अब जब चंद्रयान-3 भी दर्ज हो चुका है हमारे देश में, तो क्या हम “मेहतर मिष्ठान भंडार कोऑपरेटिव सोसाइटी” के नाम से एक मिष्ठान भंडार की कल्पना कर सकते हैं। जिसका स्वामित्व, प्रबंधन और संचालन सभी मेहतर जाति द्वारा किया जाए और जिसको सभी उन लोगों द्वारा जो जाति का विनाश करना चाहते हैं, वित्तीय व कौशल की सहायता व अन्य समर्थन प्राप्त हो। यदि हम ऐसी कल्पना कर सकते हैं तो इसको वास्तविकता में बदलने में भी वक्त नहीं लगेगा।
क्या यह अग्रवाल/शर्मा स्वीट्स से भी बड़ा ब्रांड बन सकता है? हां बन सकता है क्यों नहीं बन सकता और बनना भी चाहिए। साथ ही यह जाति को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है। जाति का वास्तविक विनाश तब होगा जब सबसे निचले पायदान पर रहने वाली जाति के पास संसाधन और पैसा होगा। और न भी जाति का विनाश हो तो यह इतना तो करेगा की वर्ण व्यवस्था के सबसे निम्न वर्ण के सबसे नीचे की जाति के साथ न्याय करेगा।
मैं बस सोच रहा हूं कि जातिवादी लोग इसे कैसे रोकेंगे या इसके खिलाफ क्या कार्रवाई करेंगे। वे चीनी, अनाज व अन्य सामग्री आदि को रोकने की कोशिश करेंगे तथा संसाधनों को उपलब्ध होने से रोकेंगे, मानव संसाधन को तो नहीं रोक पाएंगे। पर क्या रोक पाएंगे यदि लोग ठान लें कि उन्हें अब मेहतर मिष्ठान भण्डार की ही मिठाई खानी है।
और सोच रहा हूं कि विरोध में लोग किस-किस तरह का तर्क देकर प्रोपोगंडा करेंगे। सफाई करने वाले लोग महंगे हो जायेंगे। लेकिन इसको गौर से समझें तो बात समझ में आएगी। भारत की अर्थव्यवस्था और जाति आपस में जुड़ी हुई हैं। और जो खुलेआम जातिवाद करते हैं वो तो यह कहने में बिल्कुल शर्म नहीं करेंगे कि सफाई कौन करेगा फिर, जैसा सफाई का ठेका बस एक जाति ने ही ले रखी है और साथ में अपमान और गाली खाने का ठेका भी उसने ही ले रखा है और सफाई करते-करते कभी भी मर जाने का ठेका भी उनका ही है ताकि बाकी लोगों को सफाई मिल सके।
पर सवाल तो रहेगा कि जब यह कल्पना सच्चाई में बदलेगी तो सफाई का क्या होगा। पहली बात यह है कि और जाति के लोग भी तो सफाई का काम कर सकते हैं, और यदि आधुनिक समाधान की बात करें तो स्नातक के बाद हर किसी को एक साल सफाई विभाग में काम करना सुनिश्चित किया जा सकता है और यदि ऐसा हुआ तो देश तो चमक ही जाएगा सफाई से और साथ ही साथ सफाई से बनी मिठाई भी मिलेगी खाने को।
(लेखक बाबू आईआईटी पास आउट हैं। और आजकल सामाजिक-राजनीतिक काम में लगे हुए हैं।)