किसान आंदोलन प्रज्ञा ठाकुर।

आतंकवाद की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर ने किसानों को बताया देशद्रोही

भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने किसान आंदोलन को लेकर जहर उगला है। प्रज्ञासिंह ठाकुर का कहना है कि जब पंजाब में ये कृषि कानून लागू ही नहीं किये गए तो पंजाब के किसान आंदोलन क्यों कर रहे है? ये किसान नहीं बल्कि वामपंथी-कांग्रेसी देशद्रोही लोग हैं।

जैसा कि 2014 से एक भूमिका तैयार की जा रही थी कि जो भी सरकार की नीतियों का विरोध करे उनको देशद्रोही/गद्दार घोषित कर दिया जाए वो अब चरम को प्राप्त हो रहा है। वामपंथी विचारधारा व कांग्रेसी विचारधारा के लोगों सहित तमाम विपक्षी पार्टियों को सरकार की नीतियों का विरोध करने पर तुरंत देश विरोधी होने का प्रमाणपत्र बांटा जाने लगा है।

मुख्य धारा का मीडिया आज एन्टी पब्लिक व प्रो-गवर्नमेंट के स्वरूप में कार्य कर रहा है। भारतीय मीडिया के नाम पर सिर्फ भारतीय बचा है और मीडिया गायब है। दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों में सोशल मीडिया द्वारा गलत सूचनाएं प्रसारित होती हैं तो मुख्यधारा का मीडिया सच्चाई सामने रखता है लेकिन भारत में मुख्यधारा का मीडिया झूठ, अफवाह फैलाता है और सोशल मीडिया खोजी पत्रकारिता करता हुआ सच्चाई लोगों के सामने ला रहा है।

बात प्रज्ञा ठाकुर की हो रही थी तो इनका संक्षिप्त इतिहास जान लेना चाहिए। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव की हमीदिया मस्जिद के पास बम विस्फोट हुआ जिसमें 7 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए। इससे पहले दिल्ली में शबे-बारात के दिन भी सीरियल ब्लास्ट हुए थे। पुलिस ने शुरुआत में मुस्लिम चरमपंथी संगठनों पर शक करके जांच शुरू की थी लेकिन जो बाइक बम ब्लास्ट में उपयोग की गई उसका रेजिस्ट्रेशन चेक हुआ तो यह प्रज्ञा ठाकुर के नाम निकली। जब जांच इस तरफ़ बढ़ी तो राष्ट्रीय हिन्द सेना व अभिनव भारत जैसे संगठनों के नाम सामने आए। जांच की अगुवाई कर रहे थे एटीएस चीफ हेमंत करकरे।

26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकी हमले में हेमंत करकरे शहीद हो गए। उसके बाद जांच राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंप दी गई थी। एनआईए ने प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित व मेजर उपाध्यय पर मकोका भी लगा दिया। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के आरोपी सुनील जोशी की हत्या में भी प्रज्ञा ठाकुर का नाम आया लेकिन 2017 में मध्यप्रदेश की देवास कोर्ट एनआईए ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की और प्रज्ञा ठाकुर को बरी कर दिया। अजमेर के दरगाह बम ब्लास्ट मामले में भी एनआईए ने 2017 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी और आरएसएस प्रचारक इंद्रेश कुमार के साथ ही प्रज्ञा ठाकुर को राजस्थान की स्पेशल कोर्ट ने बरी कर दिया।

समझौता एक्सप्रेस मामले को बंद तो नहीं किया गया मगर जज ने फैसला देते समय कहा कि अभियोजन पक्ष ने मजबूत सबूत वापस ले लिए, ज्यादातर गवाह बयानों से पलट गए, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की सीसीटीवी फुटेज पेश ही नहीं की गई। एनआईए ने मकोका के तहत लगाए आरोप हटा लिए।

साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत सात अभियुक्तों पर अब भी चरमपंथ के ख़िलाफ़ बनाए गए क़ानून यूएपीए की धारा 16 और 18, आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साज़िश), 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) और 326 (इरादतन किसी को नुकसान पहुंचाना) के तहत मामला चल रहा है।

यह वही कानून है जिसके तहत कई सामाजिक कार्यकर्ता, कई लेखक, बुद्धिजीवी व छात्र जेलों में बंद हैं। प्रज्ञा ठाकुर जेल से बाहर आई और बीजेपी के टिकट पर भोपाल से सांसद चुनी गई। खुद जिस मामलों की आरोपी है और जिस कानून के तहत मुकदमा चल रहा है उसी कानून के तहत बंद लोगों की रिहाई की मांग को गलत ही नहीं बता रही बल्कि उनकी आड़ में देश के अन्नदाताओं को भी उसी श्रेणी में खड़ा कर रही है।

इससे पहले मुम्बई आतंकी हमले में शहीद हुए एटीएस चीफ हेमंत करकरे के बारे में भी कह चुकी है कि वो मेरे श्राप से मरा है। हेमंत करकरे की शहादत को लेकर भी उस समय सवाल खड़े हुए थे कि गोली आगे से लगी या पीछे से! हो सकता हो प्रज्ञा ठाकुर ठीक कह रही हो और आगे से आतंकियों की गोली से शहीद न होकर पीछे से प्रज्ञा के श्राप से गोली लगी हो! उस बयान पर इसको गिरफ्तार करके पूछताछ की जाती तो हो सकता हो यह श्राप की पुष्टि कर देती! अब यह राष्ट्रवादी पार्टी की सांसद है इसलिए गोबर व गोमूत्र रूपी पेय से सौ टका राष्ट्रवादी बन चुकी है इसलिए देशभक्ति के प्रमाणपत्र छापने की प्रिंटिंग प्रेस खोलकर बैठी है।

भारत का मीडिया जिंदा रहता तो कुछ संभव था। सोशल मीडिया सूचनाओं का आदान-प्रदान तो कर देता है मगर निरंकुश सत्ता का सहयोगी बना मीडिया उसको दरकिनार करने में कामयाब हो जाता है।

(प्रेमाराम सियाग का यह लेख फेसबुक से साभार लिया गया है। विचार लेखक के निजी हैं।)

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