Saturday, April 27, 2024

मणिपुर, नूंह और ट्रेन में क़त्ल: सद्भाव की वापसी ज़रूरी

देश के अलग-अलग हिस्सों में भयावह हिंसा हो रही है। मणिपुर में पिछले तीन महीने से हिंसा जारी है। इसमें करीब 100 व्यक्ति अपनी जान गंवा चुके हैं और लगभग एक लाख बेघर हो गए हैं। मरने वालों में कुकी लोगों की संख्या ज्यादा है और विस्थापितों में कुकी, नागा और ज़ो लोगों की। ये तीनों आदिवासी समुदाय हैं जिनकी बहुसंख्यक आबादी ईसाई है। इसके अलावा, मणिपुर में तीन महिलाओं के साथ जो व्यवहार हुआ उसने पूरे देश को शर्मसार किया है। मणिपुर की हिंसा का नस्लीय-धार्मिक चरित्र सबके सामने है। सरकार या तो हिंसा रोकने में असमर्थ है या जानबूझकर हिंसा होने दे रही है। प्रधानमंत्री ने मणिपुर के हालात पर 37 सेकंड का बयान दिया है। वे इस बीच सात देशों में घूम आएं हैं, वहां से तरह-तरह के पुरस्कार ले आए हैं और देश भर में चुनाव रैलियां संबोधित कर चुके हैं। परन्तु वे पीड़ितों से मिलने मणिपुर नहीं गए। यह शायद उतना ही शर्मनाक है जितनी कि हिंसा है।

हिंसा के पहले कुकी आदिवासियों के खिलाफ नफरत फैलाई गयी। उन्हें म्यांमार से आए घुसपैठिया बताया गया। उन पर यह आरोप भी लगाया गया कि वे अफीम उगाते हैं और खेती की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं। मणिपुर की हिंसा के बारे में दो बातें साफ़ है: सरकार या तो अक्षमता या मिलीभगत के चलते हिंसा को नियंत्रित नहीं कर रही है। और दूसरा यह कि हिंसा भड़काने के लिए नफरत का ज़हर वातावरण में घोला गया।

आरपीएफ कांस्टेबल चेतन सिंह द्वारा ट्रेन में तीन मुसलमान यात्रियों और अपने वरिष्ठ अधिकारी की गोली मारकर हत्या करने की घटना डरावनी है। उसके अधिकारी से उसे छुट्टी देने से मना कर दिया था और उसके मन में मुसलमानों के प्रति नफरत भरी थी। चेतन सिंह ने ट्रेन में घूम-घूम कर मुस्लिम यात्रियों की पहचान की और उन्हें गोली मारी। उसने उनके कपड़ों और दाढ़ी से पहचाना कि वे मुसलमान हैं (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमें बताया था कि उन लोगों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है)। मुसलमान यात्रियों को मारते समय चेतन सिंह कह रहा था कि मुसलमान पाकिस्तान के प्रति वफादार हैं और अगर उन्हें भारत में रहना है तो ‘योगी-मोदी’ कहना होगा। ऐसा दावा किया जा रहा है कि वह मानसिक रूप से बीमार था। अगर ऐसा था तो उसे रेल यात्रियों की रक्षा करने के लिए हथियार क्यों दिए गए? या फिर यह इस घोर सांप्रदायिक कांस्टेबल को बचाने की चाल है?

हमारे समाज में नफरत का बोलबाला है। गोदी मीडिया इसे और बढ़ावा दे रहा है। मीडिया के दूसरे हिस्से इस नफरत को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। इसका नतीजा हम सबके सामने है। चेतन सिंह हमें शम्भूदयाल रेगर नाम के दुकानदार की याद दिलाता है जिसने सोशल मीडिया पर लवजिहाद के दुष्प्रचार से प्रभावित हो कर एक बंगाली मुस्लिम श्रमिक अफराजुल की हत्या कर दी थी। इन दोनों घटनाओं से साफ़ है कि समाज में सांप्रदायिक ताकतों द्वारा अलग-अलग चैनलों के ज़रिये फैलाई जा रही नफरत हमें कहां ले आई है।

