हर्ष मंदर का लेख: कांग्रेस घोषणा पत्र उम्मीद जगाता है 

भारतीय आम चुनाव के रूप में देश में विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक मुकाबला होने जा रहे हैं। भारतीय गणतंत्र के अब तक के सफर में यह चुनाव सबसे महत्वपूर्ण भी होने वाले हैं। चुनाव के नतीजे तय करेंगे कि एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में भारत बचेगा या नहीं। 

विचारधारात्मक आधार पर ऐसे महत्वपूर्ण चुनाव में क्या कांग्रेस, जो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, ने भारतीय गणतंत्र के रास्ते से भटक जाने का पर्याप्त तरीकों से आकलन किया है? यही नहीं, यदि यह सत्ता में लौटी तो क्या उसकी मरम्मत और पुनर्निर्माण का मजबूत और विश्वसनीय ब्लूप्रिन्ट बनाया है? 

47 पृष्ठों का कांग्रेस का घोषणापत्र, जिसे ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया गया है और जो 6 अप्रैल को जारी किया गया, उक्त दोनों बिंदुओं पर प्रयास दिखाई देता है। अपने शुरुआती पृष्ठों में, यह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के रिकार्ड की पड़ताल करता है और फिर सत्ता में आने की सूरत में अपनी प्रतिबद्धताओं और योजनाओं पर आता है। 

यह दस्तावेज़ परफेक्ट भले न हो लेकिन सोच समझकर तैयार किया हुआ और सोचने पर मजबूर करने वाला ज़रूर है। यह मोदी कार्यकाल की खामियां दर्शाने में बेलाग और मुखर है। यह देश में पिछले एक दशक में फैले “डर, धमकी और नफरत भरे माहौल” की बात करता है। हर वर्ग के लोग भय में जी रहे हैं। 

घोषणापत्र चेतावनी देता है कि भारत वास्तव में स्वतंत्र और लोकतान्त्रिक गणराज्य नहीं रह जाएगा। वह घोषणा करता है, “लोकतंत्र रिसता चला गया है। हम एक पार्टी और एक व्यक्ति की तानाशाही की तरफ लुढ़क रहे हैं। संसद समेत हर संस्था ने अपनी स्वतंत्रता खो दी है और सरकार के अधीन हो गई है। देश में एक ही व्यक्ति की मर्जी चल रही है।”   

घोषणापत्र बताता है कि कानून और जांच एजेंसियां गैर-भाजपा नेताओं के खिलाफ फर्जी मामले थोपने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। कानूनों और जांच एजेंसियों का इस्तेमाल लोगों को “डराने-धमकाने के हथियार के रूप में” किया जा रहा है। “भाजपा और उसके सहयोगी विभिन्न धर्म, भाषा, जाति समूहों के लोगों में नफरत फैला रहे हैं।” 

संघीय ढांचा तहस-नहस किया जा रहा है, केंद्र सरकार केन्द्रीय राजस्व का बड़ा हिस्सा अपने पास रख रही है और ऐसे कानून पारित कर रही है जो राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हों। राज्यपालों को गैर भाजपाई राज्यों में कामकाज पंगु करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मीडिया को सरकार के प्रचार का वाहन बनाने के लिए “पुरस्कृत अथवा डराया-धमकाया जाता है।” 

दस्तावेज़ में अर्थव्यवस्था के कई संकटों का भी जिक्र है। सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि कांग्रेस-नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल के मुकाबले धीमी पड़ गई है जिसका असर प्रति व्यक्ति आय, उपभोग और घरों की स्थिति पर पड़ रहा है। 

मोदी के शासन में भारत में ब्रिटिश शासन से भी अधिक असमानता है। शीर्ष 1 फीसदी का हिस्सा ऐतिहासिक रूप से सर्वाधिक ऊंचे स्तरों पर है और वैश्विक रूप से भी सर्वाधिक है।

भारत न केवल नौकरीविहीन विकास के युग में फंस गया है बल्कि नौकरियां कम होने, बढ़ती महंगाई और घोर गरीबी व भुखमरी के युग में फंस गया है। 

