दुनिया को किस दिशा में ले जा रहा है यूक्रेन संकट

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कई महीनों से लाखों की संख्या में रूसी फौज ने तीन तरफ से यूक्रेन की घेराबंदी कर रखी थी। कई सप्ताह से वास्तविक युद्ध जैसे हालात के बीच रूसी फौजों का युद्धाभ्यास जारी था। इसके साथ ही एक से बढ़कर एक भड़काऊ बयानबाजियों से ये स्पष्ट संकेत मिल रहे थे कि अबकी बार रूस की पश्चिमी सीमा और यूरोप के उत्तरी-पूर्वी मुहाने पर घनीभूत हो रहे युद्ध के बादल मात्र गरज कर ही नहीं रह जाने वाले हैं, ये बरसेंगे भी।

इस मामले में फरवरी के तीसरे सप्ताह से घटनाक्रम में जबरदस्त तेजी आ गई। 22 फरवरी को यूक्रेन के सवाल पर सुरक्षा परिषद् की आपात बैठक में गोलमोल बातें हुईं। इसमें कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। 23 फरवरी को रूसी राष्ट्रपति पुतिन के द्वारा पूर्वी यूक्रेन के दोनों राज्यों दोनेत्स्क और लुहान्स्क को आजाद देश के रूप में मान्यता दे दी जाती है। ये स्लाव बहुल यानी रूसी बहुल क्षेत्र हैं। ये क्षेत्र दशकों से यूक्रेन की केंद्रीय सरकार से आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए, आजादी हासिल करने की लड़ाई लड़ रहे थे। पुतिन इसके साथ यह भी ऐलान कर देते हैं कि यूक्रेन की फौज हमारे सभी रूसी भाइयों पर जो कहर ढा रही है, उसे रूस चुपचाप खड़े रहकर नहीं देख सकता। वे चेतावनी के लहजे में कहते हैं कि यूक्रेन यह सब तुरंत बंद नहीं करता तो रूस कड़ा कदम उठाएगा। 24 फरवरी को ही वहां रूसी फौज सीधे घुस जाती है। पहले शांति-सेना के रूप में और फिर रूस द्वारा शुरू किए गए विशेष सैन्य अभियान के एक अंग के बतौर।

इसके बाद यूक्रेन में इमरजेंसी लगा दी गई। रूसी बम और मिसाइलें वहां बरस रही हैं। अमेरिका, कुछ पश्चिमी देशों तथा जापान व ऑस्ट्रेलिया के द्वारा रूस पर कुछ पाबंदियां लगाई गई हैं, और अब जाकर हरबे-हथियार भी भेजे जा रहे हैं जो कि यूक्रेन की जरूरत से बेहद अपर्याप्त हैं।

जो भी हो, यूरोप की धरती पर एक बार फिर एक युद्ध के बरपा होने की शुरुआत हो चुकी है। यूक्रेन की राजधानी किएव में भीषण युद्ध जारी है। अमेरिका, नाटो और पश्चिमी साम्रज्यवादी ताकतों ने युद्ध से अपना दामन कहें तो बचा लिया है। यूक्रेन को रूसी विस्तारवाद के सामने एक तरीके से अकेला छोड़ दिया गया है। रूस यूक्रेन में तख्तापलट कर के अपने पिट्ठू को सत्तासीन करना चाहता है। कारण साफ है – रूस नाटो के पूर्वी यूरोप में बढ़ते प्रभाव को किसी भी कीमत पर रोकना चाहता है।

