Sunday, April 28, 2024

भारतीय श्रमिकों को इज़राइल भेजने की नीति मानवाधिकारों और श्रम कानूनों का उल्लंघन क्यों है?

खाड़ी के देशों में प्रतिवर्ष लाखों भारतीय मज़दूरी के लिए जाते हैं तथा हर वर्ष करोड़ों रुपए का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। अब इज़राइल में पहली बार सरकार ख़ुद युद्धक्षेत्र में श्रमिकों को भेजने के लिए भर्ती कर रही है। गाज़ापट्टी से रोज़ाना क़रीब एक लाख मज़दूरों को सुबह इज़राइल की हद में मज़दूरी करने के लिए परमिट दिए जाते थे और शाम को वे बाड़े को पार करके वापस गाज़ापट्टी में लौट जाते थे। अब वे नहीं आते हैं, तो इज़राइली ऐसे विकल्प ढूंढ रहे हैं,जहां ऐसे ही और विकल्पहीनता के शिकार ग़रीब लोग हों,जो तमाम ख़तरे उठाकर भी इस रोज़गार को अपने लिए बेहतर विकल्प मानें।

वैश्विक महाशक्ति का दावा करने वाले भारत ने ऐसे लाखों विवश लोग उपलब्ध कराने का ठेका लिया है, जिनकी हमारे यहां कोई कमी नहीं है। इनकी इतनी बड़ी तादाद के सस्ते श्रम के बल पर ही अडानी, अंबानी और टाटा इतने बड़े बने हैं, इस मामले में तो हम ज़रूर महाशक्ति हैं। दुनिया के हर पूंजीपति को सस्ते श्रमिक उपलब्ध कराना ही इस‌ महाशक्ति का मुख्य निर्यात जो है। विदेशी मुद्रा भंडार और भुगतान संतुलन इसी‌ पर टिका है। 2023 में ही 125 अरब डॉलर ऐसे श्रमिकों ने भारत भेजे।

भारत सरकार जितने व्यापारिक समझौते कर रही है, उसमें मुख्य मुद्दा यही है कि हमारे कितने श्रमिकों को अपने यहां आने दोगे। इज़राइल में श्रमिकों को भेजने का मामला इन सबमें सबसे ज़्यादा अमानवीय है। एक युद्धग्रस्त देश में जहां से बड़े पैमाने पर सरकारें अपने नागरिकों निकाल रही हैं, क्योंकि वहां उनके जीवन की कोई सुरक्षा नहीं है, दूसरी ओर भारत सरकार अपने श्रमिकों को ऐसे जोखिमभरे ‌क्षेत्र में भेज रही है, जहां पर उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।

● ‘द हिंदू’ अख़बार में पत्रकार सुहासिनी हैदर और ए एम जिगीश ने इसी से जुड़ी एक रिपोर्ट की है।

● ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम दो राज्य यूपी और हरियाणा के अधिकारी हज़ारों आवेदनों की जाँच करने की तैयारी कर रहे हैं।

● व्यापार संगठनों और उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार इस भर्ती के लिए उन सारे नियमों को ताक पर रख रही है, जिसके तहत संघर्ष वाली जगहों पर नौकरी के लिए जाने वाले भारतीय कामगारों को सुरक्षा मिलती है।

● रिपोर्ट के मुताबिक़ जिन कामगारों को इज़राइल जाना होगा,उनको विदेश मंत्रालय की वेबसाइट ‘ई माइग्रेट’ पर रजिस्टर करने की भी ज़रूरत नहीं होगी। सरकार के कई मंत्रियों और एजेंसियों ने इन कामगारों की सलामती और सुरक्षा का ज़िम्मा उठाने से भी इनकार किया है।

● नेशनल स्किल्स डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन यानी एनएसडीसी ने एक विस्तृत दस्तावेज जारी किया है,इसके बाद इस मामले में अब मज़दूर संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता अदालत का रुख़ करने की तैयारी कर रहे हैं।

