Sunday, April 28, 2024

2023 में हम थोड़ा और पाकिस्तान हो गए

अभी कुछ दिन पहले सुपर कॉप जूलियस रिवोरो ने एक बातचीत में कहा था कि “हम भगवा पाकिस्तान होते जा रहे हैं।” यह टिप्पणी सुनकर ऐसा लगा कि देश के लिए सब कुछ समर्पित कर देने वाले सर्वश्रेष्ठ नागरिक व लोकतंत्र, बंधुत्व, भाईचारे और देश की एकता-अखंडता के लिए जीवन कुर्बान करने वाले हमारे अग्रज आज के मंजर को देखकर कितना आहत और हताश महसूस कर रहे हैं।

सच है कि 2014 के बाद से भारत लगातार इस्लामी पाकिस्तान के रास्ते पर बढ़ते हुए तालिबान होने जा रहा है। भारत के तालिबानी करण का सिलसिला बहुत पुराना है और आजादी के तत्काल बाद से ही शुरू हो गया था। जब 1948 में गांधी जी की हत्या और 6 महीने बाद बाबरी मस्जिद में रात्रि के अंधेरे में भीड़ द्वारा मूर्ति रखी गई थी। उसी के साथ भारत के हिंदू कारण अभियान धीमी गति से शुरू हुआ था। 

जब-जब देश संकट में फंसा इस अभियान को गति मिली। 1967, 75, 84 और 89, 90 ऐसे टर्निंग प्वाइंट थे। जब लोकतांत्रिक भारत को धर्म राज्य में बदलने वालों को आगे बढ़ने का मौका मिला। इस अभियान के छिपे और खुले संचालकों ने 70 वर्षो में आजाद भारत की हमारी विशाल डेमोक्रेसी को अनेकों जख्म दिए हैं। जो 2023 के खत्म होते-होते नासूर में बदल गए हैं।

2014 के चुनाव के बाद संघ नीति भाजपा के हाथ में बहुमत का डंडा आ गया। सत्ता के डंडे के जोर से मोदी सरकार धर्मनिरपेक्ष-समावेशी डेमोक्रेसी को ढिठाई के साथ धर्म राज में बदलने में जुट गई। धर्म आधारित राज्य मूलतः लोकतंत्र विरोध और आधुनिक लोकतांत्रिक प्रगतिशील मूल्यों, वैज्ञानिक तर्कवादी विचारों के निषेध पर खड़ा होता है।

इसको समझने के लिए इस्लामिक देशों- सऊदी अरब, ईरान, कतर, अफगानिस्तान, पाकिस्तान सहित बौद्ध धर्मावलंबी म्यांमार, श्रीलंका, यहूदी इजरायल और पूर्व हिंदू राज्य नेपाल को देखा जा सकता है। इन‌ मुल्कों की खासियत होती है- सैन्य तानाशाही, बहुमतवादी राज्य प्रणाली और अमेरिका के साथ खुले-छिपे गठजोड़ में बंध जाना। फलत: राज्य देसी विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों को (साम्राज्यवादी पूंजी) देश के संसाधनों को लूटने की स्वच्छंद छूट देने के लिए काम करने लगता है।

इन अर्थों में एक छोटा समूह देश की संपदा सत्ता और समाज पर कब्जा कर लेता है। नागरिकों की अकल्पनीय दरिद्रता और राज सत्ताधारियों में की भीभत्स जीवन शैली अपना आत्म सम्मान खो चुके निचले पायदान पर पहुंच गए लोगों को आकर्षित करने लगती है। चरम सांस्थानिक भ्रष्टाचार के साथ राज्य संस्थाओं पर नियंत्रण और दमन के बीच जनता की गाड़ी कमाई से चूसे गए टैक्स के द्वारा सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए नेता का आभामंडल रचा जाता है। जिससे वह अलौकिक दिव्य महामानव दिखने लगे।

देश के संसाधनों को व्यक्ति केंद्रित सत्ता को (यानी निरंकुश तानाशाही) टिकाऊ बनाने के लिए खुला इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह एक आभासी अलौकिक दिव्य शक्ति (तानाशाह) का आविर्भाव कर उसे प्रश्नातीत और जवाबदेही से मुक्त कर समाज के ऊपर आरोपित कर दिया जाता है।

