लोकतंत्र में आपातकाल अपने आप में एक डरावना शब्द है जो लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन को इंगित करता है। कोई भी शासक नहीं चाहता कि देश में आपातकाल लागू हो, आम जनता तो हरगिज़ नहीं चाहती। हमारा लोकतंत्र संविधान से चलता है। इसी संविधान में कानूनविदों ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में आर्टिकल 352 का प्रावधान किया है, जिसके तहत देश, प्रदेश में आपातकाल लगाया जा सकता है। इसमें दो बातें स्पष्ट हैं कि
1. देश में वाह्य युद्ध या गृह युद्ध की स्थिति में आपातकाल लागू किया जा सकता है तथा युद्ध समाप्त होने, शांति स्थापित होने पर आपातकाल को हटा लिया जाएगा।
2. देश में आंतरिक राजनैतिक, आर्थिक संकट होने या ऐसी ही तत्कालीन घटनाएं होने पर भी आपातकाल लगाया जा सकता है और स्थितियां सामान्य होते ही इसे हटा लिया जाना चाहिए।
इससे स्पष्ट है कि आपातकाल भी एक संवैधानिक प्रावधान है जिसका कि उपरोक्त विषम परिस्थितियों में उपयोग किया जा सकता है अर्थात आपातकाल संविधान की हत्या कतई नहीं है।
अब आते हैं कि देश में आपातकाल कितनी बार लगा? देश में अब तक कुल 03 बार घोषित आपातकाल लगाया गया है। पहली बार 26 अक्टूबर, 1962 से 10 जनवरी 1963 तक भारत-चीन युद्ध के दरमियान लगाया गया। दूसरी बार 3 दिसंबर, 1971 से 17 दिसंबर, 1971 तक भारत पाकिस्तान युद्ध के मध्य लगाया गया। तीसरी बार देश में आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक देश के बिगड़ते आंतरिक हालातों के मद्देनजर लगाया गया था।
आज तीसरे आपातकाल के 50 बरस पूरे हो गए हैं। इसी आपातकाल पर संघ परिवार तथा भाजपा भारी हाय तौबा मचाते हैं कि इंदिरा गांधी ने संविधान की हत्या कर देश पर आपातकाल थोपा था। ऊपर मैंने स्पष्ट किया है कि आपातकाल संविधान में एक प्रावधान है और इसका उपयोग विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता है। ऐसे में संघ परिवार का यह आरोप तथ्यहीन है कि संविधान की हत्या कर इमरजेंसी लगाई गई थी।
अब आते हैं कि वह कौन सी तात्कालिक परिस्थितियां थीं, जिस वजह से इमरजेंसी जैसा अलोकप्रिय कदम तात्कालीन इंदिरा सरकार को उठाना पड़ा? दरअसल यह ऐतिहासिक सत्य है कि 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका भारत के विरोध में, पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा था। अमेरिकी प्रशासन भारत को अपने इशारों पर हांकना चाहता था जिसके लिए भारत तैयार नहीं था क्योंकि उसके पास इंदिरा गांधी जैसा मजबूत नेतृत्व था।
अमेरिका के तमाम विरोध के बावजूद भारत ने पाकिस्तान से जंग लड़ी उसके दो टुकड़े किए और नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ। अमेरिकी प्रशासन इस अपमान को दिल पर ले लिया, भारत में इंदिरा सरकार को अपदस्थ करने के लिए अपनी खुफिया एजेंसी सीआईए को काम पर लगा दिया। इंदिरा सरकार ने अमेरिका को सीधी चुनौती देते हुए 1974 में तमाम अवरोधों, विरोधों के बीच राजस्थान स्थित पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बना दिया। इससे अमेरिका इंदिरा गांधी से और ज्यादा चिढ़ गया तथा उन्हें पदच्युत करने और सक्रिय हो गया।
इधर देश में गुजरात में मेस में फीस वृद्धि के विरोध में छात्रों का आंदोलन चल रहा था, ऐसा ही आंदोलन बिहार में भी शुरू हो गया था। इन आंदोलनों को एक सूत्र में पिरोकर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का नारा दे, इंदिरा सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जाने लगा। आईएसआई को इसमें अपना स्वार्थ पूरा होता दिखने लगा, उसने इसमें अपनी भूमिका बढ़ानी शुरू की।
इसके सहयोग से आंदोलन और तीव्र होता गया। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे चेहरे खुलेआम सेना तथा पुलिस को भारत सरकार के आदेशों को न मानने का आह्वान करते थे। यह एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ ही नहीं बल्कि देश के खिलाफ भी विद्रोह था। कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए किसी भी स्तर तक जाया गया। सरकार ने हर मुमकिन कोशिश की कि स्थितियां सामान्य हों पर विपक्ष इंदिरा सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने से कम पर तैयार नहीं था। ऐसे में इंदिरा सरकार ने संविधान प्रदत्त M.I.S.A. कानून (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) का उपयोग करते हुए देश में आपातकाल लागू करने की घोषणा की। इन तमाम आंदोलनरत नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
आज ये जो संघ परिवार आपातकाल को संविधान की हत्या बता रहा है, केंद्र में अपनी सरकार के चलते तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर जनता को गुमराह कर रहा है, वह बताए कि,
1. आपातकाल में उसकी असली भूमिका क्या थी?
