न्यायिक जवाबदेही विधेयक पर कांग्रेस ने दिए शर्तों के साथ समर्थन के संकेत

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नई दिल्ली। दिल्ली स्थित एक हाईकोर्ट जज के घर से करोड़ों रुपये के कथित नकदी मिलने और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) पर बहस को फिर से जीवित करने के बीच, कांग्रेस नेतृत्व ने संकेत दिया है कि वह न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability) पर एक विधेयक के पक्ष में है, लेकिन किसी भी ऐसे कानून का समर्थन करने को लेकर सतर्क है जो न्यायिक नियुक्तियों पर कार्यपालिका (Executive) का नियंत्रण सुनिश्चित करे।

आपको बता दें कि कांग्रेस ने 2014 में NJAC विधेयक का समर्थन किया था, जब इसे संसद में पारित किया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इस अधिनियम को रद्द कर दिया। पिछले हफ्ते, धनखड़ ने राज्यसभा के फ्लोर लीडर्स के साथ बैठक के दौरान इस बहस को दोबारा छेड़ दिया, जिसे विपक्षी दलों ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली को बदलने के प्रयास के रूप में देखा।

सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने धनखड़ के साथ बैठक से पहले पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से परामर्श किया। इन नेताओं ने खड़गे से कहा कि पार्टी, सिद्धांत रूप में, इस बात से सहमत है कि कॉलेजियम प्रणाली का कोई वैकल्पिक तंत्र ढूंढा जाना चाहिए, लेकिन इस पर नियंत्रण कार्यपालिका के हाथों में नहीं होना चाहिए।

नेताओं ने तर्क दिया कि यदि ऐसा हुआ तो सरकार इस प्रणाली पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकती है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हम इस बात से सहमत हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक संतोषजनक तंत्र होना चाहिए। केवल नियुक्ति ही नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति और जवाबदेही आयोग (NJAAC) भी होना चाहिए, जो नियुक्तियों के साथ-साथ जवाबदेही भी सुनिश्चित करे। हम तब तक कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जब तक सरकार अपना प्रस्ताव सामने नहीं लाती।”

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने धनखड़ के साथ बैठक से पहले वरिष्ठ पार्टी नेताओं से परामर्श किया। कुछ नेताओं ने खड़गे से कहा कि कॉलेजियम प्रणाली का कोई बेहतर विकल्प खोजना जरूरी है, लेकिन इसका नियंत्रण कार्यपालिका के हाथों में नहीं होना चाहिए।

“हम मानते हैं कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक संतोषजनक तंत्र होना चाहिए। केवल नियुक्ति ही नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति और जवाबदेही आयोग (NJAAC) भी होना चाहिए, जो नियुक्तियों के साथ-साथ जवाबदेही भी सुनिश्चित करे। हम तब तक कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जब तक सरकार अपना प्रस्ताव सामने नहीं लाती,” एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा।

कांग्रेस नेताओं की राय

राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा,
“मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि कॉलेजियम प्रणाली काफी हद तक विफल रही है।”

हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि “मुख्य न्यायाधीश (संजय खन्ना) द्वारा जांच शुरू करने का कदम सराहनीय है और इसे पूरी पारदर्शिता के साथ पूरा किया जाना चाहिए।” लेकिन उन्होंने NJAC को तुरंत लागू करने के लिए हो रही बहस को लेकर चेतावनी दी, “सिर्फ इस एक घटनाक्रम के आधार पर NJAC की तत्काल मांग करना उचित नहीं है। हमें जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए।”

सिंघवी ने आगे कहा, “यह मान लेना एक अक्षम्य गलती होगी कि NJAC लागू होते ही न्यायिक चयन, नियुक्तियों और अनुशासन से जुड़ी सभी समस्याएं जादुई रूप से खत्म हो जाएंगी।”

“हमें इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि कॉलेजियम प्रणाली के तहत न्यायिक नियुक्तियों में सरकार की कोई औपचारिक कानूनी (de jure) भूमिका नहीं होने के बावजूद, इस सरकार को इस क्षेत्र में अत्यधिक दखल और नियंत्रण स्थापित करने के लिए जाना जाता है।”

“अब स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि अगर प्रस्तावित NJAC में सरकार को एक औपचारिक और कानूनी भूमिका दी जाती है, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कितना अधिक गंभीर खतरा होगा?”