इस बीच यूक्रेन से कुछ ऐसी खबरें भी आ रही हैं जिनमें बताया गया है कि इस युद्ध के खिलाफ नागरिकों ने अदम्य साहस की मिसालें भी पेश की हैं। वह चाहे रूसी टैंकों के सामने एक निहत्थे व्यक्ति का डटकर खड़े हो जाना रहा हो या एक महिला का रूसी सैनिकों से भिड़ जाना। यूक्रेन के लोग युद्ध को टालने के लिए और अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए देश भर में हथियारबंद हो रहे हैं। साथ ही अनाम स्रोतों से यूक्रेन को बिटकॉइन के जरिए लगभग 13.7 मिलियन डॉलर मिलने की खबरें हैं। यूक्रेन का दावा है कि उसने 4300 रूसी सैनिकों को मारा है वहीं 210 से ज्यादा आम यूक्रेनी नागरिकों को अपनी जान गवानी पड़ी है। 

इसी बीच चेचन्या के नेता रमज़ान कदिरोव ने भी यूक्रेन के खिलाफ अपनी सेना उतार दी है। इसके जवाब में “Anonymous” नामक हैकरों के संगठन ने रूस व चेचन्या के खिलाफ साइबर युद्ध छेड़ दिया है। इसके हमले में रूसी सैन्य मंत्रालय की साइट कई घण्टे बाधित रही व कई अन्य संस्थाओं की साइट्स भी डाउन थीं। अरबपति एलन मस्क ने यूक्रेन में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए “स्टारलिंक” की सेवाएं मुहैय्या करा दी हैं। इसी बीच कल खबर थी कि रूस ने यूक्रेन को बेलारूस में बातचीत का प्रस्ताव दिया था, जिसे यूक्रेन ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि बेलारूस में बातचीत संभव नहीं है। फिर बेलारूस की सीमा पर बात-चीत होने की खबरें भी आ रही हैं। वहीं क्रेमलिन, मास्को, सेंट-पीट्सबर्ग में रूसी नागरिक “NO TO WAR” के नारों के साथ रूसी सत्ता के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे हैं। 

संक्षेप में यदि हम इस युद्ध के कारणों की चर्चा करें तो –

1.अमेरिका और यूरोपीय यूनियन द्वारा रूस के मुहाने तक नाटो का विस्तार कर उसके बढ़ते प्रभाव को रोकने के साथ-साथ, फ्रांस और जर्मनी को भी चीन के पाले में जाने से रोकना और रूस द्वारा नाटो की इस विस्तारवादी कार्रवाई के विरोध में खड़ा होना।

 2. यूरोप में पहले से घनीभूत चौतरफा संकट के परिणामस्वरूप जन-उभारों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। ये व्यापक व जुझारू हो रहे हैं। कोरोना वायरस ने इन जन-उभारों की तीव्रता व जुझारूपन को काफी गहरा कर दिया है। इस युद्ध के जरिए साम्राज्यवादी ताकतें राष्ट्रवाद का हौवा खड़ा करके बढ़ते व व्यापक होते जन-आंदोलनों और जन-उभारों को एजेंडे से हटाना चाहती हैं। साथ ही वे उन मुद्दों को भी दरकिनार करना चाहते हैं, जिनकी वजह से ये जन-उभार और आंदोलन उभर रहे हैं।

3. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस जिस हालत में था, उसमें उसने सुधार किया है। उसके आर्थिक हालत बेहतर हुए हैं। चीन के साथ गठजोड़ कर दुनिया को दो ध्रुवीय बनाने में वह चीन का साझेदार बन गया है। अमेरिका और यूरोप के दबदबे को चुनौती देने की स्थिति में वह 2000 के बाद से ही आ गया था, और इसकी शुरुआत उसने 2014 में क्रीमिया पर अपना अधिकार स्थापित कर कर दी थी। यह दुनिया में अमेरिका व यूरोपीय साम्राज्यवादी गुट को एक प्रकार से शिकस्त देना था। साथ ही यह रूस को घेरने की अमेरिकी, यूरोपीय और नाटो की योजना का करारा जवाब भी था।