घोषणापत्र का संकल्प है कि “भारतीय संविधान हमारा एकमात्र मार्ग निर्देशक और साथी होगा।” कांग्रेस के घोषणापत्र का संभवत: दूसरा महत्वपूर्ण संकल्प है कि “लोकतान्त्रिक संस्थाओं में लोगों के विश्वास को बहाल किया जाएगा।” इसके लिए, सबसे पहले “हम आपको भय से मुक्ति दिलाने का वायदा करते हैं।” अन्य महत्वपूर्ण वादों में मीडिया की आज़ादी समेत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहाल करने और लोगों के शांतिपूर्ण तरीके से संगठित होने, संगठन बनाने के अधिकार की बहाली करना है।

घोषणापत्र “देश के किसी भी हिस्से में अपनी पसंद के भोजन, पहनावे, प्रेम, विवाह, यात्रा अथवा निवास” की निजी स्वतंत्रताओं को बहाल करने की भी बात करता है। उन सभी कानूनों में संशोधन किया जाएगा जो निजता के अधिकार, सोशल मीडिया पर बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में कांट-छांट करते हैं। यह मनमाने और अंधाधुंध तरीके से इंटरनेट निलंबित न करने का भी वादा करता है। 

उल्लेखनीय वादा यह भी है कि संसद के दोनों सदनों की वर्ष में 100 बैठकें होंगी और सप्ताह में एक दिन विपक्षी बेंच के सुझाए एजेंडा पर चर्चा के लिए होगा। पीठासीन अधिकारियों को तटस्थ होना होगा। लोक सभा में और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण तुरंत प्रभाव से लागू किया जाएगा। 

चुनाव आयोग, कैग, केन्द्रीय सूचना आयोग, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति और अल्पसंख्यक आयोगों की स्वायत्तता मजबूत की जाएगी। योजना आयोग को पुनर्जीवित किया जाएगा और उसके साथ योजना प्रक्रिया भी जिसने भारत के विकास की यात्रा को छह दशकों तक संचालित किया। 

यह भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस के घोषणापत्र में “कानूनों को हथियार बनाने, मनमाने छापे, गिरफ्तारियों, हिरासत में यातना, हिरासत में मौतों और बुलडोजर न्याय को समाप्त किया जाएगा।” पुलिस जांच और खुफिया एजेंसियां “कानून के तहत काम करेंगी और इन एजेंसियों को संसद या प्रदेश विधानसभाओं की निगरानी के तहत लाया जाएगा।

इसमें एक कानून जमानत पर भी बनाने का वादा है जो “जमानत नियम है, जेल अपवाद” के सिद्धांत को शामिल करेगा। मुझे लगता है कि नई अपराध संहिताओं को रद्द करने का भी वादा होना चाहिए था जो संसद में बिना किसी महत्वपूर्ण चर्चा या मशविरे के पारित की गईं। 

एक और वादा जिसके भारतीय न्यायिक ढांचे के लिए दूरगामी प्रभाव होंगे, वह है सुप्रीम कोर्ट में दो शाखाएं बनाने का। सात वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ एक शाखा संवैधानिक अदालत होगी जो संविधान की व्याख्या से सम्बद्ध मामले सुनेगी और निर्णीत करेगी तथा दूसरी “कानूनी महत्व या राष्ट्रीय महत्व” के मामले सुनेगी। 

अपील कोर्ट तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ में बैठेगी और उच्च न्यायालय व राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल से अपील सुनेगी। घोषणापत्र में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों से ज्यादा भर्तियाँ होंगी (लेकिन इसके लिए कोटा निर्धारित करने की बात नहीं करता)।

दस्तावेज़ कई ऐसे कानूनी उपाय करने का वादा करता है जिससे बहुलतावाद को बढ़ावा दिया जाएगा और कमजोर आबादियों के खिलाफ भेदभाव का उपचार किया जाएगा। यह सरकारी और निजी रोजगार व शिक्षा में विविधता को बढ़ावा देने के लिए विविधता आयोग स्थापित करेगा। 

