बी.पी. मंडल का जन्म 25 अगस्त,1918 को हुआ। वे जमींदार पृष्ठभूमि से आते थे। लेकिन जमींदारी को बनाये रखने के लिए काम नहीं किया। यहां तक कि उनकी अध्यक्षता में दूसरे पिछड़े वर्ग आयोग(मंडल कमीशन) ने भूमि सुधार की सिफारिश की। वे आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे। शुरुआती दौर में वे कांग्रेस में थे। लेकिन उल्लेखनीय है कि 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गांव में दलितों पर ब्राह्मणवादी सवर्ण शक्तियों और पुलिस द्वारा दलितों पर अत्याचार के खिलाफ अत्याचार के खिलाफ वे कांग्रेस छोड़ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे और दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के बतौर ऐतिहासिक काम किया। जिस आयोग ने खासतौर पर हिंदी पट्टी के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया और देश की बड़ी आबादी ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय का रास्ता खोला।
बेशक,आज जब जन्म दिन के मौके पर हम उन्हें याद कर रहे हैं। श्रद्धांजलि दे रहे हैं तो मंडल कमीशन,सामाजिक न्याय और मंडल राजनीति पर चर्चा स्वाभाविक हो जाती है। हमारे सामने मंडल कमीशन की लागू दो सिफारिशों को छोड़कर शेष सिफारिशें, आरक्षण व सामाजिक न्याय पर जारी हमला और कमंडल को रोकने व सामाजिक न्याय के एजेंडा को आगे बढ़ाने में मंडल राजनीति की विफलता सवालों के बतौर हमारे सामने खड़ा हो जाता है। इन सवालों से कतराकर हम बी.पी.मंडल को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दे सकते।
मंडल कमीशन की दो सिफारिशों के आधार पर ही ओबीसी को केंद्र सरकार की नौकरियों और केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में दाखिलों में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। शेष सिफारिशों को दफना दिया गया है। मंडल कमीशन महज ओबीसी को केवल दो क्षेत्रों में हासिल आधे-अधूरे आरक्षण का पर्याय बनकर रह गया।
मंडल कमीशन की शेष महत्वपूर्ण सिफारिशों पर गौर किया जाना चाहिए,जो संक्षेप में इस प्रकार हैं-
* ..कानूनी बाध्यताओं को देखते हुए आयोग ओबीसी के लिए सिर्फ 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की सिफारिश करता है,यद्यपि अन्य पिछड़े वर्ग की असल आबादी इस आंकड़े की दोगुनी है।
*खुली प्रतिस्पर्धा में मेरिट के आधार पर चुने गए ओबीसी अभ्यर्थियों को उनके लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे में समायोजित नहीं किया जाना चाहिए।
* …आरक्षण सभी स्तरों पर प्रमोशन कोटा में भी लागू किया जाना चाहिए।
*संबंधित प्राधिकारियों द्वारा हर श्रेणी के पदों के लिए रोस्टर व्यवस्था उसी तरह से लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि एससी और एसटी के अभ्यर्थियों के मामले में है।
*सरकार से किसी भी तरीके से वित्तीय सहायता पाने वाले निजी क्षेत्र के सभी प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की भर्ती उपरोक्त तरीके से करने और उनमें आरक्षण लागू करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
* इन सिफारिशों को प्रभावी बनाने के लिए यह जरूरी है कि पर्याप्त वैधानिक प्रावधान सरकार की ओर से किए जाएं, जिसमें मौजूदा अधिनियमों, कानूनों, प्रक्रिया आदि में संशोधन शामिल है, जिससे वे इन सिफारिशों के अनुरूप बन जाएं।
* ओबीसी के विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा देने के लिए अलग से धन का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिससे अलग से योजना चलाकर गंभीर और जरूरतमंद विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जा सके और उनके लिए उचित माहौल बनाया जा सके।
*… ज्यादातर पिछड़े वर्ग के बच्चों की स्कूल छोड़ने की दर बहुत ज्यादा है. … जहां ओबीसी की घनी आबादी है। पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए इन इलाकों में आवासीय विद्यालय खोले जाने चाहिए, जिससे उन्हें गंभीरता से पढ़ने का माहौल मिल सके। इन स्कूलों में रहने खाने जैसी सभी सुविधाएं मुफ्त मुहैया कराई जानी चाहिए, जिससे गरीब और पिछड़े घरों के बच्चे इनकी ओर आकर्षित हो सकें। ओबीसी विद्यार्थियों के लिए अलग से सरकारी हॉस्टलों की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिनमें उपरोक्त सुविधाएं हों।
*ओबीसी हमारी शैक्षणिक व्यवस्था की बहुत ज्यादा फिजूलखर्ची को वहन नहीं कर सकते, ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि उनकी शिक्षा बहुत ज्यादा व्यावसायिक प्रशिक्षण की ओर झुकी हुई हो। कुल मिलाकर सेवाओं में आरक्षण से शिक्षित ओबीसी का एक बहुत छोटा हिस्सा ही नौकरियों में जा सकता है। शेष को व्यावसायिक कौशल की जरूरत है, जिसका वह फायदा उठा सकें।
