Friday, March 29, 2024

धर्म, जाति, लिंग आधारित नफरत भारतीयों को बना रही बीमार

12 अप्रैल, 2023 के नवभारत टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार एक बच्चे की मां ने बताया कि उसकी बेटी आज रोती हुई घर में आई और उसने पूछा ‘ क्या हम मुसलमान इतने गंदे है? ‘ छठी कक्षा की उसकी सहपाठिन ने जब उस पर थूक दिया था तो उसे पता चला कि वह मुसलमान है।

यह बहुत चिंता का विषय है और इस बात का प्रतीक है कि जो हमारे घरों में चर्चाएं चलाई जा रही हैं वे बच्चों के दिमाग पर कैसा प्रभाव डाल रही हैं। इस उम्र में बच्चे आमतौर पर धार्मिक भेदभाव, धर्म, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर किसी से नफरत नहीं करते। लेकिन लगातार नकारात्मक चर्चाएं बच्चों के विकासशील मन पर लंबे समय तक असर डालती हैं।

गुजरात दंगों के बाद टाइम्स आफ इंडिया ने एक रिपोर्ट में कहा था कि धर्मनिरपेक्षता अपनी अंतिम सांसें ले रही है। जवानी तक पहुंचने से पहले ही नफरत के बीज बच्चे के मन में बो दिए जाते हैं। हमारे समाज में जहां जात-पात और धार्मिक भेदभाव पहले से ही मौजूद है, वहां दूसरों के प्रति नफरत की भावनाओं को जगाना बहुत सरल है।

जर्मनी के नाजी राजनीतिज्ञ पाल जोसेफ गोयबल्स, जो कि पार्टी का मुख्य प्रचारक था और 1933 से 1945 तक प्रचार मंत्री रहा, ने इस सिद्धांत पर काम किया कि अगर आप एक झूठ को बार-बार दोहराओगे तो लोग उस पर विश्वास करने लग जाएंगे। यहां तक कि आप स्वयं उसे सच मानने लगोगे। एक बार बोला गया झूठ, झूठ ही रहता है पर हजार बार बोला गया झूठ,सच साबित हो जाता है।

उसने यहूदियों के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से काम किया। यह प्रचार किया गया कि यहूदी खूंबों की तरह फैलते हैं और वे ही जर्मनी की समस्या का मूल कारण हैं। उसके बाद नाजियों ने यहूदियों का नरसंहार कर दिया। नाजी दौर में 60 लाख यहूदी मारे गए। इनमें से 30 लाख यहूदी पोलैंड में मारे गए।

यूरोप और एशिया के बहुत से देशों में यहूदियों के प्रति नफरत आज भी लोगों की मानसिकता का एक हिस्सा है। मणिपुर की ताजा हिंसक घटनाएं कूकी और मैतेई लोगों को दशकों तक एक दूसरे से अलग रखेंगी। यह बहुत ही घिनौनी घटना थी कि महामारी के दौरान जब हमें एकजुट होना चाहिए था, तबलीगी जमात के खिलाफ एक झूठा प्रचार शुरू किया गया और बिना किसी सबूत के कोरोना फैलाने का दोष लगाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया था। हालांकि बाद में अदालत ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया।

जब कुछ महिलाएं एनआरसी के विरोध में शाहीन बाग में धरने पर बैठीं तो उनका मजाक उड़ाया गया। अभी कुछ महीने पहले ही गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के बलात्कारियों को उस समय रिहा कर दिया, जिस समय प्रधानमंत्री मोदी महिलाओं की इज्जत बचाने के अपने प्रण की बात कर रहे थे। अब हम देख रहे हैं कि दिल्ली के जंतर-मंतर में बैठी बेटियां बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं जिस पर महिला पहलवानों ने शारीरिक शोषण का आरोप लगाया है।

ये महिलाएं किसी अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित नहीं हैं बल्कि जाट बिरादरी से हैं। इसका साफ अर्थ है कि नफरत किसी को भी नहीं बख्शती। यह समय इस बात को समझ लेने का है कि नफरत किसी एक समूह या वर्ग तक सीमित नहीं है। यह कमजोर वर्गों के प्रति एक मानसिक रोग बन जाती है। हिटलर यहूदियों को समाप्त करना चाहता था। पर अंत में दूसरे विश्वयुद्ध में मारे गए पांच करोड़ लोगों में बहुतायत में ईसाई थे।

नफरत मानव व्यवहार का स्वभाव नहीं है। लोग तो शांति के साथ रहना चाहते हैं। दूसरों के प्रति नफरत तो घटिया स्वार्थ के लिए फैलाई जाती है। अंग्रेजों के भारत में आने से पहले हिंदुओं और मुसलमानों के एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष की बहुत कम घटनाएं देखने में आती हैं। देश पर अपना शासन कायम रखने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों ने समाज को विभाजित करने के लिए सभी प्रकार के साधनों का उपयोग किया ताकि देश पर अपनी पकड़ मजबूत की जा सके। वे देश को बांटने में कामयाब रहे।

हालांकि यहां उल्लेखनीय है कि विभाजन के दौरान हुए दंगों में 10 लाख हिंदू, सिख और मुस्लिम मारे जाने के बावजूद भी लोगों ने नफरत की राजनीति को स्वीकार नहीं किया। आजाद भारत में प्रथम आम चुनाव में सांप्रदायिकता फैलाने वाली ताकतों को हराया गया। धर्म, जाति और लिंग के भेदभाव के बिना मानववाद और सद्भाव के आदर्शों पर आधारित देश का निर्माण करने का निर्णय लिया। यह भारतीय विचारधारा थी और उपनिवेशवादी शक्ति के खिलाफ सामूहिक आजादी का प्रतीक थीं।

अब ऐसा क्या हो गया है…! यह एक बहुत बड़ा सवाल है…! भारत के लोग उन ताकतों का शिकार क्यों हो गए हैं, जिन्होंने कभी भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया। उल्टे साम्राज्यवादी शक्तियों का साथ दिया। बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ-साथ शिक्षा और मनोवैज्ञानिक धारणाएं नौजवानों के भविष्य के व्यवहार में भेदभाव की भ्रांतियों को जन्म देती हैं।

बच्चे अपनी परवरिश के दौरान पक्षपात, नफरत और बहुत से नकारात्मक विचारों से प्रभावित होते हैं। ‌इस कारण इस तथ्य को गंभीरता के साथ अध्ययन करना और इस तरह के अमानवीय व्यवहार को रोकना बहुत जरूरी है। अब ये फैसला आम लोगों को करना है कि हमें कैसे एकजुट होकर विकास करना है। नफरत समाज को बांटती है, एकता को तोड़ती है और शांतिपूर्ण सौहार्द के लिए खतरा पैदा करती है। इस समय लोकतांत्रिक मंचों और संगठनों को मजबूती प्रदान करके नफरत के खिलाफ लड़ने की जरूरत है।

(अनुवाद-जयपाल, डॉ. अरुण मित्रा)

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