यह रोहित वेमुला अधिनियम बनाएगा जिससे शैक्षणिक संस्थानों में वंचित और उत्पीड़ित समुदायों के छात्रों के प्रति भेदभाव से निबटा जाए। यह निजी शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों में आरक्षण को अनिवार्य करेगा और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा हटाएगा। यह समलैंगिक, ट्रांसजेंडर समुदाय में रिश्तों को मान्यता के लिए कानून लाएगा।

सामाजिक न्याय के लिए कल्याणकारी उपायों में वंचित बच्चों के लिए हर डेवलपमेंट ब्लॉक में निवासी शालाओं, हर जिले में अंबेडकर भवन और पुस्तकालयों की स्थापना करने, मैनुअल स्कैवेंजिंग समाप्त करने, मैनुअल स्कैवेंजिंग में किसी की मृत्यु की सूरत में 30 लाख का मुआवजा और विदेशों में पढ़ाई समेत स्कॉलरशिप को बहाल व विस्तारित करने के वादे किए गए हैं।

धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अपने धर्म का पालन करने के बुनियादी अधिकार और संविधान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को दिए अधिकारों का सम्मान करने व इन्हें बरकरार रखने का संकल्प है। यह भी संकल्प है कि “हर नागरिक की तरह, अल्पसंख्यकों को भी अपने पसंद के पहनावे, भोजन, भाषा व निजी कानूनों की आजादी होगी। निजी कानूनों में सुधार को प्रोत्साहित किया जाएगा लेकिन “सम्बद्ध समुदायों की प्रतिभागिता और सहमति से”। 

रोजगार संकट से निपटने का जिक्र घोषणापत्र में बार-बार आता है। प्रस्तावित उपायों में सरकारी रोजगार पर फोकस करना शामिल है लेकिन आर्थिक मॉडल में बुनियादी परिवर्तन करना नहीं जो बेतहाशा संपत्ति पैदा करता है लेकिन उचित रोजगार के सीमित मौके पैदा करता है। 

सरकारी रोजगार के लिए, घोषणापत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण वादा सरकार में और सार्वजनिक इकाइयों में नियमित नौकरियों के अनुबंधकरण को समाप्त करना और यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक रोजगार में अनुबंधित और कैजुअल कर्मचारियों को नियमित किया जाए। इसी तर्ज पर वह, सेना में संविदा पर भर्ती की अग्निपथ योजना रद्द करने और नियमित भर्ती की पुरानी व्यवस्था लागू करने का वादा करता है। 

घोषणापत्र में वादा किया गया है कि केंद्र सरकार में रिक्त 30 लाख पद जिनमें शिक्षक, डॉक्टर, नर्स, पारामेडिक्स और पारामिलिट्री पद शामिल हैं भरे जाएंगे। आंगनवाड़ी कर्मियों और आशाकर्मियों की आख्या व उनका पारिश्रमिक बढ़ाया जाएगा। यहां सीमा यह है कि उन्हें नियमित सरकारी कर्मचारी नहीं बनाया जाएगा। 

ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत पारिश्रमिक बढ़ाकर 400 रुपये प्रति दिन किया जाएगा और शहरी रोजगार कार्यक्रम शुरू किया जाएगा जिसके तहत शहरी गरीबों को शहरी पुनर्निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर के नवीनीकरण में काम दिया जाएगा। 

यह स्पष्ट नहीं है कि पूर्ण रोजगार का लक्ष्य कैसे हासिल किया जाएगा। घोषणापत्र के अनुसार आर्थिक नीति के तीन लक्ष्य होंगे – कार्य, संपत्ति और कल्याण। लेकिन घोषणापत्र में निजी क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने के बारे में कुछ खास नहीं है सिवाय इसके कि कंपनियों के लिए नियमित, गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की अतिरिक्त भर्ती के लिए रोजगार से जुड़ा इन्सेंटिव होगा। डिप्लोमा धारकों और स्नातकों के लिए एक लाख रुपये वार्षिक का अप्रेन्टिसशिप भी प्रस्तावित है। 