*ओबीसी विद्यार्थियों के लिए सभी वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए, जो केंद्र व राज्य सरकारें चलाती हैं।
*आरक्षण से प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों को तकनीकी और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस में विशेष कोचिंग की सुविधा प्रदान की जाए।
*आयोग का दृढ़ मत है कि मौजूदा उत्पादन संबंधों में क्रांतिकारी बदलाव किया जाना महत्वपूर्ण कदम है। जो सभी पिछड़े वर्गों के कल्याण और उत्थान के लिए किया जा सकता है.भले ही यह विभिन्न वजहों से औद्योगिक क्षेत्र में संभव नहीं है,लेकिन कृषि क्षेत्र में यह सुधार व्यावहारिक और दीर्घावधि से लंबित है।
*…सभी राज्य सरकारों को प्रगतिशील भूमि सुधार कानून लागू करना चाहिए, जिससे देश भर के मौजूदा उत्पादन संबंधों में ढांचागत एवं प्रभावी बदलाव लाया जा सके।
*इस समय अतिरिक्त भूमि का आवंटन एससी और एसटी को किया जाता है। भूमि सीलिंग कानून आदि लागू किए जाने के बाद से मिली अतिरिक्त जमीनों को ओबीसी भूमिहीन श्रमिकों को भी आवंटित की जानी चाहिए।
*….गांवों में बर्तन बनाने वालों, तेल निकालने वालों, लोहार, बढ़ई वर्गों के लोगों की उचित संस्थागत वित्तीय व तकनीकी सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण मुहैया कराई जानी चाहिए, जिससे वे अपने दम पर छोटे उद्योगों की स्थापना कर सकें. इसी तरह की सहायता उन ओबीसी अभ्यर्थियों को भी मुहैया कराई जानी चाहिए, जिन्होंने विशेष व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है।
* छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बनी विभिन्न वित्तीय व तकनीकी एजेंसियों का लाभ सिर्फ प्रभावशाली तबके के सदस्य ही उठा पाने में सक्षम हैं। इसे देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि पिछड़े वर्ग की वित्तीय व तकनीकी सहायता के लिए अलग वित्तीय संस्थान की व्यवस्था की जाए।
*पेशेगत समूहों की सहकारी समितियां भी बहुत मददगार होंगी। अगर इनकी देखभाल करने वाले सभी पदाधिकारी और सदस्य वंशानुगत पेशे से जुड़े लोगों में से हों और बाहरी लोगों को इसमें घुसने और शोषण करने की अनुमति नहीं होगी तभी इसका फायदा होगा।
* देश के औद्योगिक और कारोबारी जिंदगी में ओबीसी की हिस्सेदारी नगण्य है। वित्तीय और तकनीकी इंस्टीट्यूशंस का अलग नेटवर्क तैयार किया जाए, जो ओबीसी वर्ग में कारोबारी और औद्योगिक इंटरप्राइजेज को गति देने में सहायक हों।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट और सिफारिशें सचमुच में राष्ट्र निर्माण में 54प्रतिशत ओबीसी आबादी की भागीदारी व भूमिका का रोड मैप पेश करती हैं। ये सिफारिशें लागू होती तो ओबीसी के सामाजिक -आर्थिक जीवन में बड़ा सकारात्मक बदलाव आता। सामाजिक न्याय के साथ विकास के रास्ते पर राष्ट्र आगे बढ़ता। लेकिन,भाजपा-कांग्रेस की बात छोड़िए,मंडल कमीशन की सवारी करते हुए हिंदी पट्टी में आगे बढ़ी मंडल राजनीति ने भी इन सिफारिशों को अपना एजेंडा नहीं बनाया। मंडल कमीशन की सिफारिशों के संदर्भ से इस धारा के राजनीतिक पार्टियों पर बात करें तो राजद-सपा-जद(यू) ऐसी पार्टियां और लालू-मुलायम-नीतीश कुमार ऐसे राजनेता सवालों के घेरे में आ जाते हैं।
यहां तक कि एक मात्र आरक्षण के सवाल पर भी मंडल राजनीतिक पार्टियां सवालों के घेरे में है। आबादी के अनुपात में हर क्षेत्र में ओबीसी को आरक्षण मिले। इस सवाल पर तो छोड़िए मंडल राजनीतिक पार्टियां ने 27प्रतिशत आरक्षण को लागू करने में शुरु से जारी गड़बड़ियों व बेईमानी के खिलाफ भी मोर्चा नहीं लिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा थोपे गये असंवैधानिक क्रीमी लेयर को भी एजेंडा नहीं बनाया।
आज क्रीमी लेयर में बदलाव लाकर केन्द्र सरकार ओबीसी आरक्षण को खत्म कर देने की साजिश को आगे बढ़ा रही है। असंवैधानिक सवर्ण आरक्षण लागू हो चुका है। जिसकी वकालत ये पार्टियां करती रही हैं। ओबीसी आरक्षण और सामाजिक न्याय पर हमला बढ़ रहा है और ब्राह्मणवादी सवर्ण वर्चस्व नई ऊंचाई ग्रहण कर रहा है। राम मंदिर के शिलान्यास के साथ सवर्ण हिंदू राष्ट्र निर्माण के संघ-भाजपा की परियोजना का अंतिम चरण शुरु हो चुका है तो सपा परशुराम की मूर्ति बनवाने का एलान कर रही है और राजद ए टू जेड का राग अलाप रही है।
(रिंकु यादव लेखक और एक्टिविस्ट हैं। आप आजकल भागलपुर में रहते हैं।)
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