अभी रूस ने देखा कि अफगानिस्तान, ईरान, इराक में शिकस्त खाने से अमेरिका ने दुनिया में सैन्य और राजनीतिक दबदबे को गंवाया है। सही कहें तो इन शिकस्तों से वह मनोबल खो बैठा है। अमेरिकी और उसकी सरपरस्ती में जो ताकतें हैं उन्हें फिर शिकस्त देकर अपने विश्व प्रभुत्व को बढ़ाने और जमाने के रूप में रूस ने पाया कि यही सबसे उचित मौका है। इसी मौके का फायदा उठाकर रूस ने पूर्वी-यूक्रेन के उन प्रांतों को जो स्लाव बहुल यानी रूसी बहुल हैं और यूक्रेन से दशकों से अपनी राष्ट्रीय मुक्त की लड़ाई लड़ रहे हैं, मोहरा बना लिया।

4. पूरी विश्व-व्यवस्था भयंकर महामंदी की गिरफ्त में है। कोरोना वायरस ने इस महामंदी को और भी विकराल रूप दे दिया है। इस महामंदी को दूर करने के लिए विश्व की साम्राज्यवादी ताकतों ने जिन कदमों को सोचा, उनमें सबसे महत्वपूर्ण कदम दुनिया में सैन्य टकराव को बढ़ाना या ऐसा माहौल बनाना था जिससे कि पूरी दुनिया टकराव की आशंका से ग्रसित हो जाए और अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को वार-इकोनॉमी की दिशा में पुनर्गठित करना शुरू कर दे। हमें मालूम है कि घोर आर्थिक संकटों से छुटकारा पाने के क्रम में साम्राज्यवादी ताकतें सैन्य उन्मादों का हमेशा ही सहारा लेती आई हैं। और भी संकट बढ़े तो वे युद्ध की ओर जाने से भी नहीं हिचकतीं।

साम्राज्यवादियों के बीच का युद्ध भी अर्थव्यवस्था का सैन्यीकरण कर उसके विकास की रफ्तार को बढ़ावा देता है। यह जनता को और भी कष्ट झेलने के लिए मानसिक तौर पर तैयार करता है। उनके रोजमर्रा की सुविधाओं के परित्याग से अमीरों का धन व उनका मुनाफा बेहिसाब बढ़ता चला जाता है। इस तरह उनका संकट कुछ हद तक हल हो जाता है। युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियारों और साजो-सामान के बाजार में भी भारी तेजी आ जाती है, जिसका लाभ उठाकर अमीर देश अपने आर्थिक संकटों से कुछ हद तक छुटकारा पा लेते हैं। फिर युद्ध के बाद बर्बादी और विध्वंस की भरपाई के लिए पुनर्निर्माण के अभियान में तेजी आने से निर्माण कंपनियों के लिए निवेश और मुनाफे का एक और नया क्षेत्र खुल जाता है।

तो यह यूक्रेन वाला युद्ध न सिर्फ यूरोप में राष्ट्रवाद का हौवा खड़ा कर उनके अंदरूनी आंदोलनों व जन-उभारों से उन्हें छुटकारा दिलाएगा, बल्कि वहां के शासक वर्ग को भी अर्थव्यवस्था के सैन्यीकरण के दौरान लॉजिस्टिक्स की आपूर्ति तथा आने वाले विध्वंस के बाद पुनर्निर्माण के दौरान निवेश और मुनाफे के नए क्षेत्र  उपलब्ध कराएगा। इसको एक तरह से होना ही था। साथ ही इस युद्ध का लक्ष्य यूरोप को अपने संकटों से छुटकारा दिलाने में मदद करना भी है।