घोषणापत्र में मोनोपॉली के प्रति विरोध जताया गया है और कारोबारी उद्यम के लिए इसकी “नीति प्राथमिकता” में सूक्ष्म, लघु और माध्यम इकाइयों में बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा करना है। हालांकि, मुझे इसमें वह रोडमैप नहीं दिखा कि यह किया कैसे जाएगा। समस्या यह है कि घोषणापत्र में यह माना नहीं गया है कि नवउदारवादी आर्थिक मॉडल, जो कांग्रेस ने ही लाया था, में कम नौकरियों का सृजन होता है। यह मॉडल बेतहाशा संपत्ति पैदा करता है लेकिन असमानता को भी बढ़ावा देता है और उचित कार्य के कम अवसर पैदा करता है। 

श्रम अधिकारों के लिए, ऐसे श्रम सुधार लाए जाएंगे जो “श्रम व पूंजी के बीच संतुलन बहाल करेंगे और पूर्ण रोजगार व उच्च उत्पादकता के दोहरे लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश करेंगे।” यह सिद्धांत कैसे काम करेगा कि श्रमिकों को न्याय, नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा मिलेगा, इस पर विस्तार से नहीं कहा गया। गिग श्रमिकों और घरेलू सहायकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने के संकल्प का हालांकि स्वागत ही किया जाना चाहिए।

किसानों को स्वामीनाथन आयोग के आधार पर उनकी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी का वादा किया गया है। कृषि लागत एवं कीमत आयोग वैधानिक संस्था बन जाएगा। कृषि विस्तार की व्यवस्था पुनर्जीवित की जाएगी कि हर कृषि क्षेत्र में श्रेष्ठ गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके। 

कल्याणकारी एजेंडा पर रोजगार एजेंडे से बेहतर विचार किया गया है। एक महत्वपूर्ण वादा नई जनगणना के आधार पर उच्च आबादी आंकड़ों के अनुसार सब्सिडीकृत राशन के कवरेज के विस्तार का है। शहरी गरीबों को सब्सिडीकृत भोजन मुहैया कराने के लिए कैन्टीन कवरेज विस्तार का भी वादा है। केंद्र सरकार की तरफ से वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और विकलांगों को पेंशन में योगदान को वर्तमान 200 – 500 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये करने का वादा है। हर गरीब घर की सबसे बुजुर्ग महिला के बैंक खाते में हर साल एक लाख रुपये ट्रांसफर किए जाने का वादा है। 

एक स्वागत योग्य संकल्प शिक्षा के अधिकार को वर्तमान के छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा अधिकार की सीमा 12 वीं कक्षा तक बढ़ाने का वायदा है। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि हर स्कूल, हर कक्षा और हर विषय का एक समर्पित शिक्षक हो और हर कक्षा के लिए एक समर्पित क्लासरूम हो। शिक्षकों की ठेका नियुक्ति समाप्त होगी। यह भी वादा किया गया है कि पाठ्यपुस्तकों में बदलाव मनमाने राजनीतिक इरादों से नहीं किया जाएगा। बल्कि, सभी पाठ्यपुस्तक वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देंगे और भारतीय संविधान के मूल्यों के अनुरूप होंगे।

उच्च शैक्षणिक संस्थानों की “अकादमिक स्वतंत्रता” सुनिश्चित की जाएगी और उन्हें “अनुसंधान को बढ़ावा देने, प्रयोग करने और खोज करने” के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। घोषणापत्र में छात्रों की अभिव्यक्ति की आजादी और छात्र संघ चुनने के अधिकार बचाने और संरक्षित करने का वादा भी है।

नई शिक्षा नीति की राज्य सरकारों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद समीक्षा की जाएगी। शिक्षा ऋण नीति की समीक्षा की जाएगी ताकि वंचित छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिले और वर्तमान छात्र ऋण पर भुगतान न किया गया ब्याज माफ किया जाएगा। महत्वपूर्ण है कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बहाल की जाएगी।