“इसलिए, पहला और सही कदम यह होगा कि सरकार एक व्यापक, अत्यधिक सुधारित और उन्नत NJAC विधेयक लेकर आए, जिस पर नागरिक समाज और राजनीतिक वर्ग उचित तरीके से विश्लेषण और प्रतिक्रिया दे सकें,” सिंघवी ने कहा।

उनके पार्टी सहयोगी और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि मुद्दा केवल न्यायिक नियुक्तियों का ही नहीं है, बल्कि यह भी है कि महाभियोग की प्रक्रिया से इतर न्यायपालिका की जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाए।

लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि NJAC का दायरा केवल न्यायिक नियुक्तियों तक सीमित नहीं होना चाहिए।

“यह केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं है। इसी कारण यूपीए सरकार ने ‘न्यायिक मानदंड और जवाबदेही विधेयक’ (Judicial Standards and Accountability Bill) लाया था, जिसे दुर्भाग्यवश आगे नहीं बढ़ाया गया।”

उन्होंने आगे कहा, “संसद को इस पर विस्तृत चर्चा करनी चाहिए कि वह न्यायपालिका और विधायिका की निगरानी में अपनी भूमिका कैसे निभा सकती है।”

“मुद्दा सिर्फ न्यायिक नियुक्तियों का नहीं है, बल्कि यह भी है कि महाभियोग (Impeachment) की प्रक्रिया से इतर एक गलत आचरण करने वाले न्यायाधीश से कैसे निपटा जाए। हर न्यायाधीश का कथित आचरण महाभियोग की मांग नहीं करता… तो फिर इस अंतराल (interregnum space) को कैसे भरा जाए?”

उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए सरकार का न्यायिक जवाबदेही विधेयक इसी मकसद से लाया गया था, लेकिन लोकसभा में चर्चा के बाद इसे आगे नहीं बढ़ाया गया।

तिवारी ने यह भी आश्चर्य जताया कि “यह मुद्दा जनता की चर्चा में है, अखबारों के पहले पन्नों पर छाया हुआ है, लेकिन फिर भी संसद में इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।”

उन्होंने सरकार को घेरते हुए कहा कि “कानून मंत्री ने जस्टिस यशवंत वर्मा मामले की पूरी घटनाक्रम पर अब तक एक भी बयान नहीं दिया है।”

“कोई किसी को दोषी ठहरा नहीं रहा, लेकिन सरकार को संसद को सूचित करना चाहिए। अगर संसद इस मुद्दे पर चुप रहती है, तो वह अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है।”

उन्होंने कहा कि “संसद के पीठासीन अधिकारियों को सरकार से कहना चाहिए कि वह दोनों सदनों में इस पर बयान दे।”

पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने कहा कि यूपीए सरकार ने दो विधेयकों पर काम किया था- एक न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए और दूसरा न्यायिक जवाबदेही के लिए।

उन्होंने एनडीए सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “जब सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को खारिज कर दिया, तो सरकार को इस मामले को आगे बढ़ाना चाहिए था। वे CJI से बातचीत कर सकते थे, एक नया तंत्र विकसित कर सकते थे और एक नया विधेयक ला सकते थे। लेकिन इसके बजाय, उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट के भरोसे छोड़ दिया।”

उन्होंने यह भी जोड़ा, “नियंत्रण की कमी के कारण अनियमितताएं और भ्रष्टाचार हो रहे हैं।”

तिवारी की तरह ही मोइली ने भी कहा कि महाभियोग (Impeachment) ही एकमात्र समाधान नहीं हो सकता।

“महाभियोग एक अपवाद की तरह होता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है और अक्सर प्रभावी नहीं रहती। अब समय आ गया है कि दो अलग-अलग कानून बनाए जाएं-एक न्यायिक नियुक्तियों पर और दूसरा न्यायिक जवाबदेही पर।”

जब मोइली से पूछा गया कि NJAC पर कार्यपालिका (Executive) या न्यायपालिका (Judiciary) में से किसका नियंत्रण होना चाहिए, तो उन्होंने कहा:

“यह सत्ता के संतुलन का मामला है। कार्यपालिका या न्यायपालिका में से किसी को भी इस पर ‘अपर हैंड’ नहीं मिलना चाहिए। न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक उचित संतुलन होना चाहिए।”

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)

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