2. क्या तत्कालीन सर संघचालक बाला साहब देवरस ने लिखित में आपातकाल का समर्थन नहीं किया?
3. क्या संघ ने लिखित में यह नहीं कहा कि वह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के साथ नहीं है?
4. क्या कई संघियों ने माफी मांगकर जेल से बाहर निकलने का अनुरोध नहीं किया ?
5. क्या तत्कालीन सर संघचालक बाला साहब देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर आपातकाल का समर्थन कर उनसे मिलने का आग्रह नहीं किया?
6. क्या यह सच नहीं है कि देवरस के पत्रों का इंदिरा गांधी ने कोई जवाब नहीं दिया था ?
7. क्या यह सच नहीं है कि इंदिरा जी से जवाब नहीं मिलने पर देवरस ने आचार्य विनोबा भावे को पत्र लिखकर आपातकाल में अपने समर्थन को दोहराया था? उनसे आग्रह नहीं किया था कि वह इंदिरा जी तक संघ की बात पहुंचाएं और उनसे मुलाकात करवाएं?
8. क्या संघ परिवार आपातकाल के दौर में दोहरे मापदंड नहीं अपना रहा था? एक तरफ आंदोलनकारियों के साथ भी अपने को बताया, दूसरी तरफ सरकार से भी बात कर अपने को सजा, जेल से बचाने की जुगत कर रहा था।
यह बिल्कुल सही है कि आपातकाल के दौरान ज्यादतियां हुई थीं, लोगों के संवैधानिक अधिकार छीने गए थे, पर जिन लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया था तथा कष्ट झेले थे, आपातकाल हटने के बाद अधिकांश ने अपनी सामान्य जिंदगी जी पर संघ परिवार के जो लोग एक दिन के लिए भी जेल गए वे सब मीसा बंदी पेंशन बटोर रहे हैं। कहां तो लिखित तौर पर कह रहे थे कि हमारा उन आंदोलनों से कोई सम्बन्ध नहीं है और कहां उसी आंदोलन की आड़ में आज भी पेंशन खा रहे हैं, क्या यह नैतिक रूप से उचित है?
देश की जनता को तथ्यों और तर्कों के आधार पर सच को जानना चाहिए न कि किसी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के अधकचरे और नफरती एजेंडों पर भरोसा करना चाहिए। मेरा आपसे दो प्रश्न है।
1. अगर इंदिरा गांधी तानाशाह होतीं तो वह आपातकाल को बिल्कुल नहीं हटातीं और अपनी सत्ता को बरकरार रखतीं क्योंकि सारी शक्तियां तो उनके ही अधीन थीं। उन्होंने जब देखा कि स्थितियां सामान्य हो रही हैं तो संविधान के मुताबिक आपातकाल हटाकर, सभी बंदियों की रिहाई कराकर देश में आम चुनाव की घोषणा की। 1977 के उस चुनाव में जनता ने इंदिरा गांधी के आपातकाल लागू करने के निर्णय के विरोध में मतदान किया तथा उनकी पार्टी को चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा, कांग्रेस 154 सीटों पर सिमट गई थी।
जनता के विश्वास पर जनता पार्टी की सरकार बनी, संघ परिवार की राजनीतिक पार्टी जनसंघ का भी इस जनता पार्टी में विलय हुआ और केंद्र में मोरार जी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी जिसमें अटल बिहारी वाजपेई तथा लालकृष्ण आडवाणी भी मंत्री थे। क्या कारण था कि 1975 से 1977 तक इंदिरा गांधी के खिलाफ अनवरत संघर्ष कर सत्ता में आई जनता पार्टी जनता के विश्वास में पांच साल भी खरी नहीं उतर पाई?