● द हिंदू’ की रिपोर्ट में एक्टिविस्ट के हवाले से इस क़दम को अमानवीय कहा गया है।

इन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है, कि ऐसे वक़्त में जब गाज़ा और वेस्ट बैंक में इज़राइली सैन्य हमले जारी हैं, तब भारत के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, नर्सों और केयरगिवर की तेज़ी से भर्ती किए जाने का फ़ैसला जोखिम भरा है। भारत की ओर से इन कामगारों को इज़राइल भेजने की कोशिशें ऐसे वक़्त में तेज़ हुई हैं, जब 19 दिसंबर 2023 को इज़राइली पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी से फोन पर बात की थी और भारतीय मज़दूरों को जल्दी भेजने की गुज़ारिश की थी।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस यानी एआईटीयूसी के जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने ‘द हिंदू’ से कहा,”यह क़दम भारतीय आचरण के ख़िलाफ़ है। हम इज़राइल से सीज़ फ़ायर चाहते हैं। हम मज़दूरों की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं। मज़दूर संगठन अब अदालत का रुख़ करने का सोच रहे हैं।”

‘द हिंदू’ ने उन दस्तावेज़ों को देखा है,जो कामगारों को नौकरी के लिए इज़राइल भेजने से जुड़े हैं, इसमें आकर्षक सैलरी का तो ज़िक्र मिलता है, लेकिन किस तरह की सुरक्षा दी जाएगी, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है।

इन दस्तावेज़ों के मुताबिक़

  1. इज़राइल जाने वालों को अपनी फ्लाइट टिकट के पैस ख़ुद देने होंगे

2. इन लोगों को एनएसडीसी को फ़ीस के तौर पर 10 हज़ार रुपये देने होंगे

3. इन कामगारों को किसी तरह का इंश्योरेंस,मेडिकल कवरेज और रोज़गार की गारंटी नहीं दी जाएगी।

4. एनएसडीसी की वेबसाइट में नौकरी के लिए जो पोस्टर लगाया गया है, उसमें लिखा है- इज़राइल में नए क्षितिज को पाने का मौका।

‘द हिंदू’ के मुताबिक़ वेबसाइट में प्लास्टर से जुड़ा काम करने वालों के लिए 2000 नौकरियां, टाइल मज़दूरों के लिए 2000 नौकरियां, लोहे का काम करने वालों के लिए 3000 नौकरियां हैं। इन लोगों की महीने की सैलरी क़रीब एक लाख 37 हज़ार रुपये बताई गई है, इनमें से खाने और मेडिकल इंश्योरेंस का पैसा भी काटा जाएगा।

● हरियाणा और यूपी में इसी से जुड़े विज्ञापन निकाले गए थे और कहा गया था कि 10-10 हज़ार नौकरियां हैं।

● एनएसडीसी इंटरनेशनल के हवाले से इसराइल में नौकरी के लिए जो दस्तावेज़ जारी किया गया है, उससे कई सरकारी एजेंसियां औपचारिक तौर पर दूरी बरत रही हैं।

सरकारी सूत्रों ने ‘द हिंदू’ से पुष्टि की है, कि भर्ती की प्रक्रिया इस हफ़्ते शुरू हो जाएगी और कई शहरों में इंटरव्यू किए जाएंगे।

‘द हिंदू’ ने इस बारे में एनएसडीसी के सीईओ वेद मणि तिवारी से बात की, वो बोले-“भर्ती का विज्ञापन राज्य सरकारों ने निकाला था, एनएसडीसी ने नहीं।”

तिवारी कहते हैं,”हम भर्ती करने वाली कंपनी नहीं हैं। इज़राइल या कंपनी को लेकर हमारा कोई मैंडेट नहीं है। कुछ राज्य सरकारों ने इज़राइल में नौकरियों के लिए विज्ञापन दिया था. हमारा काम बस ये है कि कामगारों को स्किल से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाए।”