अब इसके नतीजों पर गौर करें –

  1. पहली बात तो यह है कि यह युद्ध निस्संदेह एक साम्राज्यवादी युद्ध है। यह युद्ध दुनिया के बाज़ार का और निवेश तथा मुनाफे के क्षेत्रों का फिर से बंटवारा करने के लिए लड़ा जा रहा है। इसके एक तरफ तो उभरता हुआ चीनी-रूसी विस्तारवादी गठजोड़ है तो दूसरी तरफ अमरीकी और अन्य पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतें। इससे दुनिया का आर्थिक, राजनैतिक, सैनिक ध्रुवीकरण और भी तेज होकर ठोस रूप ले लेगा। इस रूप में यह यूक्रेनी युद्ध एक ध्रुवीय विश्व की समाप्ति और दो ध्रुवीय विश्व की शुरुआत है।
  2. रूस-चीन गठजोड़ और भी ताकतवर हो जाएगा। अमरीका-यूरोप गठजोड़ इस रूप में कमजोर पड़ेगा, कि यूरोप के दो महत्वपूर्ण देश फ्रांस और जर्मनी के साथ अमेरिका के संबंधों में पहले से पड़ी दरार बढ़ सकती है। वे और ज्यादा चीनी-रूसी खेमे की ओर उन्मुख हो हो सकते हैं।
  3. इससे अमरीका-यूरोप विरोधी चीन-रूस खेमे की ताकत और उसका प्रभाव बढ़ेगा। साथ ही उसका आर्थिक, सैनिक, राजनैतिक दबदबा, रुतबा और प्रभुत्व भी बढ़ेगा। इधर पूर्वी-यूरोप-रूस के मोर्चे पर अमरीका के फंसने से उधर पूर्वी-एशिया में चीन को दक्षिण चीन-सागर और उसके इर्द-गिर्द के अपने आर्थिक, सैनिक और राजनैतिक प्रभुत्व को और बढ़ाने व मजबूत करने का मौका मिल जाएगा।
  4. रूसी हमले के बाद अमरीका और पश्चिमी ताकतों ने जो प्रतिबंध लगाए हैं इनसे रूस को कोई खास नुकसान नहीं होगा। क्रिप्टोकरेंसी, डिजिटल रूबल, चीनी वित्तीय माध्यम व रैन्समवेयर के इस्तेमाल से रूस इन वित्तीय प्रतिबंधों को धता बता देगा। साथ ही 630 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार से भी रूस को ताकत मिलती रहेगी। प्रतिबंध तब भी लगे थे, जब 2014 में रूस ने क्रीमिया को अपने में मिला लिया था। नतीजा क्या निकला? रूस और भी ताकतवर होता चला गया। अमरीकी चुनौतियों को ठेंगा दिखाकर यूक्रेन में भी एक हिस्से को आजाद करा कर और इस बहाने यूक्रेन पर हमला कर उसे सबक सिखा पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा नाटो के इस्तेमाल के जरिए उसको घेरने के तमाम मंसूबों पर रूस ने पहले भी पानी फेर दिया था।

कुल मिलाकर एशिया और पूर्वी-यूरोप की सीमा पर यह टकराव, साम्राज्यवादियों के बीच के अंतरविरोधों का इस सीमा तक बढ़ना इस बात का संकेत है कि इस सबका हल शांतिपूर्ण तरीकों से निकाल पाना उनके लिए संभव नहीं हो रहा है। सशस्त्र टकराव अनिवार्य हो रहे हैं। उनके बीच का यह सशस्त्र टकराव फिलहाल बहुत लंबा चलने वाला नहीं है। यूरोप कभी भी अपनी जमीन पर युद्धों को ज्यादा दिन तक चलने देने के पक्ष में नहीं रहेगा। उनकी मंशा हमेशा यही रहती है कि एशिया, अफ्रीका, लातिनी-अमेरिका में युद्ध होते रहें और वे मजे लूटते रहें।