इस प्रक्रिया में लोकतंत्र की सभी संस्थाओं को एक व्यक्ति एक विचार और एक संस्था के अधीन लाकर देश पर क्रूर तानाशाही शोप दी जाती है। जैसा श्रीलंका में गोटाबाया राजपक्षे, पाकिस्तान में जिया उल हक या अरब देशों के तानाशाहियों में आप देख सकते हैं। 1920 और 30 के दशक में जिसे हमने विध्वंसक रूप में यूरोपीय देशों इटली और जर्मनी ने देखा था। जब फासीवादी मुसोलिनी और नाजी हिटलर का आविर्भाव हुआ था।

1969-70 के आसपास पाकिस्तान में पहली बार निष्पक्ष चुनाव हुआ था। जिसमें पूर्वी बंगाल में मुजीबुर्रहमान की पार्टी  और पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो की पीपीपी बहुमत में आई थी। उस समय ऐसा लगा था कि पाकिस्तान सैन्य तानाशाही से निजात पा जाएगा। 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बदले हुए हालात में कुछ समय के लिए भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने।

चूंकि शुरू से ही सैन्य तानाशाही और इस्लामी ताकतों के गठजोड़ वाली सरकारों की नीतियां भारत विरोध पर टिकी हुई थीं। इसलिए अमेरिका और सैन्य औद्योगिक गठजोड़ के साथ भुट्टो की सहमति न बन पाने के कारण सैन्य तख्ता पलट द्वारा भुट्टो को रास्ते से दिया गया। सैन्य तानाशाह जिया उल हक द्वारा अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए इस्लामिक पाकिस्तान का नारा दिया गया और देश में सरियत के शासन की घोषणा कर दी गई। इस समय कई बर्बर कानून बनाए गए। जिसमें ईश-निंदा से लेकर महिलाओं के ड्रेस कोड आदि लागू किए गए।

प्रगतिशील लोकतंत्रिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया (फ़ैज़ की गिरफ्तारी)। देश समाज तथा सत्ता पर मौलवियों मुल्लाओं और सैन्य अधिकारियों का वर्चस्व बढ़ गया। अल्पसंख्यकों पर दमन तेज हो गया। एक भाषा, एक धर्म, एक नेता का नारा गूंजने लगा। धार्मिक क्रियाकलापों और इस्लामिक कानूनों से समाज को चलाने का प्रयास हुआ। इस तरह पाकिस्तान इस्लामिक देश में बदल गया। 

पाकिस्तान में तालिबान तहरीक शुरू हुई। जिसे अफगानिस्तान के समाजवादी शासन के खिलाफ अमेरिकी सैन्य शक्ति के बल पर खड़ा किया गया। जिससे पाकिस्तान के उत्तरी पश्चिमी भाग से लेकर अफगानिस्तान तक कट्टरपंथी गुटों के नियंत्रण में आ गये। आज पाकिस्तान इस त्रिगुट (कट्टरपंथी इस्लामी समूहों, सेन्य काम्प्लेक्स व अमेरिकी वर्चस्व) से लड़ते हुए अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है और अभी तक वहां लोकतंत्र की जडें सुदृढ़ नहीं हो सकी हैं।

खैर इस सवाल को यहीं छोड़ते हैं। धर्म आधारित तानाशाही की खासियत कुछ बिन्दुओं से समझी जाकती हैं। एक- धर्म को तर्क और तथ्य से मुक्त कर उसे आस्था और परंपरा के समतुल्य कर देना। प्राचीन सांस्कृतिक-सामाजिक मूल्यों और धरोहरों को धर्म से संबंद्ध करना।

दूसरा- सामाजिक विभाजन, दरिद्रता, अभाव को दैवी इच्छा और पिछले जन्मों के कर्म से जोड़ते हुए वर्तमान के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक ढांचे के विषमता मूलक वर्ग चरित्र को नागरिकों की निगाह से ओझल कर देना।

तीसरा- महिलाओं की दासता को सुनिश्चित करना और उन्हें समाज के सभी बुराइयों की जड़ घोषित करते हुए उन पर अनेक तरह के प्रतिबंधों को आरोपित करना। (भारत में बाबाओं के प्रवचनों में अक्सर ऐसा सुनने को मिल जाएगा। जैसे पतिव्रता पत्नी)।