सामाजिक अधिकारों के ढांचे में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में मुख्य कमी स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में थी। घोषणापत्र में इसे आंशिक रूप से दूर करने की बात है और अस्पतालों, दवाखानों समेत सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा का वादा किया गया है। नि:शुल्क स्वास्थ्यसेवा में जांच, परीक्षण, उपचार, सर्जरी, दवाइयाँ, पुनर्वास और राहत देखभाल शामिल है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सार्वजनिक स्वास्थ्य पैमाने पर अपग्रेड किए जाएंगे। स्वास्थ्य में सरकारी निवेश चार वर्षों में खर्च का 4 फीसदी तक बढ़ाया जाएगा। यह सभी घोषणाएं स्वागत योग्य होते हुए भी जीडीपी के 3 फीसदी स्वास्थ्य खर्च के वैश्विक सुझाए स्तर से काफी कम हैं।

घोषणापत्र में निजी स्वास्थ्य इकाइयों पर स्वास्थ्य बीमा पर जोर दिया गया है जबकि कई वैश्विक और भारतीय अध्ययनों ने दिखाया है कि वंचित तबकों की समुचित स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुंच स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकारी प्रावधानों से ही पूरी की जा सकती है। इसके लिए प्राथमिक और द्वितीय सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों और सभी स्वास्थ्य पेशेवरों की हर स्तर पर सार्वजनिक चिकित्सा शिक्षा में व्यापक विस्तार की जरूरत है लेकिन घोषणापत्र इस पर चुप है।

मणिपुर के लिए, “वर्तमान राज्य सरकार को तुरंत हटाने और समुदायों के जख्मों पर मरहम” का वादा किया गया है। पीड़ितों के लिए समुचित मुआवजे का भी वादा किया गया है। घोषणापत्र में सुलह आयोग गठन करने जिससे राजनीतिक और प्रशासनिक सुलह में मदद मिले और राज्य के सभी लोगों को स्वीकार्य हो, की बात कही गई है।

लेकिन मणिपुर के लोगों की जारी त्रासदी इससे बहुत ज्यादा की मांग करती है। मुझे लगता है कि नागरिक आबादियों को तुरंत निरस्त्रीकरण करने और चुराए हुए सभी हथियारों की जब्ती, तुरंत सीजफायर और पीड़ितों से बातचीत, जख्मों पर मरहम लगाने का वादा होना चाहिए। केंद्र सरकार को प्रभावित समुदायों को राहत, मुआवजे, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए सभी संसाधन मुहैया कराने की प्रत्यक्ष जिम्मेवारी उठानी चाहिए। हिंसा की हर घटना के लिए अलग प्राथमिकी, अन्य राज्यों के पुलिसकर्मियों को शामिल करते हुए विशेष जांच टीमें हों, जिनकी निगरानी अदालतें करें। 

मोदी ने आक्रामक तरीके से कांग्रेस घोषणापत्र को खारिज करते हुए इसे “मुस्लिम लीग की मुहर लगा” करार दिया और दावा किया कि “हर पृष्ठ से राष्ट्र को तोड़ने की बू आ रही है”। एक ऐसे नेता के रूप में जो सच के मामले में बेहद कंजूस माना जाता हो, का बयान होने के बावजूद यह आरोप चौंकाने वाला था। 

वास्तव में मुझे पूरे दस्तावेज़ में मुस्लिम शब्द का जिक्र एक बार भी नहीं मिला। अल्पसंख्यकों के रूप में कुछ राजनीतिक रूप से कमजोर संदर्भ हैं लेकिन मुस्लिम कहीं नहीं है। घोषणापत्र पर मेरे सबसे बड़ी आपत्ति इसी को लेकर है जबकि कई अन्य मामलों में यह उम्मीद जगाने वाला दस्तावेज़ है।

यदि मोदी शासन के दशक को कोई एक चीज परिभाषित करती है तो यह अबाधित नफरती बयानबाजी और नफरती हिंसा है जो मुस्लिम नागरिकों को झेलनी पड़ी है उन तत्वों द्वारा जिन्हें सत्ता का समर्थन और सरपरस्ती हासिल है। इसका जिक्र करने और इसके हाल के उपाय बताने में विफलता इस दस्तावेज़ को कमजोर करती है। 

