अविश्वास प्रस्ताव: सरकार इधर-उधर की बात करेगी, यह नहीं बताएगी कि काफिला क्यूं लुटा?

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लोकसभा में सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों की ओर से पेश अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू हो चुकी है। अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से पहले विपक्षी दल प्रधानमंत्री से मणिपुर की स्थिति पर बयान देने की मांग कर रहे थे लेकिन बयान देना तो दूर, प्रधानमंत्री ने चालू सत्र के दौरान संसद में आना भी गवारा नहीं किया। इसी वजह से विपक्ष ने मणिपुर को केंद्र में रख कर अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का फैसला किया। मंगलवार को प्रस्ताव पर बहस शुरू हुई है। बहस का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवत: शुक्रवार को देंगे लेकिन प्रस्ताव पर मंगलवार को सत्तापक्ष की ओर से बोलने वाले वक्ताओं ने जिस तरह अपने भाषण में मणिपुर के हाल के घटनाक्रम का जिक्र तक नहीं किया और विपक्षी दलों के गठबंधन पर विपक्षी नेताओं पर जिस तरह छिछले कटाक्ष किए हैं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री का भाषण कैसा होगा!

सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव का अंजाम क्या होगा, यह सबको मालूम है। सदन में संख्याबल के लिहाज से विपक्ष बेहद कमजोर है और सरकार के पास भारी भरकम बहुमत है, लिहाजा अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय है। इस तथ्य के बावजूद मंगलवार को अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस की ओर से गौरव गोगोई के बहस शुरू करते ही सत्ताधारी भाजपा की ओर से उसके सांसदों और मंत्रियों ने जिस तरह टोका-टोकी करते हुए शोर मचाया, जिस तरह सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लेकर छिछले कटाक्ष किए और जिस तरह सवाल उठाया कि बहस की शुरुआत करने से राहुल गांधी ऐन वक्त पर पीछे क्यों हट गए, उससे साफ जाहिर हुआ कि मणिपुर जैसे जिस अहम मुद्दे को केंद्र में रख कर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, उस मुद्दे को लेकर सरकार और सत्ताधारी पार्टी अभी भी बिल्कुल गंभीर नहीं है।

दरअसल विपक्ष के नए बने गठबंधन, मणिपुर के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता व सख्ती और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल होने से सरकार और सत्ताधारी पार्टी बुरी तरह परेशान और बौखलाई हुई है। उनकी यह परेशानी संसद के बाहर तो प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों और नेताओं के भाषण में व्यक्त हो ही रही है, उसकी झलक मंगलवार को अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान भी खूब देखने को मिली। राहुल गांधी ने बहस की शुरुआत खुद क्यों नहीं की और गौरव गोगोई से क्यों करवाई, इसको लेकर ही सरकार के मंत्रियों और सत्तापक्ष के सांसदों ने खूब शोर मचाया तथा राहुल गांधी पर छिछले कटाक्ष किए।

दरअसल कांग्रेस ने पहले तय यही किया था कि अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की शुरुआत राहुल गांधी ही करेंगे। कांग्रेस को उम्मीद थी कि अभी तक सत्र के दौरान संसद में नहीं प्रधानमंत्री कम से कम अपनी सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव के मौके पर तो सदन में उपस्थित होंगे ही। लेकिन जब मालूम हुआ कि प्रधानमंत्री आज भी सदन में नहीं आने वाले हैं तो पार्टी ने अपनी रणनीति बदली और राहुल के बजाय गौरव गोगोई से बहस की शुरुआत कराने का फैसला किया और अपने फैसले की जानकारी लोकसभा अध्यक्ष को दी।

दूसरी ओर सत्तापक्ष ने यह मान कर कि बहस की शुरुआत राहुल गांधी करेंगे, उनका पूरे विपक्ष का मनोबल गिराने के लिए उन्हें ट्रोल करने की पूरी तैयारी कर रखी थी, लेकिन जब स्पीकर ने बहस की शुरुआत राहुल के बजाय गौरव गोगोई का नाम पुकारा तो सत्तापक्ष मायूस नजर आया और उसकी ओर से गौरव गोगोई के भाषण शुरू करने पर राहुल को खूब ट्रोल किया गया। लेकिन राहुल अपनी सीट पर खामोश बैठे रहे। हैरानी की बात यह है कि ट्रोल करने वालों में संसदीय कार्य मंत्री भी पीछे नहीं रहे। ऐसे मौके पर मंद-मंद मुस्कुरा रहे स्पीकर को भी सदन की मर्यादा और गरिमा की याद नहीं आई, जबकि विपक्षी सदस्यों को वे अक्सर सदन की मर्यादा और गरिमा की याद दिलाते रहते हैं।

बहरहाल गौरव गोगोई ने अपना 38 मिनट का पूरा भाषण मणिपुर के मुद्दे पर केंद्रित रखा। उन्होंने कहा कि भाजपा एक भारत की बात करती है लेकिन उसने दो मणिपुर बना दिए हैं। गोगोई ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी वैसे तो खूब बोलते हैं लेकिन हर महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से जानना चाहा कि वे अभी तक मणिपुर क्यों नहीं गए, वहां की घटनाओं पर बोलने से क्यों बच रहे हैं और मणिपुर के मुख्यमंत्री को अभी तक बर्खास्त क्यों नहीं किया गया?

गोगोई के अलावा विपक्ष की ओर डीएमके के टीआर बालू, एनसीपी की सुप्रिया सुले और समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव ने भी अपने भाषण में मणिपुर के हालात को अभूतपूर्व और चिंताजनक बताते हुए प्रधानमंत्री की चुप्पी पर हैरानी जताई।

मंगलवार को बहस में भाजपा की ओर से केंद्रीय भू-विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू और निशिकांत दुबे ने भाग लिया। दोनों ने ही अपने भाषण में मणिपुर के ताजा हालात पर बात करने के बजाय वहां अतीत में हुई घटनाओं का जिक्र कर कांग्रेस से सवाल किए। निशिकांत दुबे के भाषण का तो ज्यादातर हिस्सा राहुल और सोनिया गांधी पर निजी कटाक्ष करने और विपक्षी गठबंधन इंडिया की खिल्ली उड़ाने पर केंद्रित था, जबकि किरेन रिजिजू ने विपक्ष पर देश के खिलाफ काम करने का ही आरोप जड़ दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 2047 तक देश को पूर्ण रूप से विकसित करने के लक्ष्य पर काम हो रहा है, विपक्ष को भी मोदी के नेतृत्व का समर्थन करना चाहिए, तभी यह माना जाएगा कि वह देश के लिए सोचता है।

रिजिजू और दुबे के भाषण बानगी हैं। अभी भाजपा की तरफ अमित शाह, निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, रामकृपाल यादव सहित और 12 वक्ताओं को बोलना है। कोई वजह नहीं दिखती कि ये लोग भी रिजिजू और दुबे की लीक से हट कर बोलेंगे। शुक्रवार यानी 10 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी बहस का जवाब देंगे। अनुमान लगाया जा सकता है कि मोदी का भाषण किस लाइन पर होगा! सब जानते हैं कि अवसर या स्थान कोई भी हो, उनका हर भाषण अधूरा सच, गलत बयानी, परनिंदा, धार्मिक व सांप्रदायिक प्रतीकों का इस्तेमाल और आत्म-प्रशंसा, इन्हीं पंच तत्वों से भरा होता है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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