चार- अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा, दमन, भेदभाव के साथ उनका दानवीकरण करते हुए देश की एकता और प्रगति में बाधक घोषित कर दिया जाता है। उनसे उनकी धार्मिक पहचान को समर्पित करने और प्रमुख धर्म के अधीन आ जाने की हिदायत दी जाती है।

इस क्रम में दलित, आदिवासी, पिछड़े, कमजोर वर्गों व उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले प्रगतिशील, लोकतांत्रिक नागरिकों, मानवाधिकार संस्थाओं को देश समाज व धर्म विरोधी बना कर राज्य, देश की “श्रेष्ठतम शक्तियों” के भक्षण में जुट जाता है। सभी श्रेणी के धर्म आधारित राष्ट्र आधुनिक लोकतंत्र के बुनियादी उसूलों- आजादी, समानता, बंधुत्व व भाईचारे के उच्च मानवीय मूल्य से समाज को वंचित कर देते हैं। यह प्रवृत्ति आप इस्लामी, यहूदी, ईसाई, बौद्ध और जुईस राज्यों में देख सकते हैं। इस कसौटी पर 2023 को कसते हैं तो जम्हूरित को नए वर्ष में हिंदूत्ववादी ताकतों से गंभीर चुनौती मिलने जा रही है।

2023 में भाजपा सरकार का केंद्रीय अभियान दो बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। एक, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण व मंदिर में राम की प्राण प्रतिष्ठा। दो, वाराणसी में ज्ञान व्यापी मस्जिद का सर्वे। वर्ष बीतते बीतते मथुरा की शाही मस्जिद को भी इस दायरे में खींच लाया गया। लव जिहाद, धर्मांतरण, जनसंख्या जिहाद जैसे मुद्दे तो पहले से मौजूद ही हैं।

राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के नाम पर मोदी की राम के उद्धारक की छवि को इस तरह पेश किया जा रहा है कि उनके नेतृत्व में साढ़े चार सौ वर्ष बाद राम मंदिर में दर्शन पूजन का मौका मिलने जा रहा है। ढेर सारे झूठ सच के साथ गढ़ा गया इतिहास साढ़े चार सौ वर्ष बाद वापस आ रहा है।

ऐसा दावा करते हुए खुद प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि 22 जनवरी से आपको रामलला के दर्शन का ऐतिहासिक मौका मिलेगा, जिससे हिंदुओं को साढ़े चार सौ वर्षो से वंचित रखा गया था। यही नहीं इसे प्राचीन भारत के हिंदू गौरव के 21वीं सदी में वापसी का संकेत माना जा रहा है। इस तरह से 2023 के समाप्त होते-होते भारत हिंदू राष्ट्र के रास्ते पर चल पड़ा है।

30 जनवरी को प्रधानमंत्री ने अयोध्या में जिस तरह का आत्म प्रचार किया। वह इस बात की गवाही दे रहा है कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की सारी मान्यताओं की धज्जियां उड़ा दी गई हैं और भारतीय प्रधानमंत्री वस्तुतः हिंदू राजशाही की धर्म ध्वजा लेकर सड़कों पर निकल पड़े थे। (सावधान हो जाइए!)

इसके साथ विकसित भारत का झौंक लगाते हुए अमृत काल से आगे बढ़कर विकसित भारत का कर्कस शोर शुरू हो गया है। भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसे दिखाने के लिए सभी स्तर पर नौकरशाही तंत्र को झोंक दिया गया है। उच्च नौकरशाहों के नेतृत्व में यात्राएं चल रही हैं। सरकारी कर्मचारियों को लगाकर बडी-बडी स्क्रीनों पर विकसित भारत के आभासी दृश्य दिखाने के लिए गांव-गांव भेजा जा रहा है। जिससे 2024 के जून तक समाज अपने जीवन के यथार्थ को भूल कर काल्पनिक आभासी दुनिया में विचरित करने लगें।