20 करोड़ मुस्लिम नागरिकों को आश्वस्त करने के लिए कांग्रेस को क्या संकल्प करना चाहिए था? मेरे विचार में शुरुआत पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को पूरी तरह से लागू करने के आश्वासन से होनी थी, जिसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 के दिन पूजा स्थलों का जो किरदार था, उसे बदला नहीं जाएगा। अगला, लोगों की धार्मिक, जातीय या नस्लीय पहचान के कारण लोगों या समूहों को हिंसा का निशाना बनाने और लिन्चिंग के घृणा अपराध के खिलाफ एक राष्ट्रीय कानून बनाना होता।  

नफरती बयानबाजी के खिलाफ भी प्रावधान कड़े करने चाहिए जो न सिर्फ हिंसा उकसाने वाली नफरती बयानबाजी को बल्कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों में कटौती करने वाले बयानों को भी अपराध की श्रेणी में लाता। और मैंने बच्चों के उच्च शिक्षण तक स्कॉलरशिप के विस्तार समेत शिक्षा पर बहुत जोर दिया होता। 

बहुत कुछ ऐसा भी है जो अनकिया करना है। जम्मू एवं कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को रद्द करना और सुनिश्चित करना कि नागरिकता को चुनौती देने के मामले में प्रमाण देने की जिम्मेवारी सरकार की होनी चाहिए, नागरिक की नहीं। भारतीय भूमि पर जन्मे सभी लोगों का भारतीय नागरिकता पर ऑटोमैटिक अधिकार। गौरक्षा कानून और नियमों में भाजपा सरकार के किए सभी संशोधनों को रद्द करना। धर्म परिवर्तन कानूनों और नियमों में भाजपा सरकार के किए सभी संशोधनों को रद्द करना। 

मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बचाने के लिए मैं और भी कई कानून बनाने का वादा करना चाहता। एक विशेष सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही का कानून ताकि उन अधिकारियों को दंडित किया जा सके जो धार्मिक, जातीय, नस्लीय और लैंगिक अल्पसंख्यकों को लक्षित हिंसा और भेदभाव से बचाने के अपने कर्तव्य पालन में विफल रहते हैं या जो गैरकानूनी तरीके से उन्हें न्यायेतर हिंसा और बुलडोजर कार्यवाहियों के साथ निशाना बनाते हैं। एक विशेष कानून जो आर्थिक व सामाजिक बहिष्कार को रोकता व दंडित करता है। एक कानून किसी भी धार्मिक पहचान के लोगों को पूजा स्थलों के पास कारोबार करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है। 

कांग्रेस का घोषणापत्र परफेक्ट नहीं है और मैंने इस समीक्षा में कई कमियों के बारे में बताया है। लेकिन यह विभाजक तो कतई नहीं है, जैसा कि प्रधानमंत्री दावा करते हैं। इसके विपरीत, यह पिछले दस सालों में भारत के सामाजिक ढांचे, लोकतान्त्रिक संस्थाओं और अर्थव्यवस्था को पहुंचाए गए नुकसान को ठीक करने के कई तरीके सुझाता है। 

नफरत, भय और हताशा से भरे इस समय में यह उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी छिन्न-भिन्न सामाजिक ढांचे और अर्थव्यवस्था को ठीक करने का संकल्प कर रही है। इसके घोषणापत्र में देश को स्वतंत्रता संग्राम के समय सोचे गए और संविधान में संकल्पित देश की कल्पना के अनुसार बनाने का संकल्प है। 

यह एक उम्मीद जगाता है कि हम मिलकर उस देश को पुनर्प्राप्त कर सकते हैं जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने अपनी ज़िंदगियां कुर्बान की थीं। एक देश जो समान, न्यायपूर्ण और दयालु है। इस तरह यह अंधियारे होते इस देश में कई दिये जलाता है। 

( हर्ष मंदर रिटायर्ड आईएएस अफसर और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments