Friday, April 19, 2024

आखिर क्या है हिजाब विवाद के पीछे का सच?

चूंकि हिजाब को लेकर पिछले एक सप्ताह से विवाद रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है, और इसके पक्ष और विपक्ष में जितने धरने-प्रदर्शन हो रहे हैं, उससे कई हजार गुना यह बात करोड़ों भारतीयों के बीच में भारतीय पीत पत्रकारिता के लिए मशहूर नॉएडा चैनलों और पांच राज्यों के चुनावों में चल रही है, उसके चलते इस मुद्दे पर थोड़ा गहराई से विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है।

भारत में कोई भी मुद्दा हो, उसको लेकर अपने-अपने वर्गीय और धार्मिक पूर्वाग्रहों के आधार पर तर्क गढ़े जाने लगते हैं और कई बार उन्हें शासक वर्ग की ओर से जानबूझकर हवा दी जाती है। आज हिजाब का मुद्दा जहाँ कर्नाटक के एक तटीय जिले उडुपी के एक सरकारी कालेज गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर वीमेन में प्रशासन और कुछ छात्राओं के बीच का विवाद था, उसने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय बहसों को जन्म दे दिया है। हर कोई अपने-अपने तथ्यों और आग्रह—पूर्वाग्रह के साथ इस विषय पर कूद पड़ने के लिए बेताब है।

इस बीच देश में यदि कोई सबसे बड़ा ज्वलंत मुद्दा है तो वह लगातार बढ़ती बेरोजगारी का है, किसानों की लागत के गिरते जाने और फसल के लिए उसके द्वारा लगाई गई लागत में लगातार उछाल के बीच के असुंतलन को कम करने का है, सूक्ष्म, छोटे एवं मझौले उद्योगों की बर्बादी के सिलसिले को रोकने और चीन पर अप्रत्याशित आयात निर्भरता पर चलते उद्योगों के स्थान पर भारतीय उद्योगों को खड़ा करने का है, लेकिन ये मुद्दे व्यक्तिगत स्तर पर लड़े जाते हैं, या बढ़ती आत्महत्या की संख्या में सिर्फ एक और इजाफा करते हैं।

हिन्दू होने का आज के दिन सिर्फ एकमात्र पर्याय बनकर रह गया है, और वह है मुस्लिम विरोध। यदि आप मुस्लिम न हों, तो आप पटना और इलाहाबाद (प्रयागराज) में पुलिसिया डंडे से रोजगार पाते सिर्फ छात्र हो सकते हैं, दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक समय से संघर्ष करते किसान हो सकते हैं, जो 700 के करीब या तो शहीद हो गए या उन्होंने आत्महत्या कर ली, या वे उद्यमी हो सकते हैं जो कर्ज और व्यापार घाटे को झेल पाने की स्थिति में खुद को न पाकर लगातार जहर खा लेता है, लेकिन एक बार भी नहीं कहा जायेगा कि हिन्दू क्यों मर रहे हैं?

इस बात को हम सभी ने गंगा में बहती सैकड़ों लाशों के तौर पर पिछले साल ही देखा था, और उस पर भी जब बिहार सरकार ने एतराज जता दिया और सीमावर्ती इलाके में जाल लगाकर लाशों को बिहार की सीमा में आने से रोक दिया, तो यूपी शासन की नींद टूटी और उसने गंगा नदी में जगह-जगह पहरा लगा दिया ताकि कोई भी कोरोना पीड़ित लाश गंगा में नजर न आये। मजबूरन हजारों गरीब हिन्दुओं ने गंगा के बलुए किनारे शवों को गाड़कर अंतिम अधूरा संस्कार कर दिया, जो हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक संभवतः घोर अधार्मिक कृत्य हुआ, जिसे कई नास्तिक लोगों को भी इसी वजह से मजबूरन करना पड़ता है। लेकिन देश में पहली साक्षात भगवा रंग में लिपटी सरकार ने इस मामले को रफा-दफा करने के लिए कथित तौर पर इस बात को हवा दी कि ये लाशें हिन्दुओं की नहीं, बल्कि अन्य धर्म के लोगों ने बदनाम करने के लिए गंगा के तटों पर गाड़ दी हैं। चूँकि लॉकडाउन जारी था, और उन चंद साहसिक अखबारों और मीडिया संस्थानों पर जल्द ही ऊपर से दबाव और छापे पड़ गये, नतीजतन जो बात दुनियाभर के अख़बारों और मीडिया समूहों की निगाह में आ गई, उसे भारत में ही दबा दिया गया। 

लेकिन हिजाब है कि यह मुद्दा दिल्ली में मार्च 2020 में फंसे तबलीगी जमात के लोगों की तरह अब जल्दी खत्म होने वाला नहीं लगता है। इसमें कुछ भूमिका उन प्रगतिशील बौद्धिक वर्ग की भी है, जो दो खेमों में बंटकर इस मुद्दे पर दक्षिणपंथी विमर्श को ही मजबूत करने का काम कर रहे हैं। आइये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि, यह मुद्दा कैसे शुरू हुआ और कैसे इसने फिर तेजी से आग पकड़ी और आज देश को इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया है।

हिजाब के मुद्दे पर वापस लौटते हुए हाल ही में दैनिक भाष्कर ने इस विवाद के मूल में मौजूद एक 12वीं कक्षा की छात्रा आलिया असादी का इन्टरव्यू किया है, जिसमें उन्होंने विस्तार से अपने संघर्ष की कहानी और स्कूल प्रशासन की ओर से लगाये गये अड़ंगों के बारे में बताया है। उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात यह बताई कि उनके साथ स्कूल प्रशासन का यह रवैय्या पिछले साल से जारी है, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण अधिकांश पढ़ाई ऑनलाइन ही चली, इसलिए इस मुद्दे ने तूल नहीं पकड़ा।

उन्होंने साफ़-साफ़ बताया कि वे बचपन से हिजाब पहन रही हैं, पहली कक्षा से ही वे हिजाब पहनकर ही पढ़ाई कर रही हैं। हिजाब अब उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है, वे उसके बगैर अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती हैं। उन्हें अपना हिजाब और शिक्षा दोनों प्रिय हैं, और वे इसमें से किसी एक के लिए दूसरे को नहीं छोड़ सकती हैं।

अब असल में यहीं पर मूल बात छिपी है। हिजाब किसी भी महिला के लिए कोई प्रगतिशील कदम नहीं हो सकता है, लेकिन इसके लिए हमें थोड़ा संवेदनशील होना चाहिए। जिन समाज और बस्तियों में आप रहते हैं, वहां पर सामाजिक-धार्मिक मान्यताएं कैसी हैं, वहां पर गली-मोहल्लों में किन निगाहों से आने-जाने वाली महिलाओं और बच्चियों को घूरा जाता है, उस पर समाज या प्रशासन ने क्या सुधार के उपाय अपनाए हैं।

वे लड़कियां, जिन्हें बचपन से इन्हीं संस्कारों में डाला गया है, उनके लिए हिजाब एक प्रकार से पढ़ने-लिखने की एक आजादी मुहैय्या कराता है। जबकि इसके उलट कालेज के प्रशासन ने इस मुद्दे पर उन्हें हिजाब हटाने या शिक्षा से वंचित रहने का फरमान सुना दिया। यह क्यों किया गया, और इसके पीछे की असली वजह को समझे बगैर हल्की और ओछी टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई है।

अभिनेत्री कंगना रानौत को कई महीनों बाद यह एक ऐसा मुद्दा नजर आया, जिस पर उन्हें लगा कि देश का ज्ञान वर्धन करना उनके लिए बेहद जरुरी है। उनकी टिप्पणी का आशय था कि हिजाब की जंजीरों को समझने के लिए हमें अफगानिस्तान की औरतों की ओर देखना चाहिए, जहाँ पर उन्हें गुलामी के प्रतीक के तौर पर हिजाब के भीतर रखा जा रहा है। वहीं शबाना आजमी ने इसके जवाब में लिखा, भारत एक धर्म निरपेक्ष देश अभी तक रहा है। जिसका आशय है, कि लोग क्या पहनेंगे, खायेंगे इसकी स्वतंत्रता उन्हें है।

सवाल यह है कि क्या लड़कियों के द्वारा स्कूली ड्रेस पहनी जा रही है या नहीं? यदि वे पहनती हैं, तो उन्हें इजाजत मिलनी चाहिए। इसके साथ-साथ समाज में और उन परिवारों में इस माहौल को बनाना होगा कि वे स्वंय अपनी बच्चियों और महिलाओं को किसी पर्दे में रखने के बजाय, अन्य लोगों की तरह रहने की इजाजत दें।

सबसे बड़ी बात इस संदर्भ में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हवाला दिया जा रहा है, जो संवैधानिक पद पर रहते हुए भी एक धर्म विशेष को इंगित करने वाले वस्त्र धारण करते हैं। शायद यह बात हिन्दू और हिंदुत्व में रंगे मानस को समझ न आती हो, जितना अधिक उसे हिजाब में आती स्कूली छात्रा में दिखे। 80 के दशक के बाद से ही तिलक, हाथ में कलावा और भगवा गमछे की बाढ़ भारत में आ गई है, यहाँ तक कि भाजपा के अलावा भी अन्य दलों के नेताओं ने इसे जैसे अपने काम-काज से बड़ा मान लिया है, जो कि अपने को हिंदुत्व से जोड़ने और धार्मिकता साबित करने से अधिक कोई योगदान नहीं देता। लेकिन उन्हें ही हिजाब से इतनी परेशानी क्यों है? क्या हिजाब से कोई वोट छिन रहा है? क्या यह एक समुदाय विशेष को उनकी पहचान को लक्षित नहीं किया जा रहा है? उल्टा इससे उस समुदाय में यदि इन परंपराओं से मुक्त होने की इच्छा भी होती है तो वे उसे कहीं अधिक अपनाने लगते हैं, या इसे अपनी पहचान पर हमला मानकर, उनकी पहचान को खत्म करने के रूप में देखते हैं, और इसे न्यायोचित मानते हैं।

ध्यान रखना होगा इन्हीं महिलाओं ने दो साल पहले ही अपने-अपने घरों की देहली को लांघकर एक ऐसे आंदोलन की शमा जलाई थी, जो देश में संविधान की आत्मा को पुनर्जीवित कर गई, और उसके बाद फिर किसानों के आंदोलन ने ही उसे बड़े स्तर पर अंजाम पर पहुंचाने का काम किया।

अब इस बात का खुलासा हो गया है कि किस प्रकार से भाजपा आरएसएस की सांगठनिक मशीनरी ने कर्नाटक के कालेजों में प्रशासन को खुले आम समर्थन दिया, और कुछ वायरल वीडियो में लड़कों को हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन के बाद जलपान लेने और अपनी-अपनी भगवा पगड़ी और गमछे को एक जगह जमा करते देखा जा सकता है।

इसके अलावा गौरी लंकेश न्यूज़ ने इस बारे में लगातार ट्वीट कर इस पूरी घटना के पीछे मुद्दे को भड़काने के लिए भगवा ब्रिगेड से हिन्दू गरीब विद्यार्थियों को किस प्रकार से इस नफरत की भट्टी में अपना औजार बनाया जा रहा है, को लेकर कई ट्वीट और वीडियो साझा किये हैं।

इनमें से एक में, एक वीडियो साझा करते हुए गौरी लंकेश न्यूज़ ने लिखा है, “कुशालनगर सरकारी पोलिटेक्निक कॉलेज, कोडागु जिले में एक कार आती है और छात्रों को भगवा शाल बांटती है। यह घटना 8 फरवरी को अंजाम दी गई थी।”

इसके बाद एक अन्य ट्वीट में @gauri_news के अनुसार “स्रोतों के मुताबिक, वही इन्नोवा कार जिसे कुशालनगर पोलिटेक्निक कॉलेज में देखा गया था, को कुशालनगर कन्नड़ भारती संस्थान में भी भगवा शाल वितरित करते देखा गया।” इस वीडियो में साफ़ दिख रहा है कि मुख्य मार्ग की पगडंडी पर एक कार रुकी है, जिसे घेर कर पीठ पर स्कूल बैग लिए 15-20 छात्र खड़े हैं। एक अन्य ट्वीट में एक वीडियो के साथ लिखा गया है, “उसी दिन, उसी इन्नोवा कार को पोस्ट मेट्रिक बॉयज हॉस्टल कुशालनगर में देखा गया, जहाँ पर कुछ लोग एक छात्र को पीट रहे थे और उसे कार के भीतर डाल दिया गया। (स्रोत)”

इसी तरह 9 फरवरी को @gauri_news ने कुछ हिन्दू नेताओं की गले में भगवा गमछा लगाये स्कूली ड्रेस पहने छात्रों से बातचीत का वीडियो शेयर किया है, जो कन्नड़ भाषा में है। इसमें बताया गया है कि “हिंदुत्व के नेताओं ने मडिकेरी, कर्नाटक के मार्शल करियप्पा कालेज के विद्यार्थियों से निवेदन किया कि वे भगवा शाल के साथ कालेज जाएँ।” हिंदुत्व नेताओं ने छात्रों से कहा, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल आपके साथ है। आप सभी को घबराने की जरूरत नहीं है, आप लोग भगवा शाल पहनकर कालेज जायें।

ये घटनाएं साफ़-साफ़ बता रही हैं कि देश को अब आगे बढ़ाने के लिए ले जाने की जो इच्छाशक्ति की जरूरत है, वह वर्तमान शासन में दूर-दूर तक नजर नहीं आती है। उससे बचने के लिए उसे अब हिजाब ही यूपी, उत्तराखंड में हार से उबार सकता है। लेकिन मान लेते हैं ऐसा करने में सफलता मिल भी जाये, लेकिन क्या इससे झुलसा दिए गये युवा और बेकार होती एक पूरी पीढ़ी को हम भष्मासुर नहीं बना रहे हैं, जो कल को उन्हीं शक्तियों को भस्म करके राख कर देगी, और साथ ही देश को भी?

(रविंद्र सिंह पटवाल लेखक और टिप्पणीकार हैं। और जनचौक से जुड़े हैं।)

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