झारखंड: विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई से बिगड़ता पर्यावरण संतुलन

रांची। निरंतर प्रगति करते देश व राज्य के लिए जहां सरकारी योजनाओं पर आधारित विकास एक अवधारणा है, वहीं उक्त विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में कई विसंगतियां भी देखने-सुनने को मिलती हैं। जिससे हमारा जीवन या यूं कहें कि पूरी सृष्टि के प्रभावित होने का खतरा बना रहता है। इससे यह नहीं समझा जाना चाहिए कि विकास की योजनाएं गैर-उपयोगी हैं, बल्कि योजनाओं के क्रियान्वयन से जो नुकसान होने की संभावनाएं बनती हैं, उन्हें खत्म करने के विकल्प पर ईमानदारी से काम करने की कोशिश होनी चाहिए। जबकि विकास की आपा-धापी में इसे किनारे रख दिया जाता है, जो पूर्णतः गैर जिम्मेदाराना हरकत है।

जैसी कि खबर है, विभिन्न सरकारी योजनाओं को लेकर झारखंड के रांची जिले में वर्ष 2016 से लेकर अब तक कुल 70,952 पेड़ काट दिए गये हैं। खबर यह नहीं कि 70,952 पेड़ों को काट दिए गए बल्कि खबर यह है कि अभी तक काटे गए इन पेड़ों के बदले पुनः वृक्षारोपण नहीं किया गया। जबकि वन विभाग की ओर से उक्त योजनाओं के क्रियान्वयन से संबंधित विभागों को 56,673 पेड़ों को काटने व 14,278 पेड़ों को री-प्लांटिंग करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन आज तक एक भी पेड़ की री-प्लांटिंग नहीं हुई।

खबर के मुताबिक विकास की इन योजनाओं के तहत सौ से अधिक विशालकाय पेड़ काटे जा चुके हैं। दूसरी तरफ काटे गए पेड़ों के बदले वन विभाग द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों को कुल 3,74,365 पेड़ लगाने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन अब तक मात्र 10 प्रतिशत पौधे ही लगाए जा सके हैं। यानी 90 प्रतिशत पौधे नहीं लगाए गए।

रांची वन प्रमंडल के पदाधिकारी (डीएफओ) श्रीकान्त वर्मा ने बताया कि तीन हजार से कम संख्या में पेड़ों की कटाई करने पर 10 गुना पौधे लगाने का प्रावधान है, जबकि 15 हजार से अधिक पेड़ों की कटाई करने पर पांच गुना पौधे लगाने का प्रावधान है। पेड़ों की कटाई के बदले उनकी संख्या के अनुसार वन विभाग के शिड्यूल्ड रेट पर पैसे जमा कर दिए जाते हैं।

पहले प्रावधान यह था कि योजना स्थल पर काटे गए पेड़ों के बदले जमीन की उपलब्धता के आधार पर पांच या 10 गुना पौधे लगाए जाएंगे। इधर दो माह पूर्व नियमावली बनाई गई है कि अब किसी भी योजना को लेकर पेड़ काटे जाएंगे तो योजना स्थल से तीन-चार किलोमीटर की परिधि में ही पांच या 10 गुना पौधे लगाए जाएंगे।

वर्तमान में नेवरी-विकास-बूटी मार्ग व बूटी मोड़ से कोकर की ओर जाने वाली सड़क का फोरलेन निर्माण को लेकर पथ निर्माण विभाग की ओर से जिमखाना क्लब के समीप सौ से अधिक विशालकाय पेड़ काटे जा चुके हैं।

वन विभाग की ओर से मानक के आधार पर 56 सेंटीमीटर से अधिक मोटाई वाले पेड़ों को री-प्लांटिंग करने व इससे कम मोटाई वाले पेड़ों को ही काटने की स्वीकृति प्रदान की जाती है। जबकि वास्तविकता यह है कि वन विभाग से एनओसी मिलने के बाद अधिकांश पेड़ों की कटाई कर दी जाती है। री-प्लांटिंग की प्रक्रिया की ही नहीं जाती है। शहरी क्षेत्र विकास को लेकर नई-नई योजनाएं बनाई जा रही हैं और योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए 50 वर्ष पुराने विशालकाय पेड़ तक काटे जा रहे हैं।

