने और तुरंत इसे सुधार करने की बात करनी चाहिए थी।
इस तरह अनगिनत मामले हैं, जिस पर जब तक हंगामा नहीं होता तब तक कुछ नहीं होता है। जाहिर है इस तरह से किसी जिंदा व्यक्ति को मृत घोषित कर देना प्रखंड कर्मियों की कर्तव्यहीनता ही नहीं बल्कि संवेदनहीनता को भी दर्शाता है।
(झारखंड विशद कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट।)