ग्लोबल वर्ल्ड में यूनओ सहित दुनिया की निष्पक्ष संस्थाएं जो विभिन्न मानकों के आधार पर देशों की रेटिंग निकालती हैं। उससे भारत की जो तस्वीर दिखाई दे रही है, वह डरावनी है। इन संस्थाओं द्वारा दिखाए गए भारत के विकास की गति, मानवाधिकार के रिकॉर्ड, भुखमरी और कुपोषण की स्थिति, गरीबी, लोकतंत्र के सूचकांक, अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार में भारत की दयनीय स्थिति को ढकने के लिए जनता की गाड़ी कमाई के अरबों रुपए फूंके जा रहे हैं। इसके लिए निर्लज्जता पूर्वक सरकारी संस्थाओं और कर्मचारियों का दुरुपयोग हो रहा है, जो लोकतंत्र में किसी अपराध से कम नहीं है।

हिंदू राष्ट्र के शुरुआती चरण में ही अल्पसंख्यकों और महिलाओं की स्थिति किस कदर चिंतित करने वाली है। विश्व में अनेक संस्थाओं द्वारा इसके रिकॉर्ड प्रस्तुत किए गए हैं। हम सिर्फ दो प्रसंग की चर्चा यहां करेंगे-

एक, जनवरी 2023 में भारत के गोल्ड मेडलिस्ट महिला पहलवानों ने प्रधानमंत्री कार्यालय से कुछ कदम दूर जंतर-मंतर पर धरना देकर आरोप लगाया कि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और उनके अपराधी गिरोहों द्वारा महिला पहलवानों का यौन शोषण और उत्पीड़न किया जा रहा है। महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष की घिनौनी करतूतों का भंडा फोड़ किया किया, उससे हमारे देश को दुनिया के सामने शर्मसार होना पड़ा। (सिर्फ भाजपा और अंधभक्तों को छोड़कर)

लेकिन आज तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। जिस दिन नई संसद का लोकार्पण हो रहा था महिला पहलवानों ने विरोध दर्ज कराने के लिए प्रदर्शन किया। उनके साथ क्रूरता हुई। उन्हें गिरफ्तार किया गया। पुलिस कस्टडी में रखकर उन्हें अपमानित किया गया।

लेकिन साल बीतते-बीतते दिसंबर में फिर से कुश्ती संघ पर बृजभूषण गिरोह काबिज हो गया। इससे आहत पहलवानों ने अपने मेडल वापस कर दिए। यह राम राज्य की पहली बड़ी झांकी थी। जिस दिन प्रधानमंत्री अयोध्या में 13 किमी का रोड शो कर रहे थे, उसी दिन लगभग एक दर्जन पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजी गई महिला पहलवान विनेश फोगाट (जिन्हें प्रधानमंत्री ने अपने परिवार का बताया था) कर्तव्य पथ पर पैदल चलकर प्रधानमंत्री को अपना अर्जुन अवॉर्ड सहित अन्य पुरस्कार वापस करने गयीं।

पुलिस के रोकने पर विनेश ने वहीं सड़क पर नम आंखों से अपने सारे अवॉर्ड जमीन पर रख दिए। इस पर अभी तक विकसित हिंदू राष्ट्र के आधुनिक सर्व शक्तिमान प्रधानमंत्री के मुखारविंद से एक शब्द भी नहीं निकला।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में दुनिया का मशहूर विश्वविद्यालय बीएचयू स्थित है, जहां 1 नवंबर को बीटेक की छात्रा के साथ तीन भाजपा के पदाधिकारियों द्वारा बंदूक के बल पर नंगा करके यौन शोषण किया गया। इसकी जानकारी चार दिन के अंदर प्रशासन और सत्ता में बैठे हुए लोगों को मिल गई थी। लेकिन 2 महीने बाद 30 तारीख को जब प्रधानमंत्री अयोध्या में रोड शो कर रहे थे, तो चुपके से इन्हें पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश कर दिया गया। प्रधानमंत्री अभी तक मौन हैं।हिंदु युवाओं को संस्कारित करने वाले संघ के इन सुयोग्य सेवकों पर कोई भी हिन्दू देशभक्त बोल नहीं रहा है।

दूसरा, मणिपुर जहां अल्पसंख्यक ईसाई कुकी लोगों के साथ राज्य प्रायोजित हत्या, आगजनी, बलात्कार और हिंसा 7 महीने से चल रही है। आरएसएस के अनुसार हिंदू शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दंगाई नौजवानों ने महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया, बलात्कार किया और हत्या कर दी। उस पर हिंदू हृदय सम्राट मोदी जी के मुंह से अभी तक एक शब्द नहीं निकला है। जबकि भारत इकलौता ऐसा देश है जहां नारियों की पूजा होती है। (पाखंड का चरम)!