2019 में झारखंड हाईकोर्ट ने सड़क चौड़ीकरण के नाम पर बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई को गंभीरता से लेते हुए जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था। कोर्ट ने सरकार से पेड़ काटने के मामले में जवाब मांगा था। इसके बाद हाई लेवल कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने हाईकोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट में बताया था कि वर्ष 2016 से 2019 के दौरान कुल 62 हजार पेड़ काटने और करीब 21 हजार पेड़ ट्रांसप्लांट करने की अनुमति दी गई है।

कमेटी के अनुसार इसकी क्षतिपूर्ति के बदले विभिन्न निर्माण एजेंसियों को करीब 2.85 लाख पौधा लगाने का निर्देश दिया गया है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद कोर्ट ने एनएच, स्टेट हाइवे, पथ निर्माण व नगर विकास विभाग द्वारा चलाए जा रहे प्रोजेक्ट में काटे गए पेड़ के बदले पौधरोपण कराने का निर्देश दिया था। लेकिन कोर्ट का निर्देश केवल निर्देश तक ही सीमित रहा।

आज स्थिति यह है कि गर्मी के दिनों में पहले जहां बाईपास रोड के किनारे धूप की तपिश बढ़ने पर राहगीर पेड़ों की छांव में थोड़ा आराम कर लेते थे, अब वे इससे पूरी तरह महरूम हो गए हैं।

कुछ योजनाओं के दौरान संबंधित विभाग या संवेदक की ओर से भी पौधे लगाने का आश्वासन तो दिया जाता है, लेकिन पौधे लगाए नहीं जाते हैं।

वहीं बूटी-ओरमांझी मार्ग पर हाल ही में एनएचएआई की ओर से 13 हजार पौधे लगाए गए हैं। पूर्व में सेंट्रल ला यूनिवर्सिटी परिसर में भी पौधे लगाए गए थे।

2016 से लेकर अब तक विभिन्न विभागों द्वारा काटे गए पेड़ों की संख्या- पथ निर्माण विभाग 2,402, एनएचएआई 15,874, दक्षिण-पूर्व रेलवे 816, जुडको 18,556, रांची नगर निगम 2,866, रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन लिमिटेड 1,171, जियाडा 7,886, भवन निर्माण विभाग 163, रियाडा 1512, साज 181, जेएसएचबी 08, पावर ग्रिड 3,614, गेल इंडिया 5,201, सीएसआइआर 145, आरवीएनएल 1056, जेयूएसएनएल 999, एसडब्ल्यूबी, बीसीडी 137, डीवीसी 428, जेआरडीसीएल 3206 तथा अन्य 339..है।

रांची वन प्रमंडल के डीएफओ श्रीकांत वर्मा ने बताया कि जहां एक तरफ सड़क चौड़ीकरण समेत विकास से संबंधित कई कार्यों के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वन विभाग की सक्रियता से रांची के एचईसी क्षेत्र में जगन्नाथपुर थाना के सामने से गोलचक्कर तक सड़क के किनारे स्थित विशालकाय पेड़ों को बचाने की पहल की गई है। पथ निर्माण विभाग की ओर से बिरसा चौक से धुर्वा गोलचक्कर तक (2.60 किमी) बाइसाइकिल ट्रैक व फुटपाथ के साथ) व धुर्वा गोलचक्कर से प्रोजेक्ट बिल्डिंग तक (1.50 किमी) सड़क चौड़ीकरण का कार्य कराया जा रहा है।

वर्मा ने बताया कि पथ निर्माण विभाग की ओर से सड़क चौड़ीकरण के क्रम में बाधा उत्पन्न कर रहे पेड़ों को काटने की तैयारी कर ली गई थी। संवेदक की ओर से मशीन भी लगा दिए गए थे। जब इस मामले की जानकारी मिली तो तत्काल पथ प्रमंडल विभाग रांची के कार्यपालक अभियंता इजरायल अंसारी से बात कर पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई गई। कार्यपालक अभियंता को पेड़ों की बचाने की तरकीब बताई गई।

इसके बाद पेड़ों के जड़ों के इर्द-गिर्द मिट्टी डाले गए और डिजाइनदार टाइल्स से उसकी घेराबंदी की जा रही है। पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता ने यह भी कहा था कि दो पेड़ों के बीच खाली भूखंड पर मिट्टी डालकर हरे-भरे घास लगाए जाएंगे, ताकि इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता बरकरार रहे। हालांकि संवेदक की ओर से दो पेड़ों के बीच खाली भूखंड पर जीएसबी (गिट्टी व डस्ट के मिश्रण) डाले जा रहे हैं। ऐेसे में भविष्य में पेड़ों की जड़ों को पानी कैसे मिलेगा, इसकी व्यवस्था नहीं की जा रही है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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