अतः यह टकराव भी जल्दी ही किसी समझौते का रूप लेकर शांत हो जाएगा, पर आने वाले दिनों में साम्राज्यवादियों के बीच की झड़प बढ़ती जाएगी। मौजूदा विश्व में दो ध्रुवों का ठोस रूप ले लेना और उनके बीच के सशस्त्र टकरावों व झड़पों का बढ़ते चले जाना, यानी साम्राज्यवादी ताकतों के बीच के अंतर्विरोधों का क्रमशः युद्ध (भले ही वह आंशिक हो) की ओर बढ़ते जाना साम्राज्यवाद और उनके दलाल शासक-शोषक वर्गों के खिलाफ इस देश में आंदोलनरत एवं परिवर्तनकामी शक्तियों को अपनी ताकत बढ़ाने और एक बेहतर दुनिया की लड़ाई को आगे बढ़ाने का  भरपूर अवसर उपलब्ध कराएगा।

  • इस युद्ध की कीमत रूसी जनता को भी भारी पड़ने वाली है। एक अनुमान के मुताबिक यूक्रेन युद्ध पर रूस प्रतिदिन लगभग 1.12 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। कोई भी युद्ध जरूरी सेवाओं में कटौती कर ही लड़ा जाता है। आने वाले दिनों में रूसी जनता को और भी कठिनाइयों के लिए तैयार रहना होगा। साथ ही अनाज, उर्वरकों, टाइटेनियम, निकल, तेल व गैस की कीमतों में दुनियाभर में भारी वृद्धि होगी जिसके कारण कोरोना से त्रस्त आम जनता की कठिनाइयां और बढ़ेंगी। रूस विश्व में उर्वरक का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। ऐसे में उर्वरक संकट के कारण दुनियाभर में खाद्यान्नों की कीमतों में भारी इज़ाफा होना तय है। यूक्रेन से यूरोप को जाने वाली गैस-तेल पाइपलाइनों को रूस लगातार निशाना बना रहा है जिससे यूरोप में इनकी किल्लत होने की पूरी संभावना है, पर सबसे ज्यादा तबाही तो सबसे पहले यूक्रेन की जनता की होगी और हो रही है। नतीजे के तौर पर इस युद्ध के खिलाफ उनका प्रतिरोध भी दिखाई पड़ रहा है।
  •  उधर युद्ध के खिलाफ रूस में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। लगभग 1700 प्रदर्शनकारियों को रूसी पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ये प्रदर्शन सिर्फ रूस में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम हिस्सों में बढ़ रहे हैं।  साम्राज्यवादियों द्वारा जनता पर युद्ध लादने की योजना के खिलाफ शांति के लिए लड़ो – इस किस्म की एक परिस्थिति सामने आई है।

ठोस रूप से कहें तो आज मौजूदा विश्व में उभरती हुई तीन परिघटनाएं दिखाई पड़ती हैं। पहली, साम्राज्यवादियों के गहराते हुए चौतरफा संकट को जनता पर लादने की वजह से बहुसंख्यक जनता का जीवन और आजीविका बुरी तरह से तबाह हो रही है। दूसरी, देश और दुनिया के स्तर पर जनता के बढ़ते आंदोलनों और संघर्षों से निपटने के लिए सभी देशों में कट्टर और फासीवादी शक्तियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। तीसरा, साम्राज्यवादियों के बीच के अंतर्विरोध युद्ध का रूप लेते जा रहे हैं। उपरोक्त तीनों परिघटनाओं के मद्देनजर पूरी दुनिया में फासीवाद के खिलाफ जनवाद के लिए लड़ने, युद्ध के खिलाफ शांति के लिए लड़ने और जनता पर तबाही और बर्बादी लादने के खिलाफ जमीन तैयार हो रही है। रोटी, शांति जनवाद के लिए लड़ो! कभी रूसी क्रांति के इसी नारे ने जारशाही का तख्ता पलट डाला था। आज इतिहास फिर उसी मुहाने पर आ खड़ा हुआ है और जनता ने अपनी इस लड़ाई की शुरुआत “NO TO WAR” आंदोलन से कर दी है।

(बच्चा प्रसाद सिंह लेखक और एक्टिविस्ट हैं। और आजकल बनारस में रहते हैं।)

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