श्रम मंत्रालय ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया है। वहीं हरियाणा के श्रममंत्री अनूप धनक ने कहा-“कामगारों के विदेश जाने से जुड़े मामलों पर नज़र रखने का काम विदेश मंत्रालय का है।”

विदेश मंत्रालय ने भी ‘द हिंदू’ के पूछे सवालों पर जवाब देने से इनकार किया। अधिकारियों का कहना है,“यह भर्ती प्रक्रिया बीटूबी यानी बिजनेस टू बिजनेस के तहत की जानी चाहिए।”

मगर इसमें इन कामगारों के भविष्य को लेकर स्पष्ट तौर पर बातें नहीं कही गई हैं।

● सात अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर जब हमला किया,तब क़रीब 80-100 विदेशी कामगार मारे गए थे,इसके बाद भारत समेत कई देशों ने इज़राइल से अपने नागरिकों को निकाला था।

● भारत ने इसे ऑपरेशन अजय नाम दिया था। इसके तहत इज़राइल में रहने वाले 18 हज़ार भारतीयों में से सिर्फ़ 1300 भारतीय भारत लौटे थे।

● इज़राइल की इमिग्रेशन एजेंसी पीआईबीए ने भी ‘द हिंदू’ के पूछे सवालों पर जवाब नहीं दिया,लेकिन सूत्रों का कहना है,कि इज़राइल भारत सरकार के साथ हुए समझौतों के तहत ही आगे बढ़ेगा।

● बीते साल नवंबर में स्किल डिवेलपमेंट मंत्रालय ने इज़राइल की सरकार के साथ तीन साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत भारत से कामगारों को इज़राइल में निर्माण और केयरगिविंग क्षेत्र में नौकरी दी जाने की बातें थीं।

● ‘द हिंदू’ में कहा गया,कि किसी एजेंसी ने इन कामगारों की सुरक्षा को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है।

● ‘द हिंदू’’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भारत से अगर कोई कामगार किसी संघर्ष वाले क्षेत्र या बिना लेबर प्रोटेक्शन वाली जगह जाते हैं, तो उन्हें विदेश मंत्रालय की ई माइग्रेट पोर्टल पर रजिस्टर करना होता है।

इमिग्रेशन चैक रिकॉयर्ड स्कीम के तहत दर्ज वाले पासपोर्ट 18 देशों में जाने वाले कामगारों को कवर करती है,इनमें अफ़ग़ानिस्तान, बहरीन, इंडोनेशिया, इराक़, जॉर्डन, सऊदी अरब, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, ओमान, कतर, साउथ सूडान, सीरिया, थाईलैंड, यूएई और यमन शामिल हैं, इस लिस्ट में इज़राइल का नाम नहीं है। ये बदलाव ऐसे वक़्त में भी नहीं आया है,जब इसराइल में जारी मौजूदा संघर्ष में विदेशी कामगार मारे गए हैं।

एक अधिकारी ने ‘द हिंदू’ से पुष्टि की है, कि इसराइल के मामले में ई माइग्रेट सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, इस पोर्टल को 2015 में शुरू किया गया था। कुछ अधिकारियों ने अपनी पहचान छिपाए रखते हुए सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा है कि “भारत क्या फ़लस्तीनी कामगारों के विकल्प के तौर पर भारतीयों को भेज रहा है?”

अधिकारियों का कहना है कि “ऐसे में भारत ख़ुद को तटस्थ कहाँ से कह पाएगा?” इन अधिकारियों ने आशंका जताई है, कि इससे मध्य पूर्व में काम कर रहे 80 लाख भारतीयों पर भी ख़तरा मंडरा सकता है, जब 14 दिसंबर 2023 को संसद में इस बारे में सवाल पूछा गया था, तो विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा था कि “फ़िलस्तीनी कामगारों के विकल्प के तौर पर भारतीयों को भेजने से जुड़ी कोई बातचीत इज़राइल से नहीं की गई है।”

(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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