मात्र ढाई साल में ही दो-दो प्रधानमंत्री देने के बाद भी यह भानुमती के कुनबे वाली सरकार भरभरा कर गिर गई।
1980 में देश फिर चुनावों में गया। जनता को भी समझ में आ गया था कि सत्ता संचालन उनके बूते का नहीं इसे इंदिरा गांधी जैसी मजबूत इरादे वाली ही बेहतर संचालित कर सकती हैं, सो आपातकाल हटने के मात्र ढाई साल में ही इंदिरा गांधी की पार्टी बड़े बहुमत के साथ सरकार में वापसी कर गई, उनकी यह जीत इस बात पर भी मुहर थी कि जनता भी आपातकाल के साए से बाहर आ रही है और उसने कुछ हद तक इंदिरा गांधी को आपातकाल लागू करने के लिए माफ भी कर दिया है। जब उस चुनाव में इस मुद्दे पर देश की जनता का फैसला आ गया तो आज भी संघ परिवार आपातकाल के नाम पर छाती क्यों पीट रहा है? और हां, सुप्रीम कोर्ट ने भी आपातकाल को असंवैधानिक नहीं बताया था। इसका मतलब है कि संघ परिवार न सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानता है और न ही जनता के फैसले को मानता है।
2. साथियों, आज 11 वर्षों से केंद्र में संघ परिवार पोषित भाजपा सरकार है, कई राज्यों में इनकी डबल इंजन की सरकारें हैं क्या आज सब कुछ चंगा है? क्या सारी संवैधानिक संस्थाएं बिना दबाव के काम कर रही हैं ? क्या सारी शैक्षणिक संस्थाएं बिना संघ के प्रभाव के काम कर रही हैं?
क्या देश के नागरिकों से सरकार पारदर्शिता से सूचनाएं साझा कर रही है? क्या देश की मीडिया स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही है? देश वैज्ञानिक सोच से आगे बढ़ रहा है कि काल्पनिक, पुरातनवादी सोच से? क्या देश के सभी नागरिकों से समान व्यवहार हो रहा है? सच तो यह है कि आज अघोषित आपातकाल का दौर चल रहा है। राजनैतिक सत्ता, अर्थव्यवस्था, शिक्षण संस्थान, मीडिया सभी चुनिंदा अपने लोगों के द्वारा संचालित हैं, आम जनता की भागीदारी केवल मतदान तक सीमित हो गई है। यह उस घोषित आपातकाल से बहुत ज्यादा त्रासदीपूर्ण है।
साथियों, अपना देश सदैव से प्रतिभा संपन्न देश रहा है। इसने अनेक भोगी तथा जनकल्याण से विमुख राजा, महाराजा के राज को उखाड़ फेंका है, इसकी जागरूक जनता ने विदेशी आक्रांताओं को मार भगाया है, मुगलों को भी पूरी तरह से अपने तरीके से राज करने नहीं दिया बल्कि उन्हें भी अपने रंग में रंग लिया, अंग्रेजों सहित अन्य यूरोपीय आक्रांताओं को भी अंततः देश से बाहर कर दिया। इंदिरा गांधी को आपातकाल की चुनावी सजा दी, जनता पार्टी को उसकी अराजकता का जवाब सत्ता से उतारकर दिया। प्रत्येक प्रगतिशील विचारों को स्वीकारा है। इसी जनता से उम्मीद है कि वह वर्तमान में जारी अघोषित आपातकाल को भी हटाएगी क्योंकि भारत की जागरूक जनता के लिए राष्ट्र हित सर्वोपरि है।
जय भारत, जय संविधान।
(परमजीत बॉबी सलूजा रायपुर में रहते हैं।)