2024 के पहले दिन जिस तरह से मणिपुर में कत्लेआम हुआ है और सरकार एक तरफा कार्रवाई करने में लगी है। वह बता रहा है कि आने वाला धर्म राज्य कैसा होगा? लेकिन राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा द्वारा “हिंदू भारत” (संघ विचारकों के शब्दो में) के गौरव को विश्व स्तर पर स्थापित करने वाले प्रधानमंत्री की जुबान से एक शब्द भी अभी तक‌ नहीं निकला है। लेकिन वे देश में घूम-घूम पर गारंटियों के बंडल बांट रहे हैं।

अल्पसंख्यकों (नूंह पर वीएचपी का आक्रमण और गरीब मुसलमान के घरों पर चले बुलडोजर), दलितों के ऊपर हमले, महिलाओं के साथ बलात्कार, युवाओं और किसानों तथा छोटे-मझोल गरीब कारोबारियों की आत्महत्या पर प्रधानमंत्री और उनकी सरकार खामोश है।

यानी मित्था और नश्वर जगत की चिंता छोड़कर प्रधानमंत्री नए वर्ष में आह्वान कर रहे हैं कि 22 जनवरी को 125 करोड़ देशवासी (यहां भी अल्पसंख्यकों को छोड़ दिया गया है) अपने घरों पर राम ज्योति प्रज्वलित कर दिवाली मनायें और सभी मंदिरों, हिंदू घरों में राम का कीर्तन आयोजित करें। ऐसा आदेश सरकारी कर्मचारियों को दिए गए हैं।

इस सदी के शुरुआत में हुए सीरियल बम विस्फोट में शक की सुई जिस संघ नेता इंद्रेश कुमार की तरफ गई थी। उन्होंने कहा है कि सभी धर्मस्थलों जैसे गुरुद्वारों, चर्चों, मस्जिदों, दरगाहों पर “श्री राम जय राम जय जय राम” का पाठ होना चाहिए। (अभी कुछ समझने के लिए बाकी है क्या?)

आप समझ सकते हैं कि धार्मिक तानाशाही नागरिकों तथा जनता के बुनियादी सरोकारों से खुद को किस हद तक अलग कर लेती है। जिसका एहसास हमें 2024 के पहले दिन से ही होने लगा है। जब मणिपुर फिर जलने लगा था और प्रधानमंत्री गुजरात में राजीव मोदी नामक बलात्कार के आरोपी से उपहार स्वीकार कर रहे थे।

आइए, 2024 में पाकिस्तान के रास्ते पर जाते हुए लोकतांत्रिक भारत का जश्न मनाएं। जहां आपस में नफरत करते हुए नागरिक, भूख से बिलबिलाते हुए बच्चे, इज्जत और इस्मत की रक्षा के लिए गुहार लगाती महिलाएं, दवा-इलाज के लिए मरते लोग और रोजगार, सम्मानजनक जिंदगी के लिए जूझते छात्र-नौजवान राज्य की निगाह में ना-चीज बन चुके होंगे और धर्म ध्वज ऊचें आसमान में लहरा रही होगी।

पाकिस्तानी कवियत्री फ़हमीदा रियाज के शब्दों में-

अब तक कहां छिपे थे भाई

तुम भी तो हम जैसे निकले

ओ मूरखता व घामड़पन जिसमें हमने सदी गवांई

आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे,

अहो, बधाई। अरे बधाई, बहुत बधाई।

फिर भी नौजवान बेटी और बेटियों द्वारा संसद में उठाई गई आवाज में उम्मीद की किरण देखते हुए 143 करोड़ देशवासियों को 2024 की शुभकामनाएं।

(जयप्रकाश नारायण किसान नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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