जन्मदिवस पर विशेष: सांप्रदायिक राज्य अपने ही सहधर्मियों को ले डूबेगा- फ़िराक़ गोरखपुरी

फ़िराक़ गोरखपुरी हालांकि अपनी ग़ज़लों और मानीख़ेज़ शे’र के लिए जाने जाते हैं, मगर उन्होंने नज़्में भी लिखी। और यह…

विज्ञान सत्य है, जो धर्म और ईश्वर से मुक्त है!

सत्य ही विज्ञान है, सत्य एक निरंतर खोज है ठीक वैसे ही विज्ञान एक निरंतर शोध है। मनुष्य वो है…

‘घोड़े को जलेबी खिलाने जा रिया हूं’ फिल्म में यथार्थ का प्रभावशाली चित्रण

अनामिका हक्सर की फिल्म ‘घोड़े को जलेबी खिलाने जा रिया हूं’ बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है। यह फिल्म कई मायने…

प्रलेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में लेखक जाहिद खान की दो किताबों का हुआ विमोचन

जबलपुर। प्रगतिशील लेखक संघ का 18वां राष्ट्रीय सम्मेलन 20, 21 और 22 अगस्त को जबलपुर में सम्पन्न हुआ। यह तीन…

जन्मदिवस पर विशेष: परसाई होते तो क्या लिख रहे होते?

अगस्त के महीने को यदि हरिशंकर परसाई का महीना कहा जाए तो कम से कम साहित्य जगत में किसी को…

जन्मदिवस पर विशेष: सामाजिक यथार्थ के अनूठे व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाई हिंदी के पहले रचनाकार थे, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत…

पुस्तक समीक्षा: बदलाव को आत्मसात करने के बावजूद अपनी जड़ों से जुड़ी जनजाति

पश्चिम के एक विद्वान हुए हैं चार्ल्स केटरिंग, उनकी स्थापना है कि “दुनिया परिवर्तन से नफरत करती है, लेकिन यही…

बिंदेश्वर पाठक: स्वच्छता को समर्पित जीवन

नई दिल्ली। भारत में मैला ढोने और शौचालयों की सफाई को एक जाति का काम बताने की कुप्रथा पर करारा…

कुलदीप नैयर: मानवाधिकार तथा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे

नई दिल्ली। यह अस्सी के दशक की बात है। मैं गांधीवादियों, समाजवादियों और आंबेडकरवादियों के विभिन्न आंदोलनकारी समूहों को साथ…

भारतीय पुरातत्वः जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने

शहरयार की लिखी गजल इस तरह है- ‘जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने / इस बहाने से मगर…