हरियाणा के नूंह के घटनाक्रम के बारे में दो चीज़ों पर ध्यान दिए जाने की ज़रुरत है। ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा हर साल निकाली जाती है। इसकी मंजिल होती है नल्हर महादेव मंदिर। यह दिलचस्प है कि इस साल यह यात्रा उन रास्तों से निकली जिनके आसपास मुस्लिम बस्तियां थीं। मंदिर में विहिप नेता सुरेन्द्र जैन मौजूद थे। यात्रा शुरू होने से पहले से ही वे मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में जुटे हुए थे। उनके भाषणों के वीडियो उपलब्ध हैं।

इसके अलावा मोनू मानेसर, जो नासिर और जुनैद की हत्या और एक चार-पहिया वाहन में उन्हें जलाए जाने की घटना में आरोपी है, ने भी एक वीडियो जारी कर कहा था कि वह यात्रा में शामिल होगा और लोगों से अपील की थी कि वे उसका स्वागत करने के लिए मौजूद रहे। मोनू बजरंग दल के गौरक्षा सेल का प्रमुख है और नासिर और जुनैद की हत्या में शामिल होने के कारण नूंह के लोग उससे नफरत करते हैं। मोनू का वीडियो भड़काऊ था। इसी तरह का वीडियो बिट्टू बजरंगी नाम के एक अन्य कथित गौरक्षक ने भी जारी किया। ऐसा लगता है कि विहिप ने इन दोनों को यात्रा में शामिल न होने की सलाह दी।

ऐसा दावा किया जा रहा है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने जुलूस पर हमला किया और मंदिर पर भी। घटना के वीडियो से पता चलता है कि मंदिर के अन्दर से पुलिस के मौजूदगी में धर्मरक्षकों ने गोलीबारी की। जुलूस में शामिल लोग हथियार लिए हुए थे और वे जानबूझकर मुस्लिम-बहुल इलाकों से भड़काऊ नारे लगाते हुए निकले। जुलूस पर हमला करने वाले भी हथियारबंद थे।

वीडियो से साफ़ है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रही या उसने अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया। जुलूस में शामिल लोगों ने एक मस्जिद पर भी हमला किया और उसके नायब इमाम को मार दिया। करीब 200 हिन्दुत्ववादियों की भीड़ ने गुडगांव के सेक्टर 57 में इस मस्जिद पर हमला किया। उन्होंने वहां सो रहे तीन लोगों की पिटाई की, नायब इमाम शाद को कई बार चाकू से गोदा और मस्जिद में आग लगा दी। नायब इमाम की मौत हो गयी। उसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध है जिसमें वह प्रार्थना कर रहा है, “हिन्दू-मुस्लिम बैठ के खाएं थाली में ऐसा हिंदुस्तान बना दे या अल्लाह”।

नूंह से हिंसा दिल्ली-एनसीआर के अन्य इलाकों में फ़ैल गयी है। ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने पुलिस महानिदेशक और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से कहा है कि हिंसा को फैलने से रोका जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नूंह के घटनाक्रम पर बहुत सटीक टिपण्णी की है। दिल्ली के कान्सटीट्यूशन क्लब में बोलते हुए उन्होंने कहा, “जाट समुदाय संस्कृति और परंपरा से आर्यसमाजी जीवन पद्धति में आस्था रखता आया है और आम तौर पर जाट बहुत धार्मिक नहीं होते। उस इलाके के मुसलमान भी पुरातनपंथी सोच वाले नहीं हैं। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक वहां दोनों समुदायों के बीच टकराव के बारे में इसके पहले शायद ही हमने कभी सुना हो। परन्तु जैसा कि मणिपुर से जाहिर है, 2024 के चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आते जाएंगे, इस तरह की घटनाएं और होंगीं।”

विहिप का इस इलाके में कई जुलूस निकलने का इरादा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इन जुलूसों के दौरान न तो हिंसा हो और ना ही नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाएं।

हमें नफरत से मुकाबला करना ही होगा। हमें नफरत के खिलाफ आन्दोलन चलाना होगा। हमें ऐसे प्रशासनिक तंत्र और पुलिस बल की ज़रुरत है जो बहुवाद और विविधता के मूल्यों के प्रति संवेदनशील हो। हमें ऐसी सरकार चाहिए जो भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्ध हो, सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के प्रति नहीं।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया; लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

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